CWM (Hin) Set of 17 volumes

ABOUT

The Mother's answers to questions on books by Sri Aurobindo: 'Thoughts and Glimpses', 'The Supramental Manifestation upon Earth' and 'The Life Divine'.

प्रश्न और उत्तर (१९५७-१९५८)

The Mother symbol
The Mother

This volume contains the conversations of the Mother in 1957 and 1958 with the members of her Wednesday evening French class, held at the Ashram Playground. The class was composed of sadhaks of the Ashram and students of the Ashram’s school. The Mother usually began by reading out a passage from a French translation of one of Sri Aurobindo’s writings; she then commented on it or invited questions. For most of 1957 the Mother discussed the second part of 'Thoughts and Glimpses' and the essays in 'The Supramental Manifestation upon Earth'. From October 1957 to November 1958 she took up two of the final chapters of 'The Life Divine'. These conversations comprise the last of the Mother’s 'Wednesday classes', which began in 1950.

Collected Works of The Mother (CWM) Questions and Answers (1957-1958) Vol. 9 433 pages 2004 Edition
English Translation
 PDF   
The Mother symbol
The Mother

This volume contains the conversations of the Mother in 1957 and 1958 with the members of her Wednesday evening French class, held at the Ashram Playground. The class was composed of sadhaks of the Ashram and students of the Ashram’s school. The Mother usually began by reading out a passage from a French translation of one of Sri Aurobindo’s writings; she then commented on it or invited questions. For most of 1957 the Mother discussed the second part of 'Thoughts and Glimpses' and the essays in 'The Supramental Manifestation upon Earth'. From October 1957 to November 1958 she took up two of the final chapters of 'The Life Divine'. These conversations comprise the last of the Mother’s 'Wednesday classes', which began in 1950.

Hindi translation of Collected Works of 'The Mother' प्रश्न और उत्तर (१९५७-१९५८) 430 pages 1977 Edition
Hindi Translation
 PDF    LINK

७ फरवरी, ११५७

 

 यह वार्ता वृहस्पतिवारको, सम्मिलित ध्यान-

के दिन, दी गयी थी । उस शामको श्रीमां

अपवाद रूपसे बोली थीं ।

 

 इस शाम, ध्यानसे पहले मैं कुछ शब्द कहूगी, क्योंकि कई ब्यक्तियोंने पूछा है_ कि सम्मिलित ध्यान और व्यक्तिगत ध्यानमें क्या भेद है?

 

          व्यक्तिगत ध्यान -- ध्यान कई प्रकारके होते हैं जिनका कि हम अभ्यास कर सकते है, इस चीजको मैं कई बार पहले बता चुकी हू, सो उस बारेमें आज फिरसे नहीं कह रही ।

 

          परन्तु सम्मिलित ध्यानका अभ्यास सब कालोंमें किया जाता रहा है - विभिन्न कारणोंसे, विभिन्न तरीकोंमें और विभिन्न प्रयोजनोंको लेकर । जिसे सम्मिलित ध्यान कहा जाता है वह कुछ लोगोंका एक समुदाय होता है जिसमें लोग किसी निश्चित प्रयोजनके लिये एक जगह एकत्र होते हैं । उदाहरणार्थ, सभी कालोंमें प्रार्थनाके लिये लोग एक जगह इकट्ठे हुआ करते थे; अवश्य ही गिरजाघरोंमें, यह एक प्रकारका सम्मिलित ध्यान ही है । परन्तु गिरजाघरसे बाहर भी, ऐसे लोग रहे हैं जिन्होंने सार्वजनिक प्रार्थनाओंके लिये सम्मिलित ध्यानका आयोजन किया था । ये प्रार्थनाएं दो विभिन्न प्रकारकी है ।

 

हम जानते है कि मानव-इतिहासके प्रारंभसे लोगोंके कुछ समुदाय अपनी आंतरात्मिक स्थितियोंके सम्मिलित रूपसे अभिव्यक्त करनेके लिये एक जगह इकट्ठे हुआ करते थे । कुछ लोग मिलकर परमात्म-स्तुतिके गीत गाने, भजन गाने, कृपाओंका गुण-गान करने, पूजा-भाव, आभार व कृतज्ञता प्रदर्शित करने और इस प्रकार परमात्माकी स्तुति करनेके लिये इकट्ठे होते थे । दूसरे कुछ लोग -- इसके भी ऐतिहासिक उदाहरण हैं - सम्मिलित रूपसे ईश्वरका आवाहन करनेके लिये इकट्ठे होते थे, उदाहरणार्थ, परमेश्वरसे कुछ चीज मागनेके लिये; और इसे सब एक साथ मिलकर, एक होकर किया करते थे, इस आशासे कि इस आवाहनमें, इस प्रार्थनामें, इस मांगमें अधिक बल होगा । इसके अनेक लोक-विख्यात उदाहरण है । बहुत पुराने उदाहरणोंमेंसे एक १००० ई का है, जब कुछ भविष्यवक्ताओंने यह उद्घोषित किया था कि अब यह संसारका अंत है, और तब सब स्थानोंपर लोग एकत्र हुए थे सम्मिलित प्रार्थनाएं करनेके लिये

 

३७


और यह अनुरोध करनेके लिये कि संसारका अंत न हों (!) अथवा कुछ मी हो इसकी रक्षा की जाय । अभी बिलकुल हाल ही मे, आधुनिक कालमें, जब कि इंग्लैडका राजा, जार्ज, निमोनियासे मर रहा था, लोग न केवल गिरजाघरोंमें बल्कि राजप्रासादके सामने सड्कोंपर भी एकत्र हुए थे प्रार्थनाएं करने और परमेश्वरसे यह मांगने कि उसे अच्छा कर दें । ऐसा हुआ कि वह अच्छा हो गया, लोगोंने विश्वास किया कि यह उनकी प्रार्थनाओंसे हुआ... । निःसंदेह, यह सामूहिक ध्यानका एकदम बाहरी, कह सकती हू कि, एकदम सांसारिक रूप है ।

 

         प्राचीन कालके सभी दीक्षा-समुदायोंमें, सनी आध्यात्मिक स्थानोंमें सामूहिक ध्यानका सदा ही अभ्यास किया जाता था, पर वहां प्रेरक भाव सर्वथा भिन्न होता था । वे एकत्र होते थे सामूहिक प्रगतिके लिये, शक्ति, प्रकाश और प्रभावके प्रति एक साथ मिलकर अपने-आपको खोलनेके लिये और... कुछ कम या अधिक रूपमें यहीं चीज है जिसके लिये हम प्रयास करना चाहते है ।

 

         तो, इसकी पद्धतियां दो है और उन्हींके बारेमें मैं तुम्हें आज बताने जा रही हूं । दोनों हालतोंमें, अभ्यास वैसे ही किया जाता है जैसा कि व्यक्ति- गत ध्यानमें, अर्थात् एक ऐसे आसनसे बैठ जाओ जिसे बनाये रखना तुम्हारे लिये पर्याप्त सुखकर हो, पर ऐसा सुखकर न हो कि नींद ही आने लगे । और उसके बाद जो कुछ मैंने तुम्हें तब बताया था जब मैं उधर दूसरी ओर वितरगके लिये जाया करती थी,' उसे करो, अर्थात् अपने-आपको ध्यानके लिये तैयार करो, स्थिर और शांत होनेकी कोशिश करो, केवल बाहरी तौरपर ही गप्पें लगाना बंद न करो, बल्कि अपने मनको भी चुप करनेकी कोशिश करो और अपनी चेतनाको, जो तुम्हारे अंदर उठते सब विचारों और तुम्हारे पूर्वाग्रहोंमें छितरी रहती है उसे जहांतक हो सकें, पूरी तरह समेटकर वापस लाकर यहां हदयके क्षेत्रमें, सौरचक्रमें इस तरह केन्द्रित कारों कि मस्तिष्ककी सभी सक्रिय शक्तियां और वे सब गतियां वों दिमाग- को दौड़ाती रहती हैं, वापस लायी जा सकें और यहां केंद्रित की जा सकें । यह कुछ सेकंडोंमें भी किया जा सकता है और कुछ मिनट भी लग सकते है, यह प्रत्येक व्यक्तिपर निर्भर करता है । निश्चय ही यह प्रारंभिक मन- स्थिति है । इसके बाद, जब यह हो जाय (अथवा तुम जितनी अच्छी तरह कर सकते हो उतनी अच्छी तरह हो जाय), तो तुम दो वृत्तियां अपना सकते हो, अर्थात् सक्रिय वृत्ति या निष्क्रिय वृत्ति ।

 

     'हर शामको, ध्यान या वार्तासे पहले, श्रीमां खेलके मैदानके साथ लगे स्थानपर ''हरे दल''के बच्चोंको मूंगफली बांटने जाया करती थीं ।

 

३८


         जिसे मैं सक्रिय वृत्ति कहती हू वह है ( मैं इसे सामान्य रूपमें रखूंगी), उस व्यक्तिपर, जो ध्यानका संचालन कर रहा है अपने -आपको एकाग्र करना, वह तुम्हें जो वस्तु देना चाहता है उसे प्राप्त करने के संकल्पके साथ उसके प्रति अपने -आपको खोलना अथवा उस शक्तिके प्रति खोलना जिसके संपर्क- मे वह तुम्हें लाना चाहता है । यह सक्रिय वृत्ति है, क्योंकि यहां एक संकल्प है जो काम करता है और किसी व्यक्तिके प्रति अपने -आपको खोलनेके लिये, किसी युक्तिपर्ण एकाग्र होने के लिये सक्रिय एकाग्रता है ।

 

         दूसरी, निष्क्रिय वृत्ति बस, यह है : पहले एकाग्रचित्त होओ, जैसा कि मैं तुम्हें बता चुकी नष्ट, उसके बाद अपने -आपको खोलो, ठीक ऐसे ही जैसे कोई दरवाजा खोलता है, तुम जहो, जानते हो न! कि तुम्हारे यहां- पर ( हदयकी ओर संकेत करते हुए) एक दरवाजा है, एकाग्रचित्त हो चुकने - के बाद तुम दरवाजा खोलते हो और इस प्रकार बने रहते हो ( निश्चलता- का संकेत करते हुए) अथवा तुम दूसरा एक पुस्तकका रूपक ले सकते हो, तुम अपनी पुस्तकको पूरा-पूरा खोल देते हो जिसके पृष्ठ बढ़िया और एकदम, सफेद है अर्थात् सर्वथा नीरव है और जो होगा उसकी प्रतीक्षा करते हुए तुम उसी अवस्थामें बने रहते हो ।

 

       ये दो वृत्तियां है । जैसा दिन या जैसा अवसर हो उसके अनुसार तुम किसी एक या दूसरीको अपना सकते हो अथवा तुम किसी एकको ही प्रमुखत: चून सकते हो यदि उससे तुम्हें अधिक सहायता मिलती हो । दोनों ही प्रभावकारी है और समान रूपसे उत्तम फल देने वाली हैं ।

 

        अच्छा तो, अब, खास हम अपने मामलेमें, मैं तुम्हें बताती हू कि मैं क्या करने का प्रयत्न करती हू... । जल्दी ही अब उसे एक वर्ष हो जायगा जब एक बुधवारको अतिमानसिक शक्तिका आविर्भाव हुआ था । तबसे यह बहुत सक्रिय रूपसे कार्य कर रही है, भले बहुत थोड़े लोग ही इसे जानते है (!) परन्तु फिर भी मैंने सोचा कि अब हमारे लिये समय अ गया है -- इसे कैसे समाऊ जब हम ग्रहणशीलता बढ़ाने- का प्रयत्न करके उसके कार्यमें कुछ सहायता कर सकते हैं ।

 

       अवश्य ही, यह केवल आश्रममें ही नहीं बल्कि सारे संसारभरमें अपना कार्य कर रही है और हर जगह, जहां कहीं थोडी-सी ग्रहणशीलता है यह ' शक्ति' कार्यमें लगी है । और मुझे कहना चाहिये कि संसारमें आश्रमके पास ही एकमात्र ग्रहणशीलता, ग्रहणशीलताका एकाधिकार नहीं है । परन्तु चू कि बात ऐसी है कि हम सब यहां कम या अधिक यह जानते हैं कि क्या घटित हुआ है, तो हां, मैं आशा करती हू कि व्यक्तिगत रूपसे तो हर एक इस अवसरसे लाभ उठानेका पूरा प्रयास कर ही रहा होगा, पर सामूहिक

 

रूपसे भी हम कुछ कर सकते हैं, अर्थात् सामूहिक रूपमें अधिक-से-अधिक ग्रहणशीलता प्राप्त की जा सकें इसके लिये विशेष रूपसे उर्वरा भूमि तैयार करनेके लिये हम क्षेत्रको एकरूप बनानेका प्रयास कर सकते हैं, जिससे समय और शक्तिका यथासंभव कम-से-कम अपव्यय हों ।

 

         तो अब, तुम्हें एक सामान्य रूपसे मैंने बता दिया है कि हम क्या करनेका प्रयास करना चाहते है और तुम्हें बस... उसे करना है ।

 

३९

 









Let us co-create the website.

Share your feedback. Help us improve. Or ask a question.

Image Description
Connect for updates