Compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education and 3 dramas in French: 'Towards the Future', 'The Great Secret' and 'The Ascent to Truth'.
This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.
नारियों से-उनके शरीर के बारे में
(कुछ प्रश्रों के उत्तर)
१. हे भगवान् क्या तुम यह नहीं भूल सकते कि तुम लड़का हो या लड़की और मनुष्य बनने की कोशिश नहीं कर सकते?
२. प्रत्येक विचार (या विचारों का दर्शन) अपने काल और देश मे सच्चा होता हैं । लेकिन अगर वह ऐकांतिक होना चाहे या अपना समय पूरा हो जाने पर भी बचे रहने की कोशिश करे, तो वह सच्चा नहीं रहता ।
शारीरिक शिक्षण के उद्देश्य ले अपने दल क्वे बच्चों क्वे लाख व्यवहार करते समय बालिकाओं क्वे विषय मे कुछ समस्याएं हमारे सामने आ खड़ी होती हैं उनमें ले अधिकांश ऐसे सुझाव हैं जो उन्हें अपने मित्रों से बड़ी लड़कियां से माता-पिता या अभिभावकों और डाक्टरों ले मित्रते हैं कृपा कर्कर नीचे लिखे प्रश्रों पर कुछ प्रकाश डालिये ताकि अपने उत्तरदायित्वों को अधिक योग्यता के साथ पूरा करने के लिये हमें अधिक छान प्राप्त हो
१. अपने मासिक काल के विषय मे किसी क्याकि का मनोभाव क्या होना चाहिये?
२. क्या अपने मासिक काल में किसी लड़की को अपने शारीरिक शिक्षण के सामान्य कार्यक्रम मैं शाम लेना चाहिये?
३. कुछ लड़कियां अपने मासिक काल में क्यों पूर्णत: हो जाती हैं तथा अपने पीठ क्वे निचले मान में और पेट में दर्द का अनुभव करती हैं जब कि औरों की कोई नहीं होती या बहुत मामूली-सी होती है?
४. कोई लड़की अपने मासिक काल के दुःख-दर्द को कैसे जीत सकती है?
५. क्या आपकी राय सें लड़कों और लड़कियों के लिये मित्र-मित्र प्रकार के व्यायाम होने चाहिये? क्या तथाकथित ' खेलकूदों का अभ्यास करने ले किसी लड़की के जननेन्द्रिय आदि अंग को हानि पहुंच सकती है?
६. क्या कठिन व्यायामों का अभ्यास करने ले किसी लड़की की आकृति बदल जायेगी और वह एक पुरुष की आकृति की तरह मांसल हो जायेगी और ईसा कारण वह लड़की .कुरूप दिखायी देने लगेगी?
७. यदि कोई लड़की विवाह करना चाहे और पीछे उसे बच्चा हों तो क्या कठिन व्यायामों की खरब उसे बच्चा होते समय अधिक कठिनाइयां होगी?
८. नारीत्व की ले पालिकाओं के लिये शारीरिक शिक्षण का क्या आदर्श होना चाहिये?
९. हमारी नवीन जीवन-पद्धति के अंदर पुरुष और स्त्री का क्या मुख्य कार्य - होना चाहिये? उनमें परस्पर क्या संबंध होगा?
१०. नारी के शारीरिक सौंदर्य का क्या आदर्श होना चखिये?
तुम्हारे प्रश्रों का उत्तर देने से पहले मैं तुमसे कुछ बातें कहना चाहती हूं जो निस्संदेह तुम जानते हो, पर तुम यदि यह जानना चाहते हों कि श्रेष्ठ जीवन कैसे यापन किया जाये तो तुम्हें उन्हें कभी भूलना नहीं चाहिये ।
यह सच है कि हम, अपने आंतरिक स्वरूप में, एक आत्मा हैं, सजीव अंतरात्मा हैं जो अपने अंदर भगवान् को वहन करती है, और भगवान् बनने की, उन्हें पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करने की अभीप्सा करती हैं; वैसे हीं यह भी सच है कि, कम-से-कम इस क्षण, अपनी अत्यंत स्थूल बाह्य सत्ता में, अपने शरीर में, हम अब भी एक पशु, स्तनपायी जीव हैं, निस्संदेह एक उच्चतर जाति के हैं, पर पशुओं जैसे ही निर्मित हैं और पशु-प्रकृति के नियमों के ही अधीन हैं ।
तुम लोगों को निक्षय हीं यह पढ़ाया गया होगा कि स्तनपायी जीवों की एक विशेषता यह है कि उनकी मादा गर्भ-धारण करती हैं और अपने गर्भस्थ बच्चे को तबतक वहन करती और निर्मित करती हैं जबतक वह क्षण नहीं आ जाता जब बच्चा पूर्ण आकार प्राप्त करके अपनी माता के शरीर से बाहर निकल सके और स्वतंत्र रूप से जीवन यापन करने लगे ।
इस कार्य को दिष्टि मे रखकर प्रकृति माता ने स्त्रियों को फल की कुछ अतिरिक्त मात्रा प्रदान की है जो बालक के निर्माण के लिये व्यवहुत होती है । परंतु इस अतिरिक्त रक्त का उपयोग करना सर्वदा आवश्यक नहीं होता, इसलिये जब कोई बच्चा पैदा होनेवाला नहीं होता तब रक्त की अधिकता और जमाव से बचने के लिये अतिरिक्त रक्त को निकाल फेंकने की आवश्यकता होती है । बस, यही है मासिक चर्म का कारण । यह एक सीधी-सी स्वाभाविक क्रिया हैं, जिस पद्धति सें नारी का निर्माण हुआ है उसीका एक परिणाम हैं और शरीर की अन्य क्रियाओं की अपेक्षा इसे अधिक महत्त्व देने की कोई आवश्यकता नहीं हैं । यह कोई रोग नहीं है और किसी दुर्बलता या सच्ची असुविधा का कारण नहीं बन सकती । अतएव एक स्वाभाविक स्थिति मे रहनेवाली स्त्री को, ऐसी स्त्रीको जो अनावश्यक ढंग से नर्म तबीयत की न हों, उसे केवल स्वच्छता-संबंधी आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिये, इसके विषय में कभी जरा भी सोचना नहीं चाहिये और अपने कार्यक्रम मे कोई मी परिवर्तन न कर, नित्य की तरह अपना दैनिक जीवन बिताना चाहिये । यहीं अच्छा स्वास्थ्य बनाये रखने का सबसे उत्तम उपाय हैं ।
२६६
इसके अतिरिक्त, यह स्वीकार करने पर भी कि जहांतक हमारे शरीर का प्रश्र है हम अब मी भयंकर रूप सें पशत्व से संबंध रखते हैं, हमें यह सिद्धांत नहीं बना लेना चाहिये कि यह पशु-अंग, जिस तरह हमारे लिये अत्यंत ठोस और अत्यंत सत्य है उसी तरह वह एकमात्र वस्तु है जिसकी अधीनता स्वीकार करने के लिये हम बाध्य हैं और जिसे हमें अपने अपर शासन करने देना चाहिये । दुर्भाग्यवश जीवन मे अधिकतर यहीं होता है और निक्षय हीं मनुष्य अपनी भौतिक सत्ता के प्रभु की अपेक्षा कहीं अधिक गुलाम हैं । परंतु इसके विपरीत हीं होना चाहिये क्योंकि व्यक्तिगत जीवन का सत्य एकदम दूसरी चीज हैं ।
हमारे अंदर एक विवेकपूर्ण संकल्प-शक्ति हैं जिसे कम या अधिक बोध प्राप्त है और जो हमारे चैत्य पुरुष का प्रथम यंत्र है । इसी युक्तिपूर्ण संकल्प-शक्ति का हमें उपयोग करके यह सीखना चाहिये कि एक पशु-मानव की तरह नहीं, वरन सच्चे मनुष्य की तरह, देवत्व के उम्मीदवार की तरह कैसे जीना चाहिये ।
और इस सिद्धि की ओर जाने का पहला पग है इस शरीर का एक अक्षम दास न रह, इसका प्रभु बन जाना ।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने मे अत्यंत उपयोगी सहायता देनेवाली चीज है शारीरिक साधना अर्थात् व्यायाम ।
लगभग एक शताब्दी से उस कक्षा का पुनरुद्धार करने का प्रयास हों रहा है जिसे प्राचीन युगों मे बहुत महत्त्व दिया जाता था और जिसे लोग अंशत: स्व गये हैं । अब यह पुनः जाग्रत् हो रहा है और आधुनिक विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ. यह भी एक नवीन विस्तार और महत्त्व को प्राप्त करता जा रहा है । यह ज्ञान स्थूल शरीर तथा उस असाधारण प्रभुत्व की चर्चा करता है जो प्रबुद्ध और विधिबद्ध शारीरिक शिक्षण की सहायता से शरीर के ऊपर प्राप्त किया जा सकता है ।
यह पुनरुद्धार एक नयी शक्ति और ज्योति की क्रिया का फल है जो निकट भविष्य मे सिद्ध होनेवाले महान रूपांतर की सिद्धि के योग्य शरीर को तैयार करने कै लिये पृथ्वी पर फैल गयी हैं ।
हमें इस शारीरिक शिक्षण को प्रधान महत्त्व देने में हिचकिचाना नहीं चाहिये जिसका उद्देश्य ही हैं हमारे शरीर को इस योग्य बना देना कि वह पृथ्वी पर अभिव्यक्त होने का प्रयास करनेवाली नवीन शक्ति को ग्रहण और प्रकट करने लगे । इतना कहकर, अब मैं उन प्रश्रों का उत्तर देती हू जिन्हें तुमने मेरे सामने रखा हैं ।
१. अपने मासिक काल के प्रति किसी लड़की का मनोभाव क्या होना चाहिये !
वही मनोभाव होना चाहिये जो तुम किसी एकदम स्वाभाविक और अपरिहार्य वस्तु के
२६७
प्रति रखती हो । इसे यथासंभव कम-से-कम महत्त्व दो और इसके कारण कोई परिवर्तन किये बिना, अपने सामान्य जीवन को नियमित रूप से चलाती रहो ।
क्या अपने मासिक काल में किसी लड़की को अपने शारीरिक शिक्षण के सामान्य कार्यक्रम में मांग लेना चाहिये?
यदि शारीरिक व्यायाम करने का उसे अभ्यास हो तो उसे निश्चय हीं इस कारण उसे बंद नहीं करना चाहिये । यदि कोई अपना सामान्य जीवन बिताने का अभ्यास सर्वदा बनाये रखे तो बहुत शीघ्र उसे ऐसी आदत पंडू जायेगी कि उसे पता भी नहीं चलेगा कि उसे मासिक हो रहा है ।
३. कुछ लड़कियां अपने मासिक काल मैं क्यों : हो जाती हैं तथा अपनी पीठ के निचले मान में और पेट में दर्द का अनुभव करती हैं जब कि ' को कोई नहीं होती श बहुत -सी होती है?
यह प्रश्र व्यक्ति के स्वभाव तथा अधिकांशत: शिक्षा का है । यदि किसी लड़की को अपने बचपन से ही यह अभ्यास हो गया हो कि वह बिलकुल मामूली तकलीफ की ओर भी बहुत अधिक ध्यान देती हो और अत्यंत तुच्छ असुविधा के लिये भी बहुत अधिक हाय-तौबा मचाती हो तो वह सहन करने की सारी क्षमता खो बैठेगी और कोई भी चीज उसके दुर्बल होने का कारण बन जायेगी । विशेषकर यदि मां-बाप अपने बच्चों की प्रतिक्रियाओं के विषय में बहुत शीघ्र चिंतित हों उठे तब तो उसका असर और भी बुरा होगा । अधिक बुद्धिमानी की बात यही हैं कि बच्चों को थोड़ा बलशाली और सहनशील होने की शिक्षा दी जाये और उन सब छोटी-मोटी असुविधाओं और दुर्घटनाओं के प्रति कम-से-कम दक्षिणता करना सिखाया जाये जिनसे जीवन मे सर्वदा बचा नहीं जा सकता । शांत सहिष्णुता का भाव ही सबसे उत्तम मनोभाव है जिस मनुष्य स्वयं अपने लिये धारण कर सकता है और अपने बच्चों को भी सीखा सकता हैं ।
यह बिलकुल जानी हुई बात है कि यदि तुम किसी कष्ट की आशा करो तो वह अवश्य तुम्हें प्राप्त होगा और, एक बार यदि वह आ जाये, यदि तुम उसपर अधिक ध्यान दो तो वह अधिकाधिक बढ़ता जायेगा और जबतक कि वह, जैसा कि साधारणतया उसे नाम दिया जाता है, '' असह्य' ' हीं न हो उठे, यद्यपि थोडी-सी संकल्प-शक्ति और साहस का प्रयोग करने पर ऐसा कोई दुःख-दर्द नहीं जिसे सहा न जा सके ।
४. कोई लड़की अपने मासिक काल क्वे दुःख- दर्द को कैसे जीत सकती है ?
२६८
कुछ व्यायाम ऐसे हैं जो पेट को मजबूत बनाते तथा रक्त प्रवाह को बढ़ाते हैं । इन व्यायामों को नियमित रूप से करते रहना चाहिये और दर्द के दूर हो जाने पर भी उन्हें जारी रखना चाहिये । बड़ी उम्र की लड़कियों को इस प्रकार का दर्द प्रायः पूर्ण रूप से काम-वासना के कारण होता हैं । यदि हम वासनाओं से मुक्त हों जायें तो हम दर्द से भी मुक्त हो जाते हैं । वासनाओं से मुक्त होने के दो उपाय हैं; पहला है प्रचलित उपाय, वासना की तृप्ति (अथवा यों कहें कि इसे यह नाम दिया जाता है, क्योंकि वासना के राज्य मे ''तृप्ति' ' नाम की कोई चीज है ही नहीं) । इसका अर्थ हैं साधारण मानव-पशु का जीवन बिताना, विवाह, संतान, और बाकी सभी चीजें ।
निक्षय ही, एक दूसरा पथ भी है , उससे कहीं अधिक अच्छा पथ है , -वह हैं संयम, प्रभुत्व, रूपांतर का पथ; यह कहीं अधिक महान् और अधिक प्रभावशाली है ।
५. क्या आपकी राय मैं ' और 'लड़की के लिये मित्र-मित्र प्रकार के व्यायाम होने चाहिये? क्या तथाकथित खेल-कूद का अभ्यास करने ले लड़की के जननेंद्रिय आदि अंगों को हानि पहुंच सकती है ?
सभी प्रसंगों में, जैसे लड़कों के लिये वैसे ही लड़कियों के लिये, व्यायामों को प्रत्येक व्यक्ति की शक्ति और क्षमता के अनुसार क्रमबद्ध क्या देना चाहिये ! यदि कोई दुर्बल छात्र एकाएक कठिन और भारी व्यायाम तिकोने की कोशिश करे तो वह अपनी मूर्खता के कारण दुःख भोग सकता है । परंतु, यदि बुद्धिमानी के साध- और धीरे-धीरे शिक्षा दी जाये ते। लड़कियां और लड़के दोनों ही सब प्रकार के खेलों में भाग ले सकते हैं और इस प्रकार अपनी शक्ति और स्वास्थ्य को बहा सकते हैं ।
बलवान् और स्वस्थ बनने से शरीर को कभी कोई हानि नहीं पहुंच सकतीं, भले हीं वह शरीर स्त्री का हीं क्यों न हो!
६. क्या कठिन व्यायाम का अभ्यास करने ले किसी लड़की की आकृति बदल जायेगी और वह पक पुरुष की आकृति तरह मांसल हो जायेगी और इस कारण वह लड़की कुरूप दिखायी देने लगेगी?
दुर्बलता और क्षीणता भले ही किसी विकृत मन की दृष्टि मे आकर्षक प्रतीत हों, पर यह प्रकृति का सत्य नहीं हैं और न आत्मा का द्वि सत्य हैं ।
यदि तुमने कमी व्यायाम करनेवाली स्रियों के चित्रों को देखा हो तो तुम्हें पता चलेगा कि उनका शरीर कितना पूर्ण सुंदर होता हैं; और कोई भी व्यक्ति यह अस्वीकार नहीं कर सकता कि उनका शरीर मांसल होता हैं ।
२६९
७. यदि कोई लड़की विवाह करना चाहे और पीछे उसे बच्चा हो तो क्या कठिन व्यायामों क्वे कारण उसे बच्चा होते समय अधिक कठिनाइयां होगी?
मैंने ऐसा कोई उदाहरण कभी नहीं देखा । बल्कि इसके विपरीत, जो स्त्रियों कठिन व्यायाम करने की शिक्षा प्राप्त करती हैं और सुदृढ़ मांसल शरीरवाली होती हैं वे बच्चा धारण करने और पैदा करने की कठिन परीक्षा मे कहीं अधिक आसानी और कम दर्द के साथ उत्तीर्ण होती हैं ।
मैंने अफ्रीका की उन स्त्रियों की एक विश्वसनीय कहानी सुनी है जो भारी बोझ लेकर मीलों यात्रा करने की आदी होती हैं । एक स्त्रीगर्भवती थीं और एक दिन यात्रा करते समय ही उसके बच्चा जनने का समय हो गया । वह रास्ते मे एक किनारे, एक पेड़ के नीचे बैठ गयी, उसका बच्चा भूमिष्ठ हुआ, आधा घंटा उसने विश्राम किया, फिर वह उठ खड़ी हुई और अपने पुराने बोझ के साध-साथ बच्चे को भी लेकर चुपचाप अपने रास्ते पर चल पड़ी मानों उसे कुछ भी न हुआ हो । यह इस बात का अत्यंत उज्ज्वल उदाहरण है कि स्वास्थ्य और शक्ति पर पूर्ण अधिकार रखनेवाली एक नारी क्या कर सकती है ।
डाक्टर कहेंगे कि मनुष्यजाति ने आज जितनी मी प्रगति की है उस सबके होते हुए भी किसी सभ्य समाज मे इस तरह की बात कभी घटित नहीं हो सकतीं; परंतु हम यह अस्वीकार नहीं कर सकते कि, शरीर की दृष्टि से देखा जाये तो, आधुनिक समस्याओं ने जो संवेदनशीलता, दुःख-कष्ट और जटिलता उत्पन्न की हैं उसके मुकाबले यह कहीं सुखदायी स्थिति हैं ।
इसके अलावा, साधारणतया डाक्टर लोग अस्वाभाविक प्रसंगों मे हीं अधिक दिलचस्पी लेते हैं और है अधिकांशतः उसी दृष्टिकोण सें विचार करते हैं । परंतु हमारे लिये बात इससे भिन्न है; हम स्वाभाविक से अति-स्वाभाविक की ओर जा सकते हैं, न कि अस्वाभाविक सें जो कि सर्वदा हीं पथभ्रष्टता और निष्कृष्टता का चिह्न होता हैं ।
८. नारीत्व की दृष्टि ले पालिकाओं क्वे लिये शारीरिक शिक्षण का क्या आदर्श होना चाहिये?
मेरी समझ में नहीं आता कि लड़की से भिन्न लड़कियों के लिये शारीरिक शिक्षण का कोई विशेष आदर्श क्यों होना चाहिये ।
शारीरिक शिक्षण का उद्देश्य हैं मानव शरीर की सभी संभावनाओं को विकसित करना, जैसे, सुसामंजस्य, शक्ति, नमनीयता, चतुरता, फुर्तीलापन, सहनशीलता आदि की संभावनाओं को प्रस्फुटित करना, अपने अंगों और इंद्रियों की क्रियाओं पर अपना अधिकार बढ़ाना, एक सज्ञान संकल्प-शक्ति के व्यवहार के लिये शरीर को सर्वागपूर्ण
२७०
यंत्र बनाना । यह कार्यक्रम सभी मानव प्राणियों के लिये एक समान उत्तम हैं, और ऐसा कोई कारण नहीं कि लड़कियों के लिये कोई दूसरा कार्यक्रम स्वीकार करने की कामना की जाये ।
९. हमारी नवीन जीवन- पद्धति क्वे अंदर पुरुष और स्त्री का क्या कार्य मुख्य होना चाहिये? उनमें परस्पर क्या संबंध होगा?
भला दोनों के बचि तनिक भी विभेद क्यों किया जाये? वे दोनों ही एक जैसे मानव प्राणी हैं जो वर्ग, जाति, धर्म तथा राष्ट्रीयता के परे 'भागवत कार्य' के लिये उपयुक्त्त यंत्र बनने की चेष्टा करते हैं, जो एक ही अनंत दिव्य माता की संतान हैं तथा एक ही 'शाश्वत भगवान्' को प्राप्त करने की अभीप्सा रखते हैं ।
१०. नारी के शारीरिक सौंदर्य का क्या आदर्श होने? चाहिये ?
अंगों के परिमाण में पूर्ण सामंजस्य, कोमलता और बल-सामर्थ्य, कमनीयता और क्षमता, नमनीयता और दृढ़ता, तथा सबसे बढ़कर, अति उत्तम, एक रूप और अपरिवर्तनशील स्वास्थ्य जो एक शुद्ध चरित्र आत्मा बनने का, जीवन मे समुचित विश्वास तथा 'भागवत कृपा' में अटल श्रद्धा-विश्वास रखने का परिणाम होता है ।
अंत मे एक बात और जोड़ दूं :
मैंने ये सब बातें तुमसे इसलिये कही है कि तुम्हें इन्हें सुनने की आवश्यकता थीं, पर तुम इन्हें अकाटय सिद्धांत का रूप मत दे देना क्योंकि ऐसा करने पर ये अपना सत्य हीं खो बैठेगी ।
(सितंबर १९६० मे प्रकाशित)
२७१
Home
The Mother
Books
CWM
Hindi
Share your feedback. Help us improve. Or ask a question.