All writings in Bengali and Sanskrit including brief works written for the newspaper 'Dharma' and 'Karakahini' - reminiscences of detention in Alipore Jail.
All writings in Bengali and Sanskrit. Most of the pieces in Bengali were written by Sri Aurobindo in 1909 and 1910 for 'Dharma', a Calcutta weekly he edited at that time; the material consists chiefly of brief political, social and cultural works. His reminiscences of detention in Alipore Jail for one year ('Tales of Prison Life') are also included. There is also some correspondence with Bengali disciples living in his ashram. The Sanskrit works deal largely with philosophical and cultural themes. (This volume will be available both in the original languages and in a separate volume of English translations.)
'ए' को
ऐसी कोई जरूरत नहीं कि बाहर न निकल घर में ही बैठकर मां को पुकारना होगा । और इस संबंघ में तुम जो करना चाहती हो उसे मां पसंद नहीं करतीं । क्योंकि तुम्हारी छोटी उम्र है, तुम कर नहीं सकोगी, केवल कष्ट पाओगी और मां नहीं चाहतीं कि तुम कष्ट पाओ ।
नहीं, इससे तो यही अच्छा है कि तुम मन-ही-मन मां को याद करो, मां को पुकारो-सुख में, दुःख में उन्हीं का सान्निध्य सब अवस्था में उन्हीं की सहायता, उन्हीं के आशीर्वाद और रक्षा की कामना करो, तभी सब कुछ होगा ।
१०.५.३५
*
पता नहीं तुम दोबारा कब आ सकोगी । लगता है तुम्हारे पिताजी इतनी जल्दी दोबारा आने नहीं देंगे, उससे दुःखी मत होना । सदा मां को याद रखना, वे तुम्हारे साथ ही रहेंगी । वे साथ हैं, रक्षा कर रही हैं ऐसा दृढ़ विश्वास मानों सब समय तुम्हारे अंदर जाग्रत् रहे । तीन महीने कोशिश करना, उसके बाद फल न मिलने पर छोड़ देना- इससे कोई बात नहीं बनती । असली बात है उन्हें याद रखना और पुकारना, जितने दिन भी लगें, यह करते-करते ही तुम सचेतन होओगी, मां तुम्हारे साथ हैं यह अनुभव करोगी, दर्शन भी करोगी ।
१३.५.३५
मैंने बंगाली में ही चिट्ठी लिखी है । इसके बाद वैसा ही करुंगा । भविष्य में क्या होगा कहना मुश्किल है फिर भी आशा करता हूं कि ऐसी घटनाएं घटेंगी जिससे तुम जल्दी ही लौटोगी और दर्शन लाभ करोगी । तबतक हमें याद करती हुई प्रतीक्षा करो । हमारे साथ मन-ही-मन जितना घनिष्ठ होकर रहोगी उतनी ही जल्दी जीवन में सफल होने की संभावना रहेगी ।
१४.५.३५
जिस घर में कोई भगवद्-चर्चा नहीं वहां तुम्हारा न जाना ही अच्छा है । लेकिन यदि तुम्हें वहां जाना ही पड़े तो मां को ही पुकारों । जैसे अब करती हो वैसे यदि न कर सको तो चुपचाप अपने मन-ही-मन पुकारो -इस तरह न कोई समझेगा न
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जानेगा । लेकिन पुकारने का फल तुम्हें मिलेगा ।
१७.५.३५
तुमने ऐसा क्यों लिखा कि हम लोम तुमसे नाराज हैं ? हम तुमसे कभी भी नाराज नहीं हुए, आज भी नहीं । नाराज होने का कोई कारण भी नहीं था, तुमने कोई गलती नहीं को ।
क्या तुम्हें कल सवेरे मेरी चिट्ठी नहीं मिली ? मैंने तो चिट्ठी लिखी थी, उसमें लिखी थी हमारे स्नेह की बात और लिखा था कि तुम निश्चय ही हमें पाओगी । जो भी हो, मैं फिर से दोहरा रहा हूं ।
हम तुम्हें बहुत प्यार करते हैं और यह प्यार हमेशा अटूट रहेगा । मन खराब न करना या निराशा को घुसने मत देना । यह दृढ़ विश्वास हमेशा मन में पोसती रहो कि मैं मां को पाऊंगी ही पाऊंगी, श्रीअरविन्द को पाऊंगी, दूर रहकर भी उनके दर्शन करूंगी । हमेशा हमें याद रखो और हमेशा हमारी ओर निहारो । जो यही करते हैं वे हमें प्राप्त करते हैं, तुम भी निश्चित ही पाओगी । और यदि यही करो तो ऐसी घटनाओं का समावेश होगा कि तुम यहां आ सकोगी, हमारा दर्शन कर सकोगी ।
कल जरूर आना । मां को मिल जाना ।
मुझे तुम्हारी तीन चिट्टियां मिलीं, बहुत-से कामों में व्यस्त होने के कारण उत्तर नहीं दे सका-तीनों चिठियों का आज एक साथ उत्तर दे रहा हूं । इस बार दर्शन पर आना असंभव है इस बात का काफी कुछ अंदाज था मुझे । इतने थोड़े समय की अवधि में दो बार आना आसान नहीं । दुःखी मत होओ, स्थिर रहो, मां को याद कर अपने अंदर विश्वास और बल का संचय करो । तुम मां भगवती की संतान हो, शांत, धीर, शक्तिमयी बन जाओ । मां को पुकारने का कोई विशेष नियम नहीं । मां का नाम लेना, उन्हें अंदर-ही-अंदर याद करना, मां से प्रार्थना करना--इन सबको कहते है मां को पुकारना । जैसे तुम्हारे अंदर से उठे, उसी तरह ही पुकारो । यह भी कर सकती हो कि सवेरे-सवेरे आंखें बंद कर कल्पना करो कि मां तुम्हारे सामने खड़ी हैं अथवा मानस चित्र बना उन्हें प्रणाम करो, वह प्रणाम मां के पास पहुंचेगा । जब समय मिले तो इस भाव के साथ की मां तुम्हारे साथ हैं, सामने बैठी हैं, ध्यान कर सकती हो । ऐसा करने पर लोग अतत: मां के दर्शन लाभ करते हैं । मेरे आशीर्वाद लेना । मां के आशीर्वाद भी इसके साथ भेज रहा हूं । बीच-बीच में ज्योतिर्मयी प्रणाम के समय
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तुम्हारे लिये आशीर्वादी फूल लेकर भेज देगी ।
२८.५.३५
तुम्हारी दो चिट्टियां मिलीं । जब तुम यहां थीं उस समय तुम्हें जो लिखा था उसे मन में रख धीर चित्त के साथ मां का स्मरण करो, उन्हें टेरो । पहले आंख बंद करने पर वे दिखायी देती हैं, अपने अंदर उनकी वाणी सुनायी देती है, किंतु यह भी आसानी से नहीं होता । मनुष्य बाहरी रूप देखता है, बाहरी बात और शब्द सुनता है--जो उसकी स्थूल आंखों के सामने पड़ता है, कानों में बजता है वही देखता है, वही सुनता है । और कुछ देखना और सुनना उसके लिये कठिन है । आंतरिक दृष्टि और श्रवण-शक्ति को खोलना होगा, उसके लिये प्रयास अपेक्षित है, समय लगता है, यदि शुरू में न हो तो दुःखी मत होना । मां सदा तुमसे स्नेह करती हैं और तुम्हारा ख्याल रखती है । एक दिन तुम उनके दर्शन करोगी, उनकी वाणी सुनोगी । दु:ख मत करो, मां की शांति और शक्ति को अपने भीतर पुकारो, वहीं मिलेगा मां की उपस्थिति का सुराग ।
१६.६.३५
[चिट्ठी के अंत में श्रीमां ने जोड़ा] :
Love and blessings to my dear little Eshs.
The Mother
अपनी प्यारी नन्हीं-सी एषा को प्यार और आशीर्वाद ।)
- श्रीमां
नहीं, तुमसे हम नाराज क्यों होंगे भला ? बहुत व्यस्त था, लिखने का समय नहीं मिला । अभी दर्शन का महीना है अत: बहुत ही व्यस्त रहा । इस बार बहुत-से दर्शनार्थी आ रहे हैं । आशा करता हूं कि तुम्हारा स्वास्थ्य बेहतर होगा-तुमने लिखा था कि इस बीच दो बार अस्वस्थ हुई थीं--आशा है इसके बाद स्वस्थ ही रहोगी । तुमने लिखा है कि रांची जा रही हो । कब जाओगी और कितने दिन ठहरोगी ?
वर्तमान अवस्था से चिंतित या दुःखी मत होओ । मां पर संपूर्ण भरोसा रख शांत और प्रसन्न रहो, अच्छे समय की प्रतीक्षा करो । एक दिन तो मां के दर्शन करोगी ही । जो दृढ़ भाव से उनके ऊपर निर्भर करते और पुकारते हैं वे अंत में उनके पास पहुंच ही जाते हैं । इस पार्थिव जीवन में बहुत रुकावटें और व्याघात आ सकते हैं, समय लग सकता है, फिर भी वे मां तक पहुंचते हैं ।
४.८.३५
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बहुत दिन से चिट्ठी लिखना चाहते हुए भी लिख नहीं सका । काम का बोझ कम नहीं होता, बढ़ता ही जाता है, एक तरफ कम भी हो तो दूसरी तरफ बढ़ जाता है । यह सब काम करते-करते रात बीत जाती है, उसके बाद बाहर की चिट्टियों का उत्तर देने का समय और नहीं रहता । आज भी यही हुआ है, फिर भी लिखने बैठा हूं ।
पता लगा कि तुम और तुम्हारी मां बहुत बीमार रहीं । आशा करता हूं यह दोबारा नहीं होगा, अब खतम हो गयी बीमारी । बहुत-सी जगह ऐसा हुआ है, यहां और बंगाल में कई जगह हुआ है साधकों के साथ । इस अवस्था से गुजरना आसान नहीं था ।
नहीं, तुमसे नाराजगी नहीं थी । नाराजगी होगी क्यों ? हमारा तुम्हारे ऊपर अटूट स्नेह है और अटूट ही रहेगा ।
और कुछ लिखने का समय नहीं है, बाद में लिखूंगा । हमारे आशीर्वाद ।
२६.१२.३५
[श्रीमां ने लिखा :]
Love and blessings to my dear little Esha.
(अपनी प्यारी बच्ची एषा को प्यार और आशीर्वाद ।)
इतने दिन रोज पूरा दिन काम रहता था इसीलिये तुम्हारी चिट्ठियों के उत्तर नहीं दे सका । अभी भी वैसी ही हालत है, पर क्योंकि आज रविवार है, काम कुछ हल्का है अत: दो पक्तियां लिखने बैठा हूं ।
हमारे बारे में सोचने पर स्वप्न में हम देखने पर मन क्यों खराब होता है ? स्वप्न में मां तुम्हारे पास आयीं यह तो आनन्द की बात होनी चाहिये थी । अब मिलना नहीं होगा समझ मन खराब न होने देना । मां मुझे याद करती हैं, प्यार करती हैं, भीतर हर समय मेरे पास रहती हैं ऐसा विश्वास रख शांतमन हो रहो, समय की प्रतीक्षा करो,--जो सब बाघाएं अब हैं वे चिरकाल नहीं रहेंगी ।
हर समय मां को याद करो, उनके ऊपर निर्भर रहो । हर समय याद करते-करते एक दिन दर्शन भी होंगे, अपने अंदर भी देखोगी ।
देखो, यदि मैं तुम्हें मिलने की अनुमति दूं तो क्या दूसरों से निस्तार पाऊंगा ? वे क्या नहीं बोलेंगे, "तुमने एषा को आने दिया और हमें दर्शन नहीं दे सके ? यह कैसी
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व्यवस्था ? यह कैसा अन्याय ? हम मनुष्य नहीं है क्या ?'' इसके बाद जब डेढ़ सौ लोग दनदनाते हुए मेरे ऊपर आ पड़ेंगे तो मेरी क्या दशा होगी, जरा सोचो तो ?
बंगला में बड़ी-सी चिठ्ठी लिखनी होगी ? मेरी ऐसी क्षमता है क्या, या समय है मेरे पास ? यह छोटा-सा उत्तर लिखते-लिखते दम निकल गया और रात भी बीत गयी । इस बार तो बंगला में लिख दिया लेकिन इसके बाद ऐसी कसरत और नहीं कर सकूंगा, कहे देता हूं ।
बहुत दिन से तुम्हें चिठ्ठी नहीं लिख सका हूं--इच्छा थी पर संभव न हो सका । इस बार दर्शन पर सात सौ से अधिक लोग आये--बहुत-से १५ अगस्त के काफी पहले से आ गये, और बहुत-से १५ के बाद रह गये, आज भी हैं, अब जाने शुरू हुए हैं । इस कारण काम अत्यधिक बढ़ गया था, आश्रम का काम भी बहुत बढ़ गया है । पूरा दिन--रात एक करके भी काम समाप्त नहीं होता । इसलिये बाहर की चिट्ठीयों का उत्तर नहीं दे सका । अब जाकर कुछ कम हुआ है काम इसीलिये यह चिट्ठी लिख पा रहा हूं । पर जो कम हुआ है वह कहने भर को है । अब भी मेरे अनेक आवश्यक काम पड़े हैं, कर नहीं सका, अभी भी समय नहीं मिल रहा ।
ज्योतिर्मयी की चिट्ठी और फूल क्यों नहीं मिले यह ठीक समझ नहीं सका--लगता है इस बीच उसकी चिठ्ठी मिल गयी होगी, उसने निश्चय ही अपनी कैफियत दी है ।
आशा है तुम सकुशल होओगी । यदि कभी मां को पुकारने के लिये कोई निश्चित समय न भी पाओ तो हर समय उसे पुकार कर अपना सारा जीवन और सब काम उसे समर्पित करने का प्रयास करो ।
[श्रीमां:]
Love and blessings to my dear Esha.
(अपनी नन्हीं-सी प्यारी बच्ची एषा को प्यार और आशीर्वाद ।)
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