The Mother confides to a disciple her experiences on the path of a 'yoga of the body'.
During the years 1961 to 1973 the Mother had frequent conversations with one of her disciples about the experiences she was having at the time. She called these conversations, which were in French, l’Agenda. Selected transcripts of the tape-recorded conversations were seen, approved and occasionally revised by the Mother for publication as 'Notes on the Way' and 'A Propos'. The following introductory note preceded the first of the 'Notes on the Way' conversations: 'We begin under this title to publish some fragments of conversations with the Mother. These reflections or experiences, these observations, which are very recent, are like landmarks on the way of Transformation: they were chosen not only because they illumine the work under way — a yoga of the body of which all the processes have to be established — but because they can be a sort of indication of the endeavour that has to be made.'
विषय-अनुक्रमणिका
अंधकार ६९, ९८, १५५, १५७
अज्ञान ३८, ६९, १०१
अतिमानव [अतिमानव सत्ता, नयी
सत्ता]
-ओ, ईसामसीहों, कल्कियोंकी बाढ़-
सी ८०
क्या आकाशसे टपकेगी? ६५-६
का आगमन व अभितयक्ति ८७
की मानवसे भिन्नता : सीमित रूप-
को खोये बिना परम चेतनाके
साथ तादात्म्य ११७, २४९
पहले शक्तिकी सत्ता होगा १३९
(दे० 'अतिमानस' मी)
देखनेमें कैसा होगा २१६, २७०-
७५ (दे० 'अतिमानस' भी)
-ओंके लिये सुरक्षा और बचावका
साधन : 'नयी शक्ति' २८३
(दे० 'चैत्य पुरुष', 'मनुष्य', 'श्री-
अरविंद' भी)
अतिमानव चेतना
का अवतरण १ जनवरी, ६१ को
१३३-४४; इसका शरीरपर
प्रभाव १३५-४३; मनपर
प्रभाव १४०-४१
चली गयी क्योंकि मै बहुत व्यस्त
थी १४१, १४२
सूचना :
ऐसे पढ़ें :
कठिनाई जानना दूसरे श्रीमाताजीका शरीर
-यां, भौतिक से -को की
भौतिक कठिनाइयां जाननेसे दूसरोंको श्रीमाताजीके शरीरकी
( २) जिन वाक्योंके केवल शुरूमें ( ') है, वह अपने-आपमें पूरा वाक्य है । उन्हें मूल शब्दके साथ मिलाकर न पढ़ें ।
( ३) कहीं-कहीं अधिक स्पष्टताके लिये लिखा है :
( दे० 'चेतना' अब भी), इसका मतलब है चेतना के नीचेका वह वाक्य जो अब सें शुरू होता है ।
( ४) पृष्ठसंख्याके बाद अ का मतलब है कि वह प्रसंग उस पृष्ठके अंतसे शुरू होकर, बस, अगले पृष्ठके आरंभतः ही गया है ।
( ५) जहां वाक्य-रचना मूल शब्दके साथ संगत न जान पड़े, वहां मूल शब्दके आगे कोष्ठमें जो शब्द दिया गया है उसके साथ मिलाकर पढ्नेसे वह संगत बन जायगी ।
'इस नयी चेतनाकी विशिष्टता
१४३
'यह दुर्जेय 'शक्ति' करुणासे भरी
है.. इसपर एकाग्र रहना
आनंदपूर्ण है १४४
की जीत २१०
को आये चौदहवा महीना २११
अतिमानस [ अतिमन
को जबर्दस्ती खींचना १९-२१
का पहला प्राकटच शक्तिरूपमें 'ए७अ
( दे० 'अतिमानव' भी)
भौतिक रूपमें कैसा होगा १३६
का जाननेका तरीका २२१
को धरतीपर प्रकट होनेके लिये
भौतिक मनको.. २५२,२५६
की उपस्थिति स्थायी तमी, जब
वह शरीर-मनमें.. २६४
के लिये मनको नीरव.. २७१
सष्टिको उच्चतर 'शक्ति' के प्रति
संवेदनशील.. २८,३
की क्रियाके लिये आवश्यक शर्त :
अहंके राज्यका लोप २८४
( दे० 'धर्म', 'भागवत चेतना',
'श्रीअरविद' मी)
अतिमानसिक अभिव्यक्ति १८२
अतिमानसिक क्रिया
की शक्तिमें फर्क है २९४
अतिमानसिक चेतना ?[सत्य चेतना]
अपने-आपको निरंतर रूपमें प्रकट
क्यों नहीं करती २अ
मे शुभ-अशुभका भेद नहीं ९९,
१८९,१९२
मे काफी लंबे समयतक रहनेसे
पीड़ा ही नहीं, रूप-रंग मी
गायब हो जाता है १२२
की ओर लौटना, अगला कदम १४९
मे निवास, यही काफी है, जो कुछ
बदलना है.. १८५
का पहला अवतरण २१ ता० को,
और आज ११ नवंबर १९६९ है १८७
मे दो विरोधी चीजें जुड़ते है तो
उनकी प्रकृति बदल जाती है
१९२_टि०
की दृष्टि दे० 'भगवान्'
मे भृत-भविष्य-वर्तमान २६०
का यदि हमें स्वाद मिल जाय
तो हम उसके बिना रहना
पसंद न करेंगे २११
पूर्ण शांतिमें अधिकतम क्रिया-
शीलता है, समग्र चेतना है,
परस्पर-विरोधोंका सामंजस्य
है २९२
के साथ संपर्क कैसे? २९२
(दे० 'नयी चेतना', 'काम',
'जीवन', 'समग्र' की, 'श्री-
माताजीकी अनुभूति' भी)
अतिमानसिक तीव्रता
और प्राणकी तीव्रता १११
अतिमानसिक पूर्णता १०१
अतिमानसिक भौतिक शरीर
के बारेमें ४१-८
बनानेकी समस्या २४३-४४
की रचनाका तरीका २६८
अतिमानसिक यथार्थता
का अब निर्माण हो रहा है ११९
और मानसिक यथार्थता १११
अतिमानसिक व्यक्तित्व १३५
३००
अतिमानसिक शक्ति
की क्रिया ही शरीरमें 'दुःख-
कष्ट' के रूपमें अनूदित ३७
(दे० 'रूपांतर' मी)
को धरतीपर लानेका श्रेय १३६
(दे० 'श्रीमाताजीका शरीर',
'नयी शक्ति' भी)
अतिमानसिक सृष्टि ।[दिव्य सृष्टि ]
का अंतर्दर्शन २ १-७, ७०
का प्रवाह : माताजीके कुछ तोट
१० ५- १५
का मार्ग तैयार करनेके लिये हम
यहां हैं २७'१-७६
अधीरता ( बेचैनी १२, ७९, १७७
'जल्दबाजी १९-२०
मानवजातिको तैयार करनेकी
२३-४
अनुभूति
मे मनका हस्तक्षेप, वह व्यक्त
करनेके साथ ही.. १९,४०,
१००,१०१, १० ९- १०, ११७,
१४५, १९३
को चेतनाकी पुरानी अवस्थामें
अनूदित करना १७५
(दे० 'श्रीमाताजीकी अनुभूति',
'श्रीमाताजीका शरीर', 'काम',
'जीवन', 'भगवान्', 'भय' भी)
अपमान ४९
अभीप्सा
'प्रगतिकी, अपनेको रूपांतरित
करनेकी, दिव्य 'सत्य' की प्यास-
को अगर रख सको.. ६
और पुकारमें तीव्रता पीडाके द्वारा
३८
तीव्र= अतिमानसिक स्पंदन १७४
सच्ची, सें चिपके रहो, यही एक
सुरक्षा है २३७
जरा-सी सच्ची, के चमत्कारिक
परिणाम २८२
(दे० 'खींचना', 'निश्चलता',
'प्रकाश', 'भगवान्-', 'मनुष्य' भी)
अमरता १६,४४, ४५, ४६, ४८,
१३२, १७६
अलगाव ३० 'विभाजन'
अवचेतना
पराजयवादी, मृत्युके कारण २५७
मे जो काम किया जा रहा है
२५७
मे पिछले प्रलयोंकी स्मृति २७९
मे सत्यकी शक्ति '' : फूल २८९
मे सब प्रकारके विरोध दवे हैं, ये
जब उभरते हैं २८९, २११
की सफाईका कहीं अंत नहीं, उसे
रोकनेका अर्थ है काम बंद कर
देना २८९अ
की सफाईका उपाय २९०
एक रणक्षेत्र है, पर पूर्णत: शांत,
इसका वर्णन असंभव २११
क्या अब कम अवचेतन है?
२९३
(दे० 'प्रतिरोध', 'मूढ़ता', 'शांति',
'समय' भी)
अवतरण १३२
पहलेका, मानसिक था, यह अति-
मानसिक है ८७
''आगमन'' हमारे अनुवाद हैं, परम
प्रभुके सिवाय कुछ मी तो नहीं
है १२४
३०१
२१ फरवरी, ७२ का : वांछित
प्रगतिके लिये भयंकर दबाव
२६७, २७७टि०
अतिमानसिक लोकका २८४
(दे० 'अतिमानसिक चेतना', 'अति-
मानव चेतना', 'रूपांतर' भी)
अव्यवस्था
दीखनेवाली, अधिक पूर्णताकी ओर
ले जायगी १२७, १५१
(दे० 'जगत्-', 'शांति', 'श्रीमाताजी-
का शरीर' भी)
अशुभ
का उपचार ३१
(दे० 'दोष', 'शुभ-अशुभ' भी)
असंभव ?[असंभावना] १४३
का अंत हों गया २२१, २८४
(दे० 'संभव' भी)
असफलता २
जरा-सी और उसकी जरा.-सी बूंद,
दो सिरे हैं ७८
असुर ज्येष्ठ देवता ११ ०टि
अहं ( अहंकार १५०
'अपनी ओर मुड़ना ४८, ६७,
१८७
को ही धक्का या चोट ५०
सें व्यक्तित्वकी भ्रांति ५०
भौतिक, का स्थान जो चीज
लेगी ५३
को जाना चाहिये १७१, १९५-
९६,२८४
भौतिक, का विलोप संभव १७१
की उपस्थितिकी वृत्ति या अहंके
लोपकी वृत्ति १९९
'पृथक अस्तित्व (पृथक व्यक्तित्व)
का भाव २०३, २३५
चाहता है, उसे सच्ची सत्ता मान लिया जाय २३५
साधन था, अब बेकार है २३५
-मय रूपसे अपने अंदर होनेसे हर
चीजमें होना ज्यादा अच्छा है,
पर यह परम सत्य नहीं २६०
सें कहो : 'तुम्हारा समय बीत गया'
२७६
के स्थानपर दिव्य चेतना आनी
चाहिये २७६, २८४
(दे० 'खींचना', 'भौतिक द्रव्य',
'मूढ़ता, 'वृत्ति', 'व्यक्ति' यदि
भी)
आ
आत्म-निवेदन १३, २०१, २६९,
२८६
आत्म-दान ३० 'मानव जाति' देना
आत्महत्या १६१
आध्यात्मिकता
पुरानी, पर अब.. ७, २८, ८३,
८६, ११७, २० ७-८, २०१
सच्ची, बहुत सरल २२१
आध्यात्मिक मार्ग ५४
आनंद १४४
'प्रसन्नता या हर्षके साथ संबंध
बनानेकी क्षमता एक कदम
ऊपर उठ जायगी २५
'तुझे' अनुभव करनेका २६'३
( दे० 'अतिमानव चेतना', 'निर्णय',
'परिस्थिति', 'पीड़ा,' 'वृत्ति',
'सत्ता' भी)
३०२
आश्रम उ पर आक्रमणकी, ११ फरवरीकी,
घटनाका प्रतीक स्वप्न ८-९ उदाहरण
(दे० 'रूपांतर' की दिशा भी)
आश्रमवासी
'हम, हमारी उत्कृष्ट मानवताका
पुष्प हैं १३६
'हममेंसे हरेकको अंतमें सब कठि-
नाइयोंका सामना करना होगा,
लेकिन यह भागवत कृपा है
१३७
जो आरामसे रहनेके लिये..
एक प्रकारका 'प्रदर्शन'..
२२१
'हम इस समय यहां, धरतीपर, क्यों
हैं २७५, २७६
'तुम्हें जो करना चाहिये २७६
इ
इच्छा [कामना]
कि आरामसे, शांतिसे रहें १३
जैसी तेरी ८०, १४२,१५१, १५४
१९५, १९८, २०१, २१०,
२११, २१८, २४८, २६२,
२६६, २८०, २८८, २८९,
२९७ (दे 'श्रीमाताजीके
शरीर' का समर्पण मी)
पसंद, आकर्षण-विकर्षण जहां नहीं
वह स्थिति १६९
-ओंके गायब होनेके साथ सभी
तकलीफें गायब २०१
कष्ट न झेलनेकी २०१
ईर्ष्या १८३
उ
उदाहरण
'चाबुककी मार [मा] २, ३८
'सीपमें बंद ५, २१
'फोटोके स्पंदन पढ़ानेवालेका, ब्या-
पारीके नहीं ११
'शरीरसे धीर, मजबूत लोग १७
'दो बच्चे एक-ही-से नहीं १७
'पोषण, फूल सूंघकर २६
'एक गुह्यवादी महिलाकी आंख
प्राणिक युद्धमें जाती रही ३३
'व्यक्ति और उसके चित्रमें, तथ्य
और सुनायी कहानीमें जो भेद
४०
'योगी, जो शारीरिक रूपांतरकी
शिक्षा देता था, पर.. ४१
'कुछ लोग गिरना जानते हैं ५१
'सब रंग, परतोंमें नहीं, बिंदुओंके
रूपमें ५२
'मैं एक अच्छा बच्चा हू, सृष्टिको
मेरे लिये भला होना चाहिये
६९,७१
'केंचुएकी समस्याएं ७१
'कंकरमें भी संगठन ८५
'सवेरे दाढ़ी बनाना ८८, ८९
'बक्समेंसे चीजें निकालना ८९
'काला और सफेद, दिन और रात
१०१, १७९
'बालूका कण ![ कण ] १२४,२६१
'दो आयामवाला चित्र १४६
'बच्चे जैसी सरलता १६९,२५४
' 'क' के घुटनेमें चोट १८८
' 'क' को कडा पत्र १९५
३०३
' 'क' गुजर गयी, आपरेशनके बाद
अच्छी होकर, 'ज' के साथ भी
ऐसा ही हुआ २०५
' 'क' सामने थी, उसके चैत्य-
पुरुषको देखा २१५
'राक्षस, डायनकी तरह पंजे फैलाये
पकड़नेकी.. २ ३४अ
'राज्य-प्रमुख या भंगी २४०
'पेडोंकी छाल, कछुएके खप़डे २४६
'मकड़ीका जाला २५१
'चित्र और उसका प्रक्षेपण २६०
'बच्चा कपड़ेमें लिपटा २६५,२६६
'ग्लूकोज २७२
' 'क' ने कहा था : यह सातवीं और
अंतिम अभिव्यक्ति है २७९
'मानों एक बच्चा मनके सिरपर
बैठा खेल रहा है २७९,२८०
'आदमी मरते-मरते बचा लिये
जाते हैं, जटिल चीजें अचानक
सुलझ जाती हैं २८१
(दे० 'श्रीअरविद', 'श्रीमाताजी',
'दमन', 'निद्रा', 'पशु', 'फूल',
'मनुष्य', 'संगीत', 'स्वप्न',
नामानुक्रमणिका भी)
ए-ओ-औ
एकीकरण
समस्त सत्ताका २६१, २६२-३
ऐक्य ५१
समग्र, की ओर १४८-४९
परम प्रभुका १७९
=शक्ति और आराम मिलकर
१८१, १८२
अतिमानसिक चेतनाका १८४
(दे 'चेतना', 'जीना', 'निश्चेतना'
ओरोवील १५६, २१६
औषध ( दवाई
की शक्ति विश्वासमें २०५
फ
कठिनाई २९,२११
-यां, भौतिक, बढ़ गयी है १
-यां लोग पैदा करते हैं ६०
हर, एक विशेष समस्या है, तुम
सामान्य नियम नहीं बना सकते
१९०
विरोध आदि सब तेजीसे आगे
बढ़नेके लिये आते हैं १९७
-यां, दुर्भाग्य, सब सहायता करने-
के लिये ठीक समय पर आते हैं
२२४
-योंका कारण और इलाज २५८-
५९
(दे० 'आश्रमवासी', 'चीज', 'दुःख-
कष्ट', 'प्रतिरोध', 'भौतिक द्रव्य',
'भौतिक मन', 'रूपांतर',
'हस्तांतरण' भी)
कपट [ढोंग] ७४-५, ७९,२१७
'लोग कपटी क्यों २६२
(दे० 'धोखा देना' मी)
करुणा ( दया २७, १४२, १४४
कला १५६, १५७,२०३, २०४
काम
सारा भौतिक, उस चेतनामें किया
जा सकता है १८३, १८५
३०४
पहला : यंत्र तैयार करना २३१
(दे 'घोषणा', 'चेतना' अब,
'सचाई', 'समय' भी)
काम (भौतिक रूपांतरका)
इतना तेज होना चाहिये कि अनु-
भूतिका मजा लेनेका: समय न
रहे ३०
कठिन है, सरल नहीं ६३, .१५१,
१७६, २०९, २५२
बहुत करना बाकी है ७६, ७७,
७८-८२, ८६
जो हों रहा है उसे यदि सुनाने
बैठूं.. ७९
को पूरा संतोषप्रद व एक तथ्यके
रूपमें स्थापित होनेके लिये ७९,
८१
करनेके लिये बालककी तरह तरो-
ताजा होना चाहिये ११
बहुत श्रमसाध्य होता जा रहा है,
यह प्रशिक्षणका भाग है १४३
मे लगे रहना चाहिये १६०
(दे० 'प्रयास', 'अवचेतना',
'श्रीमाताजी', 'श्रीमाताजीका
शरीर', 'आश्रमवासी' भी)
कामना दे० 'इच्छा'
काल दे० 'श्रीमाताजी', 'देश और
काल'
क्रोध ( कोप, गुस्सा ) १४३
न्यायसंगत ११५
ख-ग-घ
खींचना
ऊपरसे २० - १, ११६
अहंकारपूर्ण गति है २१
और सच्ची अभीप्सा २१
खेल ( लीला ३६, १४६, १४८
गति
अस्वीकृतिकी १२, १९३
अब, प्रत्येक भागमें समग्र चेतना-
को पानेकी ओर है १०२
की तीव्रता गति-शून्यताका संस्कार
पैदा करती है १४६, १७६,
२१४
त्याज्य, को दूर कैसे करें ११०-
९३
ग्रहणशीलता २, ५, ८५, १२६,
२२८, २२९, २४६, २४७,
२४८, २ ६७टि०, २८४, २८५
घोषणा ८३, २२७
-एं नहीं, अब क्रियाकी ओर ८१
च
चंद्रमा १६०
चमत्कार २०, ४३, ७६,१५२,१८६,
२१२ २८१
चिंता १३, ४०, १९७,२००, २११,
२८७
(दे० 'श्रीमाताजीका शरीर'
चिकित्सा-विज्ञान २०४
चित्रकारी ३० 'संगीत'
चीज
कोई भी, जैसीकी वैसी नहीं बनी
रह सकती ७०
को एक ही रूपमें दो व्यक्ति नहीं
देखते ७२
३०५
ऐसी कोई, नहीं जिसमें सत्ताका
आनंद न हो ९९
एक, का स्वीकार, दूसरीका त्याग
नहीं; सबको एक साथ होना
चाहिये १०१
- ओ, भयानक और हानिकर, को
महत्व देकर तुम उनकी शक्ति
बढ़ाते हों १६६
- ओंके देखनेकी, उनके बारेमें सोचने-
की यह आवश्यकता शुद्ध रूपसे
मानवीय है २४१
- ओंका अस्तित्व केंद्रके संबंधसे या
अपने-आपमें २५१
-ओंके प्रति हमारी प्रतिक्रियासे ही
कठिनाइयां, प्रतिक्रियाकी तीन
श्रेणियां २५८-५९
(दे० 'मनुष्य' भी)
चुनाव ३० 'जीवन'
चेतना
की शक्ति बढ़ गयी है १
अब, एक बड़ी मात्रामें है, काम
ज्यादा तेजीसे चल रहा है ७७
(दे० 'भागवत चेतना' मी)
सच्ची, दोनों स्थितियोंकी युगपत-
तामें है १०३; यह चेतना ही
परम शक्ति है १०३
के पलटने-भरसे सब -- कुरूपता,
मिथ्यात्व, पीड़ा -- अद्भुत
वस्तुमें बदल सकता है १२२,
१३०, २५९ (दे० 'वृत्ति',
'परिस्थिति' भी)
वक्षमें स्थित है १२५
एक ही समयमें हर चीजकी युगपत्
१२७,२१४
निश्चेतन बन गयी १४५
की वह स्थिति जिसमें आदमी
दुनियाको बदल सकता है, स्वयं
यंत्र बन जाता है.. हर क्षण
जो करना चाहिये वही करते
हो.. शरीरकी पीड़ाएं गायब
हो जाती हैं १६७, १६१
का हर बिंदु अपने बारेमें और साथ
ही मुललगत 'ऐक्य' के बारेमें
सचेतन हों १७९-८० (दे०
'समग्र' भी)
हमारी, सत्यचेतनाका अनुकूलन है
२४१
जो व्यक्तिगत और समग्र दोनों
एक साथ हो २५८९-५०
(दे० 'अतिमानव' मी)
व्यक्तिगत, मिथ्यात्व नहीं है २४९
का परिवर्तन होना चाहिये, कोषा-
णुओंकी चेतनाका भी २५५
और विचार : भेद २८६
(दे० 'जानना', 'मनुष्य', 'शरीर',
'श्रीमाताजीका शरीर', 'संगीत'
चैत्यपुरुष
से जो सचेतन हैं उनके लिये अपने-
आपको धोखा देना संभव नहीं
११६
का उत्तर और मनका उत्तर
ही अतिमानव सत्ता बन जायगा
२१ ०६- १६, इसका अर्थ होगा
मृत्युका विलोपन २१७
को सारी सत्तापर शासन करना
चाहिये २५३, २६२-६३
३०६
'श्रीमाताजी' भी)
ज
जगत
की वर्तमान स्थिति सूचक कि एक
असाधारण शक्ति काममें लगी
हैं १
लीलामय भगवान् 'है' ३७
मे सत्यका विधान खुले तौरपर
अभिव्यक्त नहीं -. ६१
मेंसे अज्ञान-अंधकार लुप्त होने-
की ओर ६१
को देखनेका तरीका ६९, २४१,
२५९
हमेशा बदलता रहता है ७०
एक प्रहसन है जो भगवान् अपने-
आपसे खेल रहे हैं १२२
'म्गंति' है, का सिद्धांत १५३,
१५५
की अव्यवस्था हमें सिखाती है कि
किस चेतनामें जीना १६६-६७
को योगियोंने मिथ्या क्यों कहा
१७६
मे अव्यवस्थाका कारण २०२
मे कुछ परिवर्तन हुआ है २०८
सें भागना दे० 'आध्यात्मिकता'
पुरानी
युगपत् बोधोंका २१४ (दे०
'चेतना' भी)
भयंकर स्थितिमें है, २२६, २३०
में अव्यवस्था जिन्हेंने पैदा की है
उन्हींकी सहायतासे व्यवस्था
फिरसे लायी जाय २३०
लुप्त हों जाय यदि भगवान्में मनुष्य
जैसी प्रतिक्रिया हों २३६
(दे० 'सृष्टि', 'नया जगत्', 'सत्य'
जगत् (सूक्ष्म भौतिक)
:वर्णन ७१-३
के स्वप्नोंकी स्मृति ७३-४
(दे० 'सामंजस्य' मी)
जड़ता १७२
और रूपांतर १७८, १८१, १८२
(दे० 'सृष्टि' मी)
जड़ द्रव्य दे० 'भौतिक द्रव्य'
जनम एक 'रेचन' है ११२
जानना [समझना]
का तरीका : स्पंदन ९-११, १३
'समान ही समानको जान सकता
है ५९
सें शक्ति आती है ९९
का एकमात्र तरीका : चेतना १२६,
१७५
चीजोंको दे० 'दृष्टि', 'निर्णय'
का साधन : तादात्म्य २२१
(दे० 'शरीर' भी)
जीना १०३
शांतिको ८
पूर्ण 'ऐक्य' मे ५१, १६६, १८४
सत्यको ६९, २३३
ऊर्ध्वमुरवतामें १६६
भगवान्के लिये, भगवान्के द्वारा,
भगवान् बनकर २३५
भगवान्में और मानव चेतनामें
२४३ २६१
(दे० 'मिथ्यात्व', 'विरोध' भी)
३०७
जीबन
की अवास्तविकता और शाश्वतता
चुनाव मात्र १५
के सनी रूप, एक चुनाव २७-९
की अवास्तविकताकी अनुभूति
२८, ३६; इससे बतानेवाली ब
हुत हैं १६३
की जटिलताके लिये विनोद-भरी
मुस्कान २८,५१
को प्रभुकी लीलाके रूपमें देखना
३६-७
को लंबाया जा सकता है ४५, ४८,
९६, २७४
जैसा है वैसा जिया जा सकता है
उस चेतनामें १८५
का बोध, भागवत दृष्टिकी तुलनामें
इस ओर, और दूसरी ओरका
२३९-४०
अद्भुत और भयंकर एक ही समय
२४२
दिव्य, की चाह और उससे डर भी,
इस जीवनसे विरक्ति और
चिपक भी २७९
(दे० 'भगवान्' की दृष्टि, 'भौतिक
जीवन' मी)
ड-त-थ
डटे रहना [टिकना]
चाहिये १, ३, ७, १४३, १५५,
२५६टि०
का उपाय : शांत-स्थिरता ७, १२
तमस २,५,३७
त्याग दे० 'गति', 'चीज', 'भगवान्'
की उपस्थिति
थकान
कौन-सी चीज लाती है १०४
किन लोगोंसे मिलनेसे १०४
द
दमन
की गयी चीजें बच्चोंमें प्रकट १११
का कारण १९२
दिखावा १९९, २८६
दिसंबर, २५ 'ज्योति' पर्व २५८
दुःख-कष्ट! दुःख-दर्द २, २०१
का कारण ३७, १४८, १८५
शारीरिक, और प्राणिक, मानसिक
कष्ट ३८
का अनुभव भागवत चेतनाको १२७
आनंदकी तैयारी है १२८
और दुःख-दर्द पहुंचानेकी इच्छा,
अभिव्यक्तिकी यह दिशा 'क्यों'
१५९, १७८
(दे० 'निर्णय', 'पीड़ा', 'विभीषिका',
'श्रीमाताजीका शरीर' मी)
दुर्घटना २६७
दुर्भावना ३३,३८, ७'१, २३५,२६८,
२८१ २८९
दूसरे
-को रूपांतर के प्रयासमें भाग लेने-
के लिये प्रभावित करना २२
उसी तरह सोचें-समझें जैसे हम
२६-७
को समझाना १२६
-की चेतनामें अगर रहो २५१
३०८
(दे० 'दोष', 'निर्णय', 'पूर्णता' भी)
दृष्टि
हमारी ६९-७०, १६६, २०१,
२३१ (दे 'निर्णय' भी)
और श्रवण दे 'श्रीमाताजीका
शरीर'
देवता
और मनुष्यके संबंध ३४,३५
अधीमानसके ७२
मे असुरका अंश.. १९०टि
देश और काल १७९, १८०
(दे० 'समय' आंतरिक भी)
दोष [भूल, गलती]
इर्द-गिर्द और सामंजस्य-स्थापन
२९-३०
दूसरेका ५०, ११६अ, १८८-८९
व अशुभ समग्रबोधकी दृष्टिमें
१८०, १८४, २८२
छोटे-से, के भी बड़े परिणाम २८१-
८२
(दे० 'गति' त्याज्य, 'भगवान्' भी)
द्रव्य दे 'भौतिक द्रव्य'
द्रव्यात्मक मन ३० 'भौतिक मन'
घ
धर्म! मत ५९, १२२
नया, न बन जाय यह चीज, इससे
बचना चाहिये १२०
धैर्य !r धीरज ३, १९, १७७
धोखा देना
'आत्म-वंचना ११५
अपने-आपको, ''नेकनीयती'' सें
औरोंको, और अपने-आपको २३७
(दे० 'कपट', 'चैत्य पुरुष' भी)
न
नमनीयता ( लचीलापन ५२अ, ९६,
९७,२४४,२४८,२५०
नया जगत् १५,२८३
होगा, क्योंकि यह पहले कभी नहीं
हुआ २८५
कुचलता हुआ.. प्रबल विस्तार
लाता हुआ, दोनों साथ २८५
नया वर्ष
१ जनवरी, १९६९ १३३
'शुभ. नव वर्ष १३३, १३४, १३५
१९७२ -- आशा करता हू अच्छा
रहेगा २५८
१९७३ के बारेमें २९५
नयी कार्य-पद्धति २२३
नयी चेतना २०७
का सिद्धांत : कोई योजना नहीं
२२५अ
का ज्योतिर्मय विस्तार हमारे अंदर
भरता जाय, क्या इतना काफी
है, और कुछ करनेकी जरूरत
नहीं? २९७
(दे० 'अतिमानसिक चेतना' भी)
नयी जाति
मेंसे सेक्सका आवेग, भोजन व
सोनेकी आवश्यकता गायब हो
जायंगे २५-६
मे मानसिक वस्तुनिष्ठताका सारा
तथ्य ही गायब हो जायगा ११०,
२३ १अ
३०९
के आगमनको जल्दी लाया जा
सकता है अगर हम.. २२९
चाहते हैं हम, जिसमें अहंकी जगह
भागवत चेतना.. २७६
(दे० 'बालक' भी)
नयी जीवन-पद्धति ५३, २२१, २४०
नयी व्यवस्था
जो लाना चाहते है उनकी असफल-
ताका कारण और सफलताकी
शर्त २३०
नयी शक्ति
को धारण करनेयोग्य शरीर बनाने-
की समस्या २४३-४४
का दबाव भौतिक द्रव्यपर --
परिणाम : दोनों छोर पस-
काष्ठापर २८०-८२ (दे
'भागवत चेतना' भी)
भौतिक नहीं, पर भौतिकसे अधिक
ठोस रूपमें शक्तिशाली है
२८३, २८५
के प्रति खुलनेका परिणाम : दर्जे-
यता २८४, २८५
(दे० 'जगत्', 'शरीर' ऐसा, 'मग-
वान्' प्रकृति भी)
नरक १०१, १६१
नित्यता और प्रगति १७८, १८२
निद्रा २५
मे चलना ८९
नियति ( भाग्य २७, २८, ७७,
२३४
नियतिवाद
'क्या सब कुछ निर्दिष्ट है?
२० ०अ, व्योरेकी छोटी-छोटी
बातोंमें भी? २०१अ
नियम (नैतिक, सामाजिक) ५,२३०
(दे० 'विधान', 'कठिनाई' भी)
निराशा
शैतानका महान् अस्त्र २३२अ
(दे० 'मन' भी)
निराशावाद ?[पराजयवाद] २, ४,
६७, २५७, २७९
निर्णय [मूल्यांकन]
स्पदनोंद्वारा ११
अपना, सदा संदेहास्पद ६९
मनुष्यका, गलत ६९अ
हमारे दे० 'दृष्टि'
अच्छा-बुरा, कष्ट-आनंदका ९९,
१९७-९९
दूसरेके बारेमें ११ ६अ
'सर्व-चैतन्य' को करने दो १६६
निर्वाण
मे बच निकलना १५९, १६०,
१६१
निश्चलता १२
बहुत, की जरूरत, दिव्य शक्तिकी
शरीरपर क्रियाके लिये १७२
पूर्ण, और तीव्र अभीप्सा, दोनों
एक साथ १७४, १७६
' 'निश्चल शांति' और रूपांतरकी
तीव्र गतिका युगपत् बोध २१४
निश्चेतना १४६
को तैयार करनेका काम हो रहा
है ७७-८१; ये गूजती हुई
घटनाएं नहीं हैं ८१
ते, तमस् से, बाहर कैसे निकला
जाय? ८०
की निश्चलता विकासका आरंभ- बिंदु १४४-४५
३१०
'निश्चेतन निषेधको हर सांसके
साथ तुम अंदर लेते हो १७६
प्रथम 'ऐक्य' का प्रक्षेपण है १७९-
८०
(दे 'श्रीमाताजीका शरीर' मी)
नीरवता २७९
में, माताजीका बातें बताना १४५अ
में ऊपरकी ओर अभिमुखता, आगे
बढ़नेके यह उपाय क्या भूल
है? १६५-६७
'रिक्ततामें सच्चा आवेग कैसे
पाया जाय? १६८-६१
में लिखते हुए पुराने रूप या प्रति-
क्रियाएं व्यक्त करना शुरू न
करें, इसके लिये क्या करना
चाहिये? १९४-९६
अपनी इच्छानुसार, सें शुरू करो,
भौतिक मनके नियंत्रणके लिये
२६४
प
पतन १४५
परिवर्तन ८,२०१
रूपमें तात्विक, वनस्पतिसे पशु
और पशुसे मनुष्यतककी यात्रा-
में बहुत ही कम ४१-२
अंतिम, होनेके लिये ७७-९
ऊपरसे जबरदस्ती? ७७अ
सबके, मे समय लगेगा, फिर भी
यह प्रतिज्ञा थी कि अचानक
परिवर्तन होनेवाला हैं १३२
महान् : पुरानी आध्यछिमक स्था-
पनामें, भौतिक 'तथ्य' की
मान्यतामें २० ६- १२; इसे
स्थापित होनेमें समय लगेगा
२०८-९; इसमें कठिनाईका
कारण २०९, २११; इसमें
अपेक्षित गुण २१०
आमूल २५५
मूल्योंमें २८१-८२
का पथ व प्रक्रिया, अभिक २९१अ
(दे० 'रूपांतर', 'चेतना', 'जगत्',
'परिस्थिति', 'पुरानी आदत',
'पृथ्वी', 'भौतिक मन', 'भौतिक
द्रव्य', 'मिथ्यात्व', 'शरीर',
श्रीमाताजी', 'समय' मी)
परिस्थिति २२५, २३२, २६९
को बदलनेका तरीका २७-९,
१६९,२४८
-यां चाहे जैसी हों तुम्हें आंतरिक
आनंद व संतोष मिल सकता है
७१, १८९
को दोष देना १८८-८९
वह-की-वही, पर अब आनंद, शांति
१३०, २५८, २५९
(दे० 'दोष' इर्द-गिर्द, 'भागवत
क्रिया', 'रूपांतर' भी)
पशु
-योनि मानव प्रभावके तले २३अ
-ओंमें मनुष्योंके प्रति जैसी वृत्ति
है २५,४७
और मानवके भेद ४१अ
'गायके और मांके गर्भाशयमें रूप
लेती भौतिक सत्ता ४२
सें, बंदरसे, जैसे मनुष्य आया ६५,
२७३
३११
'बंदर और मनुष्यके बीचकी सत्ताएं
जैसे गायब,.. ६६, २७४
सें मानवके, और अब मानवसे अति-
मानवके विकासकी अवस्थाओं-
में भेद ७७,८७-८
से मनुष्य बननेके लिये चेतनाके
प्रवेशकी जरूरत हुई ८५
'बंदर अगर, पहले मनुष्यसे मिलता
तो वह उसे अजीब-सा.. ८७
(दे० 'मिथ्याभिमान' भी)
पागल १, ५३, ७४-५, १२५,२१४
पाप की धारणा १८९
पीड़ा [शारीरिक कष्ट]
गायब हो जानेपर भौतिक मनकी
प्रतिक्रिया ३
मे शरीरकी सहजवृत्ति और करणीय
१२-३
क्यों है और उसका उपचार क्या है
३७-४०
का स्थान एक ऐसी चीज लेती है
जो धरतीपर अज्ञात है ४०
और हर्ष, चीजोंको देखनेका, बस,
तरीका है ९९
ओर आनंदका जन्म १०२
'अत्यधिक उत्पीड़नके बीच आनंद-
का अनुभव १४४
पर कैसे अधिकार किया जाय?
२४७
(दे० 'अतिमानसिक चेतना', 'अभी-
पसा', 'भौतिक द्रव्य', 'रूपांतर',
'श्रीमाताजीका शरीर' भी)
पुरानी आदत! अभ्यास, ढंग, तरीका,
ढर्रा २९, २२१, २२४
' ', और नियम टूट रहे है १,९७,
२५०
-से चिपक ६, १४, ४८, २८०
रुकावट हैं १५, ६५, ६७, २१०,
२८५
-को बदलना ३१, ५८४,५८८,९७
२२०-२१, २२५ (दे० 'हस्ता-
तरण' शक्ति भी)
रक्तसंचार, पाचन, श्वासोच्छ्वास-
की ५३, ११
घिस जाने व क्षतिकी ६५, ६७
पुरुष ९७, १००
पूर्णता १०१
हर क्षण १८५
की प्रतीक्षा औरोमें करना छोड़
जब मनुष्य अपनेको पूर्ण करने-
की ओर.. १८८-८९
(दे० 'सृष्टि'की मी)
पूर्णयोग और भौतिक मन १७, १८
पृथ्वी ![धरती] ५९, १५३
पर दिव्य सृष्टि ७०, १०५-७
१५६-५७
की कोई चीज सचेतन हो गयी
है, कुछ ''हुआ'' है १२४
पर हुई सामूहिक प्रगति और
प्रतिज्ञा कि परिवर्तन... १३१अ
पर इतना अंधकार पहले.. १५७
मिथ्यात्वमें है, १६०
(दे० 'भागवतशक्ति', 'श्री-
माताजीका शरीर' भी)
प्रकाश ( ज्योति
के आनेसे पहले अंधकार ज्यादा
घना (श्रीअरविन्द) १५७
और 'सत्य'के हम संदेशवाहक
होना चाहते है २२७
३१२
के प्यासे २२८
(दे० 'प्राण' भी)
प्रकृति ४७,७७
की शक्ति पुरुषके अर्पण.. ९७
प्रगति ७६, १७९
प्रयास और संघर्षके दुरा नहीं,
सामंजस्यके साथ ७०
दानवाकार पग लें रही है १८८
का सच्चा आधार १८८
वांछित, के लिये भयंकर दबाव
२६७, २७७
(दे 'अभीप्सा', 'भौतिक चेतना',
'रूपांतर', 'नीरवता' मे ऊपर,
'संतुलन' मी)
प्रतिरोध
या तरलताका भाव ५१
त्याज्य गतिका १९३
जड-तत्वको २०१
ही अव्यवस्थाका कारण २०२
मानव अवचेतनाका २७७; परि-
णाम : विमीषिकाएं २७७
नहीं, विकृति है यह २७७-७८
का इलाज २७८
बुहार फेंका जायगा २७९
जो करती है वह कुचली जाती है
(दे० 'विरोध', 'विभीषिका' भी)
प्रयास
बार-बार .दोहराने योग्य २
कष्टदायक, की क्षतिपूर्ति लक्ष्यके
स्पष्ट दर्शनसे २४
- ओ, सच्चे, को सहायता २७६,
२८१
(दे 'प्रगति', 'रूपांतर' भी)
प्राण १५८
से सच्चे प्रकाशका भेद करनेके
लिये २०
सुखद या असुखद, का परिचय
बिंबोंमें ३२
तटस्थ, क्या नहीं होता? ३२
और मन अस्थिर होते हैं १७१,
२४३
(दे० 'अतिमानसिक तीव्रता' भी)
प्राणिक आकर्षण २०-१
प्राणिक जगत्
उत्पीड़क है, यह ९०% आत्मनिष्ठ
३२-४
प्राणिक सत्ताएं
ज्योतिका अभिनय करनेवाली
२०
(दे० 'भय', 'मनुष्य', 'व्यक्ति'
प्रार्थना शरीरकी ८३, २९५
प्रेम
प्राणिक, और सच्चा २०-१
का मूल स्पंदन ३१
पर श्रीअरविंदका उद्धरण ६१
की शक्तिको हम हमेशा क्यों नहीं
रख पाते? १७०-७१
और घृणा १७८
(दे० 'शरीर', 'श्रीमाताजीका
शरीर' भी)
फूल १९,२६,४५,४६
(दे० 'अवचेतना' भ)')
फोटो १०
३१३
ब
बंधन
-कारक चीजें ५-६
नहीं-स्वाधीन : सब कुछ बदलने-
के लिये हर समय तैयार ५-६
बर्बरता २०५,२०६
बालक [बच्चे] ११
पैदा करना क्या जरूरी होगा ६६
-मेंसे ही ऐसे हैं जो नयी जातिका
आरंभ कर सकते हैं २२१
(दे० 'उदाहरण', 'दमन', 'रूपांतर'
मी)
बुद्धि
के कारण अपनेको श्रेष्ठ समझने-
वाले १०४
जो समझती है कि वह कुछ नहीं
जानती, वह भी भौतिक चीजों-
का सवाल आनेपर.. १९७
'तर्कबुद्धि, और 'विज्ञान' २६० टि०
व तर्कणामें अब बल नहीं २८३
(दे० 'मन', 'मानवजाति', 'समझ'
बूढ़ा आदमी १८३, १८६,१८७
म्र
भगवान्
का विचार पसंद नहीं तो.. तुम्हें
जरूरत है उस 'कुछ चीज' की
जो 'प्रकाश'.. ६
का प्रेम नहीं पा सकते तो उनसे
युद्ध.. (श्रीअरविद) ६अ
ही केवल वस्तुनिष्ठ हैं ३५
का ही अस्तित्व है केवल, और
कुछ है ही नहीं ३५-६, ९८,
१२०-२१, १२४, १४८, १५५
ही हैं सब कुछ, जो अपने साथ
खेल रहे हैं ३६
जब आये- तो हजारमें एक भी ऐसा
न होगा जो डर न जाय ४७
हंसते रहते हैं, उनका हास्य तुम्हें
मधुरतामें भर.. ५१
क्या है ५८-६२, २६१
के साथ संपर्क अभीप्साकी तीव्रता-
से ५९
के साथ संयोजनका वही एकमात्र
पुल है, यह माननेका परिणाम :
धर्म, दर्शन, सिद्धांत, मत -
युद्ध ५९
का एकमेव और सर्वशक्तिमान्
होनेका विचार ६२
क्या अपने-आपको हमसे अलग
खींच सकते हैं ९८
और 'देव' ९८, २८४
तुम अपना ही निषेध करनेमें क्यों
मजा लेते हो? ९८
को पानेके लिये सृष्टिके त्यागका
विचार ११७ (दे० 'आध्या-
त्मिकता' पुरानी भी)
दूर, ऊपर..! नहीं, वे ठीक यहीं
.. ११९-२०, २६२
को हम अनुभव क्यों नहीं कर पाते
१२०, १२१
ने कहा : लोग चाहते हैं मैं उनकी
चेतनासे, दूर रहूं १२०
की दृष्टि और 'जीवनका अनुभव'
पर आधारित समझ १९७-९९
३१४
के कार्यमें अहस्तक्षेप १९८
'दिशा बस एक ही है-भगवान्-
की ओर २३१
को पाना और उनसे चिपके रहना
यही सुरक्षा है २३१, २३७
वह नहीं, जिसकी मनुष्य कल्पना
करता है, बल्कि.. २३७,२८२
सब कुछको, बना देनेका तरीका
२४८
से बच्चेकी तरह कहो : 'मेरे लिये
सब कुछ कर दो' २५४
के प्रति समर्पणमें ही भगवान्के
प्रति विश्वास नहीं आ जाता
२५५
के संबंधसे हर चीजको लेनेपर
जीवन, भौतिक जीवन भी
सरल.. २५८-५९
ही समग्रता है २६०, २८२
हमारी देखभाल करते है? २६६अ
की ओर अपने-आपको रखें २७७
प्रकृतिकी बुरी-से-बुरी चीजोंको इस
'शक्ति' के संपर्कमें ला रहे हैं
ताकि वे समाप्त.. २७८
की भूल है यह, हम कह बैठते हैं
२८०
की इच्छा न करना मूढ़ता है, दोष
नहीं २८२
'दूसरा क्षेत्रतक पहुंचनेकी दो गतियां
२९४
के साथ संबंध जोड़नेके लिये कौन-
सी गति करते हों? २९५अ
की उपस्थितिका हममें जो निषेध
करे उससे अपने-आपको मुक्त
करना २९६
(दे 'जगत्', 'जीना', 'निर्णय',
'मन', 'मनुष्य', 'विजय', 'वृत्ति',
'शरीर', 'शांति', 'श्रद्धा', 'श्री-
माताजी', 'संघर्ष', 'समाधान'
तथा 'भागवत.. ' के अंतर्गत
भय [डर] ४०, २०४,२७९
प्राणिक सत्ताओंसे ३ रे
पागल हो जानेका ५३, १२५
लगा, जब उन्हें अनुभूतिने छुआ
११, १६३
न हो, यह सबसे जरूरी है १७०
भविष्यवाणी ७९, २३८
भागवत कृपा
है यह : समय न खोना १४४
सब कुछ करती है ताकि सब
ठीक चल सकें १८४अ, १८७
सारी समझके परे है १८६
का चमत्कार श्रीमाताजीके शरीर-
पर १८६
को, विभीषिका समझ, मनुष्य परे
धकेल देते हैं १८६
(दे० 'विश्वास', 'आश्रमवासी' भी)
भागवत क्या
को अज्ञान-अंधकार ?मानव चेतना
विकृत कर देते हैं ६९, २३१
हमें निर्दय लगती है २०६-७
परिस्थितियां मिलें तो, तेज उप-
लब्धिकी ओर जाती है २४७
भागवत चेतना [परम चेतना]
को छोड़, हर एककी चेतना सीमित
११७
को विकृत किये बिना अभिव्यक्त
करना इस 'द्रव्य' के लिये संभव
३१५
नहीं ११७
ने कहा : यह मैं हू जो दुःख
भोग रही हू.. १२७
की क्रिया मानव चेतनामें १४०
काममें लगी है, तेजीसे हमें आगे
बढ़ा रही है १४९ (दे० 'चेतना'
सें साधारण मानव चेतनामें आना
यंत्रणादायक १७६, २६१
को पानेका रहस्य १९६
को मूर्त करना : तरीका १९५-९६
का यह दबाव एक ऐसा दबाव है
ताकि चीजें.. २०६-७ (दे०
में यदि रहो २५८-५१
को हम अतिमानस कह सकते हैं
२८४
भागवत तर्क २१६
भागवत प्रेम २३, ८६,२४५
और पीड़ा ३९,४०
भागवत महिमा १८२, १ ८४अ
भागवत शक्ति । ['शक्ति']
आती है, वह इस शरीरके लिये
कुछ नहीं करती ८
द्वारा छूतका प्रतिरोध? ४७
को धरती सह न सकेगी, लुप्त हों
जायगी ४७, ७८
की छोटी मात्रा तो हमेशा रहती
है ७८
की एक बूंद तुम्हें क्षणभरमें स्वस्थ
कर देती है ७८
को शरीरमें ग्रहण करनेकी शर्त
१७२
(दे० 'नयी शक्ति', 'साधना' भी)
भागवत शांति, मे अति संवेदन ४०
भागवत संकल्प ?[भागवत] २३०
नीचे आ रहा है, रचनाएं उसके
कार्यान्वयनमें देर.. २३१
के विरुद्ध मानव इच्छा सफल नहीं
हो सकती २७७
भागवत स्पंदन १७४, १७६
भागवत हस्तक्षेप [दिव्य हस्तक्षेप]
३, ८, ३९, २३२
भारत ३० 'श्रीमाताजी', 'संदेश'
भूत-भविष्य-वर्तमान २६०
भूल ३० 'दोष'
भोजन २५, २६, ४२, ४३, २७२,
भौतिक चेतना [द्रव्यात्मक चेतना]
और प्रगति २-३
का स्वरूप व स्वभाव २,३,६३,
१७०
'शारीरिक चेतना जाग गयी है, मन,
प्राणसे अब स्वतंत्र है ८४
जब किसी चीजको पकडू लेती
है ९९, १७०अ
मे धंस गया हू, ध्यान नहीं होता,
भगवान् दूर.. १११
भौतिक जीवन
पर मनका नहीं, उच्चतर चेतना-
शासन चाहिये २०७
का त्याग दे० 'आध्यात्मिकता'
(दे० 'भगवान्' के संबंध मी)
भौतिक 'तथ्य' ?['तथ्य']
अब मिथ्यात्व बन गया २०७- १२
भौतिक द्रव्य ( जडुद्रव्य, द्रव्य, भौतिक
तत्व
३१६
के रूपांतरमें कठिनाई २-३, ११अ
को कुचल देना या रूपांतर ३
के साथ व्यवहार भूतकालमें ३, ७
का भारीपन तात्विक नहीं ५
को तमस्मेंसे बाहर खींच लानेके
लिये पीडाके संवेदनकी जरू-
रत ३७-८
में मिथ्यात्व अज्ञान बन गया ३८
में नये स्पंदनोंके प्रति आशंकाका
उपचार ४०
का सच्चा प्रत्यक्ष दर्शन ५२
सारा एक ही है ८६
कैसे पैदा हुआ? १०८
में अपारदर्शिता और पारदर्शक
तरलता ११८
के साथ इतनी तल्लीनता कि
लगता नहीं कि हम कुछ कर
रहे हैं १९७
बदलनेमें धीमा है २०१
जैसा-का-तैसा, उच्चतर अनुभूति-
योंसे २०१
को तैयार करनेके लिये कुछ किया
गया है २२७
जब परिवर्तित हो जायगा तो वह
एक ठोस चीज होगी २४३
पथरायी हुई चीज है, ग्रहण नहीं
करती, अगर वह पिघल जाय
.. २४६
की नमनीयताको खोजना होगा
दो दिन अभीप्सा करता है, फिर
ढीला पड जाता है, क्या करना
चाहिये? २६८-६१
का अहंकार है जो आत्मनिवेदन
नहीं करना चाहता २६८अ
(दे 'शरीर', 'सृष्टि', 'मन',
'मूढ़ता' भी)
भौतिक मन
मार खाकर बढ़नेके अभ्यस्त २
मे कठिनाइयोंकी ही कल्पना २
को कठिनाइयोंके पीछे भागवत
कृपामें विश्वास दिलानेके लिये
२
के आक्रमणकी कठिनाई ७-८
भी अब अपनेको व्यवस्थित करने-
मे लगा है १४
तो बहुत पहले बदल चुका है १६
और द्रव्यात्मक मन : भेद १७-८
एक असंभावना है १८, ८४अ
परिवर्तित हो गया है ८५-६
रूपांतरित हो जाय तो शरीर
रूपांतरित हो जायगा २५३
के नियंत्रणके लिये २६४-६५
(दे० 'नीरवता', 'पीड़ा', 'श्री-
अरविंद', 'श्रीमाताजीका शरीर'
भौतिक मुक्ति ५,१६१
को अभी व्यौरेमें उपलब्ध करना
है २०१
भौतिक योग १३
म
मध्यवर्ती सत्ताएं ४३, ४७-८, १३७,
२७४
मन
में निराशाका महत्व कम ६७
की समस्याएं और विरोध ऊपर
३१७
उठ जानेपर नहीं ७१
की व्याख्या शरीरके लिये अमूर्त
चीज ९९
और प्राण 'द्रव्य' को पीसनेके लिये
यंत्र रहे हैं ११३
सत्यको देखनेमें असमर्थ ११३
की भूमिका : यथार्थता देना ११८
विकसित, वालोंसे अविकसित मन
वालोंके' शरीरका काम आरंभ-
मे आसान १७ १अ, १७२
और प्राण अगर चले जायं १७२
के द्वारा विकासका मतलब १७२
का शासन रहते भगवान्का राज्य
कैसे.. २०४
पर बैठ जाओ : 'चुप रहो' २७९
(दे० 'अतिमानस', 'चैत्य पुरुष',
'नयी जाति', 'प्राण', 'भौतिक
जीवन', 'विभाजन', 'वैज्ञानिक',
'श्रीमाताजीका शरीर', 'सधना'
मनुष्य ![लोग]
यज्ञकी भावनासे भरे २२
जो नहीं रहे और देवता भी नहीं
बने २७
जो सुन्दर बिंब देखते हैं और जो
भयानक, अशुभ चीजें ३२
का प्राणिक सत्ताओं, शक्तियों व
देवताओंके साथ संबंधका रूप
इस मानव चेतनापर निर्भर
३४-५
अपनी अवस्थाओंका सर्वशक्तिमान्
स्वामी है, पर वह यह होना भूल
गया है ३४-५
अपनी संभाव्यतामे देवता है, उसने
अपनेको देव मान लिया ३५
पशुकी छूतका प्रतिरोध नहीं कर
सका ४६
को अपने अस्तित्वकी रक्षाके लिये
सारी प्रकृतिसे लड़ना पड़ा ४७
और अतिमानस सत्ताका संबंध ४७
ने हर चीज विकृत कर दी है ५१
पशुसे ऊपर उठा अनुकूल शरीर
विकसित करके ६४
की दिव्य मानवतामें परिणति
शरीर विकसित करनेपर निर्भर
६४-५
निश्चेतनासे कितना बंधा है ७७
'हम सिकुड़े हुए, सूखे हुए हैं, हमने
अलग किये जानेके बड़े प्रयत्न
किये हैं १२०, १२१
'हम परम प्रभुमें हैं १२०, १२१,
१२४ १२५
के सभी गुण और सभी त्रुटियां
बचकानी १४३
प्रत्येक, के लिये अब भौतिक 'तथ्य'
के सम्मोहनसे बाहर निकलना
संभव २१२
की सहज प्रतिक्रिया : रूपांतर
करना नहीं, नष्ट करना २३६
धोखेमें रहते हैं : चीज जैसी है
वैसी नहीं देख पाते २३७
अभीप्सासे पूर्ण और अभीप्सासे
रहित २४०
में चेतना केंद्रमें होती है २५१
के सचेतन रूपसे भगवान्की ओर
मुड़नेमें सैकड़ों साल.., नहीं,
अब.. २९०
(दे० 'व्यक्ति', 'अतिमानव', 'उदा-
३१८
हरण', 'जगत्', 'पशु', 'मिथ्या-
भिमान', तथा 'मानव. .' के
अंतर्गत मी)
ममि १६
मशीनें २०३, २०५
मस्तिष्क १६१
मानव चेतना
एक भयंकर छिद्र है- १७६,२६१
(दे० 'भागवत क्रिया', 'भागवत
चेतना' भी)
मानवजाति
के विभिन्न स्तर : सुसंस्कृत, साम-
जस्यपूर्ण और संतुष्ट; बौद्धिक
रूपसे नये जीवनकी ओर आक-
र्षित्; रूपांतरके लिये तैयार
२१-२
नयी सृष्टिके प्रभाव-तले कैसी हो
जायगी २३-४
उच्चतर मध्यस्थ २५
का संतुष्ट बुद्धिवादी वर्ग ८७,१०४
बेचारी, उद्वेग-ग्रस्त १६७
उच्चतर, का प्रयास १९६
देना नहीं चाहती, लेना चाहती है
१९६
ने शताब्दियों इस क्षणकी प्रतीक्षा
की है, वह आ गया है २७५
(दे० 'अधीरता', 'आश्रमवासी'
मानव स्वभाव
अपनी इच्छासे प्राप्त पराजयको
दूसरी तरहसे प्राप्त विजयसे
ज्यादा पसंद करता है २७७
मानसिक रचना
-ओंसे मुक्त, खुला ५-६
सारी मिथ्या, पर वह तुम्हें स्वाभा-
विक लगती है २०६
'मानसिक काराके परे जाने और
वहां ऊपर श्वास लेनेका प्रश्न
है २०७
(दे० 'भागवत संकल्प' भी)
मार्ग ( रास्ता, द्वार
तुम्हारा, तुम्हारा होगा ६
लोटनेका १४९
एकमात्र १५२, १५९, १९५,
२३१, २६८, २८१
अब, साफ है २५०
(दे० 'रूपांतर' भी)
मिथ्यात्व रे ८, ७५, दूं ५९, १६०,
१६३,२०७
मेंसे कोई अकेला नहीं निकल सकता
१६२
सें बाहर निकलनेकी विधि १७६
की रेलपेल और उपचार २३४-
३६
को खतम कर देनेका भाव २३६
सारा, बाहर निकल आया २४६
की शक्ति अपना सहारा खो बैठी
है २४७
के लिये एक ही समाधान २९६
का परिवर्तन ही ज़ीने योग्य चीज
२९६
'समर्पण' भी)
मिथ्याभिमान
मनुष्योंमें ३४-५, २३६-३७
पशुओंमें भी २३७
मुक्ति ३० 'भौतिक मुक्ति'
मूढ़ २७,८५,२५३,२८९
३१९
मूढ़ता
भौतिक चेतनाकी ३
अहंकेंद्रित १८७
मानव अवचेतनाकी २७७
बन गयी 'असंभव' चीज २८४
भौतिक द्रव्यकी २८६, २८७
स्वीकार, अज्ञके सामने २८८
मूल्यांकन दे 'निर्णय'
मृत्यु? १५, १०२,२९७
के प्रसंगमें ५५-८
का क्या एक ही समय सब आत्माएं
चुनती हैं बंबारी, बाबू, भूकंप
आदि प्रसंगोंमें? ५५टि०
के बाद अंतरात्मा अपने अस्तित्वसे
सचेतन कैसे रहती है?
५५टि०
के बारेमें मनुष्य कुछ नहीं जानता
५६
जैसी कोई चीज है ही नहीं
के बाद व्यक्ति भौतिक जगत्का
बोध पा सकता है? ५६-७
पर विजय ९७
के बारेमें साधारण विचार १५२
का विलोपन २१७
संक्रमणकालीन घटना है २५९अ
(दे० 'अवचेतना', 'व्यक्तित्व',
मौन २४०
य
यत्र ८३, १६९,२३१
युद्ध ३० संघर्ष
र
रूप या आकारकी आत्मा १६
रूपांतर ( भौतिक रूपांतर १४२,
१८०,१८६
की दृष्टिसे परिस्थितियोंमें अच्छा
मोड १, ५
-पथपर दो चीजें अनिवार्य १
के प्रयासमें सच्ची वृत्ति १अ, ५-६
में बाधा डालनेवाली चीजें ५-६
की गति तेज करनेके लिये ६,
२८७ २६८,
के लिये प्रयास छोटी-सी संरध्यातक
सीमित.. २३
और पीड़ा ३९-४० (दे० 'श्री-
सच्चा, चेतनाके हस्तक्षेपसे ४१,
८५
भावी, पशुसे मानवतकके रूपांतर-
की तुलनामें ४२
के लिये मध्यवर्ती अवस्थाएं होनी
चाहिये ४६, ४७-८, ६६
अगर अकेली ही सत्ताका.. ४७
के लिये तीनों मार्गों - आध्या-
त्मिक, गुह्य और उच्चतर
बुद्धिके - को मिलाना चाहिये
५४-५
का कार्य बालकके निर्माणमें ६६
की समस्याकी विशालता ७५-६
की दिशामें प्रगति : बच्चोंने शरीर-
के लिये प्रार्थना मांगी है ८२-३
आमूल, संभव, ऊपरके अवतरणसे
८७
अगर हो जाय तो मानों परम रहस्य-
३२०
का स्पर्श.. १२२
शुरूमें एक शरीरका या सभीका
१२३ (दे० 'शरीर' भी)
की गति इतनी तेज है कि २१४
'चीज बिलकुल नजदीक है २२६
की जगह लगता है वह दूसरा शरीर
ही मूर्त रूप लेगा २७४-७५
(दे० 'काम', 'परिवर्तन', 'सिद्धि',
'जड़ता', 'भौतिक द्रव्य','मानव
जाति', 'श्रीमाताजी', 'श्री-
माताजीका शरीर', 'हस्तांतरण'
रोग २८,२०३
लोगोंके गायब हो गये १२१,
१३०, २४१
और स्वास्थ्य एक लगातार गति
है १४६
और चेतनाकी वृत्ति १८८, १९९
का लोप अहंके लोपके साथ १९९
- ओंकी जड़ २०१
का लंबा होना २०४
मिथ्यात्व है २४६
(दे० 'श्रीअरविद' भी)
वनस्पति ?[पौधा] २३, ४५,
(दे० 'परिवर्तन', 'समय' भी)
वाणी
बोलनेका यह ढंग.. ७५, १२५
(दे 'अनुभूति' भी)
विकृति
'विकृत युक्तियोंको तुम्हारा उत्तर
२७८
चेतना', 'प्रतिरोध', 'मनुष्य'
विचार ( सोचना
पूर्वकल्पित, बाधा है ५
'सभी सोच-विचार, पूर्व योजनाएं,
पूर्वदर्शन रोड़ा हैं १३, ४८,
१६६
की अनुकूलताकी कठिनाई नयी
शक्तिके साथ १४, २८३
का सच्चा उपयोग ३१
(दे० 'मन', 'चीज' मी)
विजय
सभी अनिवार्यताओंपर ९७
अतिमानसिक, पूर्ण संतुलनमें है
१०१
महान् २०७-८
असाधारणकी संभावना है २३१;
हां, यह हालकी चीज है २३२
सामंजस्य है, भगवान् है, स्वास्थ्य
है २४६
प्राप्त करनेका यही समय है
अंतमें निश्चित है २७७
(दे० 'अतिमानव चेतना', 'मानव
स्वभाव', 'मृत्यु', 'विरोधी
शक्ति', 'शुभ', 'शरीर', 'सहन-
शील' भी)
विजय-दशमी २४६
विद्रोह रे ३३, २३५
सामाजिक रुढियोंके विरुद्ध, एक
शक्ति है, यदि वह उच्चतर
चेतनाकी सेवामें.. २३०
विधान [नियम] !
३२१
प्रकृतिके व मानवके ९६, ९७,
१३१, २१०
विभाजन (चेतनाका) [पार्थक्य,
अलगाव १०३, १५०, १९२
की शोध १०१-२
का भाव मनसे १२१
का नहीं, विभित्रताका बोध, १२७
जरूरी था या अकस्मात्.. १२७
ही सृष्टि व दुःख-दैन्यका स्रोत
१४८, १५९, १७९, १८०,
२६१
मे ही 'अनंत? अपनेको अभिव्यक्त
करता है २६१
(दे 'श्रीमाताजी', 'श्रीमाताजीका
विभीषिका
-एं प्रतिरोधके कारण २७७
-एं 'शक्ति'के दबावके कारण
(दे० 'भागवत कृपा', 'श्रीमाताजी'
विरोध ७५
दृष्टिकी अपर्याप्ततासे ७१
- ओकों जीनेकी जरूरत है २००
-स्वरूप शक्तियां उठ खड़ी हुई
२१०
- को समाप्त करनेका तरीका २४८
(दे० 'प्रतिरोध', 'अवचेतना',
'कठिनाई', 'मन', 'शक्ति' भी)
विरोधी शक्ति
-की ओरसे बमबारी ७
-यां किन्हें कहते हैं ७५
-योंपर एक निर्णायक विजय २३३
-योंकी रेलपेल २३३
(दे० 'मिथ्यात्व' भी)
विविधता १७९, २८०'
विश्व ३० 'सृष्टि'
विश्वास
जब कोषाणुओंमें, जम जायगा १४
ओझाओं व डाक्टरोंपर २०५
दवाईकी जगह यदि भगवत्कृपामें
.. २०५
(दे० 'श्रद्धा', 'भौतिक मनं,
वीर बननेकी घड़ी है यह २७६
वृत्ति (चेतनाकी) ३५
का शरीरपर प्रभाव १५, १८७,
१८८, १९९, २५५, २६९,
२७०, २८६, २८७
सुरक्षा, सांत्वना व आनंद प्रदान
करनेवाली २७-९, ३५-७,
२४७-४८
कि प्रभु ही सब कुछ हैं ३६,
अपनाने योग्य अच्छी-सें-अच्छी
२०३
का प्रश्न है २०७
मे जरा-सा हेरफेर २१३, २४७-
४८
महत्त्वपूर्ण है, परिणाम नहीं २५५
स्वकेंद्रित या भगवान्को महत्व
देनेकी २५८
(दे० 'रूपांतर', 'रोग' भी)
बैज्ञानिक
- को अपने ज्ञानको मनके लिये
बोधगम्य बनानेके लिये ११०
वैभव हमारे पूर्वजोंका २०३
वैश्व लय २३, १४३, २०३
१२२
तब अच्छी-से-अच्छी अवस्थाओं,
संभावनाओंमें होता है ३१
जब सच्ची स्थितिमें होता है तो
प्राणिक सत्ता उसे छू भी नहीं
''सकती'' ३३
को हमेशा हंसना चाहिये ५१
से मेरा मतलब १००
यदि पूरी-पूरी शून्यता, अक्षमता
स्वीकार करे.. २५४
(दे० 'चेतना', 'मनुष्य' मी)
व्यक्गिव
का मृत्युके बाद क्या लोप संभव
है? १४८-५०
किस कारण बनाये गये थे १६७
'व्यक्तिगत मनमानापन तब अलग
हो जाता है १६७
क्रिया, बोध, संवेदनका केंद्र १८३
कुछ नहीं, यह अनुभव करना २९०
(दे० 'अहं', 'शरीर' भी)
श
शक्ति २४७
'सर्वशक्तिमत्ता प्रदान करनेवाली
वस्तु तभी प्राप्त हो.. ९९
विरोधों और निषेधोंद्वारा सीमित
रहती है १०३
सबसे अधिक शक्तिशाली, और
सर्वशक्तिमान्, निरपेक्ष १०३
ही सुरक्षा है १३ १टित
(दे० 'अतिमानव', 'नयी शक्ति',
'भागवत शक्ति' भी)
शत्रु ३३
नहीं, अखाड़ेके पहलवान १९०
शरीर
को लेकर व्यस्त ७-८
सें बाहर निकल आनेका हमें अधि-
कार नहीं, यह हमारे कार्यके
विपरीत है ७-८
मे परिवर्तन ऊपरसे आनेवाला
हस्तक्षेप नहीं लायगा ८
कभी सहायता नहीं करता, तुम
शरीरकी सहायता.. ११
के रूपांतरकी बात विभिन्न पर-
पराओंमें, लेकिन.. ४१
के बारेमें और-और संभावनाओंकी
कल्पना की जा सकती है, पर
अस्थिपंजरसे रहित.. ४२-८
का महत्व स्पष्ट हई जो नयी सत्ता-
के अनुरूप हो ६४
यह, नहीं बदल सकता, कोई नयी
सत्ता होगी (श्रीअरविद) ६५
बदलना बहुत कठिन. इतना परि-
श्रम और जीवन संक्षिप्त. ६५
के रूपांतर व शरीरकी प्राप्तिके
संक्रमणकी कठिनाई ६७-८
के कोषाणुओंकी प्रार्थना ८२-३
मे अभीप्सा कैसे जगायी जाय ८४
एक, की उपलब्धिकी और
शरीरोंपर क्रिया ८४, ८५,
११, १३०-३१
के कोषाणुओंमें पहले चेतना
जगायी जाय ८४
भगवान्की अभिव्यक्तिका आधार
बन सकता है ८६, २०१
का रूपांतर अब एक निश्चिति है,
पर अभी बहुत करना.. ८६
३२३
गधा नहीं है, बेचारा! ८८
के कोषाणुओंमें चेतनाके प्रवेशके
उदाहरण ८९
ही मंत्र बोलता है ८९
से समझना ९९, १२५-२६,
१३२, १७४-७५
मन-प्राणकी आज्ञा माननेका अम्य-
स्त, वह रूपांतरके लिये काफी
नमनीय नहीं १२९, १७२
के कोषाणुओंमें भगवान्के लिये
प्रेम १७०
जब एक बार कोई बात सीख ले
तो उसे भूलता नहीं १७०अ
का स्वकेंद्रित होना ही.. १८७
के अस्तित्वका भान न रहे १९५
की तैयारी ' २००
की आवश्यकता पृथक व्यक्तित्वों-
के लिये; पर यह आवश्यक
नहीं २२०
व्यक्तिगत सीमाओंसे रहित एक
भगीरथ प्रयास है २२०-२१
ऐसा बनानेकी समस्या जो 'शक्ति'
को धारण व संचारित कर सके
२४४
का रूप-रंग बदलना आखिरी चीजें
के कोषाणुओंको केवल भगवान्में
ही आश्रय ढ्ढना चाहिये २४८
मे बहुत सद्भावना चाहिये २५५
की चेतनामें अगर रहो २५८अ
समग्रताकी चेतनाको पा सकता है
२६०
मे कठिनाई, अव्यवस्था, रोग पैदा
करनेवाली चीज २८३अ
इस नयी शक्तके प्रति ग्रहणशील
हो तो वह दु-र्जे-य.. २८४
के कोषाणुओंमें लड़ने, दुःख झेलने-
की आदत आत्मनिवेदनको
स्वीकार करनेमें असमर्थ है
(दे० 'रूप, 'अतिमानसिक शरीर',
'श्रीमाताजीका शरीर', 'उदा-
हरण', 'निश्चलता', 'पीड़ा',
'मनुष्य', विश्वास', 'वृत्ति',
'रूपांतर', 'शांति', तथा 'भौतिक
.. ' के अंतर्गत भी)
शांति ?r शांत-स्थिरता १३२, १४२
लाओ शरीरमें ७, ८, १२
अक्षर, ही सत्ताकी नित्यताको संभव
बना सकती है : व्याख्या १४४-
अव्यवस्थाके उपचार रूपमें १४५
भगवान्के साथ रहनेसे २५९
उपाय, अवचेतनाकी सफाईका
(दे० 'निश्चलता' भी)
शारीरिक चरित्र १७
शारीरिक समता १२
शुभ
और सत्यकी विजय कही जाती है,
लेकिन जीवनमें दुष्टकी विजय
६८-७१
शुभ और अशुभ ११, १०१, १०२,
१०३ अ, १८९, १९२, १९७
(दे ० 'अशुभ' भी)
श्रद्धा १२९, १६७, २५७
अडिग चाहिये १, ५३
३२४
की तीव्रता और सहनशक्तिका
प्रश्न है १४९
कि भगवान्के साथ होनेका आनंद
सबसे बढ-चढूकर है २७८
नहीं, हममें; श्रद्धा हो तो सब
कुछ बदल जाता है २७९
(दे० 'विश्वास' भी)
श्रीअर्रावंद १५७,१७७
सहनशीलतापर ३, १२
के पांवमें घाव : स्वप्न १
द्रव्यात्मक मनपर १८
मौजूद थे दर्शनके दिन २१
के बौद्धिक रूपसे शिष्य २२
के योगके लिये तैयार २२
जीवनको लंबानेके बारेमें ४५, ४८
ने नयी सत्ताको निकट भविष्यमें
नहीं देखा ६६
का कथन : वास्तविक दुर्भावना,
विरोध, मिथ्यात्व विरल ७५
भागवत शक्तिके अवतरणके बारे-
मे ७८
भौतिक मनके बारेमें ८४अ, २५२,
२५३, २५६-५७टि०
पुरानी आध्यात्मिकताके बारेमें
८६, ११७
कहते थे : निर्गुणके परे.. 'पुरुष'
१००
का सूक्ष्म हाथ आया और दर्दको
ले गया १३०
की दृष्टिसे अतिमन सब दैन्यसे
अलग है १५५
का ईर्ष्यासबंधी वाक्य : वह बूढ़ा
आदमी १८३, १८६, १८७
के सूत्रोंके बारेमें श्रीमाताजीकी
टिप्पणी १८९, १९३, २०८
के प्रयाणने कितनी सहायता की
है! २०८ अ, २१२
का कथन : भागवत चेतनाके संपर्क-
मे होनेपर तुम्हें संसार अपनी
मूर्खतामें हास्यास्पद.. २३६अ
के अंदर अतिमन आया, वह स्थायी
न था २५६
सहमत कि यही सृष्टि अतिमनकी
और रूपांतर देखेगी २७९
की क्रिया-शक्ति, जब वे सशरीर थे,
तबसे अब अधिक २९४
ने शरीर किस लिये छोड़ा २९४
(दे० 'श्रीमाताजी', 'उद्धरण सूची'
श्रीमाताजी
का वस्तुओं व लोगोंको जानना
स्पंदनके गुणके अअनुसार ९-११
ने जब 'भागवत मुहूर्त' का संगीत
व 'ज', 'क्ष' के लेख सुने १०
'जब मैं किसीका फोटो देखती हू
१०अ
ने हाथ देखा : 'इसकी तबीयत
ठीक नहीं' ११
दुरा भौतिक मनकी तपस्या १७
की सारी वृत्ति बदल गयी २२-४,
२७
यह शरीर लोगोंसे घिरा है..
लेकिन अगर यह इन परि-
स्थितियोंमेंसे न होता तो बहुत-
सी चीजें भुला दी जाती ३१
का प्राण जगत्का अनुभव ३३
का प्राणिक युद्ध और चोटें ३३
का समय लोग व्यर्थके प्रश्नोंम्रें
३२५
नष्ट.. ४९-५१
मे धीरज ४९
और स्वमानकी भावना ४९
की कोहनीपर खेंख ४९, ५१
और अहंकार ५०
'वे मुझे निगल नहीं सकते ५०
'तांत्रिकोंसे मिलनेपर मैंने यह
प्रकाश देखा ५२
'मेरा एक परिचित मृत्युके बाद
एक और जीवित व्यक्तिके
निकट संपर्कमें था ५७
'भगवान् क्या है यह प्रश्न मैंने भी
कभी अपनेसे नहीं किया ६०
'भगवान्का वह विचार जिसने मुझे
बचपनमें नास्तिक बना दिया
था ६२
की भौतिक चेतनामें नाटककी
आदत व रुचि ६३
'आप इसीलिये हैं कि नयी सत्ताके
आगमनकी दूरीको छोटा कर
दें ६६-७
'मैं उसे करनेकी कोशिश कर रही
हूं, - किसी मनमाने संकल्प-
सें नहीं ६७-८
'मैं कई रातोंसे कई-कई घंटे
सूक्ष्म भौतिकमें.. ७१-३
'जब मैं अधिमानसमें देवोंको देखा
करती थो ७२
'मैंने जोरसे कहा : 'मेरी घड़ी कहां
है? मैं घड़ी पहनना भूल गयी
७४
'मैं दूसरोंसे भिन्न पदार्थसे नहीं बनी
हू ८५ १२४
'इक्कीस वर्षकी उम्रमें मैं जानती
थी कि चेतना कैसे काम करती
है ८९
'मैं अब नब्बेकी हू, नब्बेकी अवस्था-
मे लोग.. ११
नवंबर ६७ के दर्शनपर लिये गये
अपने फोटुओमें विभिन्न व्यक्ति-
त्वोंके बारेमें : कभी वे श्रीअर-
विन्द, कभी एक ऐसा व्यक्ति
.. ९२-६
की टिप्पणी डाक्टरोंकी सलाहपर
कि अपने-आपको मत थकाओ
१०४
के कुछ नोट १०६-१०, ११३-
१५, १७८, १८१-८२
'मन-प्राण छोड़ गये है, पर सबके
साथ संबंध वैसे ही.. १ ०७टि०
मे कालके सामान्य विचारकी
अवास्तविकताकी चेतना १०८,
१०९
'मैं सृष्टिकी सारी विभीषिकाओंमें,
भौतिक पीडामें जीती थी १२२,
१२५
'मैंने मानों केंद्रीय अनुभूतिको छू
लिया है १२२
'उसके लिये मैं मिलने आनेवाले-
को देख रही थी १२३
'उपस्थितिकी चेतना और पहली
चेतना भी है १२३
'आपको जमीनपर चित लेटे देखा;
क्या अर्थ? १२४, १२६
'श्रीअरविदकी चीजोंको मैं अब
समझना शुरू कर रही हू
१२८
'हम किसी चीजको छूने-छूनेको
३२६
हैं, वह बच निकलती है १२८,
१३२
'जब मैं लोगोंसे 'शुभ नव वर्ष'
कहती हू १३३
में भागवत चेतानाकी क्रिया २४०
मुझे मानों यह काम सौंपा गया है
कि जो मेरे नजदीक आयें उन-
का अतिमानव चेतनाके साथ
संपर्क करा दूं १४१
'मेरी कही हुई बात जब मेरे आगे
दोहरायी जाती है १४७,२१५
मे व्यक्गिव व विभाजनकी भावना
गायब १४८
'लोगोंकी चेतना मेरे आगे खुली
हुई है, कष्टदायक स्थिति होने-
पर उनमें विचार : यह समाप्त
हो जायगा १५२
की, ओरोवीलमें आनेवाली चीजों,
कला, खेल-कूद, भोजन आदिके
बारेमें श्रीअरविदसे सूक्ष्म जगत्-
मे बातचीत १५६
'अलग-अलग समय अलग-अलग
लोगोंके साथ मुझसे अलग-अलग
काम करवाया जाता है १६१
अतिमानसिक चेतनामें रहते अपना
सारा भौतिक काम कर रही
थी १८३, १८५
का काम : लोगोंपर दिव्य चेतना
प्रक्षिप्त करना १८३
को.. के साथ कठिनाई थी १८५
के पास पत्रका उत्तर जिस रूपमें
आता है १९३-९४
मे पत्र लिखकर भेज देनेपर प्रति-
क्रिया दूं ९५
'मैं इस विश्वासका मूल्य चुका रही
हू २०१
'यही काम है जो श्रीअरविन्दने मुझे सौंपा था २१०, २७६
कि हमारी साथ उपस्थिति: कुछ पहली
और अबमें फर्क २१८-११
की चेतना अब निर्गुण बन गयी है
२११
'लोग जब मुझे लिखते हैं कि मैंने
उनके लिये यह किया २१९अ
'जब मुझसे पूछा जाता है : 'आप
उसे कैसे देखती है?' २२०
'लोग जब मुझे बुलाते और मेरे
बारेमें सोचते हैं.. २२१अ
क्या सत्ताओं और घटनाओंको
देखनेका आपका तरीका बदला
है? २२३, २२५
'आपकी दृष्टि बहुत बदल गयी है
२२८
'मै लोगोंमें देखती हू : ग्रहणशीलता
२२८-२९
से मिलने आनेवाले लोग : अभीप्सा,
कौतूहल, बाध्यताके साथ २२८
का संघर्ष उनके विरुद्ध जो यहां
आरामसे रहने.. २२१
'मैं ही सिर्फ युवा हू.. २२१
'मेरा वातावरण एक स्वच्छ ट्रांस-
मिटर हो २३१-३२
'जब चुप रहती हूं तो सब कुछ अद्भुत
...जैसे ही लोग बातें करने
लगते हैं.. २३९-४०, २९१
'जब 'अंदर' होती हू तो आश्चर्य-
जनक 'शक्ति' होती है, लोगोंकी
बीमारी गायब.. २४१
३२७
आपके पास होनेपर शरीरसे
प्रार्थना.. २४४-४५
मे दृष्टिका, चेतनाके केंद्रका, परि-
वर्तन २५०-५१
'मेरी चेतना अब अन्य सत्ताओंके
बीच एक सत्ता नहीं, वह सभी
चीजोंमें भगवान् है २५१
'मैं एक और ही व्यक्ति बन गयी
हू, केवल बाहरी रूप वही है
२५३
के लिये काम कर दिया गया, यह
चैत्य, उपस्थितिके कारण हुआ
२५३, २५४
की सारी सत्तापर चैत्यपुसषका
शासन २५३, २५४; बरसों-
सें, यहां आनेसे भी पहलेसे
२६२-६३; अभी हालमें ही
अनेकीकृत चेतनाका अनुभव
२६२ २६३
'मैं असाधारण धडियोंमेंसे गुजर
रही हू २५७
'मेरा मन स्वाभाविक रूपसे भगवान्-
के मननमें रहता है २६५
को भगवान्में लिपटे होनेका भौतिक
संवेदन २६५
की अवचेतनामें सजगता २७०
की कुछ शिष्योंसे बातचीत २७५-
७६
'मैं बूढी नहीं हू, जवान हू २७५अ
'मैं यहां इसलिये नहीं हू कि मैं बद्ध
हु २७६
'मैं केवल एक चीज मांगती हू २७६
मे चेतना, विचारके स्थानपर २८६
के लिये एकमात्र शरण २८८
'में न देख सकती हू तो
सहायता कैसे कर.. २८८
अपनी निश्चलतामें भी एक 'शक्ति',
उत्पादक-केंद्र २८८
की चेतनामें संसार-भरका युद्ध
लड़ जा रहा है २८९
की अब अवस्था : भगवान्को क्षण-
भरके लिये भूल जानेका अर्थ
है विभीषिका २८९
को अतिमानस-चेतनाकी प्राप्ति
कुछ सैकडोंके लिये २१२अ
'श्रीअरविन्द रूपांतरके जिस बिंदु-
तक पहुंचे थे और अब आप
जो काम कर रही हैं, उसमें
क्या फर्क है? २९३
'श्रीअरविन्दके शरीरमें एकत्रित
अतिमानसिक शक्ति मेरे शरीरमें
आ गयी २९३
'मैं सारे समय यही तो करती रही
हू : मिथ्यात्वका परिवर्तन २९६
की रट : 'तुम्हारे' बिना मृत्यु है,
'तुम्हारे' साथ जीवन २९७
'मुझे लगता है, मैं बह हू और
तब, जब मैं किसीको देखती
हू तो उस व्यक्तिको 'ज्योति'के
अर्पण कर देती हू २९७
'लगता है, मैं एक छोटी-सी बच्ची
हू, दुबकी हुई.. २९७
(दे० 'नया वर्ष', 'नीरवता'
श्रीमाताजीकी अनुभूति !अंतर्दर्शन
विकेंद्रित भौतिक चेतनाकी ४-५,
२३२,२३६
मानव जातिके विभिन्न स्तरोंकी
३२८
अतिमानसिक सृष्टिकी, एक
वैश्व लयकी २ १-७, ७०
कि जीवनके सनी रूप चुनावकी
अभिव्यक्ति हैं २७-९
कोई, दूसरी बार नहीं ३०
रूपके लचीलेपन और ठोसपनमें
कमीकी, पहली बार ५२-३
कि जागनेपर अगर कोई सूक्ष्म
भौतिककी चेतनाको बनाये
रखे तो वह पागल लगेगा ७४
धरतीके दिव्य बननेके प्रयासका
७१-२; इसमें कहनेवाला 'कोई'
श्रीअरविद हैं ८,१
कि यह सृष्टि 'संतुलनकी सृष्टि'
है १००-३
'पार्थक्यकी शोध १०१-३
प्राकृतिक दृश्यों, विशाल मंदिरों,
इमारतों व नगरोंका १०६-७,
११४
कि अपनी चेतनाके अनुसार अच्छे-
से-अच्छा करनेवालेको दोष
देना असंभव ११६-१७
पारदर्शक तरलता और अपार-
दर्शिताकी ११८
-योंका सुनाना कठिन : कारण १४६
अतिमानसिक चेतनाकी.. सृष्टि
के 'क्यों', 'कैसे', 'किस ओर'
का अंतर्दर्शन.. पुरजेपर लिखे
कुछ सूत्र १७७-८७
त्याज्य गतिके बारेमें १९२-९३
कि चैत्यपुरुष ही अतिमानव सत्ता
बन जायगा २१५-१६
२१ फरवरी, ७२ की : यह हरेक-
का जन्मदिन है.. कोई नयी
चीज उतरी है २६७टि
अपने संक्रमणकालीन शरीरका:
छरहरा, अलैंगिक.. २७०-७५
(दे० 'श्रीमाताजीका शरीर' भी)
श्रीमाताजीका शरीर
के कोषाणुओंसे पूछा गया : वे इस
मेलको क्यों बनाये रखना
चाहते हैं ३
की साधना : श्रीअरविदकी मार्ग-
दर्शक कुछ टिप्पणियां १२;
विजयका उपाय १४
मे शक्तिका. हस्तांतरण दे०
'हस्तांतरण'
का समर्पण १२-३, १२६-२७,
१५५, १६५, २५४, २८६
(दे० 'इच्छा' जैसी मी)
के कोषाणुओंकी अनुभूति : साथ
रहना या विलीन हों जाना
वृत्ति-विशेषपर निर्भर १५
मे मूर्छा १५,९०
का, चारों तरफकी चीजोंके
स्पंदनोंके साथ सामंजस्य-स्थापन
२९-३०, २२०-२१
अभी, बाहरके प्रभावों ?[छूत] के
प्रति खुला है २९,४६, ६८,
२२०
के कोषाणुओंमें रूपांतरका काम
३०- १, ७५-६, ११-२
के कोषाणुओंकी चेतनाकी अवस्था,
पर बाह्य रूपमें.. ४६, २८८
की यंत्रवत् आदतोंके स्थानपर
'चेतना' ?[भागवत उपस्थिति]
५१-४, ६३
मे साहसिक भाव ५ ३-४, २६७
३२९
विघटनके लिये तैयार ५३, १६२,
२५४
के कोषाणुओंमें मृत्युके बारेमें चिंता
और उत्तर ५६
के कोषाणुओंमें 'ओ३म्' का गान
६०
मे हुई प्राप्ति दूसरोंको नहीं हुई,
इससे श्रममार.. ६८
की चेतनामें बाहरसे संक्रमण हर
क्षण ६८, २०८, २८६
के कोषाणुओंका स्तवगान ६८
मे निश्चेतनाको सचेतन बनानेका
काम ७७-८१
'यह यंत्र 'समाचार लाने' की जगह
उपलब्धिका प्रयास करनेके लिये
.. ७८-९
से कम निश्चेतनावाली क्या कोई
सत्ता पृथ्वीपर है ७९-८०
मे पूर्णतया जाग्रत् अभीप्सा ८४
के कोषाणुओंमें अब, चेतना काम
कर रही है, भौतिक मन परि-
वर्तित.. ८४-'६, २५२,२५३,
मे चेतनाके प्रवेशका आरंभ : जब
डाक्टरोंने कहा, मैं बहुत
बीमार हू ८५-६
को जान-बूझकर अपने-आपपर
छोड़ दिया गया, मन-प्राण हट ग
ये ८५, ९०, ९२, १०७,
११२
से मन-प्राण चले गये, इसलिये
रोगका आभास ८५, ८९-९०
मै प्रेमका विस्फोट ८६
का 'सर्वोच्च' ![चैत्यपुरुष] के साथ
सीधा संपर्क, बिना किसी
मध्यवर्तीके १०अ, १०९, ११८
मे अब? मनके स्थानपर चेतनाका
शासन : फल ९६-७
मे रूपकी भंगुरता और रूपकी
नित्यताका युगपत् बोध १०२,
के लिये चीजें बहुत तीव्र हो उठीं,
एक शब्द भी बोलना असंभव
हो गया.. १०५-६
ने कहा : यह स्थिति और नहीं
१०६, १११
के 'क' वैज्ञानिकसे कुछ प्रश्न १०८-
१०
मे अतिमानसिक शक्तिका सशक्त
प्रवेश, गलेसे सिरके बीच कम
११०- ११, ११३
'दर्शन और श्रवण ११३,२२१अ,
२२२, २२४-२५, २५४अ
की चेतनाकी स्थिति, उन व्यक्तियों-
पर निर्भर जिनके साथ वह..
के कोषाणु मंत्र जप रहे थे ११५
तरलता और अयथार्थतासे यथार्थ-
ताकि ओर ११८
की अनुभूति : 'हर चीज भागवत
उपस्थितिसे भरी है' ११९-२५
सें पीड़ा, कठिनाई, दर्द सब कुछ
गायब, अद्भुत चेतनाके आते
ही १२२,१३०, १४१, १ ५९अ,
१६०-६१, १७६,२१०, २४७
२६५
समझना शुरू कर रहा है १२५-
२६, १७४-७५
३३०
सचेतन हो रहा है असामंजस्यके
स्थान व क्रियासे १२६ अ
सचेतन हों रहा है औरोंके लिये
भी, विमाजनका नहीं, विभि-
त्रताका बोध १२७
को चेतनाकी प्राप्ति पीड़ा और
अव्यवस्थाकी कीमतपर १२७
से मन-प्राणका निष्कासन जरूरी
क्यों था? १२८-२९, १७२,
२१६, २५२, २५३, २५६-
५७; इस पद्धतिकी सलाह
नहीं दी जाती १२९, १७२
अपने-आपपर छोडे हुए, की मूढ़ता-
का प्रदर्शन (वह संकटोंके बीच
जी रहा है), और अद्भुत
चेतनाका प्रभाव १२९-३०
को लगता है वह एक बक्सेमें कैद
है १३१
ने, जब व्यथा तीव्र थीं, पूछा अव्य-
वस्था कैसे? यह रहस्य मालूम
हो जाय तो बस अमरता १३२
मे घंटोंकी यंत्रणा और अचानक
एक अद्भुत क्षण १३३
का, बल्कि वातावरणका, प्रश्न कि
वह चलता रहेगा या विलीन
हो जायगा १४२
जानता है कि निश्चय किया जा
चुका है.. १४२
को डटे रहना चाहिये, अन्यथा
दुर्भाग्यवश, यह किसी और
समयके लिये रहेगा १४३
अभी, जड-द्रव्यको सद्वस्तु माननेसे
लेकर मोक्षतककी सभी अवस्था-
ओंमेसे गुजरा है, पर जिसे
अभी जीना है वह है सृष्टि-
का अगला कदम १४८-४९
को अपनी चिंता बिलकुल नहीं,
उसमें समयका भाव नहीं रहा,
प्रतिक्रियाएं, वेदन, रंग-रूप
बदल गये, परम एकता...
कोई झंझट, योजना नहीं १५०-
५१
का मृत्युके प्रति भाव १५२
की एक ही आशा : विभाजन गायब
हो जाय १५२
को चिता : क्यों? सृष्ट्रि ऐसी
क्यों? १ ५२अ
समस्त पृथ्वीका प्रतीक १५३
के पास हर चीज शुद्ध होनेके लिये
आती है १५३-५४
समझ गया कि चले जाना कोई
समाधान नहीं है १५४
की अनुभूति : वस्तुओंकी भयंकर-
ताकी १५८-६१; और इनके
अवास्तविक मिथ्यात्वकी १५९-
६०, १६२
वस्तुओंकी भयंकरताके प्रत्यक्ष
दर्शनके सामने रोया है १५८
ने कहा : यह भयंकर जगत् किस
लिये? उत्तर : विशाल प्रकाश
१५८-५९
का प्रश्न : 'वह अद्भुत' यह
घिनौनी डरावनी भीमाकार
वस्तु कैसे बन गया? १५९
ने सारे जीवनमें कभी ऐसे गहरे
दर्दका अनुभव नहीं किया..
अंतमें आनंद १५९अ, १६०-६१
को सनातन नरककी अनुभूति १६१
३३१
का अब अपना स्थान लेनेका समय
आ गया है १६२-६३
को मालूम नहीं कि वह जीवित है
या मृत १६३
मे ज्योतिर्मय शरीर बननेकी
महत्वाकांक्षा नहीं १६४-६५
मे प्रेम व आराधनाकी गति १७०,
१७१
से अहंका लोप १७१
के लिये निद्राकी निश्चलता और
सचेतन निश्चलतामें फर्क १७३
मे पूर्ण निश्चलता और तीव्र
अभीप्सा दोनों साथ १७४
की अनुभूति : कभी 'अमरता'की
चेतना, कभी मर्त्यकी चेतना
१७५-७७
रूपांतरकी ओर १८६
को सिखाया जा रहा है : वह कुछ
नहीं जानता १९७-९९
का जीवन और मृत्युके बीच
मंडराना १९९अ, २५५अ,
२५७, २६१
को मरे बिना मृत्युका अनुभव २०२
को विघटनके साथ लुप्त हों जाने-
की म्गंति बहुत समयसे नहीं,
और अब.. २०२
के कष्टका कारण और इलाज २०२
मे अतिसवेदनशीलता २०३
इन सब चीजोंको स्वप्न कहा करता
था, जब श्रीअरविद बीमार
पड़े, उनकी जांघ टूटी २०६
की अनुभूति : भौतिक 'तथ्य' का
समय खत्म हों चुका २०६-७,
२०९
की अनुभूतियोंको व्यक्त करना
कठिन २१३- १५ (दे० 'श्री-
बच्चेकी न्याई विद्यालय जाना,
सीखना चाहता है २१७
लोगोंके स्पंदनोंको ग्रहण करता है,
वह औरोंको दोष नहीं देता..
नम्रतासे भरा है २१८
समर्पित, मेंसे गुजरनेवाली 'शक्ति'
दुर्जेय होती है.. संभावनाओं-
की सीमा नहीं होनी चाहिये,
लेकिन अभी.. २१८
की चेतनामें भी व्यक्तिगत कम-से-
कम, सीमाएं नहीं, मानों
तरल.. जब कोई आलोचक
भावसे आता है.. २१९-२१
'एक पांवमें लकवा-सा.. फिर
मी भारत व जगत् के लिये
क्रियाशील.. इस बीमारीसे
सहायता.. मैंने भौतिक रूपसे
हरेकके साथ संपर्क रखा.. सारे
समय चीख.. यह सारे जगत् की
समस्या थी कि दुःख क्यों?..
मैंने सारे शामकोंका प्रयोग
किया.. 'द्रव्य' को तैयार किया
गया है २२२-२७
मे परिवर्तन न देख सकनेके लिये
बिलकुल अंधा होना चाहिये
२२७
पूछता है : 'तुम्हारा मिथ्यात्व
कहां है? २३४
समझ गया : मेरा अस्तित्व भग-
वान् के द्वारा है, अहंके कारण
नहीं २३४, २३५-३६, २४३
३३२
अधिक सचेतन हो रहा है : क्या
होनेवाला है, लोग क्या कहने-
वाले हैं.. २३७-३८
अपना समय बिताता है : भगवान्-
सें चिपके रहने, होनेकी कोशिश
करनेमें २४१-४२
को सब चीजें - लोग, परिस्थितियां,
सब कुछ - सत्यचेतना प्राप्त
करना सिखानेके लिये आ रही
हैं २४४?
की खुलनेकी कोशिश २४६
मे समग्र चेतना प्राप्त करनेका प्रश्न
२४९-५०
को कहा गया : यदि तुम रोग और
पीड़ा स्वीकार करो.. २५४
मे सद्भावना २५५
ने कहा, यह खतम - मुझे जीवन
चाहिये २५७
समग्रताकी चेतनाको पा चुका है
कुछ क्षणोंके लिये २६०अ
कहता है : सच्ची चीज या फिर
अंत २६७-६८
को अनिवार्यताके द्वारा नित्यता
सिखायी जा रही है २६९
रूपांतरके प्रयासके लिये अर्पित
२७५-७६
के बेचैनी और चिंता अनुभव करने-
पर आवाज : ''तुम डरती क्यों
हों, यह नयी चेतना है'' २८४
की वह मूढ़ता जो देर लगाती है :
'आनंदमय अवस्था असंभव'
२८६-८७
के लिये भगवान्की ओरका अर्थ
मे 'शक्ति' की क्रिया कि वह प्रतिमा
हो, लोगोंके ध्यानको एकाग्र
करनेके लिये २९०
की प्रार्थना २९५
(दे० 'शरीर', 'अतिमानव चेतना',
'भागवत कृपा', 'वृत्ति', 'समा-
धान' भी)
श्वासोचाछवास २७३, २७४, २७५
स
संक्रमण १३, ३६
भौतिक, की समस्या ६८, २४४,
२७२अ, २७४-७५
के जितना निकट, अतिसंवेदन-
शीलता उतनी ही २०३
संक्रमणकाल १ २अ, २४, ५३, ९०,
संगीत
या चित्रकारी असंभव, यदि चेतना
हाथमें प्रवेश न करे ८९
संघर्ष [लड़ाई, युद्ध] ५९, १७५
हज़ारों वर्ष पुरानी आदतसे ६३
क्षण-क्षणका ६७अ, २५७
का कारण ७०
की आवश्यकता गायब हों
जायगी
७०
अभी करते जाना है २०८,२१०
स्वयं भगवान्को करना चाहिये
२९०
(दे० 'प्रगति', 'भगवान्', 'श्रीमाता-
जी' भी)
संतुलन
पूर्ण, की ओर १०१, १८०
३३३
सृष्टिमें, चरितार्थ हो जानेपर
प्रगति बिना रोकके.. १०२
( दे० 'विजय', 'समग्रता', 'सृष्टि'
संदेश
नवंबर दर्शन, ११६५ का ११
२१ फरवरी ६९, के बारेमें १ ४४-
आकाशवाणीको २२७
भारतके लिये २३३
२१ फरवरी, ७२ का २६१
२१ फरवरी, ७२ का २६४
का कार्ड श्रीमाताजीका २७७
संभव ?[संभावना] ३१, ३६
ओंकी कोई हद नहीं होनी चाहिये,
है यह, क्योंकि यह पहले कभी नहीं
हुआ २८४-८५
(दे० 'असंभव', 'व्यक्ति' भी)
सचाई ७१, २४७,२७१
से चाहना : फल ३१
के साथ काम करनेवालेको दोष
देना ११६अ
के लिये श्रम, अतिमानव चेतनाका
२१७
पूर्ण, के लिये आवश्यक शर्त २६१
'सीधे चलो, अन्यथा सब बिगड़
जायगा २६७
जरा-सी, के अद्भुत परिणाम २८१ -
(दे० 'प्रयास', 'समझौता' भी)
सत्ता
का एक श्रेष्ठ तरीका २७-९
- के आनंदके बिना सत्ता नहीं
होती ९९
केवल एक है १४८ (३० 'भग-
वान्' का ही भी)
सत्य
के जगत् और वर्तमान जगत् में एक
फर्क होगा ६९
को देखनेके लिये ७०
से कतरा जाते हो २०६
के जो अनुकूल नहीं, चैत्यके जो
अनुरूप बनने. योग्य नहीं उसी
का विलोपन होता है २१७
तेरी ही आज्ञाका पालन करें २३३
(दे 'जीना', 'प्रकाश', 'शुभ',
सत्यचेतना दे० 'अतिमानसिक चेतना'
सद्भावना १३३, १३४
वालोंपर चेतनाकी क्रिया बढ़ गयी
हैं, कठिनाइयां भी १
मनुष्यकी १३५
शारीरिक २५५
सभ्य [सभ्यता] २०४
समग्र
प्रगति करता रहता है ७०
को देखना चाहिये सत्यको देखने-
के लिये ७०
को उपलब्ध करना, समग्रकी रचना
करनेवाले प्रत्येक तत्वमें १०२,
१७९
सब मिलकर पूर्ण एकता है,
१७९- ८० ( दे० 'चीज' एक भी)
की चेतना एक ही समय, एक साथ
समग्र और छोटे-सें-छोटे ब्योरे-
के बारेमें मी सचेतन २०१अ
(दे० 'ऐक्य', 'गति', 'चेतना',
३३४
'दोष', भी)
समग्रता
का दर्शन, सांत्वनादायक ३६
सबका संतुलन है १०२
(दे ० 'भगवान्', 'शरीर', 'श्री-
समझ २७,१०३,१७५
उच्चतर, से सहायता त्याज्य गति-
के साथ व्यवहारमें ११३
(दे० 'भगवान्' की दृष्टि भी)
समझौता
नहीं, 'लगभग' नहीं, अधकचरा
नहीं ६, १४३अ, १५५,२६८
समय
लगेगा, नयी चीजके प्रकट होनेमें
४८,७६-७, ११, ११०, ११२,
१७५, २४९-५०
की धारणा ४८, ७० अ, १३२,
लंबे, तक चलेगी यह अपर्याप्त,
अधूरी, अपूर्ण चीज ७०, १०४
सभी परिवर्तनोंमें उपलक्षित ७०अ
पत्थरको वनस्पतिमें, वनस्पतिको
पशुमें, पशुको.. बदलनेमें
कितना लगा हैं! ७७
से पहले यदि परिणाम आ जाय
तो कामकी अवहेलना होगी,
मनुष्य इतना संतुष्ट.. ८६
अपना मूल्य खो बैठा है ९७
अब इधर-उधर देर लगाने या
ऊंघनेका नहीं है १४९
अब आ गया है १५५
लगेगा, मानवजातिको बदलनेमें
१६३
लगेगा भौतिक 'तथ्य' पर विजय-
को स्थापित होनेमें २०८
यह करनेका, ऊपरकी ओर छलांग
लगानेका है २३०
आंतरिक चेतना और बाह्य. चेतना-
मे २४१, २६०
लगेगा, अवचेतनाकी सफाईमें २८९
(दे० 'परिवर्तन', 'भागवत कृपा',
'मानव जाति' ने, 'श्रीमाताजी',
'श्रीमाताजीका शरीर', 'देश
और काल' भी)
समर्पण
शरीरका १२, १३, ४०
ही मिथ्यात्वमेंसे बाहर निकलनेकी
विधि १७६
(दे० 'भगवान्', 'श्रीमाताजीका
शरीर', 'समाधान' भी)
समाधान
चले जाना नहीं है १५४
एकमात्र : भगवान्के साथ सचे-
तन संपर्क और भगवान्की
इच्छाके प्रति समर्पण १५५,
१६७, १९६, २०१, २३५,
२५९, २६२, २८०, २८१,
२१०, २९७
बुद्धका और सत्य समाधान
१५९-६२
जल्दी पानेकी आशाएं बचकानी
हैं १६३
कि श्रीमाताजीका शरीर ज्योति-
र्मय हो जाय १६३-६५
सहनशील
होनेकी जरूरत १, २-३, १२,
१४९, १५५, २०१
३३५
सबसे अधिक, की ही विजय ३अ
साधना
का रहस्य : मनके प्रयासकी जगह
'शक्ति' द्वारा काम... ६४
सामंजस्य
-स्थापनका एक तरीका २७-९
अधिकाधिक सामंजस्यपूर्ण ७०
कला, खेल-कूद, भोजन आदि
सब चीजोंका, सूक्ष्म जगत् में
तैयार है नीचे आनेके लिये
का भविष्य २२७
(दे० 'अतिमानव चेतना', 'दोष',
'विजय', 'प्रगति', 'मानव जाति',
सिद्धांत गढ़ना २९, ५९
सिद्धि
संपूर्ण, तभी होगी ४८, १७१
अब यहां भी प्राप्य २११
भौतिक, ही ठोस सिद्धि है २४३
अगली २४९ (दे० 'गति' अब,
'सृष्टि' भी)
सुरक्षा ३६, ४८, २३७, २८३
सृष्टि [विश्व]
क्यों, कैसे, किस ओर ६१, १०२,
१४४-४७, १४८,१५९, १६७,
१७७-८२, २४३,२४९, २६१
यह, संतुलनकी सृष्टि है १००- १
१०२, १०३, १८०
का, द्रव्यका, अगला कदम १४९
(दे० 'सिद्धि' मी)
जड़तासे क्यों शुरू हुई १७३
एक बखेड़ा १७३
की प्रक्रिया : निश्चेतन पूर्णताकी
स्थितिसे सचेतन पूर्णताकी
ओर १७४
को समझना १७५
(दे० 'जगत्', 'दुःख-कष्ट',
'विभाजन' भी)
सेक्स
का आवेग मानवजातिमें २५-६
स्थिरता और परिवर्तन १७८, १८१,
१८२
स्वप्न
'स' का बुरा ८अ
शिष्यका, झागकी विशाल लहर
और काली नौका.. १०५
(दे० 'जगत्' (सूक्ष्म भौतिक) भी)
स्वाधीनता
का भाव २७, ३६, १२६
चुनावकी २८
(दे० 'बंधन' भी)
स्वापक औषधियों के बारेमें ३१-२
ह
हस्तांतरण ![स्थानांतरण]
शक्तिका १४-६, १८-९, २०१,
२२२
का विषय भौतिक मन नहीं, द्रव्य-
त्मक मन १६
मे सबसे बड़ी कठिनाई स्नायुओंमें
१८-९
अधिकारका : देशों और प्रदेशोंके
२०२; भौतिक जीवनके २०७
हिंसा का खुला समर्थन १५७अ
होना [बनना] ४८,५२, ६०, २४०, २४१, २४२, २५६
३३६
नामानुकमणिका
अनातोल फांस ६२
अमरीकाके जवानों.. १, ६
चीन १५७
चेकोस्लोवाकिया १०५
दुर्गा ९५
देवदूतोंका विद्रोह (पुस्तक) ६२
पाल (संत) ४१
बुद्ध १५३, १५९
महाकाली ९५
माओ-त्से-तुंग १५७
राम नहो, तो रावण... १९०
रेचेड आफ द अर्थ (पुस्तक)
लेखक : फ्राट्ज फानोन १५८-
ति०
रेनां (लेखक) ११२ टि०
''लाइफ'' (पत्रिका) ३२
३३७
उद्धरण सूची
श्रीअरविदके उद्धरण
विचार और सूत्र
स्थल अज्ञात
एक अप्रकाशित पत्र
योगसमन्वय
सावित्री
श्रीअरविंदके पत्र, भाग १
'रूपांतर' कविता
६अ, १२८टि०, १८९टि०, १९०टी०, २०३-५
१९, ६४-५
४१
६१, २६० टि०
६२
२५६-५७ टी०
२७५
३३८
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