CWM (Hin) Set of 17 volumes
शिक्षा 401 pages 2000 Edition
Hindi Translation

ABOUT

Compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education and 3 dramas in French: 'Towards the Future', 'The Great Secret' and 'The Ascent to Truth'.

शिक्षा

The Mother symbol
The Mother

This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.

Collected Works of The Mother (CWM) On Education Vol. 12 517 pages 2002 Edition
English Translation
 PDF     On Education
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The Mother

This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.

Hindi translation of Collected Works of 'The Mother' शिक्षा 401 pages 2000 Edition
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राष्ट्रीय शिक्षा

 

 हमारा उद्देश्य भारत के लिये राष्ट्रीय शिक्षा-पद्धति नहीं है, बल्कि सारे जगत् के लिये शिक्षा छै ।

 

*

माताजी

 

     हमारा लक्ष्य भारत के लिये एकांतिक शिला नहीं है बलकि सारी मानवजाति के लिये आवश्यक और आधारभूत शिला ह्वै मरमर क्या यह ठीक नहीं हैं माताजी कि (अपने सांस्कृतिक प्रयासों और प्राप्ति के कारण? शिला क्वे बारे में भारत की अपने तथा जघन के प्रति कुछ विशेष जिम्मेदारी है? बहरहाल मेरा ख्याल है कि वह आवश्यक शिला ही करने की राष्ट्रीय शिला होगी वास्तव मैं यह मानता हूं कि इसी कति हर बड़े राह में अपनी विशेष विमित्रताओं के आधार पर एक राष्ट्रीय शिला होगी !

 

क्या यह ठीक है और माताजी हलका समर्थन करेगी?

 

 हां, यह ठीक है और अगर मेरे पास तुम्हारे प्रश्र का पूरा उत्तर देने का समय होता तो मैं जो उत्तर देती उसका यह एक भाग होता ।

 

  भारत के पास आत्मा का ज्ञान है या यूं कहें था, लेकिन उसने भौतिक तत्त्व की अवहेलना की और उसके कारण कष्ट भोगा ।

 

   पश्चिम के पास भौतिक तत्त्व का ज्ञान हैं पर उसने ' आत्मा' को अस्वीकार किया और इस कारण बुरी तरह कष्ट पाता है ।

 

  पूर्ण शिक्षा वह होगी जो, कुछ थोड़े-से परिवर्तनों के साथ, संसार के सभी देशों में अपनाये जा सके । उसे पूर्णतया विकसित और उपयोग में लाने हुए भौतिक द्रव्य पर ' आत्मा' के वैध अधिकार को वापिस लाना होगा ।

 

  मै जो कहना चाहती थी उसका संक्षेप यहीं हैं ।

 

  आशीर्वाद सहित ।

 

(२६ -७ -१९६५)

 

२२६


भारतीय शिक्षा के आधारभूत प्रश्र'

 

    (१) भारत के वर्तमान और भावी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जीवन की दृष्टि में भारत को शिला में किस चीज को अपना लक्ष्य बनाना चाहिये?

 

अपने बालकों को मिथ्यात्व के त्याग और 'सत्य' की अभिव्यक्ति के लिये तैयार करना ।

 

   (२) किस उपाय से देश इस महान लक्ष्य को चरितार्थ कर सकता है? इस दिशा में आरंभ कैसे किया जाये?

 

भौतिक को ' आत्मा' की अभिव्यक्ति के लिये तैयार करके ।

 

    (३? भारत की सच्ची प्रतिमा क्या है और उसकी नियति क्या है?

 

 जगत् को यह सिखाना कि भौतिक तबतक मिथ्या और अशक्त है जबतक वह ' आत्मा' की अभिव्यक्ति न बन जाये ।

 

(४) माताजी भारत में विज्ञान और औद्योगिकी की प्रगति को किस दृष्टि ले देखती हैं ? मन के अंदर 'आत्मा' के विकास में हैं क्या कर सकते हैं?

 

   इसका एकमात्र उपयोग है भौतिक को ' आत्मा' की अभिव्यक्ति के लिये अधिक मजबूत, अधिक पूर्ण और अधिक समर्थ बनाना ।

 

(५) देश राष्ट्रीय एकता के लिये काकी चिन्तित है माताजी की क्या दृष्टि है? भारत अपने तथा जगन् क्वे प्रति अपने उत्तरदायित्व को कैसे पूरा करेगा?

 

    सभी देशों की एकता जगत् की अवश्यंभावी नियति हैं । लेकिन सभी देशों की एकता के संभव होने के लिये पहले हर देश को अपनी एकता चरितार्थ करनी होगी ।

 

  (६) भाषा की समस्या भारत को काकी नंग करती है इस मात्रे मे हमारी उचित वृत्ति क्या होनी चाहिये ?

 

  अगस्त १९६५ में भारत सरकार का शिक्षा-आयोग आश्रम के 'शिक्षा-केंद्र' की शिक्षा पद्धति का :निरीक्षण करने छै लिये पांडिचेरी आया था । उस समय कुछ अध्यापकों ने माताजी सें ये प्रश्र पूछे थे ।

 

२२७


एकता एक जीवित तथ्य होना चाहिये, मनमाने नियमों के द्वारा आरोपित वस्तु नहीं । जब भारत एक होगा तो सहज रूप से उसकी एक भाषा होगी जिसे सब समझ सकेंगे ।

 

(७) शिक्षा सामान्यत: साक्षरता और एक सामाजिक स्तर की चीज बन गयी लौ क्या यह हानिकर नहीं है? लेकिन शिला को उसका आंतरिक मूल्य और उसका मूलमूत आनन्द कैसे प्रदान किया जाये?

 

 परंपराओं से बाहर निकल कर और अंतरात्मा के विकास पर जोर देकर ।

 

   (2) आज हमारी शिला कौन-से दोषों और धनियों का शिकार है? हम उनसे कैसे बच सकते हैं?

 

 क-सफलता, आजीविका और धन को दिया जानेवाला प्रायः ऐकांतिक महत्त्व । ख-' आत्मा' के साथ संपर्क स्थापित करके और सत्ता के 'सत्य' के विकास और उसकी अभिव्यक्ति की परम आवश्यकता पर जोर देकर ।

 

(५ -८ -१९६५)

 

*

 

   (१) बच्चों को मिथ्यात्व के त्याग के लिये कैसे तैयार किया जाये [क) जब कि अभी तक मिथ्यात्व मेरे रक्त मे और शरीर के एक-एक मे है? (ख) जब कि अहंकारपूर्ण और स्वत्वात्मक भाव के कारण मिथ्यात्व के प्रति आकर्षण बढ़ता ही जा का है?

 

   (२) हर देश की एकता कैसे सिद्ध हो सकती हैं [क) जब कि व्यक्ति के अंदर ही एकता नहीं हैं? रख) जब कि परिवार (ख) दो सदस्यों मे एकता नहीं छै? (म) जब कि किसी संस्था श संगठन मै एकता नहीं है?

 

  (३) जब एक आश्रमवासी मी अपनी निजी आवश्यकताएं पूरी करने के लिये सामाजिक स्तर का संक्रमण फैलाता है तो परंपराओं से बाहर निकलने और अंतरात्मा के विकास पर कैसे जोर दिया जाये?

 

  (४) जब हर एक अपने अहं की के लिये और अपने महत्व के प्रदर्शन के लिये धन के पीछे दौड़ रहा है तो सफलता आजीविका और धन को लगभग ऐकान्तिक महत्व कैसे न दिया जाये ?'

 

   माताजी के ५-८-९९६५ (चितला पत्र) के उत्तरों के आधार पर किसी अध्यापक ने ये प्रश्र भेजे थे ।

 

२२८


हर एक को .यह काम करने के लिये एक शरीर दिया गया है क्योंकि अपने अंदर इन चीजों को चरितार्थ करके हीं तुम धरती पर इन्हें चरितार्थ करने में मानवजाति की सहायता कर सकते हो ।

 

  अध्यापक में शिक्षित रूप सें हैं गुण और वह चेतना होनी चाहिये जिन्हें वह अपने विद्यार्थियों को प्राप्त करवाना चाहता है ।

 

*

 

   मै चाहूंगी कि वे (सरकार) योग को शिक्षा के रूप में स्वीकार कर लें, यह केवल हमारे लिये नहीं, देश भर के लिये अच्छा होगा ।

 

   भौतिक-द्रव्य का रूपांतर होगा, वह ठोस आधार होगा । जीवन दिव्य बनेगा । भारत को नेतृत्व करना चाहिये ।

 

*

 

 पांडिचेरी में फ्रेंच संस्था के उद्घाटन के अवसर पर दिया गया संदेश

 

   किसी भी देश में बालकों को जो सबसे अच्छी शिक्षा दी जा सकतीं हैं उसमें यह सिखाना भी आ जाता है कि उनके देश की सच्ची प्रकृति क्या है और उसके अपने गुण कौन-से हैं, उनके राष्ट्र को जगत् में कौन-सा कार्य पूरा करना है और वैश्व वृन्दवाद्य में उसका सच्चा स्थान कौन-सा हैं । उसके साथ हीं दूसरे देशों की भूमिका की विस्मृत समझ भी होनी चाहिये, लेकिन नकल की भावना से नहीं, और साथ हीं अपने देश की प्रतिभा को आंख से ओझल किये बिना । फांस का अर्थ था भावों की उदारता, विचारों की नवीनता ओर निर्भीकता और कार्य में क्षात्र धर्म और शौर्य । यह फांस सबका मान और सबकी प्रशंसा पाता था : इन्हीं गुणों के कारण वह संसार मे ऊंचा उठा हुआ था ।

 

  उपयोगितावादी, हिसाबी, व्यापारिक फांस फांस नहीं रहा । ये चीजें उसके सच्चे स्वभाव के साथ मेल नहीं खाती और इन्हें व्यवहार में लाकर वह संसार में अपना उदात्ता स्थान खो रहा हैं ।

 

   यहीं बात है जो आज के बच्चों की बतायी जानी चाहिये ।

 

(४ -४ -१९५५)

 

२२९









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