CWM (Hin) Set of 17 volumes

ABOUT

The Mother’s commentaries on Sri Aurobindo’s 'Thoughts and Aphorisms' spoken or written in French.

THEME

aphorisms

'विचार और सूत्र' के प्रसंग में

The Mother symbol
The Mother

The Mother’s commentaries on Sri Aurobindo’s 'Thoughts and Aphorisms' were given over the twelve-year period from 1958 to 1970. All the Mother's commentaries were spoken or written in French. She also translated Sri Aurobindo's text into French.

Collected Works of The Mother (CWM) On Thoughts and Aphorisms Vol. 10 363 pages 2001 Edition
English Translation
 PDF    aphorisms
The Mother symbol
The Mother

The Mother’s commentaries on Sri Aurobindo’s 'Thoughts and Aphorisms' were given over the twelve-year period from 1958 to 1970. All the Mother's commentaries were spoken or written in French. She also translated Sri Aurobindo's text into French.

Hindi translation of Collected Works of 'The Mother' 'विचार और सूत्र' के प्रसंग में 439 pages 1976 Edition
Hindi Translation
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अनुक्रमणिका

 

अंत,

  होनेके दो तरीके : विनाश और

     रूपांतर, २२८

अंतः प्रेरणा ? अंतः प्रकाश,

 शाश्वत ज्ञानसे उछलती.. पतली

   धारा, ५-६

 और तर्क-बुद्धि, ५, ७-८, १०

 -का माध्यम, ७

 -की प्राप्तिके सोपान, ७

 

पानेकी शतें, ८

 कई प्रकारकी नहीं; उसके कई

   उपयोग हैं, ८

  -से अधिकृत वाणी, १०

  -से प्राप्त ज्ञान, १४८

  और बौद्धिक ज्ञान, १४९

  नीरव मनमें ही संभव, १५०

  सदा ही व्यक्तिगत, १११

   (दे० 'प्रज्ञा' भी)

 

सूचना :

 

  ऐसे पढ़ें :

 

कठिनाई    दूसरे    क्षमता  चीज    सिद्धांत 

 

     योंको    में      ओंका (सब)       (सब),    को

 

कठिनाइयोंका   दूसरोंमें  क्षमताओंका  सब चीज़ें सब सिद्धांतोंको

 

  ( २) जिन वाक्योंमें केवल शुरूमें ( ' ) है वह अपने-आपमें पूरा वाक्य है, उन्हें मूल शब्दके साथ मिलाकर न पढ़ें ।

 

   ( ३) जहां ( " ) का प्रारंभ नहीं दिखाया गया, वहां मूल शब्दसे पहले ( '') कल्पना कर लें ।

 

   (४) कहीं-कहीं अधिक स्पष्टताके लिये लिखा है :

 

   (दे० 'चीज' '' (विरोधी) भी) या (दे० 'भगवान्' दुर्बल भी), इसका मतलब है चीज के नीचेका वह वाक्य देखो जो (विरोधी) से शुरू होता है, भगवानके नीचेका वह वाक्य देखो जो दुर्बल शब्दसे शुरू होता है ।

 

    ( ५) पृष्ठ संख्याके बाद अ का मतलब है कि वह प्रसंग उस पृष्ठके अंतसे शुरू होकर, बस, अगले पृष्ठके आरंभतक ही गया है ।

 

  ( ६) जहां वाक्य-रचना मूल शब्दके साथ संगत न जान पड़े, वहां मूल शब्दके आगे कोष्ठमें जो शब्द दिया गया है उसके साथ मिलाकर पढ्नेसे वह संगत बन जायगी ।

 


अंतरात्मा,

   जो देखती है वही ज्ञान है, बाकी

    ..., २६

  क्या देखती है, कैसे जानें, २६,

    २८-९

 -को ढूंढना, २७

 यही है, कैसे जानें, २७

 -की वाणी सुनना, २७-९

 -से युक्त होनेका उपाय, २१

 -को जानना मृत शरीरके टुकड़े-

    टुकड़े करके, २९-३०

 ही अंतरात्माको जान सकती है,

   २९,२१३

   (दे 'सजातीय' भी)

 -का पुनः जन्म और मनोमय

   व्यक्तित्व, ३१

 मुक्त है या बद्ध, तू कैसे कह सकता

   है, २१२

 पृथ्वीपर ही, '२ १ २- १३

 'आंतरात्मिक प्रकृति, २५१

 -की असफल सफलताएं, २८९

 -की पूर्णताके द्वारा ही बाह्य परि-

   वेशको पूर्ण..., ३२६

 ही एकमात्र चिकित्सक, ३४१

  (दे० 'चैत्यपुरुष' भी)

अंतर्दर्शन,

 क्या होता है, ४१-२

 (पूर्वसूचक), १३०-३४

   ( दे० 'भविष्यवाणी' भी)

 व्यक्तिके संबंधमें, १३२

अंतर्मुखता, १६०, १६१

अंधकार, १४,३८२

 और संतापको विलीन करनेका

 शक्तिशाली साधन, १६४

 (दे० 'अज्ञान' भी)

अंध-विश्वास, ४१, ३०१

अकर्म,

  -सें प्रेम या घृणा मूर्खता, २४१

  नामकी कोई वस्तु नहीं, २४१

    (दे० 'गति' भी)

अकिलीस, २८८

अक्षमता,

 (हमारी), ही आत्मस्थ लक्ष्यसे

    सचेतन होनेमें बाधा, ३१७ -

  -से छुटकारेका साधन, ३१७

अक्षर-, ११

अगहन (वैदिक), २०२

अचंचलता, ७९,२०२

  (दे 'निश्चल-नीरवता' और

  'बोलना' भी)

अच्छा और बुरा, दे० 'शुभ और अशुभ'

अज्ञान, ३८,७४,२७०

  तब विलीन हों जायगा, २१

  -के प्रति सच्चा मनोभाव, रे ०

  परिस्थिति संबंधी, ४९,५९

  व संकीर्णताकी ही क्रियाएं है

    घृणा, क्रोध आदि, ७८

  और ज्ञान, १७२, १७३

  -को शुद्धता कहा, ३०१

  और अशुभ-इच्छाका रूपांतर किस

    प्रकार, १२६-२७ (दे० 'अंध-

    कार' व 'कामना' भी)

    (दे० 'भ्रांति' भी)

अज्ञेय,

  और अनिर्देश्यकी उपासना, ३६२

अज्ञेयवादी ३६२, ३८२

अति [ अतिशयता ] ,

  -मे गिरना, २०७, २१२

 

 ३८६


योंकी आवश्यकता, २०८

 त्याग और भोगमें, ३३६

 उग्रता है, ३३६

अतिमानव,

 कौन है ?, २५५-५६

 -का निर्माण, हो रहा है, २५५

 (अपनेको), कहनेवाले लोग, २५६

 -का सिंह, गाय और ऊंटका प्रतीक,

       २५६-५७

 मनुष्यमेंसे प्रकट हो रहा है, २६५

अतिमानस,

 -के माथ संपर्कके दो चिह्न,

    ११२ टि०

अतिमानसिक अभिव्यक्ति,

   (पहली), २१७

अतिमानसिक कार्य,

  -की पद्धति, ११५

अतिमानसिक चेतना,

  -को ग्रहण करनेकी शतें ११ ३- १५

  -को जडपदार्थमे ग्रहण करनेमें

    कठिनाई, ११ ३- १८

 ''समग्रतायुक्त'' भगवानकी चेतना

     है, ११३

 -की अभीप्सा करो, अभौतिक

   चेतनाकी अपेक्षा, २६ १अ

 -ने प्रेम और शक्तिको संयुक्त कर

   दिया है, २६१ अ

 -के पृथ्वीपर शासनकी शर्त, ३३०

 -के कार्यका) पहला परिणाम, ३३०

   (दे० 'अतिमानसिक सत्ता' भी)

  -का प्रभाव सामूहिक जीवनपर,

    ३३०

  -को अभियुक्त करनेमें मनुष्य-

     जाति कब सफल होगी, ३४१

अतिमानसिक जगत्,

  -को अनूदित करनेकी योग्यता,

     १११, १२४

  -में पोशाकें, ११५, १२१

  और भौतिक जगत् के बीचके प्रदेश-

    का निर्माण, १२०, १२३

अतिमानसिक जीवन,

  -की अवस्था, ११५, ११६

  और आध्यात्मिक संकल्पसे चालित

    जीवन, ११५अ

  -की उपलब्धिके लिये व्यक्तियों-

     का समूह अनिवार्य, १४३-४४

अतिमानसिक दृष्टिकोण, १११, १२४

अतिमानसिक नौका,

  -की अनुभूति, ११२,११४,११९-

       २४

अतिमानसिक पूर्णता, १०९

अतिमानसिक रूपांतर, ३४३

  इस समयका सत्य, ११;

     इसे संसिद्ध करनेके लिये

  आवश्यक चीज, ११

  (दे० 'रूपांतर' भी)

अतिमानसिक सत्ता,

  किन वस्तुओंको स्थान-च्युत करना

     चाहती. है, १०१

  -का पहला प्रभाव, १० ९- १०

  (दे 'अतिमानसिक चेतना' भी)

  -ओ और मनुष्योंमें अंतर, १११

अतिमानसिक स्पंदन,

  -की अभिव्यक्ति, ११३

अतीत

  -के सांचोंको तोड़ दो, पर उसकी

     भावना सुरक्षित..., २९६

'अदन' [ सेमेटिक ईडन ], ३ ६४,३ ७७

 

 ३८७


अधीरता । अधैर्य, जल्दबाजी, १५,

  २९,३१६, ।३१७

 'रुकना होता है.. यह असीम कृपा

   है, २१०

  -मे तुम सदा होते हो, २१०-११

अध्यवसाय ? लगन, २२, ३१६

    (दे० 'प्रयास' भी)

अनंत, १५७

अनंतता,

  -की अनुभूति कैसे?, २७४

अनीश्वरवाद, ३८२

अनुकरण

  और सृजन, ३२४

अनुभव अनुभूति ,

  -(आध्यात्मिक संपदाओंके), को

    पानेकी शर्त, १६

  -का मूल्य कब, १६

  (सच्चे), का एक क्षण सैकड़ों

     व्याख्याओंसे अधिक, २२, ३७

  (सच्चे), की प्राप्तिके लिये दो

      क्रियाएं, २२

  (अपना), एक व्यक्तिगत, आत्म-

     निष्ठ विषय, २४, १९०-९२

  और ज्ञान-प्राप्ति, ३ ६-८, २२०

  -को मिथ्या बनानेवाली चीज, ३६

  -की प्रामाणिकता, में ६

  (प्रेम शक्तिका), पानेकी शर्त, ७४

  -का शब्दोंका रूप लेना, १११-९४

  -की भाषा, १९२

  -के साथ शक्ति भी, १९२

  -को पकड़नेकी चेष्टा, ११३

  दूसरेकी, विश्वासोत्पादक कब,

     २१८-११

  आवश्यक, समझनेके लिये, २२०

अनुशासन, ३५

अपराध, ७६, १२५, १६४,२२४

अभिव्यक्ति ( अभिव्यक्त वस्तु ),

   -का मूल सूक्ष्मतर लोकमें, ६१

 बाह्यीकरणके आनंदके लिये,

   २२१अ

 -के कारण 'अनभिव्यक्ति' में विशेष

  रस, २३४

 (दे० 'चीज' '' (विरोधी), 'जगत्'

    और 'विकास' भी)

अभिशाप-प्रसंग,

   धर्म और गिरजाघरके, ३५८

अभीप्सा, १६, २९, १३८,२८५

  और प्रयत्नको तीव्र बनानेके

    लिये आंतरिक विरोधकी

    आवश्यकता, ६७, १७४

  ''परमाश्चर्यमय'के लिये प्यास,

    १७०, १७१

 'अभिव्यक्ति'में सहायक, १७२

 ऐसी तीव्र कि रूपांतर कर सके, १७६

 और कठिन अवस्थाएं, २०८

 तीव्र रूपमें, किंतु अधैर्यके बिना,

  २१०

 भगवत्कृपाको लानेमें सहायक,

  २४४

 और प्रयत्नका क्या स्थान है यदि

     सब कुछ पूर्वदृष्ट है, २५१अ

   -एं (सभी सच्ची), स्वीकार करने

     योग्य हैं, चाहे उनके स्वरूपोंमें

     कितनी भा विषमता.., ३६२

अमरता ( अमरत्व ),

 -का अर्थ, ३१-२

 -का अमृत'', ८४-५

 

३८८


ह भगवान्से मिलन, ८४-५

 लेनेसे मतलब, पात्र कोई भी हो,

   ८४-५

 -की चेतना और भौतिक सत्ताकी

  अमरता, ८५

     (दे० 'शरीर' भी)

 'मर्त्य और अमर, ९८

अयोग्यता,

 -की भावना, ७४, १६४

अराजकता, ३२५

 दिव्य, ३११

अरिस्टोफेन (व्यंग्य लेखक), १५२,

  १६२

अर्जन करना,

 केवल अपने लिये ही २८८

अर्यमा (देवता) ८६

 अलीपुर जेल, ६१

 अवतार, ६२

  -का कार्य, ७५

  अकेला, पृथ्वीपर अतिमानसिक

  जीवनको उपलब्ध नहीं कर

  सकता, १४३-४४

  -की आवश्यकता क्या अब आगे

    भी पड़ेगी?, २६३

  (दे० 'भगवान्' व 'रूपांतर' भी)

अविश्वास, ४२

 आत्मिक संपदाओंके प्रति, १३, १४

   (दे० 'विश्वास' नहीं, और

     'संदेह' भी )

अव्यवस्था ( अस्तव्यस्तता),

 और सरलता, १७५

 तमस्के प्रतिरोधसे, २४३

 और विनाशके लिये भागवत शक्ति-

   को दोषी ठहराना, २४३

 -में वृद्धि अतिमानसिक चेतनाके

   प्रभावसे, ३३०

अशुभ ( अदिव्य, बुराई ),  ४९,७१,

  २७६, २८७, ३२६

और असुंदरको दूर करनेमें सह-

 योग : अभावात्मक और मावा-

   त्मक, ७२-३

 और प्रेमकी शक्ति, ७३-४

 -की भावना क्या सदा नहीं रहेगी?

   १२६

 नामकी कोई वस्तु नहीं, २७६

  -की व्याख्या और इलाज, २८२

 और कष्टसे बचनेका मार्ग, २८७

 -मेंसे प्रकाशपूर्ण सत्ता, ३११

 -को अवसर देनेवाली वस्तु दुष्टता

     नहीं, दुर्बलता, ऐ २६

 -की लोक-व्याख्या, ३५८

    (दे० 'चीजें' बुरी, 'पाप' और

    'शुभ और अशुभ' भी)

अशुभ संकल्प ( दुर्भावना, ३८,७४

     २९०

असंभव, ९५, १५५

असत् १०१, ११३

असत्य

 -का रूप सत्य कैसे लेता है, ६७

 (पूर्ण), संभव हा' नहीं, १००

 (पूर्ण), के नष्ट होनेका अर्थ, १०१

 अवास्तविक, न कि संसार, ११०

   (दे० 'मिथ्यात्व' भी)

असफलता [ पराजय ], १०२, २५३,

    १७१,

 और पराजयका जीवन, ५७,२७१

    २८९

सच्ची, २८१

 

 ३८९


''महान् और श्रेष्ठ'' : व्याख्या,

  २९६

 नहीं, लक्ष्यकी और चक्राकार गति, ३

  ३००

 अंत नहीं, द्वार है,३००, ३२५

 किसी कार्यमें... ,  ३०४

 'असफल जो कभी नहीं हुआ. .,

    ३१५

 -की निंदा', ३६६

 है प्रच्छन्न. चरितार्थता, ३८०

   (दे 'सफलता' भी)

असहिष्णुता, २३-४

असीम, ९९, १००

असुर

 देवताओंसे अधिक बलशाली, २५३

 ज्येष्ठ देवता, २९२

 रूपांतरित हो चुका है.., २९२

अस्वीकृति, २१८

 -की क्रिया वस्तुओंके प्रति, ७८,

   १०४

 (दे० 'आत्मा'-की शक्तिकी भी)

अहं ? अहंकार, अहंभाव, २७०

 तभी विलीन होता है, १९,३६७

 (मानसिक), और सहज पवित्रता,

   ५५

 -युक्त चेतना, ७७

 -की सेवा, जबकि बहाना भगवान्-

 की सेवाका, ८३

 -का शोधन और पाप-भावना, ११०

 -से मुक्ति. कब, ११०, २७३

 और अतिमानसिक स्पंदन, ११३

 'हम अभी वही हैं जो हम होना

   नहीं चाहते.., १७९

 और रूपांतर-बोध, २०१

-विमुक्त आत्मा ही सृष्टिके क्यों

   और कैसेको जान सकती है,

   २५४

 और अतिमानव, २५६

 -की सीमाओंको तोड़ना होगा,

   २७३

 (असंतुष्ट), की ही इच्छा मरकर

   दूसरा जन्म लेनेकी, बे मे 

 भगवानको समर्पित कर दो, यही

   दुःख... का कारण है, ३३६

 -को अदृश्य होते देख शिकायत,

   ३७६

 (अपने), को विश्व-पुरुष का नाम

   पैना. ., ३८२

अहंकर्तृत्व बोध, २४४, ३०६

 

      आ

 

आँखमिचौली, ५७-८, २३२, २३४,

    २४०

आंतरिक जीवन, दै० 'समझना'

आंतरिक तश्य,

 - ओंको ''देखना'', २१५, २१८

 - ओंको समझनेकी 1 क्षमता, २१९,

  २२०

 -को जाननेकी इस अनिच्छापर

   कैसे कार्य किया जाय, २२१

 - ओंको न समझनेकी क्रिया सामान्य

 एवं सर्वागीण है, २२४

आघात,

 मानवीय हाथके द्वारा..., ४८

 कर! ऐ प्रेमिका! '', ५८

 पाना सद्भावनाके कारण, ८१

 (दे 'घटना' व 'दुर्भाग्य' भी)

 

३९०


आत्म-त्याग ![ आत्मपीड़न ],

 -की प्रशंसा..., ३२८

 नहीं, भगवानकी तुष्टि लक्ष्य, ३२८

आत्म-दया, ३७९

आत्म-प्रवंचना,

 -की दो विभिन्न तरीके, ८१

 कि पाखण्ड!, ८३

 तीन प्रकारकी, ३१०अ

 (चेतन), का अर्थ, ३११

 (दे० 'बहाना' व 'समर्पण' भी)

आत्म-विकास ( आंतरिक विकास

 -सें कर्मपर नियंत्रण, २८५

 -मे ही जीवनकी सुरक्षा, २८७

आत्म-विस्मृति, १२

और आत्म-निवेदनमें अंतर, २८८

आत्मा

 -की शांत, शान-निरपेक्ष अवस्था,

   ११-२

 (जाग्रत्), ही जाग्रत् आत्माको

  पहचान सकती है, ११

    (दै० 'सजातीय' भी)

 -का जगत् और भौतिक 'आश्चर्य',

    २१ ५- १७,२२०

 -की शक्ति और जडपदार्थमे, २१८

 -की शक्तिकी क्रियाको व्यक्ति

   अस्वीकार कर देते है, २१८

  (दे० 'आंतरिक तथ्य' - ओंकोऐभी)

 -की शक्ति और विश्वासोत्पादकता,

    २१९-२०

 और प्रकृतिके नियम, २५०अ

 -की अवस्थाके दबावसे संसारमें

   परिवर्तन, ३०५-६

 -की शक्ति और भौतिक शक्ति

    दोनों आवश्यक, ३०६

तुझे कौन मार सकता है?, ३०८

 ''निष्कलुष और संकोचविहीन,''

    ३२७

 (मेरी), भगवानकी बंदी, ३४९

 दुख-कष्टकी परवाहसे अधिक

  निजी आवश्यकताका अनुसरण

  करती है, ३ ७७अ

आदम और हीवा, ३६४

आदर्श

 -की पूर्तिके लिये कार्य करनेकी

   सही मनोवृत्ति, ३१६-१७

 -को नकारना, छोटे-से जीवनमें

 उसे न पा सकनेके कारण, ३१७

आदि और अंत,

 वस्तुओंका, २२७, २३०, २३२

आदेश

 जब मिले उसे माननेमें.., ३०३

 तीन रूपोंमें आ सकता है, ३०३

 किसका मान्, भगवानका या

   पुस्तकका, ३३१

आध्यात्मिक जीवन,

 और धर्म, १८

 'आध्यात्मिक मार्गको अनन्य

   मानना भी घातक, १४२

 --लें प्रति भारत और यूरोपकी

    प्रणाली, २२१

 -मे तर्क, विश्वास और सहज प्रवृत्ति-

 का प्रयोजन, ३०२

आनंद,

 दिव्य क्रीडाका, ५२

 -मे वर्धित होनेके तनी स्तर,

    १७७-७८

 (अक्षर), को जीवनके बीच कैसे

 पाया जाय?, १८१-८३

 

२९१


(अक्षर), की स्थिति खतरनाक,

 संसारकी वर्तमान अवस्थामें,

   १८२-८३

 -की कुंजी, २५४-५५, २८७,२८८

 प्राप्त कर, पहले अपने लिये २८७

 -की खोज अपने ही लिये २८८

 -की शाश्वतता असहनीय, ३६३

 सात प्रकारके मानव शरीरमें, ३६३

 'परमानंदका रहस्य, ३६८

 (सबसे महान्), ३७४

 ( दे० 'सुरव' भी)

आलोचना,

 करनेसे पहले अपने अंदर दृष्टि

   डालो, २४-५, १२४

 करनेवालोंका तर्क, ७२-३

आवाज,

 -के पार सुनना, १३१ टि०

 -के पीछेकी सत्ता, १३१ टि०

 (प्रत्येक), को आदेश न समझ,

    ३०४

 भगवानकी, ३३२

    (दे० 'आदेश' भी)

आवश्यकता, १८६,२०५

आश्रम

 -मे' भी मनकी यह संकुचितता!, ८०

 -की स्थापनाका आधार, २०७-८;

    'अभीप्साका स्थान आलस्यने

 ले लिया है, २०७-८

 -मे साधकोंका चुनाव, २०८

 -मे यही करनेका यत्न.., २७०

 -के बच्चोंमें असभ्य शब्द-व्यवहार,

   २७४अ

 और ओरोवील, २७९अ

 'हममेंसे प्रत्येकका प्रयत्न, २७९

 (दे० 'कार्य' हमारे भी)

आश्वासन ! सांत्वना,

 दु:ख-दर्दमें : ''मै' तुझे सब पापोंसे

  मुक्त.. '', ३०७

 जगतके रूपांतरका, ३११-१२,३६०

 आदेश पहचाननेके बारेमें, ३३२

 उपलब्धिका, ३८०

    (दे० 'निश्चयता' भी)

आसक्ति,

 -के अवसरोंसे भागना, २०३

 

        इ

 

इन्द्र (देवता), ' ८६

इन्द्रिय

 -नों, ज्ञान-प्राप्तिके दोषपूर्ण माध्यम,

    ७

   (दे 'तर्कबुद्धि' भी)

 -के विस्तारकी विधि, १३८-४०

 - ओंका कथन और आत्माका कथन,

    ३५६

इच्छा, १८६

 (वैयक्तिक), की उपयोगिता, ५४

 -से ही कठिनाइयां, १८८-८९

 -ओंकी अपूर्ति कृपाका चिह्न, २७२

 -का पूर्ण अभाव आवश्यक, ३०४

 -का त्याग, ३७०

 'पसंदके रहते पूर्ण यंत्र नही बन

   सकते, ३७१

 (दे० 'कामना' व 'भागवत संकल्प'

   भी)

इतिहास,

 और पौराणिक कहानियां, ६२-३

 -की चार महान् घटनाएं, ६३

 

३९२


              ई

ईर्ष्या, ४९

 -से मुक्त होनेका उपाय, ३५७

ईश्वरवादी, दे० 'नास्तिक'

ईसा, २६७,३८२

 इसी कारण शूलीपर झूल. ., ६०

 -क् अस्तित्वका ही खण्डन!, ६१-२

 -की फांसी सीजरकी मृत्युसे बड़ी

    ऐतिहासिक घटना, ६१-२

 अवतार, ६२

 भगवानके बलिदानका मूर्त रूप, ६२

 -की कहानी जालसाजी है, ६४

 -के उपदेशोंने जो कार्य किया

   . ., व उनका संदेश, ६४-५

 -के आनेका प्रयोजन, २६९;

   उन्हें फिरसे भगवानकी तलवार

   लेकर..., २६१

ईसाई धर्म,

 'ईसाई विचार 'स्रष्टा भगवान्'

   का, १०३

 -की सीख और आधुनिक ज्ञानकी

 सीख मनुष्यजातिको, २८१

 

      उ

 

उग्रता

 -की सभी क्रियाएं संकीर्णता व दुर्बल-

 ताकि क्रियाएं है, ७८,७९, ८२

उदारता, १२४,३६६

 आत्माका सूक्ष्म आकाश, २९४

 -का अर्थ, २९५

उबहरण,

 'चरागाहमें रहनेवाला पशु, १५

कुली-मजूरका व्यायाम, ३४

 'शिशु, कीचडमें और नहला देने-

   पर, ५५

 'नरकसे एकको निकालनेमें एक

  वर्ष, ६६

 'एक बहुप्रिय, योग्य स्त्री, समाज-

   बहिष्कृत और उपेक्षित, ८०

 'बर्तनकी सुगन्ध सुरामें, ८४

 'बाघ दिव्य है, ८८

 'बारहसिंहेका प्रसंग, १११ टि०

 'फ्रांसका प्राध्यापक, घरका रास्ता

  चुननेमें आध घंटा, १२८

 'स्वप्नमें मुर्दागाडीकी ओर संकेत

   करता हुआ साईस... लिपट

   टूट जाना.., १३५

 'रेड इण्डियन लोगोंकी सुनने और

   सूंघनेकी शक्ति, १४०

 'कल्पना करो तुम भगवान् हो, सब

 वस्तुएं तुम्हारे अंदर है, १५२- ५

  मेजपर चीजों रखना, १६५

 'मै' कहती हूं 'वह वस्तु लाओ' और

 वह दूसरी लें आता है, १८५

 'भोजनदुरा विष अंदर चले जाना,

   १८७

 '' 'जाओ, अमुक व्यक्तिसे यह वस्तु

  प्राप्त करनेके लिये यह कहो,' '

    १८१

 'मैले-कुचैले कपड़ोंका त्याग, २२१

 'बालुकापर पड़ा पत्थर, २४१

 'सिंह, कामधेनुकी पीठपर खड़े

 अंकित पीठपर, २५६

 'वैज्ञानिकके पास एक मूर्ख

   शिक्षार्थी, २६०

 

 ३९३


 'सागरकी गहराइयोंमें हलचल नहीं

    होती, किंतु.., ३०६

 'लहरोंपर डूबता-उतराता तिनका,

   ३०१

 'प्रहार करनेवालेके आगे अपना

   गाल करनेवाला, ३०१

 'गुंडेसे मार खाखर उसे चुपचाप

  ताकता व्यक्ति, ३०१

 'पत्थरकी वर्षा करनेवालोंकी ओर

   प्रेमपूर्वक निहारता.., ३०१

 'तारेका प्रकाश पृथ्वीपर, ३१८

 'सीपी द साम्गज्यकी रचना, ३२१

 'विलासी राजा.. निपुण मोची,

   ३२१

 'विष्णुके तीन पग, ३२३ टि०

 'जहाजको अंधड़में देख निराश

    होना, ३२४

 'लंबे समयतक उसी एक संकरे

    पुराने घरमें रहना, ३३४

 चरवाहेको ज्वर, ३४०

 'अफ्रीका निवासी जंगलियोंकी

   जाति, ३४०अ

 'उपासका पैड, ३४१

 'बच्चा, बिना सहारे चलनेको

  उत्सुक, ३५९

 'गोपियोंका चीर-हरण, ३६५

 'कैलासके हिमखण्ड, ३७२

 (दे 'श्रीमाताजी' भी)

उपभोग, ३० 'अति'

उपलब्धि, ७१

  (वैयक्तिक), और 'ज्ञान' पूर्णतया

     संयुक्त हैं, १४३

  (आंतरिक), होनेपर लोक-स्थिति,

      २९०

उपवास, २०४

उषा (देवी), ८६

 

    ए

 

एकत्व ( एकता,

  -की चेतना और दृश्य वस्तु, १९८

  (दे० 'सत्य चेतना' -मे भौतिक

  जगत् भी)

 तत्वका, २१ १अ;

   इसे जाननेकी क्षमता, २२०

 ऊपरके संकल्पके साथ या नीचेकी

   वस्तुके सत्य.., २४४

 सब मानव प्राणियोंका, २९२

 और प्रेमके मानवीय कारणोंका

  मूल्य ३६७

 (सच्ची), कब संभव, ३६७

 भगवानके साथ, दे० 'तादात्म्ग्न'

 

      ओ

 

ओ३म् ( अ, २७३

आरोवील,

 -की स्थापनाका उद्देश्य, २७९

 -मे दुःख-कष्ट, २७९

 -मे गरीबी, २७१

   (दे० 'आश्रम' भी) औ

 

       औ

 

औषधि ( दवाई,

  -की रोग-मुक्तिकी शक्ति, ३४०,

   ३४४

 उतना ठीक नहीं करती जितना

 

३९४


कि विश्वास, ३४०

-के बिना रहनेमें बाधा, ३४३

   इसका इलाज, ३४३

आवश्यक क्यों, ३४३

   (दे० 'रोग' भी)

 

      फ

 

कंचनजंगा,

 (उच्चतम), से भी उच्च, १९४

 कठिनाई ?r बाधा, विपत्ति, १५९

 -का बोझ और प्रेमकी शक्ति, ७४

 -क् बोझका अपना हिस्सा अपने

 ऊपर लो, १२७

 लट जाना, हस्तक्षेपसे, २००

 'कठिन है इसी कारण इसके लिये

   प्रयास करना चाहिये, २०३

 -यां दण्ड नहीं है, २०१

 -के दबावसे चेतना जाग्रत्..,

  २०१

 'ऊपरकी सभी चीजों कठिन है,

  परंतु भगवान् जब ठेका लें

  लेते है.., २१४

 प्रभु किन्हें देते है, ३१ ५अ

 -योंकी आवश्यकतामें शंकाका अर्थ,

  ३७७

 ( दे० ' इच्छा' 'तम' और 'दुःख-

  कष्ट' भी)

कर्तव्य, २९५

कर्म,

 -के परिणामोंको मिटानेकी शक्ति,

   ४८

 ( दिव्य), कितना सरलतापूर्ण!,

   १७१

(अत्यधिक), अत्यधिक निश्चल-

   ताकि ओर लें जाता है, २०७

 -पर नियंत्रण कैसे, २८५

 (निर्दोष), संभव कैसे, २८७

 -का उद्देश्य, ३२२

 (पुण्यकृत बुरे), को भी जानना

   ३२८

 -का पथ कठिन, पर सरल व आनंद-

   दायक भ), ३३३

 -पथका चमत्कार, ३३३

   (दे० 'कार्य' व 'बोलना' भी)

कला,

 -का कार्य, २५७-५१

 आधुनिक, ३३७

 -को जैसा होना चाहिये, ३३८

कलाकार, ३३, ४०, २२९, २५८,

  ३२४

कवि, २५८

कामना, ३६

 -की पूर्ण संतुष्टि या पूर्ण त्याग

 असंभव, १८४

   अज्ञान और अहंकारसे रहित मुक्ति-

 की अपेक्षा लोगोंको उनकी

 दासता पसंद, २७०

 (दे० 'इच्छा' भी)

कायरता, ३८,३०१

कारण

 -की खोज करते रहो, ४२-३

कार्य,

 हमारे करने लायक, ५४, २४५,

 २७९, २९९, ३०५, ३१२,

 ३३१, ३३२, ३६२

 (दे० 'सत्यके पथिक' भी)

 जब पूर्ण सहजताके साथ.., ११५

 

३९५


सामान्यत: संकल्प-चालित, ११५;

  रूपांतर-पथपर किंतु उलटी

 बात, १५१

 (अतिमानसिक), का तरीका, ११५

 और जल्दबाजी, २१०-११

 (महान्), मे भी अकर्तृत्वबोध,

   २४०

 भागवत शक्ति ही करती है, २४४

 (अपने मत या अहंको मिलाये

 बिना), करनेका ठीक ढंग,

   २४६

 करना जब बुद्धिमानी न हो तो

  आदेशकी प्रतीक्षा कारों, ३०४

 -मे' अंतिम असफलता कब, ३०४

 (प्रचंड), के बीच मुक्त आत्माकी

   स्थिति, ३०६

 -का उद्गम, ३०६

 इस प्रकार करो मानों आदर्शकी

   पूर्ति.., ३१ ६- १७

 व्यक्तिगत आवेगके वश नहीएं,

 ब्रह्म- के आदेशानुसारी.., ३१८

 -मे दक्षता एवं पूर्णता, ३२ १अ

 -की महानताकी नाप, ३२२

 -मे' उचित-अनुचितकी उलझन,

   ३२४

 (दे० 'कर्म' भी)

कार्य-कारण,

 -की दृष्टिगोचरता जगत्में, ४५,

   २१८

कालविन, ३६३

काली,

 -को श्रीअरविन्द सबसे अधिक

   महत्व क्यों देते हैं, ८६

 -की प्रणाली, २२१;

इसका अर्थ, २२१

 भयावनी शक्तिके रूपमें ,कृष्ण ही

   हैं, ३७६

     (दे 'श्रीकृष्ण' भी)

कालिदास, ३७२

कुटिलता, ३११

कुरुक्षेत्रका युद्ध, ५३, ६३, ३७०

कुरूप, १०४

 और अनाकर्षक वस्तुएं, ४५-७

 और सुंदर सापेक्ष, ४६

 वस्तुके सौन्दर्य'', ४६, ७०-३

 शरीरमें प्रतिभावान, ३१२

   (दे० 'सुधरता' भी)

कृतज्ञता,

  जितनी, प्रसन्नता उतनी, ३६१

केन, ३ रे ०

कैना,

 -का बैगनी रंगका फूल, ९६

क्रांति

 जो हमें ससिद्ध करनी है, ११

 -योंका परिचालन, पर्वत-चोटी-

   पर मौन बैठे हुए, २४१, ३०६

 -योंमेंसे निकलता है, बस, चेहरा

 ही नया, २९६

 -यां (सफल), केवल छ:, २१६

फंस

  -का प्रतीक, २६१

क्रूरता

 और प्रेम, १०७, १७२, १७३

   (दे० 'निष्ठुरता' तथा 'घृणा' व 'तम' भी)

क्रोध, ७८

 (न्याययुक्त), की बात, आत्म-

 प्रवंचना, ८१-३

३९६


प्राणिक शक्तिका विकृत रूप, ८२

 दुर्बलताका चिह्न, ८२

 आसुरिक वस्तु, ८२

 और प्रतिहिंसा निचली मानवता-

   की वस्तुए, २८८अ

 ( ३० 'घृणा' भी)

क्षमता ?r योग्यता,

-ओंका गर्व, १५१

-की चाह, ३२६

क्षमा,

 किसे करूं और क्या क्षमा करूं,

   ४७-८

 मांगनेके साथ-साथ उन्नति भी

 होनी चाहिये, ४७

 करना भला कार्य कब, ३१०

 ( दे० 'भूल' भी)

 

              ख

 

खोज,

 -को सूत्रोंसे सुला मत दो, ४२-३

 समग्र ज्ञानकी, १४३ (दे० 'समग्र

   दृष्टि' भी)

          

              ग

 

गति,

  तमस्में भी बंद नहीं होती, ७८

    (दे० 'अकर्म' भी)

गरीबी! दरिद्रता, ३२६

  'गरीबोंकी सहायता, २७७

  -के बारेमें, २७८-८१

  और कष्ट कबतक, २८१

गीता,

 -का प्रभाव, ६४

 (दे 'श्रीअरविंद' भी)

गुण,

 -के साथ अवगुण भी, ८२

 (आवश्यक), २५६अ, २९४

 (एक), का अतिरंजन, २७५

 प्रशंसा पाने या पूर्णता पानेके

   लिये!, २९४

 -ओंके प्रदर्शनसे धोखा मत खा,

   ३११

 कष्ट और कठिनाइयोंमेंसे, ३१४

गेलेन, ३४१

ग्रहणशीलता, ८, १२,२२

 

      घ

 

घटना,

 -को शुद्ध रूपमें समझना, ४९,५१

   (दे० 'चीज'- ओंको सच्चे भी)

 'जो कुछ होता है, भलेके लिये,

  ४९

 -को कष्टमें बदलनेवाली चीज,

  ५०, २१०

 (प्रत्येक), के पीछे भगवत्कृपा, ५१

 -ओंका पूर्वबोध, १३२

 -को बदल सकना, १३४-३५

 एक ही,  मनुष्य दुःख।, पशु नहीं,

   १५४

 एक ही, एकको ।आनंद, एकको

  कष्ट, २५४

 (बाह्य), से विचलित मत होओ,

   २७६, २७७

 -की महानता और श्रेष्ठता किन

   चीजोंपर, २९६

 

 ३९७


 एं साधित नहीं, विकसित होती

  हैं, ३१८

 -मे हस्तक्षेप, ३१८

धृणा,

 पापीसे, ७६, २५२

 विद्रोह, क्रोध आदि क्रियाओंकी

  आवश्यकता, ७७;

  इनका मूल, ७८;

  इनका समाधान, ७९;

  इनकी उपस्थितिका अर्थ, ७९

 और प्रेम, २०८

 गुप्त आकर्षणका चिह्न, २२४-२७

 ही एकमात्र अपराध, २२४

 अकर्मसे, २४१

 अत्याचारीसे, २११

 -की तलवारकी धार दोहरी, २११

 कुटिलतासे, ३११

 नास्तिकसे, ३५७

 शैतानसे, ३५८

 हसीमें बदल गयी, ३५८

 

      च

 

चंद्र (देवता), ८६

चंद्रावली, ३५७

चमत्कार, ४०

  -की लिये रुचि किस बातका

    चिह्न, १६५, १७ '

 -का उपयोग आपने या श्री-

  अरविन्द क्यों नहीं किया?,

     १६६-६७

 (प्राणिक या भौतिक), मे मिथ्या-

   तत्वका मिश्रण, १६६-६७

 -को देख सकनेकी क्षमता, १६६,

१६८, २११

नामकी कोई चीज नहीं'', और

  ''चमत्कार द्वारा ही यहां सब

 कुछ बदल सकता है'' :

 व्याख्या, १६८-७०

क्या चीज है?, १६८, १७०

 (सच्चा), तब क्या होगा (इ, १६८

 -का अर्थ पृथ्वीके लिये, १६९,१७०

 - ओंकी आवश्यकताका सबसे बढ़िया

   उपयोग, १७१-७२

  -की वे भौतिक व्याख्या दे देंगे,

   २१९

     (दे 'विज्ञान' भी)

चिकित्सा-विज्ञान,

 वरदान नहीं, अभिशाप, ३३९,३४२

 सदाशय है, किंतु.., ३४१

चीज ( वस्तु )

 , बुरी कब हो उठती है, '४६ ४७,

 ७७-८, १०४,

 इनका इलाज, ४७

 'सब कुछ भगवान् है, ४७, १०३,

   २१४

   (दे० 'भगवान्' सब कुछ .मी)

 - ओंको सच्चे रूपमें देख सकना, ४२,

  ७८,२७६, ३००

 (प्रत्येक), सर्वोच्च सत्ताकी अभि-

   व्यक्ति है, ७१

   (दे 'जगत्' -मे सब भ)),

 (बुरी), के प्रति सम्यक् वृत्ति,

   ७२-३

 , वैसी ही है, जैसी होनी चाहिये,

   ७८, ७९, १०६;

   इस दृष्टिको अपनानेपर कोई

   गति नहीं होगी!, ७८

 

३९८


 , जो भूतकालमे ही रहेगी १०१

 (सब), जहां सह-अस्तित्व रखती

   है, १०१, १०६, २०४

 (अरुचिकर), भी भागवत सत्ता-

  का अंग, १०३-६

   (दे० 'कुरूप' वस्तु भी)

 (प्रत्येक), अपने स्थानपर है,

  १०६, १०८, १०१

  '', अपने स्थानपर नहीं, १०८

 कोई बुरी. नही, केवल.., १०१

 (प्रत्येक), को प्रत्युत्तर देनेका

   ढंग, अतिमानसिक चेतना और

   मानव चेतनाका, ११६

 (सूक्ष्म), को पानेकी विधि, ११९

 जो एक क्षण सत्य है, दूसरे क्षण

 सत्य नहीं रहती, १५२

 एक ही समय है मी ओर नहीं भी,

  कैसे?, १५३

 (प्रत्येक), को उसके ठीक स्थान-

 पर रखनेका तरीका, १६३

 _ कोई), दबानी नहीं चाहिये,

 १६३, २०४-५

 (तुच्छ), आध्यात्मिक अनुभव-

 का विषय कैसे?, १६५

 (विरोधी), -- मृत्यु-जीवन,

 क्रूरता-प्रेम, अज्ञान-ज्ञान --

 'अभिव्यक्ति'को अधिक पूर्ण

 बनानेके मार्ग हैं, १७२-७४;

 ये मार्ग भय है : कारण, १७४ ',

 ऐसी बहुत होंगी जिन्हें विलीन

 होना होगा, १८३

 - ओकों उसी. रूपमें स्वीकारना जैसों

   थे हू और फिर आगे बढ़नेका

   प्रयत्न करना, २०८ अ

कोई ऐसी नहीं जो प्रभु न हो, किंतु

   विरले हैं जो प्रभुके प्रति सचेतन

   हों, २१४

  - ओंका सृजन और संहार आंख-

   मिचौलीका खेल, २३२, २४०

  - ओकों घृणित या अरुचिकर समझना

   मानसिक धारणा है या.. .,

   ३१२

 '', तेजीसे आगे बढ़ रही है, ३२३

  (दे० 'सत्यचेतना'-में वस्तुओं तथा

    'रोना-धोना' भी)

चुनाव

 और निर्णयका सामान्य तरीका, २०

 -संबंधी स्वतंत्रता, ८९

 कार्यका, १२८, १२१

   (दे० 'निर्णय' भी)

चेतना

 भरना शरीरके कोषोंमें, ३३

 पार्थिव मनोवैज्ञानिक और मानव

   समूहकी, ७६

 -का परिवर्तन भी एक क्रिया है,

   १९५

 -का परिवर्तन, एक गति नहीं,

   १९६

 -का प्रत्येक बिंदु समस्त अनुभवको

  पा सकता है, २३०

  (दे० 'जडूतत्व' भी)

चैत्यपुरुष, ३७८

 ही अंतःप्रेरणाके माध्यम, ७

 -द्वारा नये जन्मका चुनाव, ३३

 -का विकास और शरीर-साधना,

   ३३-५

 जब शासन-सूत्र संभालेगा, ८१

  (दे० 'अंतरात्मा' और 'जीव' भी

 

३९९


चोर,

 औरहत्यारेके आगे नतमस्तक, २५२

 

      ज

 

जगत् ( संसार, सृष्टि,

 आगे बढ़ रहा है, ११,४७, १०१,

 १०४, १४८

 एक भ्रांति', के दो सिद्धांत, -५

 -मे' सब कुछ सच्चिदानन्दकी ही

   अभिव्यक्ति है, ४६, ७१, २५२

 -मे प्रत्येक वस्तु सापेक्ष है, ४६

 -का भविष्य, ५३-४

      (दे० 'राष्ट्र' भी)

 एक अंधी आकस्मिकता' मे तर्क, ५६

 -की असत्यताका बोध, १० १अ

 -का स्वरूप सत्यचेतनामें, १०९-१०

 (दे 'सत्यचेतना'-में भौतिक जगत्

   भी)

  यह प्रतिमूर्तियोंका जगत् है, १३१

  (दे० 'अभिव्यक्ति' -का अ भी)

 तीन आयामोवाला, १४५

 'चौथे आयामकी भावना, १४५

 एक प्रहसन है, १५४, १५५-५६;

   इसे दुखांत हीमें बनाते हैं,

   १५४-५५; यह प्रहसन है भग-

   वान्के लिये, किंतु हम.. .,

   १५४, १५६

 -के रूपांतरका उपाय, १९६,२२३,

   २४५, २५०, ३००, ३१२

 (दे 'आत्मा', 'पृथ्वी' -की वापसी

   तथा 'लक्ष्य' भी)

 -के रूपांतरकी प्रक्रिया, २००

   (दे० 'आश्वासन' भी)

-की निश्चेतना ही असत्यको

   बनाती है, २१४

 मिथ्या, किस अर्थमें, २१४अ

 एक आवर्त्त-दशमलव.., २२७

 -की भ्रांतिके विषयमें, २३२अ

 -के बारेमें मानव-विचार, २७१

 -को समझनेका सर्वश्रेष्ठ ढंग,

    २७१, २७६

 -मे दुःख ओर गरीबी न रहे, क्या

   ऐसा दिन आयगा ', २७८

 -से निराश होकर भगवानको

  पकड़ने.., ३००

 तर्कके नहीं, विश्वासके सहारे बढ़

   रहा है, ३०२

 घायल, विषधर नाग, ३११

 -को यदि एक राष्ट्रका रूप..,

  ३२२-२३

 (सारा), मेरा अंतःपुर, ३५१

 -को अलग रखकर भगवान्से प्रेम

  करना, ३५७

  (दे० 'भगवान्'-से प्रेम भी)

 आत्माका पति और कृष्ण यार,

   ३५९

 अभीतक दिव्य आनंदका विरोधी,

   ३६०

 स्वर्गकी प्रतिमूर्ति कब बनेगा, ३६४

 -का अधिपति बननेकी लालसा,

  ३७३-७४;

  इसमें आनंद कब, ३७४

 (दे० 'अभिव्यक्ति' और 'विश्व' में,

 तथा 'श्रीअरविन्द' 'तमूरा' व

 'रोना-धोना' मे मी)

जटिलता,

 और सरलता, १७६

 

४००


(दे 'मन' भी)

जडूतत्व, १७३

 -मे' भागवत उपस्थितिका मूल,

  २१३

 सत्य है या चेतना?, २६१

जडपदार्थ,

 और सर्वोच्च प्रेम, ७५

 -का रूपांतर, ७५

 अभी कठोर है, ७५

 और ये बम-प्रयोग, ९५

 -मे अतिमानसिक चेतना, ११ ३-

    १८

 -की दृढ़ताका प्रयोजन, ११४

 जगत्का मिथ्या रूप नहीं, १९८

 -के 'तम' के प्रतिरोधका परि

  णाम, २४३

जनक,

 -के सामने नारद भी विभ्रांत, २०३,

  २१२

जीब,

 -के शरीरमें आनेका उद्देश्य, ३३,

   ३६०

 (दे 'चैत्यपुरुष और 'मनुष्य'

  किस भी)

जीवन, ८६, १२४,२५१

 -का त्याग, १५,६९,८४,२०५-६,

  २२२

 -की चीजोंसे ऊबका अनुभव..,

  १५, १६

 -की सहायता, चैत्य प्रगतिमें, ३४

 सामान्य और असफलता व पराजय-

  का, ५७

 -की नारकीय परिस्थितियोंमें होने-

   पर उचित भाव, ६६

 सर्वोच्च इच्छा-युक्तिक अभि-

  ठयक्ति कब होगा, ८९

 इतना दुःखमय क्यों है?, १५६,

  २०९, २१४

 यदि सरल होता, १५६,२०१

 -को गंभीरतापूर्वक लेना उसे पूर्ण

 बननेसे कैसे रोकता है?, १६ २- '

  ६३

 -को पूर्ण बनानेका पथ, १६३

 -को दो भागोंमें बांटना, १६५

 और अक्षर आनंद, १८१-८३

 अति व्यस्त और पलायनका, २०७

 आनदपूर्ण कब होगा, २१४

 -को व्यर्थ घसीटनेकी अपेक्षा मरकर

   दुबारा जन्म लेना क्या अधिक

   अच्छा नहीं?, ३३४-३५

 -का सर्वग्राही सूत्र, ३५६

 हमें किस लिये दिया गया है, ३६०,

  (दे 'जीव' भी)

 जब.. हास्य बन जाता है, ३ ६७अ

  (दे० 'पार्थिव स्वर्ग', 'मुक्ति' और

    'मृत्यु' भी)

जड़िया

 -मे भगवानका सेवक.., ३४९

जेहोवा, ९४,९५

ज्ञान,

 और प्रज्ञा, ३-५, १४०, २२२;

  ये संबद्ध शक्तियां क्यों?, ३

 (मानसिक), ''विकृत माध्यममें

   देखा हुआ सत्य'' : व्यारव्या,२-५

 शब्दका प्रयोग, ६, १७

 जो भगवान् देते हैं, न विवेक है, न

   बुद्धिहीनता.., ११-२

(उपार्जित), की जब और

 

 ४०१


 आवश्यकता नहीं रहती, १२;

 इस स्थितिको पानेकी शर्त्त, १२

साधारण ( मानसिक, १७,१ ९अ,

   २७,४२

 प्रज्ञा और तर्कबुद्धि, १९-२०

 (सच्चा), २०, ३७०

 (सच्चे), के लिये प्रथम पग,

   २०,२२

 'पढ़ना-समझना और सच्चा अनु-

    भव, २२

 जिसका कोई यथार्थ मूल्य नहीं,

   २६,२७

 (सच्चा), पानेकी शर्त्त, २ ६-७,

    २१

 (मानसिक), आपेक्षिक शान, २७

 -को जीवनमें उतारनेका महत्व,

    ३७अ, २६४

 (अधिक), की प्राप्तिका उत्तम

   तरीका, ३८

 -के वृक्षका फल, ८९

 -के वृक्षका प्रतीक, ११, ९४

 विभाजनका, ११, ९४

 -के उदय होनेका लक्षण, १२१

  (व्यावहारिक), को व्यवस्थित

 करना आवश्यक, पर नाश-

  कारी, १४०अ, १४२

 वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनोंका

   संयोग काफी नहीं, तीसरी वस्तु

   भी चाहिये, १४१-४३, १४४

 (नया), अजेय होता है, पुराना

   होकर वह., १४८

 रूपांतरकारी, १४८-४९

 'जाननेका अर्थ है कर सकना, २१६

 आत्माका, भौतिक ज्ञानसे कहीं

  अधिक अद्भुत, २१६, २१७

 आत्माका, भौतिक ज्ञान प्रदान

   नहीं करता, २१६

 (आंतरिक), मे विश्वास दिलानेकी

   शक्ति नहीं होतीं, २१८

 अपनी. खोजका शोर मचाता..,

   २२२

 'जानना, कहना, करना, अच्छा है,

   किंतु बनना.., २४१

   (दे० 'बनना' भी)

 आध्यात्मिक, के निषेधकी प्रणाली

  जड-वैज्ञानिकोकी, २६१

 पाने योग्य, २६४

 'बोध मस्तिष्क और हदयका, ३०३

 -की छोटी-छोटी बारीकियोंको

  खोदते रहना, जब कि असीम

  बुद्धिमत्ता ऊपर.., ३२१

 'केवल जाननेसे क्या लाभ.., ३३३

 (मानव), और भागवत शान, ३८०

 (सच्चे), की एक बूंद.. क्रांति पैदा. ., ३८१

 (परम), की प्राप्ति कब, ३८३

 (दे० 'सत्य', 'समग्रदृष्टि', सम-

   झना', 'अज्ञान' और 'भूल' भी)

ज्ञानी,

 नहीं हू, समर्पित हू, ११-२

 कौन होता है, ११

 बननेकी एकमात्र विधि, ३७०

 (दे० 'भगवत्प्रेमी' भी)

 

         ज्ञ

 

झगड़े,

   ( मानसिक), सें बच जाओगे, २४ -५

 

४०२


(निजी), से बचो, किंतु सर्व-

  जनिक लड़ाई. ., ३१३

  (दे० 'संघर्ष' भी)

झलक

 पा जाना, प्रतीक्षा करती अनंत

 संपदाओंकी, १२-३, १६

 

      ट

 

 टार्कमादा, ३७१

 ट्रायनगर, ६३

 

       ड

डटे रहो

  अचंचलताके साथ, २०२

  'टिके रहनेका केवल एक तरीका

    है, २२३

   भूतकालके सामने, ३०४

 

      त

तमस,

 और क्रूरता, १०७,२०७

 -से सृष्टिको, बाहर लानेका साधन,

  १७२-७५, २०७

 -का प्रतिरोध ही विपत्तिको उत्पल

  करता है, २४३

   ( दे० 'गति' भी)

तर्क,

 बाह्य रूपको सत्य माननेका, २०

 सबको सत्य साबित कर सकता है,

  २७

  ( दे० 'मन'-द्वारा भी)

 -द्वारा भगवानके अस्तित्वका निषेध,

   ३५

 -शक्तिकी मूर्खता, ३५अ

 और अनुभव, ३५-६

 नियतिवादके पक्षमें, ११७

 -का कार्य, ३०२

 अपनेको विश्वासके अनुकूल..,

  ३०२

   (दे० 'विश्वास' भी)

तर्कबुद्धि,

 और इंद्रिय-ज्ञान, ५,७,८, १९४

 मनुष्यकी मानसिक कियाका शिखर,

   ७,१७

 -द्वारा सोचे हुएसे भिन्न बोल उठना, १-१०

 और अंतः प्रेरणा ?

 प्रज्ञा, १०, १७, १९

 जीवनमें आवश्यक, १७

 -को पार कब करना, १७,१८

 -का कार्य, १९,२०, ६८

 -के चमत्कार'', का आशय, ३९-४०

   (दे० 'मन', 'बुद्धि' और 'सत्य' भी)

तर्कवादी, १०२

तर्कशास्त्र,

 सत्यका सबसे बड़ा शत्रु, ६८-९

तादात्म्य ? एकत्व (भगवान्, भागवत

 चेतना, सर्वोच्च संकल्प.. के

  साथ),

 प्राप्त करनेकी आवश्यकता ब उसके

   परिणाम, ४३, ५२, ७८,७९,

   २२७, २४१, २४४, २७३, २७६,

  ३३७, ३४३, ३५८, ३६५, ३६७

प्राप्त करनेकी शर्त्त, ३८०

 

४०३


तिरस्कार,

 करना किसीका, ३१२

तुच्छ,

 कोई चीज न हो तेरी नजरोंमें भी,

 ३२१

त्याग,

 महत्तर आनंदके लिये..,

 १७९ -की भावना, १७९-८१

 -की भाबाना या मुक्तिका बोध,

   १७९, १८१

 करना नहीं, स्वीकार करना

  कठिन, १८१

 -का पथ, २०५-६

   (दे० 'जीवन' भी)

 कामना, अज्ञान, अहंकारका,

  २७०

 त्यागके लिये नहीं.., २९३

 उस वस्तुका कैसे, जो उन्होंने

   जबर्दस्ती मुझसे छीन ली..,

    ३४७,३४८

     (दे० 'अति' भी)

 

      द

 

दया

 -भाव बौद्धोंकी, २७५

 जीवोंपर, २८७

 -के दास, २८७

 (मानवीय), और भागवत करुणा,

  ३७८-७९

दर्शनशास्त्री (संसार-त्यागी),

  बुद्धिमान्, पर जरा मूर्ख भी,

  ३५३

बातें, ३६३

दानशीलता, २७६अ

दास,

  घृणापात्र व प्रेमपात्रका, २२५

  बस, भगवानके बनो, २८७

  जो किसीका, नहीं रहा.., ३१५

  नारदकी तरह, ३७४

दिखावा,

 या चरितार्थता!, २१२

 (दे० 'बनना' भी)

दुःख-कष्ट ( दुःख-दर्द, पीड़ा, यंत्रणा,

  १०१

 व कठिनाईसे बाहर निकलनेका

  उपाय, १५, १ ५७-५८, १६४

  २७२, २८०-८२, २८७

 -के पीछे शुभ, ५०

 जब आवश्यक नहीं रहेगा, ५२,

  १७४अ, २१४, २७८-७९

 व कठिनाईकी विद्यमानताका हेतु,

 ६७, १५६, १ ७३-७४, २०९,

 २१४, २५३-५५, २७२,२७९,

 २१०, ३१५, ३२४, ३७०

 हमारी दिव्य जननीका स्पर्श. .,

  १७७

 (नैतिक), स्वभावको बनाते हैं,

  १७७

 शरीरका, ३० 'शरीर'

 -का एक कारण, २५५, (दे

   'घटना'-को कष्ट भी)

 मानव जातिके कब दूर होंगे,

   २७टअ, २८०-८१

 (अधिकांश), का कारण मनुष्य-

   की भूलें, २७९

 'एकमात्र दुःखद वस्तु, २८९, ३७९

 

४०४


(अपने और दूसरोंके), के प्रति

  सम्यक् वृत्ति, २९०

 प्रगति न करनेका, ने ३०७

 -मे आश्वासन, ३०७

 कामना, महत्वाकांक्षा आदिकी

   भूमिका मानद-विकासमें, ३०८

 'शोक और दुर्बलताको गुण कहा,

    ३०१

 जिसने कभी नहीं झेला.., ३१५

 आनंदका ही रूप, ३५०

 -की चार अवस्थाएं, ३५०-५१

 -का तिरोभाव भगवान्से मिलनेके बाद,

   ३५१

 शोक या दुर्भाग्यके कारण जब मैं

   कष्ट पाता हू तो कहता हू. .,

    ३६५

 यदि मैंने न भोगा होता..,

   ३६९

 'शोक-तापसे हृदयको कठोर बना

  लिया.., ३६९

 पहुंचाना अपने-आपको.. इस

   विकृतिके पीछे ज्ञानका प्रच्छन्न

 रूप, ३६ १अ

 -की खोज मत कर.., ३७०

 साथीपर न फेंक, ३७१

 पहुंचानेका अधिकार, ३७१

 -के आकार और.. आशंकाकी

   परवा करना जब जीव छोडू

   देता है.. '', ३७३

 -के लिये आकर्षण न रहनेपर प्रभु

   हमें आनंद.., ३७७

 'पीड़ा है गुप्त और प्रचंड आनंदो-

   ल्लास, ३८०

     (दे 'आत्मा' व 'सुरव' भी)

दुर्घटना,

 -का नियम, १३५

 -की विफलताका कारण नियति-

 वाद या सत्यचेतनाका हस्त-

 क्षेप, १ ९६-९७, १९९

दुर्बलता, २१०, ३७५

 सुखके आगे, ५९

 हैं, घृणा, क्रोध आदिकी क्रियाएं,

   ७८, ८२

 ही अशुमका कारण, ३२६

 है... शक्तिमत्ता, ३८०

   (दे 'भगवान्' दुर्बल, व

   'रोना-धोना' भी)

दुर्भाग्य,

 -पर रोना-पीटना, ४९, २७२

 क्या है, ४९,५९

 क्यों आता है, ४९

दूसरे

 - ओंका तरीका पकड़ना ठीक नहीं,

    १६

  - ओंके अनुभव भी सत्य, २४

  - ओंपर अपना अनुभव लादना, २४

  - ओमें हमें क्या चीज खटकती है,

     २४-५

  - ओमें खटकनेवाली चीजके प्रति

     सच्चा मनोभाव, २४-६

  एक आइना हैं, २५,२६

  जो कुछ करते हैं उससे तुम्हारा

      कोई सरोकार नहीं, २६

  - ओंकी बुरी वस्तुको न देखना, बुरी

  बातकी चर्चा न करना, ७२ -

  ओंके पापोंके प्रति सामान्य वृत्ति, ११०

  -ओंके प्रति तब उदार होंगे, १२४

 

४०५


-ओंके कार्योमें हस्तक्षेप, २४७-४८

 - ओंको सलाह देना, २४७-४८

 - ओंके साथ हमारे संबंध, २५५

वृष्टि,

 भविष्य-दर्शनकी, १३०-३४

   (दे० 'विज्ञान' भी)

दृष्टिकोण,

 अगणित है, ३७

 संकुचित, घटनाके प्रति, ४९,५०

    ५२, ८० (दे० 'संकीर्णता' भी)

 अतिमानसिक, १११

   (दे० 'समग्र दृष्टि' मी)

दृष्टि मम,

 -का क्या अर्थ है, ३९-४२

 और अंतर्दर्शन, ४१-२

देवता

 -ओंका - वरुण, इन्द्र आदिका

 --आवाहन, ८६

 -ओंमें अंतरात्मा नहीं होती, २१ २-

   १४

 -ओंका अवतार लेना, २१३

 ही दिव्य नहीं, दैत्य भी.., २९२

 पूरी तरह दिव्य नहीं, यदि उसमें

     असुर.. नहीं, २९२

 -ओंको सहना सीखना होगा, ३०१

देवत्व

 -की विरोधी तीन हठीली चीज़ें :

 स्वार्थपरायणता, नीचता, घृणा,

   २२४

देश,

 मातृरूप भगवान् है; उसके बारे-

    मे बुरी बात कहना.., २९५

दैत्य,

  -के, अमरत्वकी ओर ले जानेवाले,

 चार पग, ३७६

दोष,

 दूसरोंमें खटकनेवाले, २४-६

 (किसी), की निंदा करनेवाले,

   ३१०

  -के लिये किसीसे घृणा. ., ३११

     (दे० 'भूल' भी)

 

         ध

 

धन, ३२६,३२८

धर्म,

 -की सुविधा : भगवानको पीटना,

    ९६

 -की लोगोंको आवश्यकता, ९८

 और योग, ९८

 -की संकीर्णताको निकाल फेंक,

    १९४

 -के कर्मकांड, २५१

 -की सहायता, २५९अ

 अहंभावसे मुक्तिमें सहायक, २८१

 या नास्तिकतामें कौन श्रेष्ठ, २ ९६अ

   (दे० 'संप्रदाय' भी)

धर्म ग्रन्थ, ३० 'शास्त्र'

धर्मात्मा,

 बननेका स्वांग, १२७

 ध्रमाभिमानी,

 और पुण्य, ६८-९, ३५९

धैर्य, १३१

 रखनेकी आवश्यकता, २१०

 आदर्शकी पूर्तिमें, ३१६

ध्यान,

 और पूजा-पाठ पुराने. समयका

 क्या अब जैसा ही था?, ६४

 

 ४०६


 

नरक,

 -मे भगवान् यदि रखें, ६५-६

 (शाश्वत), की बात, ३६३

 (जघन्य), ३७४

 स्वर्गका सबसे छोटा रास्ता, ३७७

नमनीयता, ३२, ११३, ११४

 -का अर्थ, ११७

नारद, २०३, ३७४

 आत्माको न देख पाये, यह कैसे?,

   २१ २- १३

नास्तिक ?अनीश्वरवादी, ५७,२५९,

    ३८२

 और ईश्वरवादी, ५७-८

 'नास्तिकताका प्रयोग, २९६

 -सें धृणा, ३५७

 -को ईश्वर-अस्तित्वकी युक्ति,

   ३६२

निंदा,

 करना दूसरे धर्मों और संप्रदायोंकी

  असहिष्णुताकी, २३

 मायावादी व अज्ञेयवादीकी, ३६२

 असफलता और अपूर्णताकी, ३६६

 मत कर, सहायता कर,३६६

    (दे० 'प्रशंसा' भी)

नियति

 -से आक्रांत अनुभव करना,  २१-२

नियतिवाद,

  समस्त अनुभूति नहीं, १९७-९८

  (उच्चतर), २५२

नियम, ३३१

  -का पालन, कठोरतापूर्वक, २६५

  (आलोकित), को पानेसे पहले

सामाजिककी अपेक्षा उच्चतर

  नियमका पालन अच्छा, २६६

 (आलोकित), क्या है?, २६७

 उच्चतर, का पालन कैसे?, २६८

 -कानून जगत्की रक्षा नहीं कर

   सकता, २७०, ३२६

    (दे० 'सरकार' भी)

 किन लोगोंके लिये, ३३२

   (दे 'कार्य-कारण' भी)

निराशा ! हताश होना, २९,४९

 किस बातका चिह्न और किनमें

  उत्पन्न होती है, ५६

 और दुर्बलताके वश होनेपर यह

   सोच.., ३०१

 'निराश न होनेका पाठ, ३ २४अ

     (दे० 'जगत्'-से निराश, 'भय',

  'विरोधी शक्ति' व 'विश्वास'

  भी)

निरीक्षण ( जांच,

 (अपनी), बिना दयाके, १२४

 यथार्थ, १७१

निर्णय

 देना, जिन चीजोंके बारेमें तुम जरा

  भी नहीं जानते, ३०, ३ ५अ

 और मत मनुष्यके, ३१०

  (दे 'चुनाव', 'मूल्यांकन' भी)

निर्वाण, १०१, १९८,२०४

निश्चयता,

 -का सुरव, २३२

 अनुभूतिसे ही, २७४

 अंतिम चरितार्थतामें, ३०७

 (दे० 'आश्वासन' भी)

निश्चल-नीरवता ( नीरवता,

  अंतः प्रेरणा पानेके लिये, ८, १५०

 

  ४०७


पढेको समझनेके लिये, १

 ज्ञान पानेके लिये, १२

 सत्यदृष्टिके लिये, २२

 और अनुभव, ११ १अ, १९३

 -की शक्ति, २२२;

    इसे नीचे उतारनेमें कठिनाई,

    २२३

 आदेश जान सकनेके लिये, ३०३

 -भैंसे वाणी और कर्म, ३०६

   (दे० 'अचंचलता' भी)

निष्ठुरता,

 -का अपना स्थान?, १०७-८

नीचता

 ही एकमात्र अधर्म, २२४

 क्षम्य पाप, २९४

 -का अर्थ, २९५

नीत्शे,

 -का अतिमानव, २५६

नेपोलियन, १४८

 सशस्त्र भगवान्, ५२

नैतिकता,

 'नैतिक और बुद्धिवादी व्यक्तिका

  ज्ञान, १८

 और मानव एकता, रे ऐ ३

 -का मजाक, ३४८

 -से मुक्त करनेका प्रयास, ३७५

 नैतिक धारणा ( नैतिक दृष्टिकोण),

 १११, ११२, १२४, १८६,२२६,

   २५२

 भगवानके बारेमें, १०२-३, १०५

  (दे० 'पाप-पुण्य', 'शुभ-अशुभ' भी)

नैतिक विचार,

 -ओंकाप्रयोग व्यक्तिगत गतिविधियों-

  को छिपानेके लिये, ८३

          प

 

पक्ष

 सत्यके असंरूप,३७ 

 भगवानके, अनगिनत, १०६

 किसका, संसारके संघर्षोंमें, ३२७

पतन, ३० 'पार्थिव स्वर्ग'

पथ ? योगपथ, रास्ता,

 संकीर्ण है, १३

 ग्रहण करनेमें तीन बाधाएं, १ ३-४,

   १६

 अपना ही अपनाना चाहिये, १६

 कम लंबा कैसे, २९

 -पर आगे बढ़नेका उपाय, ३८,

    १४८, १४९

 कोई भी पकड़ो. ., ८५

 अमृतका स्वाद बदल देता है, ८५

 अनगिनत, १०६

 प्रत्येक, से तुम 'उनके एक पक्षको

   छू सकते हो, १०६

 समग्र ज्ञानकी खोजका, १४३

   (दे० 'समग्रदृष्टि' भी)

 -की बहुविधता और 'रहस्य', १४३

 त्यागका और भागवत प्रेरणाके

  अनुसार कार्य करनेका, २०४-

 दूसरा बहुत कठिन, २०५

 (भयंकर), की आवश्यकतामें शंका-

  का अर्थ, ३७७

 (दे० 'चीज' '' (विरोधी) भी)

पद-परंपरा, ३० 'समझना'

परिणाम,

 वर्तमान स्पंदनका तात्कालिक फल

 नहीं, १८५

 

४०८


परिवर्तन,

 -की शक्ति, सच्चे ज्ञानमें ही, २०-२

 बाह्य क्रियाओंमें, तादात्म्यसे, ४४

    (दे० 'चेतना' भी)

परिवार, २९५

परिस्थिति,

 -संबंधी अज्ञान, ४९,५९

 -द प्रति सच्ची वृत्ति, ५९,६६

  -योंके व्यवस्था.., ३३७

परोपकार-वृत्ति! परोपकार-भावना,

 और भगवत्प्राप्ति, ८४

 'भलाई, बिना शक्तिके अपूर्ण, २९२

 स्वार्थपरताका ही रूप, २९३

 -से दूसरोंकी आत्माका हनन कैसे?,

  २९३

 'परोपकार, कर्तव्य.. बंदीगृह बन

   जाते हैं, २९५

 अच्छी है, पर.., ३२८

पवित्रता, १२७

 (बच्चेंकी सहज), ५५;

 इसे ढकनेवाली चीजों, ५५;

 'अगली पूर्णता, ५६

 भागवत, १०६

 वैराग्यमूलक, ११ रे

 आत्मामें है, किंतु कार्योमें.., ३०७

 -का अर्थ, ३०८

पवित्रीकरण,

 -की शक्ति, ७३अ

     (दे 'शुद्धि' भी)

पशु,

 हमें नहीं समझते, १११

 और दुःखपूर्ण घटनाएं, १५४

 पालतू, १५४

पश्चात्ताप, १६४

ही काफी नहीं है, ४७

पश्चिम,

 -का जीवन, २०६

 -का सिद्धांत, जीवन-यापनका,

  २५१

 'पश्चिमी धर्मोंके भगवान्, ३५०

    (दे 'यूरोप' भी)

पश्चिमी मन ( यूरोपवासी,

  -का मूर्तिके प्रति भाव, ९७

  -के लिये समझना कठिन कि सब

    कुछ भगवान् हैं, १०३

पाखंड, ८३, १२७,३१०

पागल

  अंतःप्रेरणाके दबावसे, २११

  हू, वे कहते हैं.., ३५६

    (दे० 'मूर्ख' भी)

पाठ,

 -सें लाभ उठनेका तरीका, ९

 मानवजातिके लिये, ३१०

    (दे० 'शिक्षा' भी)

पाप,

 

  कोई भी ऐसा नहीं जो हमारे

    अंदर न हो'' : व्याख्या, ७६

 क्या है, ७७, १०७-८

 -का कोई अस्तित्व नही, १०७-८

 -का विचार, १०८, १६५

   ' 'आदि पाप' का विचार, १०८

 मनुष्यमें कोई नहीं.. रोग..

   ११०

 -भावना क्यों आवश्यक थी, ११०

 (अपने), के प्रति और दूसरेके

 पापके प्रति मनुष्यका वृत्ति,

   ११०

   (अक्षय्य), २९४

 

४०९


और शोकका आघात, ३०७

 -मै जब मैं जा गिरता..,

    ३५९

 -मे प्रभु हमें क्यों गिराते हैं, ३५९

    (दे० 'अशुभ' भी)

पाप-पुण्य,

 नहीं, भगवानकी इच्छा, ५४,

   ३२ ६अ

 -सें घेरे चले गये व्यक्तिके प्रति

   मनुष्यकी प्रतिक्रिया, ६०

 -की भावना पूर्णतामें बाधक,

    ११०

 -का विधान कब आवश्यक, २६७

   -का प्रयोजन, २७६

 (दे 'पुण्य', 'शुभ और अशुभ' भी)

पापी,

 -सें घृणा, ७६, २५२

  'मे भगवानको देख, ३६६

पार्थिव स्वर्ग,

 -का अस्तित्व था, ९०-२;

 तबक़ा जीवन, ९०-२

 -से पतन, ९३, ९४-५, १५६,

   ३७७;

   यह अनिवार्य नहीं था, ९३

 -को दुबारा कैसे पा सकते हैं, ९५

पीड़ा, ३० 'दुःख-कष्ट'

पुण्य,

 -का सबसे बड़ा शत्रु, ६८-९

 और नैतिकता है यह, ७२

 -भावना पापोंकी पोषक, ११०

 -भावना और पूर्णता, १६३

 -का अभिमान, ३५९

 -के वस्त्रको जब खींचा. ., ३६५

 -के चोगेको त्याग दें, ताकि 'सत्य'

 के लिये तैयार हो सकें, ३६६

पुण्यात्मा

 -सें घृणा न करना कठिन,

   ७९-८०

पुनर्जन्म

 -मे साथ जानेवाले अनुभव, ९८

   (दे० 'चैत्यपुरुष' भी)

पुस्तक

 (शिक्षाप्रद), के पढ्नेके लाभ

  तभी.., १

 (अरोचक), को प्रसन्नतासे पढ़ना

   कैसे संभव है?, ७०

पूजा,

 -का अर्थ, ६४

 देवोंको नही, परम प्रभुकी, २५३

 कर उस दिव्य प्रज्ञाकी. ., ३६२

   (दे 'ध्यान' भी)

पूर्णता, २६, ५२

 से लोगोंका अभिप्राय, १०५

 (दिव्य), क्या है, १०५-७

 भगवत्प्राप्तिका एक' मार्ग, १०६

 -का अर्थ, १६३

 समस्वरतामें ही, २७५

 -की प्राप्तिकी शर्त, ३२१

 (बाह्य परिवेशकी), सरकार-

   द्वारा या अंतरात्मा. ., ३२६

पूर्वजन्म,

 - ओंकी स्मृति, १८

पूर्वबोध, १३५-३६

पृथ्वी,

 सूक्ष्म जगतोंका घन रूप, ६१

 -की वापसीको सुनिश्चित बनाने-

 वाली चीज, १ २५-२७, २५०

 (दे० 'जगत्'-के रूपांतर भी)

 

 ४१०


'पार्थिव चेतनकिा मुक्तिका मूल्य,

   १२५

 -का एक आरंभ है, वहां विकास-

   का अर्थ संगत है, १६१

 -के लिये कुछ कर सकनेके लिये

   आवश्यक चीज, २२ मे

 -को लुप्त नहीं होना चाहिये,

   २२१

      (दे० 'प्रेम', 'भागवत प्रेम'

      और 'सूर्य' भी)

पेगेनिज्म, ३३६

प्रकृति,

 -के पहरेदार : भय, अविश्वास,

  और संदेह, १३

 -का तरीका, १४-५

 -के सामने अनंतकाल पड़ा है, १५

 -का उत्तर जल्दबाजी करनेवालो-

   को, १५

  -के रहस्योंको भौतिक चेतनामें

   रहते जाननेका प्रयास, ३०

  -के नियम आवश्यक कब, २५०अ

  -के अनुरूप जीवन-यापन, २५१

  शरीरकी या भगवानकी, २५१

  -का अनुकरण और कला, २५७

  -का ''शाश्वत प्रतीक'', २५८

  क्या है, २८२

  माता कैसे आगे बढ्ती है, ३२३

  -की प्रशंसा व पूजासे क्या, आत्मा-

    द्वारा उपभोग कर, ३५२

  भाव और कर्म -- सब प्रेमपात्र

    बन जाते है, ३५२

  (दे० 'विधान' भी)

प्रगति

 -मे सहायक एक चीज, ३०

ऊपरसे आनेवाले सत्योंका परि-

    णाम, १५०

 -के साथ विघटनकी शक्ति भी

  बढ्ती है, १८०

   ( दे० 'दुःख-कष्ट' प्रगति और

 'पथ'-पर आगे भीं)

प्रज्ञा,

 मानसिक नहीं, आत्मिक शक्ति

   है, ३

 है 'सत्य' की दृष्टि, ५

 और तर्क-बुद्धि, १७, ११

 -की प्राप्ति, १९, २०;

   और बड़प्पनकी भावना, ११

 बाह्य रूपोंके पीछे सद्वस्तुको

   देखती है, १९, २०

 क्या है, ५०

 -का पहला पाठ, १४०

 अपने कार्योंको मौनताके..,

   २२२

  (दे० 'ज्ञान' व 'अंतः प्रेरणा' भी)

प्रणाली,

 भारतकी और यूरोपकी, २२१

 कालीकी और प्रेमकी, २२१

प्रतिक्रिया,

 शक्तिको बढ़ाती है, ३२४

प्रतिभा,

 और बुद्धि, १४८

 क्या है, २१०

प्रतिभाशाली, २९०

प्रतिहिंसा, २८८अ

प्रलोभन,

 जब भगवान् देते हैं.., २९७

   (दे० 'स्त्री' भी)

प्रतिरोध,

 

 ४११


 जडूपदार्थके तमसका, २४३

 -को समाप्त करना ही महत्त्वपूर्ण

   कार्य, २४५

    (दे० 'विरोध' भी)

प्रभुत्व ( अधिकृत करनेकी चेष्टा),

  तुच्छ सफलताओं और साधारण

  वस्तुओंको, जबकि असीम

    'शक्ति'.., ३२१

 (दे०'जगत्'-का अधिपति भी)

प्रमाण (भौतिक),

 मांगनेकी आदत, सत्यकी स्वी-

   कृतिके लिये, ३०

 (दे० 'आत्मा'-की शक्तिकी भी)

प्रयास ( प्रयत्न,

 सतत और अथक, ३८, १३९,

   ३८०

 'बस, हम उसके लिये कष्ट नही

   उठाते, १५६

 पूर्वनिश्चित घटनाओंका एक

  अंग, २५२

 -मे लगे रहो, परिणाम आता न

   देखनेपर भी, ३०४

 और घटनाओंकी चरितार्थता,

   ३१८

 (दे० 'अभीप्सा' व 'संकल्प' भी)

प्रशंसा,

 बटोरनेके लिये भगवानने तुझे

   नहीं अपनाया, २९८

 -निंदासे ऊपर उठनेका उपाय,

   २९९

   (दे० 'भगवत्प्रेमी भी)

प्रश्न,

 करना कब उचित, १

 मनुष्य क्यों करता है?, ८९

प्रसन्नता, ३० 'पुस्तक'

प्राण,

 -की क्रियाओंका त्याग, ११२

प्रार्थना,

 क्यों?, १७२

प्रेम,

 -की शक्ति, ७३-४;

   इसे फैला सकना संभव, ७४

 -का अवरोहण पृथ्वीपर ही, २१३

 -के प्रयोगसे बचनेका कारण, २२१

 -की विकृति, २२५

 -की सच्ची क्रिया, २२६

 और शक्ति मिलकर ही जगत्की

  रक्षा कर सकते हैं, २६९

 अनिवार्य गुण, २९४

 -का अर्थ, २९५

 -को सदा प्रक्षिप्त करते रहना

 .., ३१०, ३६६

 (पूर्ण), भयको भगा देता है,

  किंतु.., ३४९

 करनेका सबसे अच्छा तरीका,

   ३५ १अ

 यदि तुम क्षुद्रतम कीड़े और अप-

  राधिके नहीं.., ३५६

 और ईर्ष्या, ३५७

 -क् सब रूप, भगवानके प्रति प्रेम

   हैं, ३६६

 पड़ोसीसे., ३६७

 (गभीर, निःस्वार्थ), कब संभव,

   ३६७

 (मानव), की असफलताका

 कारण, ३८०

 (मानव), और भागवत प्रेम,

   ३८०

.

 ४१२


 (मानव), क्या भागवत प्रेममें

   बदला जा सकता है?, ३८०

 बस, एक ही है-, ३८०

   (दे० 'भागवत प्रेम' तथा 'क्रूरता'

    व 'घृणा' भी)

प्रेरणा

 विशुद्ध कब, ११५

 

      फिर

 

 फालस्टाफ, २५१

 फिलिप सिडनी (सर), ५०-१

 फोटोग्राफी, २५७

 फ्रेंच क्रांति,

  -का कारण, ३०६

  -का मंत्र, ३२०;

    इसका व्यावहारिक रूप, ३२०

 

       ब

 

 बंदीगृह ( कारागार,

 स्थूल और मानसिक, ६१

 अहंका, २७३

 कब, परोपकार आदि चीजों, २९५

बनना

 अधिक आवश्यक, २१२, २४१,

   २८५, ३३३

धम-प्रयोग, ९५

 थल ? सामर्थ्य ,

 सर्वशक्तिमान्, ७९

 'मानव पराक्रम और भागवत

   सामर्थ्य, ३८०

बहाना

 अपनी अशक्यताका, ३८

अनुकूल मानसिक, ८३

  (दे० 'आत्म-प्रवंचना' भी)

बाइबिल, १११

 -के सृष्टचुत्पत्ति-प्रकरणकी कहानी,

    ११

 -की 'स्वर्ग और सर्प ' की कहानी, ९४

बाराब्बास, ३२०

बाह्य प्रतीति,

 -यों (घृणित, भयानक), ण पीछे

  श्रीकृष्ण तुम्हारे क्रोध, घृणा

  व आतंकपर हंस रहे हैं, ३१२

  -यां भ्रमोत्पादक हैं, ३१२

 -यां किन्हें धोखा नही दे पाती,

   ३१२

बाह्य कप,

 मिथ्या हैं' ऐसा कहना और

   सचमुच समझना, २०-२

 और पीछेका सत्य, ४६, ४८

बिल्ली, १ दूं ९

बुद्ध,

 -की शिक्षा, ७२,२१२

बुद्धि, १५७

 -का देखनेका तरीका, २०,४५-६,

   १२८, १२९, १५२

   (दे 'मन' भी)

 व्यावहारिक, ४२-३

 प्रकृतिका अंतिम तत्व नहीं, २६-५

   (दे० 'तर्कबुद्धि' भी)

बुद्धिमत्ता, २४६अ, २९१,३१७,३२७,

   ३५३

बुद्धिमान, २१

बोलना

 आवेग या अंतःप्रेरणाके अधीन,

  ९- १०

४१३


'समय आता है, जब तुम कुछ भी

   नहीं कह सकते, १०१

 अचचलतामेंसे, ११५

 बंद करना और वाक्यसंयम, २०४

 'बतानेसे आधा कर्म नष्ट, २१२

 'सत्यकी वाणीमें अभिव्यक्तिकी

   शक्ति, २४४

 'असाम्य शब्द-व्यवहार, २७४अ

 कम और सोचकर, २७५

 (दे 'दूसरे' और 'निर्णय' भी)

बौद्ध-धर्म, ७२, २७५, ३५३

ब्रह्मणस्पति, ८६

 

      भ 

 

भक्त,

 नहीं हू, क्योंकि.., ३४७

 नहीं हू, ज्ञानी नहीं हू, तो मैं क्या

भक्ति

 मुक्तिके द्वारकी कुंजी, ३४५

 -मे परिपूर्णता कब, ३४७

भक्तिमार्ग,

 -का उदय, ६३

भग (देवता), ०,६

भगवत्कृपा, २२, २९, २१०, २२०

 विद्यमान है, वह चाहती है.,

  १६

 प्रत्येक घटनाके पीछे, ५१

 -पर जगत्का भविष्य निर्भर, ५४

 -का हस्तक्षेप, २००, २४३अ -

 को ले आनेवाली चीजों, २४४

 सब कुछके द्वारा लक्ष्यकी ओर ले

 जायगी, ३३३

-मे विश्वासका फल, ३३७;

   रंगमें, ३४०

    (दे० 'मुल' भी)

भगवत्प्रेमी,

 -के लिये संसारकी प्रशंसा और

   निंदा, २९८, ३०५, ३५४-५५

 'भगवान्के सिपाही! तेरे लिये

   यह दुःख, कष्ट ओर लज्जा

   क्यों?, ३०७

 और भगवद्-ज्ञानीका संसार-

 कृतिको देखनेका तरीका, ३७२

 (दे० 'सत्यके पथिक' भी)

भगवान्

 ही भगवानको जान सकते हैं, २१

 अविश्वासीके सामने प्रकट. ., ३७

 हास्यप्रिय हैं, ३७

 -के कार्यकी तुलना कलाकारकी

  कृतिसे, ४०

 -को क्या होना चाहिये, कैसे कहूं,

   ४३

 -को क्या भौतिक मनसे जानना

   संभव है?, ४३-४

 -के साथ तादात्म्यका प्रभाव

   बाह्य भागोंपर भी, ४३अ

  प्रत्येक वस्तुमें, ४६

 'सब कुछ वे स्वयं ही हैं, उनके

 सिवा कोई और चीज है ही

 नहीं, ४७, १ त ०, १०३, १०४,

 २१४ ३८३

 -ने एक मानवीय हाथसे मेरे ऊपर

   आघात किया'', ४८

 निर्दयी उत्पीड़क है'' अर्श, ५१-२

 दयालु प्रेम हैं, 6६२

 

४१४


की इच्छा ही यदि सब कुछ है

   तो व्यक्तिकी इच्छाकी क्या

 उपयोगिता?, ५४

अपने ही साथ आँखमिचौली

  खेलते हैं'' अर्थ, ५७-८

 -से पूर्णताके अभीप्सुकी और

   सामान्य मनुष्यकी मांग, ५८

 मानव अज्ञान और दुःखके आव-

  रणको धारण करना क्यों

  स्वीकार करते हैं?, ६२

 यदि नरक दें, ६५

 जानते हैं मेरे लिये सर्वोत्तम क्या

    है, ६५

 ऊपर उठाते हुए भी हमें नीचे

  रखनेकी चेष्टा क्यों करते हैं?,

  ६६-७

 -के तरीके अनगिनत, ६६-७

 वही करते हैं जो उस व्यक्तिके

   लिये आवश्यक होता है, ६७

 -को समझना, ७१, ३६१, ३७७

 -के व्यक्ति-रूपमें अवतरणका

   रहस्य, ७५

 -से प्रेम, पर मनुष्योंसे नहीं, ८ ३-४,

    ३५७

 -के सत्य मिलन अमरताकी चेतना

   प्रदान करता है, ८५

 -को पीटना, धर्मोंमें, १६

 'असीमका अनुभव कैसे पाय, ९९

   (दे० 'अनंतता' भी)

 'असीमसे बाहर भला कैसे कोई

   निकल सकता है, १००

 -के दो पक्ष : नास्तिक, अस्ति, १०१

 ऐसे प्रश्नोंका उत्तर नहीं देते,

   १०१

 महान् है (अल्लाहो अकबर), १०२

 दुर्बल, असफल, मूर्ख.. कैसे हो

   सकते हैं?, १०२-४

 संबंधी हमारा विचार. १०३

   १०१

 -की लीला' का अर्थ, १०४-५

 वस्तुओंके पीछे तो विद्यमान हैं,

   पर क्या पूर्णतया खेलके अंदर

   नही?, १०४

 -के पास पहुंचनेके रास्ते, १०६

 ठीक वही है जो ३ होना चाहते हैं,

  १०६

 आगे-आगे बढ़ते रहते हैं, १४८

 अनंत संभावना हैं, १५२;

   यह हमारे मस्तिष्कमें नहीं

   घुसता, १५५

 कभी हंसते नहीं, १५२

 -के लिये हां और ना एक साथ

   होते हैं, १५३

 एक प्रहसन खेल रहे हैं, इस

   नाटकके दर्शक और पात्र,

   १५४, १५५-५६

 -को सब कुछ करने दो, १ ५७-

   ५१; इसमें कठिनाई, १५९

 सर्वत्र हैं, १६०, १६१, १६५

 दूर कब होते हैं, १६०-६१

 -का हास्य शिष्ट कानोंके लिये ..,

   १६२

 किसी चीजको गंभीरतापूर्वक

   नहीं लेते, १६२, १६५

 -के साथ हंसना-खेलना, १६३-

   ६५, ३७२

 अपनेको क्रमश: मूर्तिमान करते

   हैं, १६१

 

४१५


सभी संभव खेल खेलते है, १७०

तू प्रकट हो'' की अभीप्सा, १७२

वह सब हैं जो हम बनना चाहते

  हैं, १७९

-के साथ मिलन, कामनाके पूर्ण

  त्याग या कामनाकी पूर्ण

  संतुष्टिसे, १८४

-की दृष्टिमें समीप या दूर, वर्त-

  मान, भूत, भविष्य नहीं,

  १९४

 -को बहुत-से प्रयोग करनेमें मजा

   आता है, १९९

 यदि केवल निर्वाण ही चाहते. .,

    २०४

 -की प्रेरणा ! आदेश के अनुसार

   कार्य करना, २०५, ३३२-३३

 -का न आदि है, न अंत, २२७ '

 'सर्व'के साथ चेतनाके संबंध,

   २३०

 'ब्रह्म ही नही, जीव और वस्तुए

  भी नित्य हैं, २३२ टि०, २४०

-ने आखोंपरसे पर्दा हटा लिया

  है, इसका लक्षण, २४०

 -के कार्यका अधिकांश निषेधके

   द्वारा संपन्न.., २६०

 -को संपूर्णत: जानना, २६३

 -को देखना गंध हीन पुष्यमें, २६३

 (अंतरस्थ), सदा ठीक पथसे लें

   चलते हैं, २६८, २८७

 -का विरोध कि उनकी खोज?,

   २७०

 -को जाननेके लिये मानवीय

  मानदण्डोंका त्याग या..,

    २७०अ

बुरे है' मे तर्क, २७१

 (सबमें स्थित), के लिये जीवन

 धारण करो, २७ रे

मौकेपर मूर्ख.. मनुष्य.., २७४

समन्वयकी ओर.., २७५

-की सचेतन उपस्थिति ही उग्र-

   ताओंको वशमें कर सकती

   है, २११

-के आदेशपर वध.., २९३-९४

-को ही चुनना चाहे संसार विरुद्ध

   हो जाय, २९९

-को लक्ष्यकी ओर जानेके लिये

  चक्कर क्यों काटने पड़ते हैं?,

  ३००

ही जानते है बुद्धिमत्तापूर्वक गलती

  करना और असफल होना, ३१५

-की नजरोंमें कोई चीज तुच्छ

   नहीं, ३२१

-को ही अपने लिये चुनने दो

   राजपद या भिखारीपद, ३२६

  -के पक्षमें सदा रहो,  २७

मुझसे क्या चाहते हैं, कैसे जानें?,

   ३२७

-के साथ शत्रुता, ३३३, ३४९

 -ने मुझे खोजा.., ३४७

एक स्त्री हैं जब मैंने यह जाना..

  ३४७, ३४८

-के साथ जार कर्म, ३४८

से  करनेका अर्थ, ३४९

पश्चिमी धर्मोंद्वारा वर्णित, ३५०

-के प्रेमके स्वादके बाद अन्य प्रेम

   .., ३५ १अ

विषयक हमारे सिद्धांत, ३५३,

  ३८२

 

 ४१६


(प्रेमी), का व्यवहारका ३५४

-के अपने साथ व्यवहारको गुप्त..

  किंतु अब.. निर्लज्ज, ३५४

जिनसे प्रेम करते हैं उनमें आनंद

  मानो.., ३५७

-मे विरोधी वस्तुएं पूरक, ३५८

-की इच्छाके बिना कुछ नहीं

  होता, ३५८

-का आनंद जिसने एक बार चख

   ..., ३५९

-के संभालनेवाले स्पर्शको हम

  अनुभव ही नहीं करते, ३५१

-के विषयमें अपूर्ण धारणाएं उन्हें

  अस्वीकार करनेका हेतु!,

  ३६१

-का शिरा देनेका तरीका, ३६१

-ने जो कुछ नहीं दिया वह अपने

  प्रेम व शानके वश रोक..,

  ३६१

'असीम प्रज्ञाके अस्तित्वमें युक्ति,

  ३६२

-की उपस्थिति हमें आश्चर्य व

 प्रशंसाके लिये बाधित करती

 है, ३६२

-क् साथ प्रेम-संबंध सात प्रकार-

 का, ३६३

सामियोंके, ३६४

-का कृष्ण रूप, ३६४

(जो), हंस नहीं सकता वह इस

 हास्यजनक विश्वका निमर्ता

  ..., ३६४

-ने एक बच्चेको गोदामें ले लिया,

 मां रोने लगी.., ३६५

-के प्रति प्रेम, मनुष्योंके प्रति

 उदारता.. पूर्ण प्रशा, ३६६

-को क्या तू निराकार अनतके

 रूपमें देख सकता, फिर भी

 प्रेमिकाके रूपमें प्यार..,

 ३६८

जब निर्दयीके रूपमें.., ३६१

जानते है कब लप्पड़ लगाना, वक

 पुचकारना, ३७०

शत्रुका चेहरा पहनकर अपने-

 को तबतक छिपाये.., ३७०

-की सेवा, ३७२

-सें परित्यक्त होकर संसारका

 मालिक बनना.., ३७४

-का सेवक होना; और दास

 होना, ३७४

-की सेवा और मनुष्यजातिकी

 सेवा, ३७४-७५

-के साथ कुश्ती लड़ना, ३७५

अपने सेवकसे संतुष्ट, दो कार्योंसे,

 ३७५

के नजदीक जानेके लिये आव-

 शक्य चीज, ३७६

-का आक्रोश.., ३७७

ही स्वामी होने चाहिये, ३७८

 (अंतस्थ), की आज्ञाका पालन,

 ३७९

-की वाणी न सुनना सांसारिक

 दृष्टिसे मानसिक स्वस्थता, ३७९

-को देख, उनके छअवेशोंके पीछे

 भी, ३७९अ

-संबंधी अस्वीकृतिया भी उपयोगी,

३८२

-को देख सकना अत्याचारीमें अत्य-

 चारके समय.., ३८३

 

 ४१७


( दे० 'श्रीकृष्ण' मे तथा 'भगवत्. .'

   व 'भागवत. .'के अंतर्गत भी)

भय, ३४३

 'ज्योति' की ओर बढ़नेमें, १३

 भूल करनेका, २०४

 अपने-आपको खो देनेका, २०६

 और चिंताके बारेमें, ३३५

 जिस वस्तुसे, उसके आनेमें तुम

   सहायता., ३३५

 अवसाद आदिके हमपर आक्रमण

   किस बातका प्रमाण, ३३ ५अ

 भगवान्से, ३४९, ३७५

भविष्यवाणी, १३०

 -मे' भूलों और विकृतियोंका कारण,

    १३१, १३४

 और वैश्व मानसिक दृष्टि, १३३

 पृथ्वीपर सुदूर स्थित वस्तुओंके

  बारेमें, १३३

 'भविष्यवक्तासे अपेक्षित वस्तु :

   पूर्ण सच्चाई, १३४

 करनेसे रोकनेवाला चीज, २४४

'भागवत' ( पुस्तक), ६१

 -के लेखक, ६१

भागवत उपस्थिति,

 सब वस्तुओंमें और सत्ताओंमें, ४८

 -का बोध सर्वत्र पानेके लिये

   आवश्यक चीज, १६०-६१

 -की व्याख्या नहीं की जा सकती,

  १६१

 ( दे० 'जडूतत्व' भी)

भागवत प्रेम ( दिव्य प्रेम, सर्वच्च

 प्रेम, प्रेम तत्व, पूर्ण प्रेम ओ,

 द्रुततम मार्गसे हमें ले जाता है, ५२

 के पृथ्वीपर अवतरणका परिणाम,

 ७५;

 इस अवतरणकी शर्त्त, ७५, २०१

-क् पृथ्वीपर अवतरणका प्रयोजन,

 १२६

-की अभिव्यक्तिका समय आ गया

 है, १२६;

 इसका अर्थ, १२६-२७

 और भौतिक चेतना, १७३-७४

 और अक्षर आनन्द, १८,३

 -की द्विविध क्रीड़ा, ३६८

 (दे० 'प्रेम' भी)

भागवत मुहूर्त्त,

 -का लाभ न उठानेका फल, २०१

भागवत शक्ति! सर्वोच्च शक्ति,

 और स्वतंत्रताके साथ पूर्ण शांति

   और अचंचलता भी, ७९

पूर्ण सामंजस्यकी शक्ति है, नीचे

 आकर जब वह जडूपदार्थपर

 दबाव डालती है.., २४३

हीं सब कुछ करती है, २४४

  (दे० 'अव्यवस्था' भी)

भागवत संकल्प ( सर्वोच्च इच्छा,

  सर्वोच्च संकल्प,

 -की अभिव्यक्ति, व्यक्ति-रूपी

 साधनके द्वारा... इसमें विकृ-

 तिका कारण, १८४

 -के स्पंदन और इच्छाके स्पंदनके

 बीचके अंतरकी कुंजी, १ ८५-

 ८६; यह समस्त नैतिक तत्व-

 को दूर कर देती है, १८६

-मैं इच्छाके मिश्रणपग फल,

  १८८-९०

जब व्यक्तिको चुनता है, २३२

_ -की क्रियाका स्वरूप, २४२;

 

 ४१८


राष्ट्रों व पार्थिव परिस्थितिके

   लिये भी', २४२

 -से सचेतन होनेकी शर्त, २९९

   (दे० 'विश्व' -की भी)

भाग्य, २९९

 प्रत्येकका एक ही, १३

 और अपना कार्य, २५१-५२

 -पर बाकी सब छोडू दो।, ३०३

भारत, २२१

 -का प्राचीन सामाजिक आदर्श,

 पुरोहित, राजा, वैश्य और शूद्र-

 के लिये, २७७

 (प्राचीन), की महानता और आधु-

   निककी, अवनतिका रहस्य, २८०

 -मे सामाजिक जीवनके तीन गड

   थे.., ३२०

 -की आत्माको किन चीजोंसे मुक्त

   होना होगा और क्या करना

   होगा, ३३१

 -का आनंद सेवक'प्रैमीमे, ३४९

भावना ( भावोद्वेग),

 -ओंकी चिल्लाहट और आत्माका

   उत्तर, ३५६

भाषा,

 और शब्द हमारे, ७१, १३, १०५

 १९५,  १९६, १९८, २०१,

 २२७, २२८, २३१, २३४

 (दे० 'अनुभव' भी)

भीतर ( अंतरमें ),

 पैठ जाओ, २२

 निवास करो, २७६;

   इसका फल, २७७

   (दे० 'हृदय' भी)

भूमिका

विरोधी-शक्तियोंकी, १२५-२६

 अपनी, निभाते रहो, समय और

   सफलताकी चिंता न करो, ३०३

 दुःख-कष्ट आदिकी, ३०८

भूल,

 और निराशा, २९

 और भगवत्कृपा, २९, ३९, ७४

 करना अज्ञानतावश, ३८

 करते रहना जान लेनेपर भी, ३८

 -के लिये भगवान्से क्षमा, ४७

 -के बुरे परिणाम नष्ट कब, ४७,

    २८७

 विचारमें, १२१

 -का - जो किसी समय सत्य

   वस्तु थी -- त्याग, १७९-८१

 -के भयसे कार्य छोडू देना, २०४५

   (दे० 'भविष्यवाणी' भी)

भूतकाल, दे 'अतीत' व 'डटे रहो'

भूल जाना,

 कि 'केवल वही हैं', १०४

भोजन

 -के बिना रहनेकी प्रवृत्ति, २०४

भौतिक चेतना, ३० 'भागवत प्रेम' मे

भौतिक सत्ता,

 भारतीय आध्यात्मिक जीवनमें,

 ११२

 (दे० 'अमरता' भी)

म्राति ( भूल-भ्रांति, ४२, ८९,१७२,

  १९४

 -के पीछे चेतन संकल्प, ४३, ४५

 -का विचार ही म्गंति है'', ४४-५

 भी न्यायसंगत है'', १५२-५३,

   १५५, १५६-५७

 है ही नहीं, १५२

 

   ४१९


-के अवसरोंको दबाना, २०४

 -यां, मिथ्यात्व.. '' वे चिल्लाते

   हैं, ३५६

   (दे० 'मिथ्यात्व' भी)

भ्रातृत्व ![ बन्धुभाव], ३२०

 तभी प्रकाशमें आयगा, ३२१

 रक्तका, देशका, धर्मका.., ३६७

 

     म

 

मत,

 (निर्विवाद), सबसे भयंकर क्यों,

    ६७-८

 और सत्य, ८७

  (अपने), का व्यवहार, २४५-४७

  -से बुद्धिमत्ता अच्छी, २४६अ

  (पै० 'सिद्धांत' 'निर्णय', और

    'श्रीमाताजी' भी)

मध्यम मार्ग, २१२

मध्यवर्ती, १८९, ११०

मन,

 -द्वारा सत्य ज्ञानको पानेकी चेष्टा,

    ३-५, ३८१

  -की अक्षमता, ३-५, १२१

 -द्वारा तुम कुछ भी सिद्ध कर

 सकते हो, २७, ३६

 -को नमनीय बनानेका एक साधन,

   ३६

 आकारोंका निर्माता, ३६

  (दे 'विचार' (मानव) भी)

 -के अनेक स्तर व प्रदेश है, ४२

 -का देखनेका तरीका, ६७,१२९,

 २३२

 (दे 'बुद्धि' भी)

-को जीत लेनेका प्रमाण, ७०-१

 -की संकुचितता, ८०

   (दे० 'संकीर्णता' भी)

 -का अनुकूल व्याख्याकार अभ्यास,

   ८३

 -की जटिलताएं और विकृतियां,

   ८८अ, १०, ११, ९२; यही

 जटिलता अनंतगुनी सचेतन

 सिद्धि लायेगी, ९६, १७६

 -के आनेके साथ आनेवाले परि-

   णाम, ८९, १४

 यंत्रकी रचना किस लिये, ८९

 -की अभिव्यक्तिकी पहली अव-

   स्था, ९०

 व्यर्थ अपना सिर फोड़ता है,

  १५८

 -को कार्य करनेकी प्रेरणा पाने-

  क् लिये घर बनानेकी आव-

  श्यकता, २३१;

 यह सब कुछको मिथ्या बना

 देता है, २३१

 -ने जगतोंकी सृष्टि नहीं की,

  २६२

 जाग्रत और अवचेतन, ३३५

 -के शासनका परिणाम, ३३८,३४२

 सदा संदेह करता है, ३६०

 'इस झूठेका विश्वास?, ३६०

 (दिव्य), का प्रयास सत्यकी

   खोजमें, ३८१

  (दिव्य), क्या है 7, ३८१

 (दे० 'बुद्धि' व 'तर्क-बुद्धि' भी)

मनुष्य ( लोग),

 जो ज्योतिके प्यासे है, १५

 -की दुर्बलता सुखके आगे, ५९

 

 ४२०


अब भी दुःख-दर्द और पापसे

 आसक्त है, ६०, २७९

-सें तरंग कोई मी काम करा

  सकती है, ७५

-की ''स्वाभाविक'' अवस्था. क्या

 होगी?, ८८

एक संक्रमणकालीन सत्ता है, ८८,

  ३११

पृथ्वीका ही प्राणी नहीं ८८ टि०

-का विकास चक्राकार गतिसे,

   ८८

'मानव आकारोंका पृथ्वीपर

  प्रथम प्रस्फुटन, १२

अपने प्रति सचेतन कैसे हुआ?,

  ९४

'हम अपने भौतिक जीवनमें केवल

  एक प्रतिबिंब है, १३१

'हमारा उपयोग हो रहा है..,

  १४२

'यदि तुम पिछड़ जाना नहीं

  चाहते.., १४८, १४९

'तुम कुछ नहीं कर सकते..

  इससे सचेत हो, १५९

-मे ही आंतरात्मिक सत्ता, २१३

जब आया तो पशुके पास इसे

  जाननेका कोई साधन न था..

  पर मनुष्योंके पास मी साधन

  नहीं हैं, २११

'ऐसा नहीं है कि हम पहले नही

 थे.. और बादमें नहीं रहेंगे,

 २३२ [ट०, २४०

अपनी इच्छाएं दूसरेपर लादते

 रहते हैं, २३१

प्रकृतिकी सर्वोच्च रचना नहीं,

 २६५

जब देश, जाति या जगतके लिये

  सोचते हैं, २७३

-जीवन और कर्मका शिखर..,

  २८२

किस लिये बना है, २८२, २८८,

  ३७८

  (दे 'जीव' भी)

-का सच्चा गौरव, २८९

-मे' शेखी बधारनेकी आदत, २९०

'मानव प्राणियोंकी एकताके प्रति

   सचेतन होनेका फल, २९२

-की संभावना, ३०१

अपनी सीमित सत्ताको संतुष्ट

  करनेमें.. जब आत्मा अभि-

  व्यक्तिसे वंचित. ., ३३०

  ' ''जो व्यक्ति भगवानका है''

  अर्थ, ३३४

-की वर्तमान अवस्था, ३४४

-के अपने अंदर जो होता है वही

 बाहर देखता.., ३६५

 (दे०' व्यक्ति' और 'मानव.. '

 के अंतर्गत भी)

मनोमय व्यक्तित्व,

 क्या चीज है?, ३१

मरुत् (देवता), ८६

मशीन

 -री सरकार व समाजकी, ३२६ ,

 क्यों आवश्यक है, ३३७

मस्तिष्क, २४१

 -सें समाधान मत ढूंढो, २०२

 -सें हदयकी पहुंच अधिक, २३४

 और हदयका बोध, ३०३

महत्वाकांक्षा, ३६,२५६

 

४२१


मानव चेतना,

 अपने मूलमें, ७७

 ..की असत्यता और भागवत

   चेतनाका आनंद, मे ६५

मानव जाति, २९५

 -को क्रूरतापूर्ण व्यवहारमेंसे गुज

   रान पड़ेगा, २०७

 -को भी साथ ले आओ, २५६-५७

 -क। दास बननेका अर्थ, २१६

 -की मुक्ति, २८०-८३

 -का सर्वाधिक विकास कब, २८२

 'मानव यात्राका परमोच्च लक्ष्य,

   २८२

 'मानव एकताकी ओर, ३२२-२३

 -की सेवा, ३७४-७५

 -की सहायताका सबसे सुनिश्चित

   मार्ग, ३७९

 ( दे० 'जगत्' -का भविष्य,

 और 'दुःख-कष्ट' मानवजाति

 भी)

मानव प्रकृति,

 आलसी, २०७

 विद्रोही, २७०

मानसिक जीवन,

 -के स्वाभाविक परिणाम, ८१

मानसिक रचनाएं, ६५, १३३, २३०

माया,

 -की शक्ति, ३८२; इससे बाहर

   आनेका उपाय, ३८२

मायावादी, ३० 'निंदा'

मित्र ( देवता), ८६

मिथ्यात्व, १५१

  -के मूलमें विद्यमान वस्तु, १२७

  -के स्पंदनका स्थान प्रकाश..,

 

१९६, २०१, २०२

 (दे० 'अशुभ' भी)

आया कैसे?, २१४

 -की समाप्ति कैसे, २१४

 -के विरुद्ध व्यंग्यका शस्त्र. ., ३६४

 है तैयार अथवा भंग होता हुआ

    सत्य, ३ ७९अ

 -के साथ मनका व्यवहार, ३८१

 (दे० 'असत्य' व 'म्गंति' भी)

मुक्ति, ६४

 भय, संदेह व अविश्वाससे, १६

 तर्क बुद्धिसे, १८

 (नियतिसे), का पथ, २२

 'जीवन्मुक्तिका आदर्श, २०३

 'मुक्त व्यक्तिकी शक्ति, ३०६

   (दे० 'स्वतंत्रता' तथा 'अहं' -

 विमुक्त भी)

मुहम्मद,

 -का मिशन आवश्यक था, २६१

मूर्ख,

 ' ''सनातन मूर्ख'', ४९

 -की बातोंमें सत्य, ९९

 -की बातोंसे शिक्षा, १०२, ३१३

 कहना किसीको, २७४

   (दे 'पागल' भी)

मूर्खता

 सत्यका विकृत मुखौटा'', ९९अ

    (दे० 'साहस' भी)

मूत,

 -योंके पीछेकी वास्तविकता, ९६-७

  मूल्यांकन,

हमारे, १५२, २५२, ३१०,

  ३२२, ३२७

  (दे० 'निर्णय' भी)

 

 

४२२


मूसा, १११, २६७

 -के अध्यादेश, २७

मृत्यु, ८६, १०१

 -के बाद शरीर, मन, ३१

 -का कारण, ३२

 -को भयानक मनुष्यने बना लिया

  है, १५४

 और जीवन, १७२, १७३, १७४

 क्या है? वैज्ञानिकसे पूछो, २१६

 विशालतम अमरत्वकी ओर..,

   २५४

 और असफलता अशुभ?, २७१

 बिना आत्माको पाये, २८९

 -के बारेमें, ३०८,३३ ३-३४, ३६५

 -के आस-पास इतना शोक क्यों?,

  ३०८,

मोलिऐर (सुखांत नाटककार), १६२

मैकबेथ, २५१

 

      य 

 

यंत्र ?r उपकरण,

 -की पूर्णता, बहुत सहायक, ३४

  हू, स्वामीके हाथमें, ३४७

   (पूर्ण), बननेकी शर्त, ३७७

यंत्रणा, ३० 'दुःख-कष्ट'

यज्ञ,

 -को सीमित न करो, ३३१

यहूदी

 -का भगवानके प्रति भाव, ३४९

युद्ध,

 करना होगा, १४

 बार-बार करना होगा, १६

 क्या आवश्यक है?, ५२-३, २० क

 -की आवश्यकता क्या अब भी

   पड़ेगी?, ५३-४

 कर, हाय, वाणी, र्माएतष्कसे, ३०५

यूनान, ६३

   'यूनानी और शेक्सपीयर, २५८अ

यूरोप

 वैज्ञानिक संगठनके लिये गर्व करता

    .. उसका नाश, १४६-४७

 -मे समाजवाद, ३१९, ३२५

 -की प्रगतिका चित्रण, ३२५

 -मे जनतंत्र, ३२५

 -की सभ्यता, ३३७

  (दे० 'पश्चिम' भी)

योग, ९९, २७१

(दे० 'धर्म', 'सामाजिक नियम' भी)

योग्यता, ३० 'क्षमता'

योजना,

 -एं बनानेका कार्य, ३१७

योद्धा,

 बनना होगा, १४, ३०५

रात्रि (देवी), ८६

राधा, ३५७ टि०

राबले (प व्यंग्य लेखक), १६२

राम,

 नहीं हो सकता तो रावण होऊंगा,

   २९२

 -द्वारा बालिका वध, ३२४

रावण, ३७३

 -का मन विश्व-आधिपप्यके लिये

 लालायित, पर अंतरात्मा..,

 ३७४

राष्ट्र,

 - ओंकी ग्रहणशीलतापर युद्धका टलना

   संभव, ५३

 

 ४२३


- ओंकी पराधीनताका कारण, २६६

 जो विदेशी जूए तले. ., ३१५

 'स्वतंत्र राष्ट्रीयता.., ३२२

 -की उत्पत्ति, ३२२

 - ओंकी एकताकी ओर, ३२२-२३

रुद्र (देवता), ८६

रूप, ३० 'बाह्य रूप'

रूपांतर

 -की चाभी, २२

 -की सीधी शक्ति, ७३-४

 (भौतिक), की कठिनाई, ११३-

  १८, १५१

 अपना अपेक्षित, विरोधी शक्तियों-

 का नाश चाहनेके स्थानपर,

  १२५

 जगत्का, ३० 'जगत्'

 (आतरिक) ,का प्रभाव निम्न स्तरों-

    पर सदा ही, १५०

 -की रंगीन कल्पना, १५०

 अंगोंका, १५१;

   इसमें तीन सौ वर्ष, १५१

 शरीरमें लक्षित होना, २००

   (दे० 'शरीर' भी)

नहीं, सच्चे स्पंदनका प्रतिस्थापन,

   २०१

 व्यक्तिके उसके प्रति सचेतन हुए

  बिना एक विशेष बिंदुतक ही

  हो सकता है, २११

 साधित करनेवाला अवतार, २७०

 -के कार्यमें सही मनोवृत्ति, ३१६

 'रूपांतरित होना जो चीजों' अस्वी-

   कार करती हों.., ३६७

    (दे 'अहं' व 'विनाश' भी)

रोग ( व्याधि, बीमारी, २११

दूर होना, हस्तक्षेपसे, २००

 स्वस्थताके नवीन आनंद.., २५३

 -सें चालीस वर्षोंतक पीड़ित.,

   ३३६-३७

 -को ठीक करना अच्छा है, किंतु

   बीमार न पड़ना.., ३३१

 अनावश्यक रूपसे लंबा क्यों. .,

   ३३१

 - ओंकी रोक-थाम, ३४१

 भगवानको सौंप सको तो.., ३४२

 बढ़ रहे है, ३४२

 -ओंसे मनुष्यके उद्धारका उपाय,

    ३४२

 ( दे० 'औषधि' भी)

रोना-धोना ( विलखन।, शिकायत

 करना],

 कमजोरियोंकी लिये, ३८, ६७

 दुर्भाग्यपर, ४९, २७२

 जगत्की अवस्थाके लिये, १७६अ

 बीमार होनेपर, २११

 अप्राप्त वस्तुओंके बारेमें, ३६१

 (दे० 'अहं'-को अदृश्य भी)

 

         ल

 

लक्ष्य,

 -को सामने रखना, २१

 अंतिम, सृष्टिका, ४८

 -के निकट होनेका चिह्न, ५१

 (समग्र), को कैसे बेलें, १२७,१२८

 (दे० 'समग्रदृष्टि' भी)

 -पर सीधे या चक्कर काटकर, २६८

 महान्, साधन छोटे; तो भी कार्य

    करते रहो, ३०३

 

 ४२४


दूर है, शीध्ग्तासे डग बढ़ाओ, ३१६

-पर दृढ रहो, वही साधन.. ., ३१७

 स्वयं ब्रह्म है, वह साधित.., ३१७

 अंतिम, प्रत्येकका, ३७६

लज्जा, १६२

लियर, २५८,२५९

लीला, १०४-५

लोकतंत्र,

 -से समाजवाद और फिर अराजक-

  ताकि ओर, ३२५

 -का लाभ और बुराई, ३२ भर

 

      ब

 

वक्रता, १७५

वध करना, ३२४

 क्रोध या स्वार्थवश या भगवानके

   आदेशपर, २९३-९४

 इसे कभी क्रूरता, कभी सामरिक

  आवश्यकता कहना, ३१०

वरुण (देवता), ८६

वर्तमान

 -का क्षण ही महत्त्वपूर्ण क्षण है, २११

वर्तमान युग,

 -के लिये भागवत प्रेमकी सर्वाधिक

   आवश्यकता, ३७१

वाणी, ३० 'बोलना'

वातावरण,

 -मे अब अंतर, नयी वस्तुसे, २१७

विकास ! [क्रमविकास],

 (वैयक्तिक), के लिये सहायक

  वस्तुका प्रश्न, ५७

 -की क्रिया उत्तरोत्तर बढ्ती है, १६१

 -का अंतर्हित हेतु, १७२

अभिव्यक्तिका मूल सिद्धांत, २३३-

   ३४

 अभी समाप्त नहीं हुआ, २६५

 (दें० 'प्रगति' व 'विकृति' मी)

विकृति,

   ' ''विकृत माध्यम'', ३ -४

 विकास-क्रममें, ८८

 आयी कहांसे? : समस्या, १०७

 अवश्य समाप्त होनी चाहिये, १०९

 -के स्पंदनका परिणाम, १९६

 बुरी और अच्छी! र २२ ६अ

 (दे० 'भविष्यवाणी', 'मन' -की

    जटिलता भी)

विचार

 -का गला बहु-शब्द-प्रयोगके नीचे

  मत घोंट दो, ४२-३

 (मानव), सर्जनकारी है, ६५

   (दे० 'मन' आकारों भी)

 (वे ही), सत्य हैं., ६७

 -का तीर एक बिंदुपर लगता है,

   'समग्र' सत्यपर नहीं, १२७-२१

 -की अक्षमता, १२८

 - ओमें सामंजस्य ढूंढ, २४५

  - ओंका आदान-प्रदान, स्वतंत्र, ३१३

  'नापसंद सम्मतिमें भी सत्य ढ्ढा,

  ३१३

 -के लिये अंतिम सत्य वस्तु, ३५३

  'किन मानसिक धारणाओंसे पृथक्

   रहना, ३६२

विज्ञान (जड़, भौतिक), १७६,३७३

 -की शक्ति, २१, २१६,२१९-२०

 -का अभौतिक वस्तुओंके विषयमें

   अपना फतवा देना, ३०

 अपने रास्ते सत्य-ज्ञानतक पहुंच

 

४२५


जायगा' की भावना, १४१

-के चमत्कारोंपर क्या आपको

  हंसी आती है?, २१ ५- १६

-का अपरिमित आश्वासन, २१५

और भविष्य दृष्टि, २१ ६- १७

और आध्यात्मिक अनुभव, २२०

   (दे० 'शान' वैज्ञानिक भी)

बकवास.. और प्रज्ञा. ., २२२

  ( दे 'वैज्ञानिक' भी)

विधान

 प्रकृतिका, बदला जा सकता है,

 २५०; इसके लिये आवश्यक

  चीज, २५०

 स्वेच्छाकृत, का पालन, २६६

 पाप-पुण्यका, २६७

 कौन-सा मुक्तिदाता होता है, २७०

   (दे० 'नियम' भी)

विधि-विधान ( विधि,

 - ओंको तोड़ना, १८, २६५;

 क्या अच्छा है जैसा कि नयी

 पीढ़ी कर रही है?, २६८

 (किसी), के प्रति आसक्ति बच-

 कानापन, २३१

   (दे 'नियम' भी)

विनम्ग्ता ( विनय, १२,३०, ३५९

विनाश,

  किसे कह सकते है, १००, १०१

 -की तब आवश्यकता नहीं रहेगी,

   २२८, २३०

 -का स्थान रूपांतर.., २२८

 और अव्यवस्थाका उत्पत्ति-कारण,

   २४३

 भव्य कब, २८९

 करनेमें सम्यक् वृत्ति, ३६७

(दे० 'शत्रु' -पर आघात भी)

करनेसे पहले निसंदिग्ध.., ३६७

 ( दे० 'विश्व' भी)

वियतनाम,

 -मे अमरीकियोंकी उपस्थिति,

  २४२ [ट०

विरोध

 आंतरिक, क्यों दिया जाता है, ६७

 प्रगतिके लिये उत्तेजक तत्व,

   १७३-७४

( दे० 'चीज' '' (विरोधी) भी)

'विरोधी पक्षोंके मिलने सच्ची

  बुद्धिमत्ता और सामर्थ्य', ३१७

वस्तुओंमें, की समाप्ति कैसे, ३५८

  (दे० 'प्रतिरोध' भी)

विरोधी शक्ति,

 -का शस्त्र : निराशा, ५३

 -यां बदल जायंगी या नष्ट हों

   जायंगी' अर्थ क्या?, १००

 -योंके भूमिका, १२५-१२३

 -यां क्या सदा नहीं बनी रहेगी?,

  १२६

   (दे० 'रूपांतर' भी)

विवाद,

 -का उपयोग, ८६-७

 -मे जीत, ज्ञान-बिस्तारका अवसर

   खोना है, ८७

विवाह ( ब्याह ), ११३

विवेकानन्द, २०३,२९५

 शिवकी विभूति, २१३

 -.ने यह कहा था.., २६३

 क्या थे?, २६३

 साकार भगवानके बारेमें, २७०

विश्व, १६९

 

 ४२६


अबका और पूर्वजोंका, मे ३३७

 भागवत, को सहना कठिन, ३६३

वैराग्य

 -की रुचि या भगवत्सेवा!,

३१४ व्यक्ति

 -का सच्चा 'स्व', ३२

 -से अतिमानसिक कार्यका आरंभ,

  ११०

 अकेला, ३० 'अवतार' (अकेला)

 जगत् और विश्व, २२७

 -का बाह्य यंत्रवत् जीवनमें महसूस

  करना कि 'कोई विशाल वस्तु'

  उसे चाहती है, २३१-३२

 कबतक पूर्ण नहीं, ३२१

 -गत सत्तासे अंध चिपक, ३८२

  (दे० 'मनुष्य' व 'अंतर्दर्शन' भी)

व्यक्तीकरण,

 -का आरंभ, ८९

 और फिर विपरीत ?क्रया, ११७

व्यक्तिवाद,

  क्या है, ३११

.  का उपचार, ३११

व्यवस्था,

 (सभी), क्षण-स्थायी और अपूर्ण,

  १४१

 

     श

 

शंकर शंकराचार्य,

 -पर भगवान् तीन बार हंस

  ३१४अ

शक्ति

 -यां (ऊपरसे आनेवाली, सभी),

  संबद्ध ही होती हैं, ३

 और दुर्बलता, १०३, ३८०

और संतुलन, २०२

 -की आवश्यकता, प्रेमको धारण

  करनेके लिये, २०१

 (अपनी) दिखाओ'', यदि तुम्हारे

  पास दिव्य चेतना है, २२४

-की विराट धारा, २४१

और क्रोध, २८९

 (दे० 'भागवत शक्ति' व

 'विश्व-शक्ति' भी)

शब्द, ३० 'भाषा'

शत्रु,

 -पर आघात, पर उसमें स्थित

 भगवान्से प्यार, २१ १अ

   (दे० 'विनाश' करनेमें भी)

 नहीई, अखाड़ेके पहलवान, २९२,

  ३६७

 -की शक्ति आक लो।, ३१३

 (दे० 'भगवान्' भी)

शरीर,

 प्रभुसे कहता है. ., १२

' 'एक यंत्र और छाया'' है, ३१,

  ३२-३, ३५

 मृत्युके बाद, ३१

 -की अमरता, ३२, ८५, ३३४

  (दे० 'रूपांतर' भी)

-साधना और चैत्य-विकास, ३३-५

-साधना और अतिमानसिक

   जीवन, ३५

-मे' अतिमानसिक चेतना..

  ११ ३- १८

-का निर्माण गुह्य प्रक्रियाद्वारा,

 ११८- ११

 -की वेदनाओंको दूर करनेका

 साधन, १६४

 

 ४२८


 को ठोस समझनेका अभ्यास,

  १६४

 -की आवश्यकता : सरलता, १७५

 -का दर्द आनंदमें : चार अवस्थाएं,

   १७७-७९

 -के कोषाणु भी जल्दी मचाते हैं,

  २११

 -के कोषाणुओंमें भी 'शक्ति' का

   कार्य, २४५

 -के कोषाणुओंमें प्रतिरोधकी

   समाप्ति मुख्य कार्य, २४५

 -का अतिक्रम करनेवाली प्रकृति'',

   २५१

 -का भी रूपांतर अपेक्षित, २५५

   (दे० 'श्रीमाताजी' भी)

शल्य-चिकित्सा, १७६

शांति,

 कभी धोखा न देनेवाली, ७९

 -का आधार आवश्यक, २०२

 ( दे० 'अचंचलता', 'आनंद',

  'सुख' व 'सामंजस्य' भी)

शारीरिक व्यायाम,

 करनेका अर्थ, ३३-५

शासन

 (पूर्ण), ३११

' 'साधूना साम्गज्यम्'', ३११

 प्रभुका, ३२१, ३२१;

   पूर्णताके लिये आवश्यक, ३२१

 -प्रागाली कौन-सी अच्छी, कौन-

  सी बुरी, निश्चय करना

  कठिन, ३ २'१

 'सत्यके साम्राज्यका दिन, ३२५

 ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रका.

   ३२९

 अतिमानसिक चेतनाका, ३३०

 (भगवानका), कबतक स्थापित

   नहीं हो सकता, ३३८

   (दे० 'सरकार' भी)

शास्त्र ( धर्मग्रन्थ, २६७

 -के वचन और अपना अनुभव,

  १९०

 -के वचनोंकी प्रामाणिकता, १९१,

  १९४, ३३१

ब्राह्मणोंके, २७०

 -का अनुसरण कब, ३३२

 - ओंको समझनेका ढंग, ३७४

शिक्षा

 'समझ-शक्ति बढ़नेका तरीका, १ 

  -मे दो प्रवृत्तिया साथ-साथ चाहिये : '

   परमाश्चर्यमय' के लिये प्यास

   और यथार्थ निरीक्षण, १७०-७१ ' '

 बौद्धिक शिक्षण' की सहायता,

  २६४

 प्रतिक्षण, प्रत्येक वस्तुसे, ३१३ -

 का भगवानका तरीका, ३६१

 (दे० 'पाठ' व 'मूर्ख' भी)

शिव,

 पृथ्वीपर कब जन्म लेंगे, २१३

शुंभ,

 -का कालीद्वारा मारा जाना, ३७६

शुद्धि ? सफाई, शोधन,

 -का भार भगवान्पर या अपनेपर,

   १५८,२९७

शुभ, ५०, १२७

शुभ और अशुभ ( दिव्य और अदिव्य,

 भला और बुरा, ८९,१४

  -का विचार, १०४, १११, १२४,

   १८६, २७६, ३२४, ३५५अ

 

४२९


(दे० 'नैतिक धारणा' भी)

 तुम किसे समझो, २९७

   (दे० 'अशुभ' भी)

शेक्सपियर,

 -मे सार्वभौम कलाकार, २५८-५१

शैतान

 -सें कष्ट या घृणा कबतक, ३५८

श्रद्धा,

 और विश्वासकी शक्ति, २४४

   (३० 'विश्वास' भी)

श्रीअरविन्द,

 -के 'विचार और सूत्र' :

   इनका रूप ऐसा क्यों, ५-६,

   १०अ, १७, ७१;

  इनके विरोधाभास) होनेका

  कारण, ५, १७, ७१, १५३;

  इन्हें समझना, २१, ३७;

  इनका लेखन, १०१, १०४,

  १४६,१५३, १५७,३४८ टि०

 -की रचनाओंसे लाभ उठानेका

  तरीका, ६, १

 -की जगत्-विषयक दृष्टि, ४५,

  १०१

 ईसाके बारेमें, ६२

 -का इतिहासका अध्ययन, ६२

 गीताके बारेमें, ६४

 -की गीताकी व्याख्या, ६४

 -का बंदीगृहका अनुभव,

 ६१ सच्ची स्वतंत्रताके नायक, ७०

 सर्वोच्च प्रेमके एकदम पृथ्वीपर न

   आ जानेके बारेमें, ७५

 इस 'अभिव्यक्ति'के बारेमें, ९३,

   १०१

 स्वर्गसे पतनके बारेमें, ९३, ३७७

 

सर्पकी कहानीके बारेमें, ९४

 -की शिक्षा क्या नया धर्म है?,

   ९७-८

 समस्याके सब पक्षोंका उपस्थित

  करते.., ९७

 जिस वस्तुके प्रतीक है, ९७

 -को भी ईसाई शिक्षाके विरुद्ध

   युद्ध लड़ना पड़ा था, १०४

 -के वाक्य लंबे; कारण, १०५

 -को क्रूरतासे घृणा, १० 'उ

 बुरी वस्तुओंके बारेमें, १०१

 गुह्य ढंगसे शरीर-निर्माणके बारेमें,

   ११८

 चमत्कारके बारेमें, १६६

 -ने ''मनमें कई चमत्कार'' किये :

  व्याख्या, १६७

 -को अतिमानसिक शक्तिपर पूरा

  अधिकार था, १६७

 -का लोगोंकी बीमारों दूर करना,

   १६७

 चाहते थे, मुझे यदि सौ व्यक्ति भी

  मिल जायं.., २०८

 युद्धकी आवश्यकताके बारेमें,

   २०१

 प्रभु हैं, प्रभुका एक भाग.., २१४

 चाहते हैं, व्यक्ति नीरवताकी

 शक्तिको  नीचे उतारने, २२३

 -की भावाभिव्यक्तिको, २३४

 -मे विनोद वृत्ति, २५३

 अंतिम अवतार!, २६३

 -का अनुसरण और अन्य देवी-

 देवताओंको मानना, २६४

 -ने जबसे सूक्ष्म-भौतिक जगत्में

 कार्य करना.., ३२३

 

 

 ४३०


-मे परिहास-प्रतिभा, ३४७

 ' ''कोली'' नामसे हस्ताक्षर,

  ३४८ टी०

के कहनेका ढंग निराला, ३५२

-मै प्रतिभा, असाधारण अनुभूत-

    गतियोंको साधारण रूपमें

    अभिव्यक्त करनेकी, ३५४

 एक वाक्यसे ही क्या कुछ कर देते

  हैं, ३६४

 -ने चित्रोंका उपयोग केवल सम-

 झानेके लिये. ., ३६८

 -का प्रयास पाठकोंको नैतिकतासे

  मुक्त करनेका, ३७५

 (दे० 'काली' व 'श्रीमाताजी' भी)

श्रीकृष्ण ? कृष्ण !,३५३

 -के साथ खेलने''का अर्थ, ५१-२

 -को देखने "का अर्थ, ५१-२

 किस कारण वृन्दावनमें वास नहीं

   करते, ६०

 कमी हुए ही नहीं. ., ६०- १

 -अर्जुन-सवादका परिणाम, ६३

 कवियोंको सृष्टि हैं, ६४

 -को जानना, २६३

 -सें अधिकृत ही कालीको सह

   सकता है, २११

 (अकेला), एक ओर, और सेना

  दूसरी ओर, तो भी उनको ही

   चुनो.., २९९

 -द्वारा कंसका वध, ३२४

 -से अधिक प्रेम या कालीसे, ३५२

 -के साथ प्यार और नाराजगीकी

   लीला, ३५४,

 यदि चंद्रावलीसे प्रेम. ., ३५७

 -की मधुर मूर्तिके दर्शन, उनके

संहार-रूप-दर्शनके बाद, ३७०

-को पाना काली-उपासनाके बिना

   कैसे!, ३८३

श्रीमाताजी

मै तुम्हारे लिये जो चाहती हू, १६

 -का नाम लेकर वे एक और मूर्खता-

 को जोड़ देते है, ८०

 -को पार्थिव स्वर्गकी स्मृति, ९०-२

 पहली बार वैयक्तिक पार्थिव

   आकारमें, ९२

 -का संदेश, श्री अरविन्दके बारेमें

   ९७ टि०, २१४

 'हंसी करते संकोच, १०२

 -पर ईसाई शिक्षाका प्रभाव, १०३

 -को 'वस्तुएं अपने स्थानपर नहीं'

  का ज्ञान छुटपनमें, १०८

 -के सामने समस्या, भौतिक रूपा-

   तरकी, ११४, ११७

 -की सामान्य अवस्था, ११७

 मैंने एक प्राणिक सत्ताको शरीर

   प्रदान किया था, ११८

 -की, ३ फरवरी, १९५८ की,

  (अतिमानसिक नौकाकी) अनु-

  भूति, ११९-२४

 -का अतिमानसिक जगतके साथ

   संपर्क, १११

 -की उपस्थिति अतिमानसिक जगत्में,

   ११९, १२३

 -का रूप अतिमानसिक जगत्में,

   १२२

 -की पूर्वबोधकी शक्ति, १३६-३८

 'फांसमें, पर्वतीय प्रदेशमें. .,

   चट्टानके दूसरी ओर सांप,

   १३६-३७


४३१


'यही, अरियन कुप्पम्में, मै सांप-

   पर पैर. ., १३७

 पेरिसमें चौराहा पार करते हुए

   ट्रामका दूरसे धक्का. .,

   १३७-३८

 -का शिक्षक : 'तुम इंद्रियोंसे काम

  नहीं लेती', १३८

 'बीमारीसे महीनों बिस्तरमें..

   देखना चाहती थी, शिल्प-

   शालामें क्या हो रहा है, १३१

 -क् सामने समस्या, तीसरे बिंदु-

 को खोज निकालनेकी, १४१-

 ४३

 -की, १३ अप्रैल १९६२ की अनु-

   भूतिके बाद, उनकी दृष्टिमें

   परिवर्तन, १४१, १४४-४५

 'मै भगवानको सर्वत्र, सब समय

   अनुभव करती हू, १६०

 'मुझे त्यागका अधिक अनुभव नहीं

  .. मैं जानती थीं.. भूलका

  त्याग, १७९-८१

 -की आनंदकी स्थिति और लोगों-

   के बीच कार्यरत रहते हुए

   की स्थिति, १८२

 -की शरीरकी अनुभूतियोंका

    निष्कर्ष, १८८

 शास्त्रकी प्रामाणिकताके बारे-

    मे, १११

 -की अनुभूतियोंकी भाषा, १९२

 -का अपनी अनुभूतिको शब्दोंका

   रूप देना, १९३

 -की २१ फरवरीकी अनुभूतिको

   सूत्रबद्ध करनेकी चेष्टा, ११५

 'मुझे पृथक् 'मै'' का कोई वेदन

  नहीं, १११

 -का शरीर, २००अ

 'शरीरको ज्वर-जैसा लगता, जब

   कार्य बड़ा एकाग्र और घानी-

 भूत होता, २०२

 -का आश्रम बनानेके पीछेका

   विचार, २०७

 'अभी कल ही, शक्तिकी अभि-

  व्यक्ति.. धैर्य. ., २१०

 'मेरे लिये सब चीजों किन्हीं नियमों-

   के अनुसार चलती है, २१८

 'मै भविादुयवणिा कर सकती हू,

   २१८

 -की बहुत पहलेकी अनुभूति :

  ज्ञानका तत्काल ही प्रचार

  करने और शांत बने रहनेके

  बीच भेदकी, २२२

 -की शरीरमें अनुभूति : ''मै एक

 निष्प्राण व्यक्ति है. .'',

    २३५-३७;

   चेतनाकी दृष्टिसे यह एक

   भारी प्राप्ति है, २३७-३८

 -का देखने और सुननेका तरीका,

   २३५-३६;

   यहां व्यक्तिगत कुछ नहीं,

   २३६ :

   खानेकी क्रिया, २३६

 -के शरीरका पूर्ण आत्मदान,

   २३७-३८

 -सें मानव संकल्प यदि कुछ अपेक्षा

   करे.., २३१

 'शरीरमें निश्चयता : यदि वह

 सर्वोच्च सत्ताके साथ संपर्क

   खो दे तो.., २४०

 

४३२


'शरीरका प्रश्न : मैं 'तुम्हारी

  शक्ति' अपने अंदर क्यों नहीं

  अनुभव करता, २४०

 -का अनुभव; अदम्य शक्तिका,

   २४१

 'मैंनें अंतर्दर्शनमें दिव्य सृष्टिका

  निर्माण होते देखा, २४१

 'एक चित्र देखा : मत कैसे बनाये

   जाते है, २४८-४९

 -का पश्चिमी धर्मोंद्वारा वर्णित

   भगवानके प्रति मनोभाव, ३५०

 '२५ वर्षाकी आयुमे मैंने आंतरिक

   भगवानकी खोज कर ली, ३५०

 'कायाके रूपांतरमें जो पाठ प्रभु

  सिखाना चाहते है, ३६९

 'शरीरके रूपांतरके संबंधमें दो

   अंतर्दर्शन, ३७३

श्रीरामकृष्ण, ३८२

 विवेकानन्दसे : 'तुम भगवानको

   उसी भांति देख सकते. ., २१५

 -ने यह कहा था.., २६३

 क्या. थे?, २६३

श्रेष्ठता ? बड़प्पन,

  -की भावना, १८, १९, ३०, ६१

    ८०, १२४

 

       स

 

संकल्प ? इच्छा-शक्ति, ७८

  वैयक्तिक, का अर्थ, ५४

  व्यक्तिगत, और विवेककी आवश्य-

    कता क्या समर्पणके बाद भी?,

     २९७-९८

  (दे० 'प्रयास', 'भागवत संकल्प' भी)

संकीर्णता !r संकुचितता, ३६३

  हीं घटनाओंको दुःखान्त बनाती

   है, ५०, २१०

 मनकी, ८०

 -को निकाल फेंक, १९४

 'जब तुम अपने-आपको घटाते ही

   चले जाते हो, २०६

   (दे 'अज्ञान', 'विस्तार' व

   'दृष्टिकोण' संकुचित भी)

संघर्ष

 कठोर, प्रकृतिके पहरेदारोंसे, १३

 'निरंतर उत्तेजनाकी स्थिति, २५

 'आतरिक तनाव, २११

 (यह), शरीरमें या शरीरके बिना

   भी चलता रहेगा, ३०५

    (दे० 'झगड़े' भी)

संतुलन

 इस सृष्टिका मूल धर्म, १०८,१०१

 'संतुलित मार्ग, २१२

 (दे 'शक्ति' भी)

संदेह ( संशय,

 उच्चतर सपंदाओंके प्रति, १३, १४

 करना, बड़प्पनके भावमें, ३०अ

 विश्वासीको जितना सताता..

   ३०१

 और विश्वास, ३६०

संन्यास

 नहीं, आंतरिक त्याग, २७०

संन्यासी,

 और जीवनमुक्त, २०३

 (पर्वत-चोटीपर बैठे), की शक्ति,

   ३०५-६

 -के वेशको सम्मान दो, किंतु..

   ३२६

 

४३३


संप्रदाय (धार्मिक),

 - ओंकी असहिष्णुताका कारण, २३-४

 ओंकी तुलना विभिन्न पात्रोंसे, ८५

 - का मूल्य और उपयोग, ८५

   (दे० 'धर्म' भी)

संभव, १७०

   सब कुछ है, ३७, १५५

    (दे० 'असंभव' भी)

संयम, दे० 'साधना'

संयोग, ४०, ४२,३०३

 और म्रातिके पीछे चेतन संकल्प,

   ४३, ४५

 जैसी कोई वस्तु नहीं, ४४,२७१अ

  सच्चाई ( सत्यनिष्ठा,

 और अनुभव, ३७, ४२, १९२

 -का अभाव है, ५१

 और भविष्यवक्ता, १३४

 -से चाहना कि भगवान् सब कुछ

   कर दें, १५१

 और विशुद्धता, २१२

 समर्पणमें, २९८

 आदेश जाननेके लिये, ३३२

सजातीय,

 ही सजातियोको जान सकता है,

   २१-३०

सज्जनता ( साधुता,

  आत्माका सूक्ष्म आकाश, २९४

  -का अर्थ, २९५,३२७

सत्ता,

 -एं प्रकाशके वस्त्रोंमें, २४८

सत्य,

 एक पूर्णाग वस्तु है, ५

 उच्चतर, विरोधाभासपूर्ण, १०

 उच्चतम, इस समयका, ११

-की प्राप्तिकी शर्त, २२

 हमारे ही पास है.., २३

 -को पाना बुद्धिद्वारा या अनुभव-

  द्वारा, ३५-८

 और तर्कबुद्धि, ३७

 -को मिथ्यात्वमें बदल देनेकी तर्क-

   बुद्धिकी शक्ति, ४०

 निरपेक्ष, मानसिक स्तरपर, ६७-८

 और तर्क-शास्त्र, ६८-९

 (सर्वोच्च), का स्वरूप, ७१

 (अपने), को दूसरोंको समझाने-

  का तरीका, ८७

 समग्र, का लक्ष्यवेध, १२७-२१

 (दे० 'समग्रदृष्टि' भी)

 पा लेनेसे संतुष्ट व्यक्ति, १२७अ

 (अपनी सत्ताके), को जीना ही

   समग्र शानका रास्ता, १४३

 चुप-चाप नहीं बैठता, १५२

 ही एकमात्र उपाय है जगत्को

   बदलनेका, १९६

 -की अभिव्यक्ति कवि और कला-

   कारका कार्य, २५७-५९

 कौन-सी वस्तु : जडूतत्व या कि

   चेतना?, २६१

 - ओंको जान लेने दो, जिन्हें अवतार-

  ने वाणीबद्ध नही किया, २६३

 ही सच्चा पथ-प्रदर्शक, २८७,३२६

 एक कठिन और आयासपूर्ण विजय

   है, ३०५

 विरोधी वस्तुओंसे ऊपर समग्र

   एकत्वमें, ३२८

 (अपूर्ण), का अध्ययन कर, ताकि

   विशालतर ज्ञानतक जा सके,

    ३६१

 

 ४३४


भागवत, पाप-पुण्यसे ऊपर, ३६६

 उच्चतम, विशालतम, गभीरतम

     अधिकृत कब, ३६८

 (विशुद्ध) की खोज.., ३८१

 (बहुत-से गंभीर) । उन अस्त्रोंके

  समान..., ३८१

  (दे० 'ज्ञान', 'विचार' व 'प्रमाण'

  भी)

सत्यके पथिक,

 -का मार्ग, २८७

 -की वृत्ति सीखनेके बारेमें, ३१३;

  जीवित रहने या न रहनेके

  बारेमें, ३३३, ३३४

 (दे० 'भगवत्प्रेमी' और 'कार्य'

 हमारे करने भी)

सत्यचेतना दिव्य चेतना,

 -मे वस्तुओंका रूप, ४६, ७७,७९,

 १०९, २७६

 -मे सत्य और मिथ्यात्व एक ही

    समय और साथ-साथ, १९६,

    १९८, २०१

 -का हस्तक्षेप, १९९

 -मे भगवानके प्रत्यक्ष दर्शन, २१५

 -मे भौतिक जगत्का बोध स्पष्ट

   और यथार्थ रहता है या. .,

   २३२-३३, २३४, २३८

    (दे० 'एकत्व'-की चेतना भी)

 -के साथ संपर्क और सुस्वास्थ्य, ३३७

    (दे० 'शक्ति' (अपनी) भी)

सनातनता ( सनातनत्व, शाश्वतता,

 -की भावनामें जीओ, २११

 -की भावनामें एक विश्वके लयका

  महत्व नहीं, २२८-२९

आत्मासे संबंधित, २७४

 ' ''शाश्वती: समा:'', २७४

सफलता,

 किस चीजपर निर्भर, ५६-७

 -मे स्थिर रहनेके लिये आवश्यक

   चीज, ५९

 या कि अपनी भूमिका, ३०३

-के पीछे दौड-धूप, ३१५, ३२१

    (दे 'असफलता' भी)

सत्य, ३३७

सभ्यता (यूरोपीय), ३३७

समग्र वृष्टि ( समग्र ज्ञान, समग्र सत्य),

 -का फल एवं उसकी प्राप्तिकी.

 शर्त्त, ७८, १२८-२९, १४३,

 १५६, २७२

समझना,

 पद-परंपराको, ११

 सूत्रोंको, २१, ३७

 आंतरिक जीवनको, ३०, ३ ९अ,

   २१२

 घटनाओंको, ४९,५१

 वस्तुओंको, ४९,७८,२७६,३००

 भगवानको, ७१, ३६१, ३७७

 चमत्कारको, १६६, १६८, २११

 आंतरिक तथ्योंकी, २१९,२२०

 भगवानकी क्रिया व प्रयोजनको,

  २५३, २७६, २९१

 जगत्को, २७१, २७६

 शास्त्रोंको, ३७४

समझ-शक्ति, दे० 'शिक्षा'

समता

 -की वृत्ति, ५९

 पूर्ण और स्थायी, ११२ टि०

 (पूर्ण), अनिवार्य, अतिमानसिक

 

 ४


 स्पंदनके लिये, ११३, ११५

 अतिमानसिक, ११६

समर्पण

 ज्ञान पानेके लिये, १२

 काली छायाका, १२५-२७

 -के रास्तेमें सबसे बड़ी बाधा, १२७

 'भगवान्को सब कुछ करने दो,

   १५७-५९

 (पूर्ण), द्वारा कोषाणुओंमें प्रति-

   रोधकी समाप्ति, २४५

 प्रकृति-परिवर्तनके लिये, २५०

 -मे प्रसन्नता इच्छा-तुष्टिसे अधिक,

  २७२

 और व्यक्तिगत संकल्प, २९८

 -मे आत्म-प्रवंचना, २९८

 -द्वारा अक्षमतासे छुटकारा, ३१७

 -से मानसिक दासतासे मुक्ति,

   ३४२

 भगवानको समझनेका साधन, ३६१

   (दे० 'आत्म-विस्मृति' भी)

समस्या

 कि क्या कहा जाय या क्या किया

   जाय, २८, १५८,

 तरंगोंको अभिव्यक्त न होने देने-

   की, ७७

 कि विकृति आयी कहांसे?, १०७

 भौतिक रूपांतरकी, ११४, ११७-

    १८

 -का हल मानसिक एकाग्रतादुरा,

   १४०

 तीसरे बिंदुकी प्राप्तिकी, १४१-४२

 जीवनके बीच अक्षर आनंदकी स्थिति

   बनाये रखनेकी, १८२-८३

 स्पदनोंकी, १८६-८८

 -एं (सभी), स्पंदनकी ही समस्याएं

    है, १८८

समाज

 पूर्णता-प्राप्त, की सृष्टि, ३१८-२१

समग्जवाद, दे० 'यूरोप'

समाधि,

 ले लेना, जीवित ही, २ २२अ

समानता, ३२०

 -की अभिव्यक्ति तभी, ३२१

सरकार

 समाज, नियम-कानून आदि

   सामयिक आवश्यकताएं, ३१८

   किनकी हों, ३ दूं १

    मिथ्या या खामक, ३२५

 -की सहायतासे पूर्णता लानेका

    स्वप्न, ३२६

  (दे० 'नियम' और 'शासन' भी)

सरलता

 (सहज), को मनुष्य पुन: कब प्राप्त

   करेगा, ८८

 (दिव्य), जटिल अस्त-व्यस्ततामेंसे,

    १७५-७६

 (दे० 'सुन्दरता' भी)

ससीम

 और असीम, ९९, २३०-३२

सहनशीलता,

 'सहन करना दुःख-दर्दको, १७७-७९

 कई प्रकारकी, ३०१

  (दे० 'विश्वास' भी)

सहानुभूति, २९०, ३६६

सहायता,

  गरीबोंकी, २७७

  कर, अपने भाइयोंकी, ३६६

  (दे० 'सेवा.' और 'दया' भी)

 

४३६


सूत्र सूक्ष्म सत्ताएं,

 भविष्यकी सूचना देनेवाली, १३२-

     ३३

सूर्य, ८६, २१५

 आंतर, दिव्य हास्यका; इसे

   पानेकी शर्त, १६४

 -की और पृथ्वीकी चेतनाके पार-

 स्परिक संबंधोंमें परिवर्तन,

  १९४, १११

 -की बनावट देखना... और

    आत्माको देखना.., २१५

सेवा,

 करना उपयोगी किस कारण,

  ३७२

 -की अपेक्षा भगवानका होकर

   रहना बेहतर, ३ ७४अ

 और प्रशंसाकी कामना, ३७९

    ( दे० 'भगवान्'-की सेवा और

 'सहायता' भी)

स्त्री,

 -के विषयमें हमारे विचार, ३१३

 -के जालसे बचनेके दो ढंग, ३१४

 -का आदर्श क्या होना चाहिये,

   ३१४

 और पुरुष आध्यात्मिक दृष्टिसे,

   ३१४

 'एक पत्निव्रत, ३५१

स्पंदन

 ( वह), एक ही होता है जो अनि-

   निश्चित कालतक दुहराया जा

   सकता है' ', ७४

 ( अतिमानसिक), की अभिव्यक्ति-

   की शर्त, ११३

 भागवत उपस्थितिका, १६१

सर्वच्च संकल्पको प्रत्युत्तर देने-

  वाले और स्पंदन अजानके,

   १८५-८८

 (सच्चे), की शक्ति, १९६

 (व्यवस्था और समस्वरताके),

   का हस्तक्षेप, २००

 सच्चे, का हस्तक्षेप अहंभावों या

  व्यक्तित्वोंपर निर्भर नहीं, २०१

 प्रेम और घृणाके, २२४-२७

 प्रकाशमय, २३२, २४२

 सृष्टिकी बाह्य यथार्थताका, २३३;

  ''क्यों''. .का उत्तर, २३३

 भगवानके प्रति पूजाका, २७३

   (दे० 'मिथ्यात्व' भी)

स्पार्टा, २८०

स्मरण ( रटना,

 हर क्षण कि 'केवल वही है', १०४

स्वतंत्रता ( स्वाधीनता,

 विधि-विधानोसे, १८

 (सच्ची व पूर्ण), ७०, ७९

 (सच्ची), का अर्थ, २०४,२०६,

  २६६

 -की चरम पूर्णता, २ ३७अ

 (पूर्ण), का उपभोग, २६६

 कामना, अज्ञान व अहंभावके

  त्यागके मूल्यपर, २७०

 -प्राप्तिकी शर्त्त, २७३

 -के पथपर कब, २७३

 -के अयोग्य कौन, ३१५

 समानता, भ्रातृत्व'', फ्रेंच क्रांतिका

   मंत्र, ३२०; इसे व्यवहारमें

   लानेकी शर्त, ३२०

 -की अभिव्यक्ति तभी, ३२१

    (दे० 'मुक्ति' मी)

 

 ४३८


स्वप्न

 पूर्व सूचक, १३०-३१

स्वर्ग, ३० 'पार्थिव स्वर्ग'

स्वर्ग और नरक, ६५-६, २६२

  (दे० 'नरक' भी)

स्वार्थपरता [ स्वार्थपरायणता ],

 ही एकमात्र पाप, २२४, २९४

 -से आत्माका हनन, २९३

 -का अर्थ, २९५

 विलीन कब, ३६७

स्वास्थ्य (प्राकृत),

 -की पुन प्राप्ति कब, ३४१,

  ३४२-४३

  (दे. 'रोग' व 'औषधि' भी)

 

          ह

हक्सले, ३८२

हास्य

 विश्व-व्यापी, ३७२

   (दे० 'भगवान्' -का हास्य व

 'सूर्य' आंतर भी)

हिपोक्रेटस, ३४१

हिरण्यकशिपु, ३७३

हृदय

 -का रूपांतर, १५१

 -की पहुंच, २३४

 -का बोध, ३०३

  (दे० 'भीतर' भी)

हृदयहीनता,

  -को विवेक.. का नाम, ३०१

हेकेल, ३८२

हेन, १५२

हेमलेट, २५८,२५९

हेलास, ६३

 

४३९









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