Essays on the Rig Veda and its mystic symbolism, with translations of selected hymns.
Essays on the Rig Veda and its mystic symbolism, with translations of selected hymns. These writings on and translations of the Rig Veda were published in the monthly review Arya between 1914 and 1920. Most of them appeared there under three headings: The Secret of the Veda, 'Selected Hymns' and 'Hymns of the Atris'. Other translations that did not appear under any of these headings make up the final part of the volume.
अनुक्रमणिका III
[ वेद-रहस्थके उत्तरार्द्धमें आये विशिष्ट विषयों तथा उल्लेखोंकी ]
विषय
अ
अंगिरस् ऋषि--अग्निकी सात प्रभाएं
अगिरस् ऋषियों की उपलब्धि
अंगिरा:
अंधकार और विभाजनकी क्रिया
अंधकारमय गाय
अक्षर-बीज-ध्वनियां
अखंड और अनंत देवीका वाणी-उच्चारण
अग्नि
अग्नि और तपस्
अग्नि और सूर्य देवता
--भौतिकीकी भाषा में
--मनोविज्ञानकी भाषामें
अग्निका कार्य
,, देवोंका आह्वान
अग्निका घर सत्य
अग्निका धात्वर्थ
अग्निका स्वरूप
,, ऋ. IV. 7 के आधारपर
अग्निका सच्चा अर्थ
अग्निका स्वरूप और व्यापार
पृष्ठसंख्या
362
344
323
223
136
284
144
20,45,90,93,
134,150,
170,172,
216,235
356
321
28,50,369
27
311
26
26,340,
355,356
301,303,
313,315,322,
333,353
5
317,356,
357,361
अग्निकी अभिव्यक्तियाँ-
क्रियाकी समस्त शक्ति
सत्ताका बल
रूपका सौन्दर्य
प्रकाश और ज्ञानकी
दीप्ति, महिमा एवं महत्त
अग्निकी उत्पत्ति
अग्निकी माताएं-दस बहिनें, सात नदियां
'अग्नि'की व्युत्पत्ति
अग्निके जनक
अग्निका पवित्र अधिकार (व्यापार)
अग्निके रूपककी व्याख्या
अग्निको प्रज्वलित करनेके रूपकका अर्थ
अग्निदेव
अग्नि देवोंमें अग्रणी और प्रधान क्यों?
अग्नि-द्रष्टा संकल्प (कविक्रतु:)
--निर्भ्रान्त संकल्प
--सत्य-सचेतन आत्मा
--अन्तर्द्रष्टा
--पुरोहित
--मनुष्यके अन्दर अमर कार्यकर्त्ता
--अज्ञान और कुटिलताके विरुद्ध जयशील योद्धा
--देवका संकल्प-बल
--देवका ज्ञान-बल
--जड़ प्रकृतिका गुप्त निवासी
--मानवका प्रत्यक्ष और प्रिय अतिथि
-निशामें सजग- सत्रिय
-- भ्राता, बन्धु, सखा
-यज्ञका पुरोहत
28,29,30
357
322
4
360
112,138
312
27,111
27,86
313
86
४३९
-हमारी सत्ताकी ज्यौति
-आत्मदृष्टिका प्रकाश
-प्रेरणाका अधिपति
-सर्वांगपूर्ण उपभोगका स्वामी
-यज्ञवेदीकी ज्वाला
--आहुतिवाहक पुरोहित
-उर्ध्वमुख अभीप्साकारीबल
-संकल्पकी ज्वाला
-ऋत्विक्
-यज्ञका नेता
-आत्माका मित्र और प्रेमी
-शक्तिका पुत्र
-संकल्पशक्ति
--हमारी सत्ताका पिता और अधिपति
'अग्नि' शब्दका अनुवाद
अग्निशक्ति
अघोष वर्ण
अजगर
अजगर और उषा
अज्ञान या असत्य-पाप- तापका रूप
अन्तरिक्ष-लोक
अतिचेतनका अवतरण-द्युलोककी वर्षा
अतिचेतन सत्तासे सात नदियोंका अवतरण
अतिचेतन सत्य
अतिचेतन सत्यका स्तर-स्वर्लोक
अतिमानस
अतिमानसिक प्रकाश
अतिमानसिक विशालता सत्ताक आधारभूत सत्य
अतिमानसिक सत्य और मानवीय प्रगतिका अर्थ
96
129
157
28
29
50
32
65
283
31
16
164
216
81
79
82,
83
100
23
127
अतिमानसिक ज्ञानके दो प्रकार
अत्रि
-भोक्ता या यात्री
अदिति
--देवोंकी असीम माता
-अंनत चेतना
-अनंत ज्योति
अदितिका पुत्र
'अ' धातुका अर्थ
'अध्वर'का अर्थ
'अध्वर'की व्यत्पत्ति और अर्थ-
-निरुक्तानुसार
-श्रीअरविन्दानुसार
अनंतके पुत्रोंके जन्मके दो प्रकार
अनंतताके पुत्रका कार्य
अनंत परमानन्द
अनंत सत्ता और चेतनाकी एकताका निर्माण
अन्तर्ज्ञान
अन्तस्थ वर्ण
अनुनासिक (पराश्रित) -ङ् और ञ्
अनुनासिक वर्ण
अनुबन्ध
-द्विविध अनुबन्ध
अनुवादकी शैलीके प्रयोगका स्पष्टीकरण
अपरार्धमें ब्रह्म-दर्शन
अपूप
'अप्नवान'का अर्थ--द्रष्टृ-प्रज्ञा
अप्नवान कौन है ?
अभय ज्योति
अमर
अमरताकी प्राप्ति
अमरताकी मदिरा
340
24,201
150,173,176,178,
179
22,125,126
125
177
302
358
399,358,359
149
152
178
215
3
290
291
328
19
151
15
40
४४०
अमरता-प्राप्तिके साधन
अमरदेव
अमरत्व
अर्चनानस्
अरणिका प्रतीकात्मक अर्थ
अर्यमा
--मानवीय यात्राका देवता
--सत्यकी अभीप्सा करनेवाली शक्ति
--हमारी दिव्यशक्ति
-उसका आवाहन
-उसक कार्य
-उसकी शक्ति
--उसके कार्य-व्यापारोंकी प्रतिपादक ऋचा
'अरि' का अर्थ
अवनय:
'अर्वत्' शब्दके दो अर्थ
अरुण्य: -मर्त्य मनमें ज्ञानकी रश्मियां
अश्व
अश्वमेध-यज्ञका अर्थ
अश्व शक्तिका प्रतीक
अश्विदेव (अश्विनौ)
असत्य शब्दका अभिप्राय
असली जीवनकी प्राप्तिके उपाय
असीमताके पुत्र
असुर
असुर-असत्य, वि भाजन, एवं अंधकारकी शक्तियां
असुर्यम्-देवशक्ति
-अन्तरस्थ दिव्य असुर
'अ' स्वरका अर्थ
अहिर्बुध्न्य
अहैतुक तपस्
30
307
192
21,45,154,156,
172,174
176
45
156
155
351
218
420
120
58
31,296
82
145
187
75
333
22
आ
आंतरिक शक्तियोंका स्वभाव
आगम
आजके जीवनका स्वरूप
आत्मा
आत्मा--एक युद्धक्षेत्र
आत्माका घर
आत्माका मित्र और प्रेमी
आत्माका स्थान
आत्माका विकास संवर्धन
आत्माकी देहबद्ध अवस्थाएं
आत्मा--मनमें अवस्थित
आत्माके सात कोश (खोल)
आत्मा हंस या श्येन है
आदिकालीन मनोवृत्ति
आदित्य--अनन्तताके पुत्र
आदिम जड़वादीय प्रकृतिवाद
-उसके पीछे छिपी गुप्त पूजा-पद्धति
आध्यात्मिक युद्ध
आधारका रहस्यमय सर्प
आधार क्या हे ?
आध्यात्मिक ऐश्वर्यकी अवस्था
आध्यात्मिक विचार प्राचीन सार्व-जनीन संस्कृतिके
अंग
-भारत उस संस्कृतिकाकेन्द्र
आध्यात्मिक वैभव
आध्यात्मिक संपदाएं-
दिव्य जलधारा
ज्योति
शक्ति
द्युलोककी वृष्टि
आनंद
-भगकी देन
आनन्दोपभोक्ता
आनन्दका स्वरूप
150
292
200
24
109
361
57
52
319
317
279
343
308
320
102
374
76
334
४४१
आनन्दके पौदोंके रस
आनन्द-ब्रह्म,चिद्-ब्रह्म, सद्-ब्रह्म
--उनमें विशेष तात्विक अनुभव
आनन्द-मानस
आर्य
आर्य ऋषि
आर्य और द्राविड़ एक ही सरूप जाति
आर्य (जनों) के पांच नमूने
आर्यजाति और द्राविड़जातिमें भेद
निराधार एवं भ्रान्तिपूर्ण
आर्य ज्योति
आर्य पुरुषकी समग्र प्रगति एक संग्राम
आर्य भाषाओंके शब्दकोषके साझे तत्त्व
आर्य भाषाका विभक्तिमय स्वरूप-उसका कारण
आर्यभाषाके उद्गम
आर्यभाषाके प्राचीन रूपोंमें शब्द-प्रयोग तरल
आर्यभाषामें 'आर्य' शब्दका अर्थ
आर्येतर दाक्षिणात्य संस्कृति एक निराधार कल्पना
आहुतिवाहक पुरोहित
इ
'इच्छा' और 'याचना' किसी धातु के प्राथमिक अर्थ
नहीं
इन्द्र
--उसका स्वरूप
--उसका स्वरूप और कार्य
--भागवत मन
--स्वर्का स्वामी
32,175
371
262
147
18
259
274
272
346
335
309,310,311,
126,309,310
44,119
---दिव्य मनकी शक्ति
--सत्यके प्रकाश का दाता
इन्द्र और उपेन्द्र
इन्द्र और वरुणका स्तोत्र
इन्द्रके सहायक-शिल्पी ऋभुगण, मरुत्
इन्द्र-वरुणकी सहायताके अधिकारी
इन्द्र-सम्राट्-सब वृत्तियोंके चालक
इडा
'इ' स्वरका अर्थ
ई
'ई' धातुका अर्थ
'ईड्य:'का अर्थ
'ईळे'की व्यत्पत्ति
ईश्वर, ईश्वरी
ईश्वरीय मन और उषा
उ
उच्चतर सत्ताकी विशालता की ओर आरोहण
उपनिषदें, स्मृतियां आदि शास्त्र वदसे विकसित
उपनिषदोंकी वेदविषयक मान्यता
उपसर्ग
उपेन्द्रत्व क्या है ?
उषा
-उसका स्वरूप
-उसका कार्य
-मानव सत्तापर दिव्य ज्योतिका उन्मीलन
-विचारकी देवी
-प्रत्यक्ष अनुभव-रूपी ज्ञानकी देवी
55
21
309
22,56
359
172
348
129,134,135,138,
140
34
137,139
138
४४२
-सब ज्योतियोंकि परम ज्योति
-पूर्ण सत्योंकी तेजस्वी नित्री
-परम आनन्दके अधिपति की वधू
-उसकी रश्मियाँ
-उसके आगमनका रूपक
-उस रूपकमें, यज्ञ, सूर्य, रात्रि आदि प्रतीकात्मक
उषा और निशा
उषाके आविर्भावके लिये प्रार्थना
उषासे अग्निदेवकी याचना
'उ' स्वरका अर्थ
उस्रिया:
ऊर्ध्वमुखी अभीप्साकारी बल
ऊष्म अक्षर
ऋ
ऋक्
ऋग्वद,
-मानवजातिकी अभीप्सा-का गीतपाठ
-आत्मारोहणकी वीरगाथा का आख्यान
-आत्माका स्तोत्र
ऋग्वेदकीव्याख्यामें अनिश्चितता क्यों ?
ऋग्वेदके प्रथम सूक्तका केन्द्रीय विचार
ऋत
ऋतका अर्थ-सायणानुसार
'ऋत्' की व्युत्पत्ति और अर्थ
'ॠतम्'के अर्थ
ऋतम्-वस्तुओंकी यथार्थ क्रिया
'ऋतस्य पन्था:'
ऋतावाका अर्थ-सायणानुसार
पृष्ठसंखया
137
220
139
332
182
25,125
25
342,343
126
367
330
351,352
ऋतु
ऋत्विक्
'ऋत्विज्'का अर्थ
'ऋत्विज्'की कर्मकाण्डीय व्युत्पत्ति
'ऋत्विज्'की प्राचीन व्युत्पत्ति
'ऋतु'का वेदमें अर्थ
'ऋषि'का अर्थ
ऋषिका लक्ष्य और काम्य
ऋषियोंकी आध्यात्मिक विजय
ऋषिकी कामना
ऋषिकी प्रार्थना मानवमात्रके लिये
ऋषिकी पुकार
ऋषित्व
ऋषियोंकी अग्निदेवसे प्रार्थना
ऋषियोंका आह्वान
ऋषियोंके लिये अग्निकी महत्ताका कारण
ऋषि वशिष्ठका धारासम्बन्धी कथन
ऋषि वामदेवका सूक्त
ऋषि शुनःशेपका यज्ञस्तंभसे बांधा जाना
ऋषियोंके नामोंका मार्मिक अर्थ
ए
एकं सत्
एकमेव
एकमेवका विस्तार
एकमेवके तपस्से सबका उद्धव
ऐक्य
क
कक्षीवान्
कठोर ध्वनियां
कण्व
27,356
330,331,336
329
329,330
336
330,337
207
133
74
189
331
162
148
145,148,181
160
154
४४३
कर्मकाण्ड आत्मज्ञानकी आधार-शिला
कर्मकाण्डकी बुद्धिग्राह्य व्याख्या आवश्यक
कर्ममात्र ईश्वरके प्रति आहुति
कलियुगका स्वरूप
कवि
'कवि' का अर्थ
कारक-रूपों और क्रियारूपोंमें भेद
सरण-समुद्र ओर तपस्
कुत्स
'केतु' शब्दका मूल धातु
केनोपनिषद् और ब्रह्मका रूपक
कैलाश चन्द्रलोकका शिखर
'क्रतु'की व्युत्पत्ति और अर्थ
कौन हमारा उद्धारक ?
क्रतु
क्रियारूपों और कारकोंके समान प्रत्यय
क्षर-अक्षर
क्षेत्र
ग
गति-उत्तम और अधम
गण
'ग' व्यञ्जनका अर्थ
गविष्ठिर
गुहा या गुह्य तत्त्व
गुह्य चैतन्यका समुद्र
गाव: (गा:, य)
गीत
गुण और वद्धि
गुण करनेका सिद्धान्त
गुप्तचर
गुह्य आत्मा-वस्तुओंका पिता
372
315
146
242
24,135
287
300
292,292
221
301
306
205,207,235
190
286
167
44
गोतम
गो-प्रकाश अथवा गाय
गोयूथ-सौर दीप्तियोंकी किरणें
गोयूथोंकी तेजस्वी माता
गौ
गौओंकी ज्योतिर्मयी माता
गौ, दधि, यवके दोहरे अर्थ
गौएं-दिव्य सत्यकी दीप्तियां
घ
घृत (प्रतीकात्मक)
घोडी (प्रतीकात्मक)
च, छ
चतुर्विध सविताकी दिव्य सृष्टि
चमचेका प्रतीक
चार युगोंमें विष्णुके अवतारका चतर्विध रूप
चिच्छक्ति-शक्ति, देवी, काली, प्रकृति
चित् और आनन्द-क्रियासे निवृत्त
-क्रियाँमें प्रवृत्त
चित् और शक्ति एक ही हैं
चित् और सत्की अनुभूति
चित्त
चित्ति
'चेतनम्'का अर्थ
चेतन सत्ताका गठन
चेतन सत्ताका तीसरासमुद्र
चेतना और शक्तिकी क्रिया
छलनी
ज
जगत् यज्ञकी वेदी
'ज्' व्यञ्जनकी भाव-शक्ति-यङ् प्रत्ययकी शक्ति
जातवेदस्का अभिप्राय
195
205
121
61
36
183
327,328
316
318
364,365
93
234
326
317,331
४४४
जीवके उद्धारका उपाय आत्मदान (यज्ञ)
जगत् सद्वस्तु
जड़ प्रकृति और वैदान्तिक सत्य का सूत्र
जड़ प्रकृतिका गुप्त निवासी
ज्योतिर्मय देवोंसे हमारी मांग
ज्योतिर्मय लोककी सात नदियां
जीवन एक घोड़ा
ज्ञान
ज्ञान या सत्य-पवित्रकारी साधन
ज्ञानयोग एवं अध्यात्मयोग
ड़
ड़् कोमल मूर्धन्य और तरल मूर्धन्य
त
तत्वों और लोकोंका पुन:विभाजन
तन्यव: -सत्यके शब्दका बहिर्गर्जन
तपस्--मानस
तपस्-विशुद्ध भागवत, अति-चेतन शक्ति
तर्कबुद्धिका यथार्थ कार्य
तर्कबुद्धिके दुष्पर्रिणाम
तामिलके संख्यावाचक शब्द प्राचीन आर्य शब्द हैं
तालव्य आपरिवर्तन
तिङ्-वभिक्तियां व सुप्-विभक्तियां
तीन बन्धन-अज्ञान, दु:ख-वासना-विरोध,मृत्यु
तीन महान् देवता--ब्रह्मणस्पति स्रष्टा
273
95
185
12
188
269
288
-रुद्र
-विष्णु
तीस उषाओंकाकार्य
तेजस् और सात कोषों का संबन्ध
तेजस्के सात प्रकार
तेजस्वी आत्माएं-चित्-शक्तिकी ज्वाला-रश्मियां
तेजस्वी आत्माओंकी उपलब्ध
त्रिकोकी शृंखला
त्रित
-आरोहणके तीसरे स्तरका देव
त्रित आप्त्य
--मनोमय पुरुष
त्रिदेवके कार्य
त्रिधातु--सत्-चित्-आनन्द
त्रिविध तत्त्व
त्रिविध लोक
त्रिविध लोक-संस्थानका वर्गीकरण
त्रिणि रोचना
त्रेतायुगका स्वरूप
द
दधिक्रावा
दनु या दिति-विभक्त सत्ताके पुत्र
'द्' व्यञ्जनके गण
दृष्टि और श्रुति
दमका अर्थ
दयानन्दकी व्याख्याशैली
द्यौ और पृथिवी-मन और शरीर
दल्l' धातुके वंशज लैटिन,ग्रीक, संस्कृतमें
द्वापरका स्वरूप
द्वापर यज्ञका युग
दस हजार-दिव्यज्ञान की ज्योतियोंकी प्रतीकात्मक संख्या
11
22,29,73,97
97
22,29
73
153
327
67
419
278,279
119
४४५
द्रष्टा
और प्रकाशक दोंनोंका कार्य
द्रष्टा-संकल्प (कविक्रतुः)
दश धिय:
दस्यु
-अंधकारकी शक्तियाँ
-अंधकारके स्वामी
दक्षिणा
-विवेककी देवी
-उषाका रूप
दिति
दिन और सौर प्रकाश आलोकित मनके प्रतीक
दिन-रात
दिन-रातका गूढार्थ
दिव्य आनन्दोल्लास
दिव्य उषा
-परम प्रकाशकी प्रतिमूर्ति
-द्युलोककी पुत्री
-अदितिकी शक्ति
-देवोंकी माता
दिव्य चिन्मय शक्ति
दिव्य जल (-धाराएं)
दिव्यज्वाला-अग्नि
-द्यौ-पिता-पृथ्वी माताका शिशु
--मन या आत्मा और शरीर या जड़ प्रकृतिका शिशु
-मानसिक, चैत्य तथा भौतिक चेतनाका शिशु
-सात माताओंका शिशु
--उसका पूर्ण जन्म सात तत्त्वोंकी अभिव्यक्ति
27,131
128
27,29
67,68
22,34
369
161
35
35,171
134
135
20,27,145
29,30
104
29,30,115
--उसका भव्य रूपकों द्वारा वर्णन
-उसके अनेक जन्म
दिव्य प्रकाशका प्रचर ऐश्वर्य
दिव्य योग
दिव्य मनके चमकीले हरि
दिव्य मानवका स्वभाव
दिव्य वाणी
दिव्य विधानका राजा
दिव्य शिशु
दिव्य संकल्प
दिव्य सकल्पका कार्य
दिव्य संकल्प-जन्मोंका ज्ञाता
दिव्य संकल्पशक्ति
--उसका कार्य
दिव्य सत्ताओंका कार्य
दिव्य सत्ताके दो पक्ष
दिव्य सवन
दिव्य स्रष्टाकी वरणीय ज्वाला
देव
-उनका स्वरूप (बाह्य और आन्तर)
-वे भौतिक शक्तियों आदिके मानवीकरण नहीं
-सच्ची सत्ताएं
-सचेतन मनोवैज्ञानिक शक्तियाँ
-शक्तियोंके चेतन केन्द्र
-भास्वर सम्राट्
-पूर्णताके अधिपति
--उनका (चन्द्र, सूर्य, इन्द्र, बृहस्पति, वायु, मित्र,
वरुण, अर्यमा, भग, अग्नि, ब्रह्मका) प्रतीकात्मक स्वरूप
108
66
168
163
51,52
170
53
329,344
296,329,344,358
141
४४६
--उनके शरीर और अङगो पाङोंका प्रतीकात्मक अर्थ
--उनकी माता
--उनका अपना घर
--उनका ज्ञान-बल
--उनका संकल्पबल
-उनकी संयुक्त स्तुति
-उनकी सहायतासे दैत्योंका पराभव
-उनके धामकी ओर आरोहण
-उनके सीधे और पूर्ण नेतृत्व का परिणाम
-उनका (अग्नि, इन्द्र, सूर्य, सोम) का वर्णन
-उनके कार्य द्विविध (बाह्य और आन्तरिक)
-उनका मनुष्यसे संलाप
-उनका आह्वान
--वे मनुष्यको क्यों पुकारते है ?
-उसके बदलेंमें मनुष्य क्या करता है ?
'देव' और 'दस्यु' शब्दोंके अर्थ
देव और दैत्य
--उनका कार्य
देवक्रीडानुदर्शनम्
देवताओंके युगल--अश्विनौ, इन्द्र-वायु, मित्रा-वरुण, इन्द्र-वरुण
देवताके गण-उसके अधीनस्थ मन्त्री
देवताति
देवता प्रकृतिकी क्रीड़ाके रूपकमात्र (यूरोपीय मत)
191,329
14
20,21
145,153, 301,
340,347
38
27,54
320,332
298
देवत्वका मनुष्यमें अवतरण और कार्य
देववीत
'देव' शब्दका अर्थ
-सायणानुसार
--वेदमें इस शब्दका संगत अर्थ
-इस शब्दके साथ सायणका विचित्र व्यवहार
दो अरणियां
दोहरे अनुवादकी रीति का प्रयोग
द्युलोक
द्युलोककी कुक्कुरी
द्युलोककी धाराएं
द्युलोकके प्रचुर वैभव
द्युलोक--विशुद्ध मानसिक सत्ता
द्युलोक-सत्यका रूप
द्यौ और पृथिवी
द्यौ-पिता
द्वित--आरोहणके दूसरे स्तरका देव
द्विपाद् और चतुष्पाद्का गुह्य अर्थ
ध
धर्म
--चतुष्पाद्
धातु
--भाषाकी निर्धारक इकाइयां
-भाषाके महत्त्वपूर्ण अंग
--उनके स्वरूपकी खोज
-उनके अर्थोका मूल कारण
316,317,329,351
363
72
6
27,28
27,180,185
70
233
228
173
271,277,284,286,327
277
271
४४७
--उनका द्वित्त्व
--उनसे शब्दोंकी रचना
--उनसे क्रियारूपोंकी रचना
-आदिम, उनकी रचना-विधि
-द्वितीयस्थानीय
-कण्ठय, तालव्य, दन्त्योष्ठय,महाप्राण,मूर्धन्य,ऊष्म
-तृतीयस्थानीय, आश्रित
--तृतीयस्थानीय की रचना-विधि
-अवैध, तीसरे दर्जेके
--नियमित और अनियमित
--प्राथमिक और जनक
-सानुनासिक
धातु और बारहखड़ी
धातुकी उपेक्षा भाषाशास्त्रकी विफलताका कारण
धातु-गोत्र (धातु-परिवार)
धातु-रूप (शुद्ध)
धातु-समूह (प्राथमिक)
धाम
धेनव:
ध्वनि और अर्थका संबन्ध
--उस सबन्धका कारण
ध्वनियों के अर्थोंका निर्धारण
- -उसका नियम
न
नई दष्टि
नई सृष्टि
नदियौकी मनोवैज्ञानिक कल्पना
नये सत्ययुगमें परमविष्णुका अवतार
नवनीत
नया जन्म-दिव्य व्यक्तित्व
325
285
285,286,288
278
180
276,292
276
नये सत्ययुगका जन्म प्रेमके अवतरण द्वारा
निम्नतर सत्य
निर्गुण सत्
निर्दोष पवित्रता
निर्भ्रान्त संकल्प
निम्नतर सत्ताके मार्ग
निर्मित शब्दमें तल्लीनता भाषा-शास्त्री की घातक भूल
निरुक्तका सिद्धान्त
निशा और उषाका गूढ़ार्थ
नीचेका स्वर्लोक-चन्द्रलोक
प
पर्जन्य
पथ और यात्राका रूपक
पथिकका लक्ष्य
पणि
पणि और उषा
परम आनन्द
परमआनन्दकोधारणकरनेकी शर्ते
परम देवता
परम धाम
परम पद (परमोच्च स्तर)
परमानन्दकी प्राप्ति
पर्याय-विरोधी प्रवृत्ति
परार्द्ध (अव्यक्त) --सत्ताका उच्चतर गोलार्ध
'पशु' शब्दका अर्थ
परार्धके तीन तत्त्व
पशु-सत्तासे मनोमय सत्ताकी ओर आरोहण
पापकी जननी अविद्याका त्रिविध पाश
पापकी परिभाषा एवं प्रतिक्रिया
पाप-स्वभावगत दुष्टताका परिणाम
169
324
20
48
404
275
71
४४८
पिता-पुरुष, द्यौ
पितृलोक
पितर
पितर--प्राचीन ज्ञानप्रदीप्त पुरुष
पितरोंका शब्द-शक्तिसे अभय-ज्योतिमें आरोहण
पुरुष
पुरुष यज्ञका देवता और यज्ञक हवि
पुरुष या वृषभ
पुरोहित
--इस शब्दका अर्थ
--इसकी व्यत्पत्ति
पूर्ण दिव्य-आनन्दकी प्राप्ति
पूषा
--द्रष्टा-रूपमें रथोंके अश्वों-का प्रचालक
--उससे प्रार्थना
पृथिवी--माता
--हमारी भौतिक सत्ता
--अन्नमय चेतना
पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्युलोक अन्न-प्राण-मनके प्रतीक
पृथ्वी, द्युलोक
'प्र' का अर्थ
प्रकट करनेवाला शब्द
प्रकाश
--उसकी और ज्ञानकी दीप्ति,महिमा एवं महत्ता
--उसका ध्रुव
--उसका (परम) लोक
--उसका स्वर्ग
--उसकी गौ
--उसकी संतान
--उसका शक्तिसे संबन्ध
175
181
27,39,356
91
323,324
143
140,142,301
141,142,143
45,183
--उसका अंधकारसे विरोध
प्रकाशप्रद सूंक्त
प्रकाशमय गुहा
प्रकाशमय गौके दूध और घी
प्रकाशदायी शब्दकी शक्तिसे सर्वोच्च सत्ताका ध्यान, धारण
प्रकाशमान अमर देव
प्रकृति
प्रकृति और आत्मा-माता और पिता
प्रकृतिके उद्धारका पथ
प्रकृति (जगती) -देवीका यज्ञ
प्रकृतिदेवीको भगवान्का ज्ञान और उनपर भरोसा हे
प्रकृतिमें सोमके आनंदकी स्थापना की शर्त
प्रकृति यज्ञमें सहधर्मिणी
प्रचेता: और विचेता:
प्रतीकात्मक भाषाका प्रयोजन
प्रत्यय--अस्, इन्, अन्, आदि
प्रत्यय, विकार और आगम
--उनका शब्द और अर्थ पर प्रभाव
प्रत्ययोंका मूल स्रोत और अर्थ
प्रत्येक भाषा संस्कृतका अपभ्रंश
प्रत्येक वस्तु प्रकाश और सत्यसे उत्पन्न
'प्रतिभान' की अवस्था
प्रयस्
परमोच्च प्रभु विष्णु उपेन्द्र कैसे.?
परसर्ग (enclitic)
परसर्ग और उपसर्ग
प्रज्ञा
परार्द्ध और अपरार्द्ध
परार्धमें ब्रह्मके दर्शन
प्राकृतोंकी उत्पत्ति
प्राचीन उषाके सूक्त
13
39
305
289,291
166
2
४४९
प्राचीन आर्यभाषा
--उसकी पर्यायबहुलता
--उसमें रूपोंकी समृद्धता
--उसमें शब्दोंकी अनेका-र्थकता
--उसमें शब्दकी तरलता
--उसमें अर्थकी तरलताकाकारण
--उसमें एक ही शब्द संज्ञा, विशेषण, क्रिया-विशेषण
प्राचीन मानवभाषा अति स्वतन्त्र और नमनीय
प्राचीन रहस्यवादी पूजाका एक रूपक
प्राणकी कामना
प्राणकी वेगवती घोड़ियां
प्राणके स्वामी मातरिश्वा
प्राणमय पुरुष
प्राणमय, मनोमय कोष
प्राणिक और भौतिक स्तरकी क्रियाएं
प्राणिक या स्नायविक स्तर
प्राणिक शक्तियां
--प्रेरणा देनेवाली
--यात्रामें हमें वहन किए चलनेवाली
--उनका प्रतीक, अश्व
प्राणिक सत्ता
प्रेम
प्रेमके अधिपति मित्रका कार्य
ब
बभ्रू (अरुणी) -मर्त्यमनमें ज्ञानकी रश्मि
ब्रह्मणस्पति--स्रष्टा
10
118,120
206
बिचका लोक--प्राणिक और भावप्रधान सत्ता
बीजध्यनि 'व्' में अन्तर्निहित तत्त्व
बुद्धि
-उसकी शक्तियां, भेधा, तर्क शक्ति, प्रत्यक्षज्ञान
बुद्धिकी मांग और भाषाका विकास
,, वाव्योंका विकास
,, लकारोंका विकास
,, कारकों का विकास
,, वचनों का विकास
,, विशेषणात्मक रूपों का विकास
,, क्रिया-विशेषणके रूपों का विकास
बुद्धिप्रधान मनके घटक तत्त्व
बृहत्
वृहत् घौ (उच्चतर, गोलार्थ, नेम)
'बृहती: इषः' का अर्थ
बृहस्पति
ब्रह्म
-उसकी सप्तविध अन्त:संत्ता
-उसकी सप्तविध बाह्य सत्ता
ब्राह्मण-ग्रन्थोंकी वेदव्याख्याके दोष
ब्राह्यण-ग्रन्थोंमें वेदकी गुह्य याज्ञिक व्याख्या
भ
भग
-साक्षात् सविता
-स्रष्टा सविता
-सर्व-उपभोक्ता
पृष्ठसंखा
293
289
236
354
21, 154
४५०
-मनुष्यके अंदर आन-न्दोपभोक्ता
-आध्यात्मिक़ ऐश्वर्यका स्वामी
-आध्यात्मिक ऐश्वर्यका दाता
-उसका कार्य-व्यापार
-उसके प्रति वसिष्ठका स्तोत्र
भगवती शक्ति
भगवान्
-सवस्पर्शी, अनंत शुद्धसत्ता
-उनका वरुण-रूप
भगिनी आर्यभाषाएं-लैटिन, ग्रीक, संस्कृत
भागवत पुत्रका सर्जन
भागवत संकल्प
--अग्निदेवकी शक्ति
--हविर्दाता एवं पुरोहित
--उसके आवाहनका प्रयोजन
भाषा
--उसका (भाषाविषयक) भूर्ण-विज्ञान
--उसके विकासका एक नियम
--उसके निर्मायक नियमित तत्त्व
--उसके दो आवश्यक तत्त्व, 1 उसकी संरचना,II.
उस संरचनाके उप-योगका मनोविज्ञान
--उसका संरचनात्मक विकास
--उसके पुष्पित होनेकी दूसरी अवस्था
158
265
63,88,91
118
90
49,88,90
265,273,274,
282,284,288
,292
282
--उसके बाह्य रूपमें प्राकृतिक नियमकी क्रिया
--उसका क्षेत्र एवं प्रयोजन
--उसके प्रत्येक शब्दका नानाविध उपयोग
--उसको प्राचीनताकी पहचान
--उसकी उन्नत अवस्थाओं के लक्षण
भाषाओंके बन्धुत्वकी कसौटी
भाषाओंके विचारका अर्थ
भाषा (प्राथमिक) का क्षेत्र--चालीस गोत्र
भाषाविज्ञान
--उसका सच्चा मूलमन्त्र (दल्भि, दलन ईत्यादि)
--उसकी खोजके लाभ
--उसके लिये उपयुक्त आधार
--(आधनिक) एक कपोलकल्पना
--(वास्तविक) की आधारशिला
भाषाशास्त्र और
,,पुरातत्व-विज्ञान
,,नृवंश-विज्ञान
,,मानव-विज्ञान
,,समाजशास्त्र
,,वैज्ञानिक
,,रनां
भाषाशास्त्र--यूरोपीय
भाषाशास्त्रियोकी भुलें
--उनका आर्योकि भारत-आक्रमण का चित्रण
एक दंतकथा
भाषाशास्त्री संस्कृति-पुनरुद्धारकों की स्थापना तर्कहीन
266
259.260,271,
260
259,260
261,278
263
264
४५१
भाषासाम्य एकसमान सभ्य-ताओंका प्रमाण
-नृकुल-संबंधी एकताका प्रमाण नहीं
भृगु
--ज्ञानके सूर्यकी प्रज्वलित शक्तियां
--आध्यात्मिक संकल्पशक्ति के आविष्कारक
--द्रष्टृ प्रज्ञाकी शक्तियोंके प्रतीक
-वैदिक ज्ञान और साधनाके संस्थापक
--इस शब्दका धात्वर्थ
भौतिक और मानसिक चेतनामें अतिमानसकी क्रिया
भौतिक विज्ञानोंकी मूल सामग्री और शक्तियां
भौतिक शरीर
म
मधुच्छंदस्
मधुमय सोमरस
मनकी मुक्त शक्तियां-पक्षी
मन, प्राण और शरीरका त्रिविध लोक
मनस्
मंत्रोंके अर्थमें सायणकी जोर-जबरदस्ती व
पैंतरेबाजी
मनुष्यका द्युलोक, अन्तरिक्ष और भूलोक
--उसका घर-पूर्ण परमानन्द
--उसके लिये भृगु द्वारा अग्निकी उपलब्धि
--उसका लक्ष्य देवोंको भी अतिक्रांत करना
92
78
77
--उसकी आत्माका ऊर्ध्व-गमन और दिव्य तत्त्वका
आकर्षण
--उसके अंदर अमर कार्यकर्ता
--उसका लोकोंमें आरोहण
--उसके ऊर्ध्वारोहणमें देवों का कार्य
--उसके जागरणका दिन विहितय
--उसका प्रत्यक्ष और प्रिय अतिथि
मनोमय पुरुष
--उसकी प्रकृति और कार्य
--उसमें दिव्य और अनन्त चेतनाकी स्थापना
मन: सत्ताके शिखर
मन:सत्ताकी पूर्णता (सुमति)
मयस्
मरुत् (विचारके देवता)
--सत्यके वेगशाली अन्वेषक
--द्रष्टा, स्रष्टा, विधाता
--एक आंख
--ज्योतिर्मय नेता
--उनका प्रकाशमयबलहै सत्य
--उनके माता-पिता
--उनका निवासस्थान
--उनका भव्य रूप
--उनकी कौंधती बिजली
--उनकी बिद्युत्-गर्जनाएं देवोंके सूक्तगान एवं सत्यका उद्घोष
--वें ( उनके गण) आत्माके शिल्पी
--उनके कार्य
मरुतां शर्ध: -मरुत्-देवोंकी सेना
204
194
270
6,57,185,186,
243
244
245
402,413
४५४
महत्तम आनंद
महत्तर द्युलोक
महान् त्रयी
महान् देवियां
महाप्राण ध्वनियां
महासत्यम् और कारणम्
मही अथवा भारती
मातरिश्वाका अर्थ
मानवीय पुरोहित
मानवीय शरीर-प्रासाद
मानसिक विज्ञानोंकी सामग्री और शक्तियां
मानसिक सत्ताका रूपान्तर
माया
--दिव्य सत्य-प्रज्ञा
--उसके दो प्रकार, दिव्य और अदिव्य, सत्यकी
रचनाएँ और असत्यकी रचनाएँ
मारुत शर्ध:--प्राणशक्तियों की सेना
मार्तण्ड-आठवां सूर्य
मावान्का अभिप्राय
मित्र
--प्रेमका अधिपति
--उसका' कार्य, सामंजस्य-स्थापन
--इस शब्दका मूलार्थ
मित्र और वरुण
--सत्यकी महान् शक्तिके धारक
--दिव्यसत्ता एवं दिव्य विधानके संरक्षक
310
280
187,213
42
130
309,310
21,154,168,
172,173,190
44,170
161,171
45,171,173
169,173,185,
202
185,202
--उनका आह्वान
--उनमें भेद
मुक्तिदायक शब्द
मूर्धन्य और दन्त्य वर्णोंका संबन्ध
मूल संस्कृतमें शब्दरचनाकी विधि
मूल संस्कृत शब्दोंके अर्थोंकी छायाएं लुप्त
मेधातिथिकी महाकाङ्क्षा
--उसके पूरक इन्द्र-वरुण
मैक्समूलरका घातक सूत्र
,, भ्रामक सूत्र
य
'य्' के गुण (अर्थकी वशेषताएं)
यजमान--जीव
यजुः
-इस शब्दका अर्थ
'य' (प्राथमिक धातु) का अर्थ
यज्ञ
--एक आध्यात्मिक प्रयास
--भगवत्प्राप्तिके लिये प्रयास और अभीप्सा
--एक तीर्थयात्रा
--यात्रा और युद्ध
--(बाह्य) अन्तर्यज्ञक प्रतीक
--उसकी वेदी
--उसका (यज्ञका) पशु जीव
--उसकी हवि
--उसके अश्व
--उसका नेता
--उसका प्रयोजन
--उसका लक्ष्य--अतिचेतन सत्ताकी पूर्णता
-उसके द्वारा सत्यकी खोज
--उसका योगसे संबन्ध
--उसकी सभी आहुतियां प्रतीकात्मक
148,235,314,
344,345
303
345
106,205
199
४५३
-उसके सभी फल प्रती-कात्मक
-इस शब्दकी व्युत्पत्ति
--इसका अर्थ व अभिप्राय
यज्ञ और योग
यज्ञिय ज्वालाके जन्मकी स्तुति
यहूदियोंकी सृष्टि-उत्पत्तिकीधारणा
यास्कका निरुक्त
यास्क (निरुक्तकार) की धांधली
यात्राकी द्रुतगामी ज्वालाशक्ति
याज्ञवल्क्यकी उपलब्धि
युगल अश्विनौके कार्य
यूथ और जलधाराएं दो वैदिक रूपक
यूपकाष्ठ (यज्ञस्तंभ) -मन-प्राण-देह
योग
-जीवनका उदात्तीकरण
-उसका फल
र
रत्न
--इस शब्दके अर्थ
रत्नधातमम्'की व्युत्पत्ति और अर्थ
'र' धातुका अर्थ
रयि, रत्न, राधः, रायःका अर्थ
'रयि' शब्दकी व्युत्पत्ति और अर्थ
रहस्यवादियोंका सिद्धान्त
राजाओंका. चतुष्टय
राजर्षि
राजा तुग्रके पुत्र भुज्युका समुद्रमें डूबनेका रूपक
राजा वरुणका सत्य
रात और दिन प्रतीकात्मक
रात्रि
325,326
302,305,324,
326,327
159
349
295
87
305,332
333,334,336
338
9-25
56
रात्रि और तमस् अज्ञानपूर्ण मनके प्रतीक
रात्रसे लोकोंकी उत्पत्ति
रुद्रदेव
--परमेश्वरकी शत्रसज्जित कल्याणकारी शक्ति
ल
ल्, ळ् और ड्
--'lळ्' ध्वनि एक उप-भाषागत विशेषता
लक्ष्मी और सरस्वती
लुप्त आदिम धातु
लोक
--अतिचेतन लोक
--दिव्य लोक
-अवचेतन या नश्चेतन-!लोक
--उनका परस्पर आदान-प्रदान
लौकिक संस्कृत संकुचित, कठोर,चयनकारी
व
वन, वनस्पति, ओषीधि भौतिक सत्ताके प्ररोहोंके प्रतीक
'वनस्पति' शब्दका दोहरा अर्थ
वरुण
-भगवानकी पवित्रता और विशालतोका प्रतिनिधि
-हमारी सत्ताके विविध पाशको काटनेवाला
-राजा, उच्चतम व्योमका, सागरोंका
पृष्टसंख्या
208
11,13
291,292
64
21,44,154,156,
168,196,209,
212,215,218,
309-10
-दिव्यसत्ताका सागर, महा-महिम सम्राट् आदि
-विराट् मनीषी, सत्यका संरक्षक
--अनन्त सम्राट
-प्रज्ञाका नाभिकैन्द्र, सत्य-ऋतका कार्यकर्ता
-सेभी वृत्तियोंका शासक
-उसका अधिकार-क्षेत्र
उससे ऋषियोंकी प्रार्थना
--उसके प्रति वसिष्ठ-का स्तोत्र
-इस शब्दका बाह्य और गुह्य अर्थ
वरुण और मित्र
-सत्ताको महान् बनाने-वाले
-एक दूसरेके पूरक
--उनका आवाहन
--उनकी देन
--उनका वाणी-उच्चारण
वस्तुओंका क्रियाशील वैश्व सत्य
वस्तुओंको आकार देनेवाला त्वष्टा
'वाज'का अर्थ
वायु
वासुदेव--सद् आत्मा
'वि'का अर्थ
'विज' की व्युत्पत्ति और अर्थ
विज्ञान
--उसकी किया
--उसकी मख्य शर्त
-उसके साक्षात्कारों एवं अन्त:प्रेरणाओंके ग्रहणकी
प्रतिक्रिया
163,165
168,309
158,162,164,
215, 218,309
-10
212
144,169,196,
209
196
196,209
216,217,261,
304,317
261
'विप्र' का अभिप्राय
विभाजनकी माताके पुत्रोंके नाम (सामान्य और विशेष) -राक्षस, वृक, वृत्र, शुष्ण,नमुचि, वल, पणी
'विभु' और 'विम्व'का प्राचीन अर्थ
विरोधी शक्तियोंके ऐश्वर्य
विवृत ध्वनियाँ
विवेक-चेतनाकी देवी दक्षिणा
विशाल सूर्य का लोक
विश्वके क्रमिक स्तर
विश्वजीवन
--एक यज्ञ
--उसका निगूढ़ अर्थ
--विश्वदेव्य
विश्वपुरुषकी इच्छासे एक बीजसे रूपोंका विकास
विश्व ब्रह्माण्ड लोकोंकी एक जटिल शृंखला
विश्वयज्ञ
विश्वव्यापी कर्मकाण्डका रूपक विश्वेदेवा:
विष्णु
--सवव्यापक सत्ता
--सब लोकोंका धारण करनेवाला
--वैद्युत मानव
--उसके तीन पग
वीर--मानसिक और नैतिक शक्तियां
वृकका मूलार्थ
वृत्र
-उसका ज्ञान (माया) सीमित सत्ताका बोध
51
33
304
23,45,126,301,
४५५
वृषभ
वृषभ और गौ का प्रतीक
वेद
-उसका माहात्म्य
-उसका आधार सत्य और विज्ञान
-मनुष्यकी अमरताका गायक प्राचीनतम ग्रन्थ
-जीवनकी गति और आत्माके विशाल नि:श्वाससे युक्त
-भारतके धर्म और ज्ञानका स्रोत
-रहस्यमय
-उसका रहस्योद्घाटन भी रहस्य
-उसके ऋषि प्रतीकात्मक
-उसके देवता
-उसका आधारभत ज्ञान
-उसमें योग और अध्यात्म का तत्व
-उसका मुख्य प्रतिपाद्य (मुख्य बात)
-कर्म (ऋतम्) के शिक्षक
-उसका कर्मकाण्ड आधि-भौतिक वादी नहीं,
प्रतीकातात्मक
-उसका कर्मकाण्डीय भाष्य अकाट्य और निर्भ्रान्त नहीं
--उसके विचारका ढांचा
--उसका प्रतीयमान अर्थ
--उसके सूक्तोका उद्देश्य
--उसकी (वेद-काव्यकी) शैली
1,6,8-0,15,25
164,263,275,
294-95,297-
98,300-1,313,
315,318-19,
345-46,349-
55,361-62,
371-73
9
294
8
371,72
1
350
-उसकी अनूठी रूपकमाला
-उसकी भाषा' और विचारधारा
--उसके शब्द सांकेतिक (प्रतीकात्मक)
-उसके पारिभाषिक शब्दोंके अर्थ कैसे निश्चित
करें ?
-उसमें शब्दोंकी अनेकार्थकताकी आवश्यकता
-उसका अर्थ साधना-लभ्य
-उसका यथार्थ अर्थ
-उसके मन्त्रोंका तात्पर्य-निर्णय
--उसकी प्रामाणिक व्याख्याके लिय तीन प्रक्रियाएं
-उसकी स्पष्ट और संबद्ध व्याख्याका तरीका
-उसके अनुवादकी शैली
-उसके गूढ़ अर्थको ग्राह्य बनाना
-उसका आंतरिक भाव
-उसकी आध्यात्मिक व्याख्या का मेरा प्रयत्न
पहला नहीं
-यह प्रयत्न आधुनिकतम पद्धति पर आधारित
--उसकी (वेदकी) आध्यात्मिक ब्याख्याकी प्रवृत्ति अतिप्राचीन
-उसकी व्याख्या'आत्मविद्' के अनुसार
--उसकी गुह्यार्थकता पर आक्षेप और उनक उत्तर
361-62
295-95
350-52
353
354-55
373
297
345-46
४५६
-वेदविषयक प्रश्नोंका उत्तर सूक्तोंके तुलनात्मक
अध्ययन सें
वेद और शंकर
वेदकी कुंजी वेद
वेदकी व्याख्या वेदसे
वेदके विषयमें नवीन मत
वेदके विषयमें श्रीअरविन्दकी मान्यता
वैदिक भाषाका अंग्रेजी मे अनुवाद
वैदिक यज्ञ और देवताओं के रूपक
व्यंजन-ध्वनि
--उसका अर्थपर प्रभाव
--उसके परिवर्तनोंकी प्रवृत्तियां
--उसके पांच वर्ग
--व्यंजन-संबंधी आपरिवर्तन संरचनात्मक
'व्योम' विष्णुका परम पद
'व्रतानि'--दिव्य क्रियाएं
श
शकराचार्यकी वेदविषयक धारणा
शक्तिका पुत्र
शक्तिका ध्रुव
शक्तिशाली धाराएँ-
ज्योतिर्मय लोककी सात नदियाँ
शब्द
शब्द और अर्थक सुनिश्चित संबध एक मोह
शब्दकी अनेकार्थकताकी विरोधी प्रवृत्ति
शब्दप्रयोगमें निश्चितँसाकी प्रवत्ति
शब्दशक्तिका कार्य
355
17
283,285,286,
84
शब्दोके अर्थोके चुनावमें निर्णायक मूलतत्व
शब्दोके मूल धातु
शम् और शर्मका अर्थ
शान्ति, आनन्द और पूर्ण तृप्ति
शाश्वत सत्य
शिशु-मन और शरीरकी क्रियाओंसे उत्पन्न दिव्य शक्ति
शुद्ध मनका व्योम्
शुद्ध महाप्राण-ह्
शुनी ( अन्तर्ज्ञान)
शुन:शेप
--उसकी वरुणसे प्रार्थना
'श्रवस् 'का अर्थ
श्रीअरविन्द और वेद
--उनकी व्याख्या-पद्धति
--उनकी वेद-शब्द-व्याख्या सच्चे भाषाविज्ञानपर आधारित
-उनकी ब्याख्यामें समग्र द्रष्टि
- उंनके द्वारा प्रतिपादित 'वेद-रहस्य'की मौलिकता
--तत्कृत मन्तार्थका अर्थ-गौरव
श्वेत अश्व
स
संकल्पशक्तिका स्वरूप--वैदिक दृष्टिसे
संधि
-कठोर और कोमल ध्वनियोंमें
-महाप्राण अक्षरों और विशेष-विशेष व्यंजनोंमें
94,350,372-74
94
5,26,27,322
28,29,122
४५७
संबद्ध शब्दजातियाँ
संयम-पतञ्जलिप्रोक्त
संयुक्त स्वर
संरचनात्मक ध्वनियाँ
-उनकीं रचना
संवृत ध्वनियाँ
संस्क़ुतभाषा
--उसका 'संस्कृत' नाम पड़नेका कारण
--देवभाषा
--उसका आधार सार्वभौम, सनातन
न-भाषामात्रकी जननी
--उसकी वर्णमाला
--नियमित, सममित, प्रणालीबद्ध
-वैज्ञानिक बुद्धिकी सष्टि
--उसकी संरचना शक्ति-शाली
--उसकी गाणितिक पूर्णता और वैज्ञानिक
नियमितता
-उसके स्वरों और व्यजनोमें विशेष अविच्छेद्य
--उसका प्रत्येक स्वर व व्यंजन सार्थक
--उसकी भव्य सुस्वरताराएँ
--उसकी ध्वनियां मन्त्रोंके आधार और प्रभाव-स्रोत
-उसके स्वर-व्यंजनोंसे प्राथमिक और द्वितीयस्थानीय धातुओंकी उत्पत्ति
--उसके और तामिलके शब्दोकी समानता
--उसमें अपभ्रंशजनक प्रवृत्ति
270,282-84,
289,324,-25
282,289
सगुण सत्
सच्चिदानन्द
--उसका ईश्वर-रूप
--उसका अधिष्ठातृत्व
--उसका विश्वमें प्रवेश
--उसकी प्राप्तिका उपाय
सत्-अहैतुक
सत् और चित्
'सत्'के घटक तत्व और हमारे अंदर उनका मेल
सत्ता
--उसका समुद्र
--उसका विशाल विधान
--उसके सात तत्व और पुराणोंके सात लोक
--उसके तीन स्तर
--उसके विस्तृत स्तर और कुटिल स्तर
--उसके तीसरे स्तरका उद्घाटन
--उसका बल
--उसके प्रबल प्रवाहोंका वर्षण
सत्--महासत्यम् और महाब्रह्म
सत्य
--उसका सूर्य
-उसका सौर लोक (सत्यलोक)
-उसकी चेतना (सत्यचेतना) और इसकी पाँच शक्तियाँ, मही (भारती), इडा, सरस्वती, सरमा, दक्षिणा
-उसके विधान
--उसका स्तर
--उसकी शक्ति
305,315
40,65,93,128,
99
21-23,37,48,61,
125-26,128,
138,152,180,
185,189,203,
204,223,331
20,126
48,61,189
22,203
37
४५८
--उसकी ऋतुएँ (दिव्य या आर्ये क्रियाएँ)
--उसकी सत्ताकी ओर'प्रयास
--उसके और वेदके स्वतः-प्रकाशका साधन
--उसका पथ
--उसे आधिकृत करनेकी प्रक्रिया
--उससे उषाकी उत्पत्ति
--उसकी नदियोंका अवतरण
--उसकी स्तुति
--उसकी और अंधकारकी शक्तियोंके बीच युद्ध
सत्यम्, ऋतम्, बृहत्
सत्यम्-परब्रह्म अर्थात् सत्य या महाकारण
सत्ययुगका स्वरूप
सत्य-सचेतन आत्मा
सनातन देवोंकी मुख्य शक्तियाँ
सप्त अवनय: -सात पृथिवियाँ, सात स्तर
'स' प्रत्ययका अर्थ
समान मातधातु
समान शब्दपरिवार
समान शब्दवंश
समुद्रीय आकाश
सम्राट् (आत्मगत और बहिर्गत सत्ताका शासक)
सरमा
सर्वताति और देवताति-वैश्व और दिव्य सत्ताक
निर्माण
सर्वांगीण पूर्णताकी सिद्धिके करण
सर्वोच्च उषाका उदय
सर्वोच्च सत्ता
सविता देव
191,344
337
165,186
3,22
130,144-45,
-ऋतका स्रष्टा (सत्यका सर्जक)
-उसके कार्य
सहस्र-संख्या परिपूर्णताका प्रतीक
सहैतुक तपस्
सात लोक, सात तत्व
सायण-
-उसका वेदभाष्य
-उसकी की हुई अग्निकी व्याख्या
--उसकीव्याख्याकेदोष
-उसकी व्याख्याकी विवेक-हीनता
--उसके भाष्यका परिणाम
--उसके और यरोपीय विद्वानोंके भाष्योंकीतुलना
-उसके और श्रीअरविन्दके किये मन्त्रार्थोंकी तुलना
सिद्धिप्राप्त आत्माके लक्षण
सीधी-सरल प्रेरणा
सुमति
सुरा
सूक्ष्म अन्न
सूक्ष्म प्राण
सूर्य
-द्युलोकका पुत्र
-सत्यकी परम ज्योति
-उसके सत्यकी चारशक्तियाँ, वरुण,मित्र,अर्यमा,भग
-उसकी उच्चतर एवं उच्चतम ज्योति
-उसकी ज्योति और अन्तर्दष्टि
-सविता स्रष्टा
145,301
322,334
348-49,351,
368,372-73
213
348,349
368
372,373
29-30
203
172,194,207
20,21,127,129-
134,140,142,
167,227,235,
129,131
131
132
४५९
--आन्तरिकलोकोंका स्रष्टा
--ज्ञानका अधिपति और स्रोत
--प्रकाशक विचारका प्रेरक
--परम शब्दका वक्ता
--यज्ञका नियन्ता
--एक स्वर्णिम जहाज
--उसके गोयूथ
--उसके कार्य, ज्योतिर्मय दष्टि और ज्योतिर्मयसृष्टि आदि
--उसके चलनेका पथ
--उसका आवाहन
--उसका सवर्धक पूषाके रूपमें प्रकट होना
--उसका 'मित्र' देवके रूपमें प्रकट होना
--इस शब्दका अर्थ और भावार्थ
सोम
--आनन्द-मदिरा
--उस(आनन्द-मदिरा) के धारक मनोलोक और
भुलोक
--तार्किक बुद्धि
सौर गाथा
सौर देवों-वरुण, मित्र, अर्यमा, भग-के कार्य
स्त्रीलिङ्गी शक्तियाँ (ग्ना:)
स्वधा
'स्वधिति'का दोहरा अर्थ
स्वर्
--प्रकाशका लोक
227
131,142,27
129,132,134,
129,130,132,
134,301
7,21,234,235,
312,321
7,312
296
43,98,152,197,
87,197
--विशुद्ध दिव्य मन
--उसकी अन्तप्रेरणाएँ ही वरुणके गुप्तचर
स्वर्ग चन्द्रलोकका आधार
स्वर् या सूर्यलोक
स्वर्लोक--सत्यलोकका रूपक
स्वर--शुद्ध और विकृत
स्वराज्य वा साम्राज्य-पूर्ण-आन्तरिक राज्य
--उसके अधिष्ठाता इन्द्र-वरुण
स्वर् और सम्राट् (आत्म-शासक और सर्वशासक)
स्वरोंके अंदर निहित अर्थसूचक प्रवृत्ति
'स्वर्णर' अतिचेतन स्तरकी एक शक्ति
'स्वेद' शब्दका दोहरा भाव
ह
हंस-जीव
--और परब्रह्म
'ह्' व्यंजनके मूल गुण (अर्थ)
हमारी सत्ता पर्वत-सदृश
'हविं और 'हव'का अर्थ
हृदय (हत्)
होता
--उसका अर्थ
--उसका प्रचलित अर्थ
--इस शब्दकी व्युत्पत्ति
होता और ब्रह्मा--अग्नि और बृहस्पति
43
98
282-83
165,166
333,358
४६०
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