The Mother's answers to questions on books by Sri Aurobindo: 'Thoughts and Glimpses', 'The Supramental Manifestation upon Earth' and 'The Life Divine'.
This volume contains the conversations of the Mother in 1957 and 1958 with the members of her Wednesday evening French class, held at the Ashram Playground. The class was composed of sadhaks of the Ashram and students of the Ashram’s school. The Mother usually began by reading out a passage from a French translation of one of Sri Aurobindo’s writings; she then commented on it or invited questions. For most of 1957 the Mother discussed the second part of 'Thoughts and Glimpses' and the essays in 'The Supramental Manifestation upon Earth'. From October 1957 to November 1958 she took up two of the final chapters of 'The Life Divine'. These conversations comprise the last of the Mother’s 'Wednesday classes', which began in 1950.
१५ मार्च, १९५७
निम्नलिखित वार्ता शुक्रवारको सुनायी गयी
थी । इस दिन श्रीमां बच्चोंको कुछ पढ-
कर सुनाया करती थीं ।
तेमसेमके संस्मरण
आज फिर मैं पढूंगी नहीं लेकिन कहानी भी नहीं सुनाऊंगी : आज मैं तुम्हें श्रीमती 'अ'के बारेमें कुछ सुनाती हू ।
मिटाया नहीं जा सकता क्योंकि प्रत्येक मिनट तुम उसे नया कर देते हो । जब कोई व्यक्ति गलती करता है, चाहे वह गंभीर हो या मामूली, उसका परिणाम उसके जीवनमें अवश्य होता है, यह एक ऐसा 'कर्म' है जिसका फल उसे भोगना ही पड़ता है, परन्तु भागवत कृपा, यदि तुम 'उसे' पुकारो, उसकी काट कर सकती है पर इसके लिये यह आवश्यक है कि त्रुटिको दोहराया न जाये । यह मत सोचो कि तुम वह-की- वही मूर्खताएं अनिश्चित कालतक करते रहोगे और 'कृपा' उनके परिणामों- को अनिश्चित कालतक रद्द करती रहेगी । लेकिन बात ऐसी नहीं है । अतीतको पूरी तरह साफ किया जा सकता और पोंछा जा सकता है, यहां- तक कि उसका भविष्यपर कोई प्रभाव न रहे, पर शर्त यही है कि उसे तुम स्थायी वर्तमान न बना लो; यह आवश्यक है कि? तुम स्वयं अपने अंदरके गलत स्पन्दनोंको रोको, उन्हीं स्पन्दनोंको अनिश्चित कालतक फिर- फिर पैदा न करते रहो ।''
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श्रीमती 'अ' वाइट द्वीपमें पैदा हुई थीं । और तेमसेममें अपने पतिके साथ रहती थीं । उनके पति एक महान् गुह्यवेत्ता थे और स्वयं श्रीमती 'अ' भी बहुत प्रभावशाली गुह्यवेत्ता थीं । उनकी परोक्षदर्शनकी शक्ति तो विलक्षण थी, उनके पास माध्यमविषयक शक्तियां और बहुत-सी असाधारण सिद्धियां भी थीं । उन्होंनें अत्यंत पूर्ण प्रशिक्षण पाया था और इसके लिये अति कठोर साधना की थी । वे अपनेसे बाहर जा सकती थी, अर्थात् अपने भौतिक शरीरसे निकलकर अपनी पूरी चेतनाके साथ सूक्ष्म शरीरमें प्रवेश करतीं और ऐसा वे एकके-बाद-एक बारह बार कर सकती थी, अर्थात् चेतनाकी एक अवस्थासे दूसरीमें सचेतन रूपसे जातीं और वहावैसी ही सचेतन बनी रहतीं जैसी कि भौतिक शरीरमें और फिरसे उस सूक्ष्म शरीरको समाधिमें छोड़ उससे बाहर चली जातीं और इस प्रकार आगे- आगे करती हुई बारह बार करके आकार-जगत्की अंतिम सीमातक पहुंच जातीं... । इस विषयमें में तुम्हें फिर कभी बताऊंगी, जब तुम इन बातों- को कुछ अधिक अच्छी तरह समझने लगोगे । पर आज मैं तुम्हें थोडी-सी छोटी-छोटी घटनाएं सुनाती हू जो मैंने वहां तेमसेममें देखें थीं जब कि मैं वहां थी' और वह कहानी भी सुनाऊंगी जो उन्होंनें मुझे सुनायी थीं ।
घटनाएं बाहरी है जरूर, पर काफी मनोरंजक- है । वह प्रायः सदा ही समाधि-अवस्थामें रहती थीं और उन्होने अपने शरीरको इतना सधा लिया था कि जब वह समाधि-अवस्थामें होतीं, अर्थात् जब उनकी सत्ताके एक (या अधिक) भाग बाहर गये हुए होते तो भी शरीरका अपना' जीवन चलता रहता, वे फिर सकती थीं, यहांतक कि कुछ छोटे-मोटे भौतिक कार्य भी कर सकती थीं... वह बहुत अधिक काम किया करती थीं, वह अपनी समाधि-अवस्थामें अच्छी तरह बोल सकती थीं, इसलिये जो देखती थीं उसका वर्णन करती जाती थीं और उस सबको लिख लिया जाता था । इन लेखनों बादमें एक शिक्षाका रूप ले लिया (ये कहीं अन्यत्र प्रकाशित हुए है) । इस सबके और जो गुह्य कार्य वह कर रही थी उसके कारण वह थक जाया करती थीं, इन अर्थोंमें कि उनका शरीर थक जाता था और ठोस रूपमें अपनी खोयी शक्तिको फिरसे प्राप्त करना चाहता था ।
तो एक दिन जब वह विशेष रूपसे थकी थीं, मुझसे बोलीं : ''देखो, मैं अपने बालकों कैसे पुनः प्राप्त करती हू ।', वह अपने बगीचेसे -- वस्तुत: यह बगीचा न होकर एक विशाल संपत्ति थी, जिसमें सैकड़ों जैतूनके वृक्ष थे
'११९०७ में
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और अंजीर तो ऐसे थे जैसे मैंने अन्यत्र कभी नहीं देखे । पहाड़की ढलान- पर बना यह बगीचा सचमुच बहुत अद्भुत था, मैदानसे लेकर पहाड़की लगभग आधी ऊंचाईतक यह फैला हुआ था - इस बगीचेमें नींवू थे, संतरे थे... और चकोतरे थे । चकोतरेपर काफी बड़े फूल आते है और ये संतरेके फूलोंसे अधिक सुगन्धित होते हैं । वह इनसे इत्र बनाना जानती थी, इसकी एक बोतल उन्होंने मुझे भी दी थी -- हां तो, वह अपने बग़ीचे- से एक बड़ा-सा चकोतरा, जो बहुत बड़ा और पका हुआ था, तोड़ लायी थीं । वह अपने बिस्तरपर लेट गयीं और इस चकोतरेको अपने सौरचक्रपर यहां, इस प्रकार दोनों हाथोंसे थामकर, लेटे-लेटे विश्राम करने लगीई । सोची नहीं, केवल विश्राम कर रही थीं, मुझसे बोली : ''एक घंटे बाद आना ।'' एक घंटे बाद जब मैं' वापस आयी... तो चकोतरा मालपूएकी तरह चपटा पड़ा था । इससे पता लगता था कि उनके पास जीवनी-शक्तिको सोख लेनेकी ऐसी सामर्थ्य थी कि उन्होंने फलका सारा सत्व खींच लिया था और वह एकदम ढीला और, चपटा हो गया था । यह मैंने स्वयं देखा था । तुम कर देखो, तुमसे न बनेगा! (हंसी)
एक और समयकी बात है - और यह अधिक मजेदार है,... परन्तु पहले मैं तुम्हें तेमसेमके बारेमें कुछ बता दूं, शायद तब जानते न होओ । तेमसेम दक्षिण अलजीरियामें एक छोटा-सा शहर है और सहारा रेगिस्तान- के लगभग किनारेपर स्थित है । यह शहर एक घाटीमें बसा है जो चारों तरफ पहाड़ोंसे घिरी है । पहाड़ बहुत ऊंचे तो नहीं पर फिर भी छोटी पहाड़ियोंसे ऊंचे है । और घाटी बहुत उपजाऊ, हरी-भरी और शोभनीय है । जनता अधिकतर अरब है और ये संपन्न व्यापारी हैं, सचमुच यह अच्छा संपन्न शहर है -- बल्कि था, क्योंकि मैं नहीं जानती कि अब कैसा है, मैं तुम्हें इस शताब्दीके शुरूकी बातें सुना रही हू तो वहां खूब अमीर सौदागर थे और ये अरब लोग महाशय 'अ'के दर्शनोंके लिये आया करते थे । वे जानते तो कुछ नहीं थे, समझते भी न थे पर दिलचस्पी बहुत रखते थे ।
एक दिन शामके समय, उनमेंसे एक आदमी आया और ऐसे प्रश्न पूछने लगा जो बड़े ही बेतुके थे । श्रीमती 'अ'ने मुझसे कहा : ''देखो, हम जरा कौतुक करेंगे ।'' उस घरके बरामदेमें एक बड़ी-सी मेज थी जो सामान्यत: खाना खानेके काम आया करती थी । यह मेज़ खूब चौडी और खूब लम्बी थी, इसके आठ पावे थे, दोनों तरफ चार-चार । सचमुच यह बहुत ही बड़ी और भारी मेज थी । इस व्यक्तिके आतिथ्यके लिये कुत्तियाँ लगायी गयीं थीं, पर वे मेजसे कुछ दूर थीं । एक सिरेपर वह
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बैठा था और दूसरे सिरेपर श्रीमती 'अ', मैं और महाशय 'अ' एक ओरको बैठे थे । हम चारों वहां थे । मेजके पास कोई न था, हम सब उसके काफी दूर थे । तो, वह प्रश्न पूछ रहा था, और जैसा कि मैंने कहा वे अधिकतर हास्यास्पद थे, शक्तियां कैसी-कैसी होती हैं और उन शक्तियोंसे -- जिसे वह ''जादू'' कहता था -- क्या-क्या किया जा सकता है... । श्रीमती 'अ'ने मेरी ओर देखा पर बोलीं कुछ नहीं, एकदम शांत-स्थिर बैठी रहीं । एकाएक मैंने चीख, भयमिश्रित चीख सुनी । मेज चलने लगी और एक वीरकी-सी गतिसे दूसरे सिरेपर बैठे उस बिचारे आदमीपर आक्रमणके लिये बढ़ी और जाकर उसे टक्कर मारी । श्रीमती 'अ'ने मेजको छुआ नहीं था, किसीने भी नहीं छुआ था । उन्होंने केवल मेजपर अपनेको एकाग्र किया था और अपनी प्राण-शक्तिद्वारा उसे चलाया था । पहले तो मेज थोडी हिली फिर धीरे-धीरे चलने लगी और फिर एकाएक, मानों एक ही छलांगमें, वहां गयी और उस आदमीपर टूट पडी । वह भाग खड़ा हुआ और फिर कभी नहीं आया ।
उनके पास वस्तुओंको अदृश्य कर देंने और फिरसे स्थूल रूपमें लें आने- की शक्ति भी थी । पर वह कभी कुछ कहती नहीं थी, डींग नहीं मारती थीं, ''मैं' कुछ करने वाली हू,'' ऐसा कभी नहीं कहतीं थीं, बस चुपके-से कर देतीं थीं । वह इन चीजोंको बहुत महत्व नहीं देती थीं, वह जानती थीं कि ये केवल इस बातका प्रमाण है कि विशुद्ध रूपसे भौतिक शक्तियों- के अलावा दूसरी शक्तियां भी है ।
शामके समय जब मैं बाहर जाया करती थी (दोपहरी ढले मैं महाशय 'अ'के साथ देहाती प्रदेश देखने या पहाड़ोंपर पड़ोसी गांवोंमें जाया करती थी), तो मैं अपने दरवाजेको ताला लगाकर जाती थी, यह मेरी आदत थी, मैं सदा ही दरवाजेपर ताला रखती थी । श्रीमती 'अ' शायद ही कभी बाहर जाती थीं, इसका कारण मैं तुम्हें पहले ही बता चुकी हू, क्योंकि वह अधिकांश समय समाधिकी अवस्थामें रहती थीं, और इसलिये घर ही रहना पसंद करती थीं । परन्तु जब मैं सैरसे वापस लौटती और अपना दरवाजा खोलती (दरवाज़ेपर ताला लगा होता था, इसलिये यह संभव न था कि अंदर कोई आया हो) तो मुझे अपने तकियेपर फूलोंका एक छोटा-सा हार मिलता । ये फूल बगीचेमें होते थे, इन्हें ''बेl द नीव'' ' कहते है । ये हमारे यहां भी है, ये शामको खिलते हैं और इनकी
१Mirabilis, Marvel of Peru (पेरुका आश्चर्य), श्रीमांने इसे अर्थ दिया है : 'सांत्वना' ।
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महक बहुत बढ़िया होती है । यहां एक पूरा-का-पूरा उद्यान-पथ इन्हींसे, इस फुलकी बड़ी और ऊंची हानियोंसे बना था । ये फूल अनोखे होते है (मेरा ख्याल है यहां भी ये उसी तरहके हैं), एक ही झाड़ीगर विचित्र रंगोंके फूल : पीले, लाल, मिश्रित, बैगनी । ये फूल बहुत छोटे-छोटे होते है जैसे... घण्टिका पुष्प; नहीं बल्कि जैसे हरिणपदी, पर ये झाड़ियों- पर होते हैं (हरिणपदी पके लता है, इसकी झाड़िया होती है), ये हमारे बगीचोंमें भी है । वह सदा इन्हें अपने कानोंमें लगाया करती थीं, क्योंकि इनकी महक बड़ी प्यारी होती है, ओह! कितनी सुहाती और सुन्दर! हां तो, वह उद्यान-पथमें इन झाड़ियोंके बीवी सैरके लिपे जाया करती थीं, ये काफी ऊंची थीं पर वह इनपरसे फूल इकट्ठे कर लेती थीं -- और जब मैं लौटती तो फूल मेरे कमरेमें होते थे...! उन्होंने मुझसे कभी नहीं कहा कि ऐसा वह कैसे करती हैं । पर इतना निश्चित है कि वे कमरेमें नहीं जाती थीं । उन्होंने एक बार मुझसे पूछा था : ''क्या तुम्हारे कमरेमें फूल नहीं थे? '' - मैंने कहा : ''हां, थे अवश्य ।', बस, इतना ही । मैं समझ गयी कि वह ही उन फूलोंको रखती है ।
मैं तुम्हें बहुत-सी कहानियां सुना सकती हू, परन्तु. .बस, एक कहानी सुनाकर समाप्त करती हू । यह उन्होंने मुझे सुनायी थी, मेरी देखी हुई नहीं है।
मैं तुम्हें बता चुकी हू कि तेमसेम सहाराके बहुत पास है, इसलिये वहां- की आबोहवा रेगिस्तानी है, सिवाय उस घाटीके जहां नदी बहती है । यह नदी कमी सूखती नहीं और सारी घाटीको खूब उपजाऊ बनाये रखती है । परन्तु पहाड़ बिलकुल बंजर पड़े थे । केवल एक भाग ऐसा था जो कृषि- विशेषज्ञोंके हाथमें था और जहां कुछ पैदा होता था । पर महाशय 'अ' का उद्यान (सचमुच एक विस्तृत भूसंपत्ति) जैसा कि मैंने कहा, एक अद्भुत जगह थी.. .प्रत्येक चीज वहां पैदा होती थी, जिसकी तुम कल्पना कर सकते हो ऐसी प्रत्येक चीज और वह भी बहुत बड़े परिमाणमें । तो, उन्होंने मुझे सुनाया (वे वहां काफी लंबे समयसे थे) कि अबसे लगभग पांच-छ वर्ष पूर्व, मैं सोचती हू, कृषि-विशेषज्ञोंके मनमें आया कि इन बंजर पहाड़ोंकी वजहसे नदी किसी दिन सूख सकती है और यह ज्यादा अच्छा रहेगा कि वहां कुछ पैड-पौधे उगाये जायं । तेमसेमके प्रशासकने आदेश जारी किया कि पास-पड़ोसकी सब पहाड़ियोंपर वृक्ष रोgए जायं, यह एक काफी विस्तृत घेरा है, समझे! उसने चीडके वृक्षोंके लिये कहा था क्योंकि समुद्री चीड़ अलजीरियामें अच्छी तरह हों जाता है और वे इसे आजमाना चाहते थे । पर किसी कारणसे, भूलसे कहो या झकसे, भगवान् जाने!
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-- चीडकी जगह आदेश चला गया देवदारुके पौधोंका! देवदारुके वृक्ष उत्तरी प्रदेशोंमें होते हैं, वे रेगिस्तानके वृक्ष नहीं हैं । फिर भी इन पौधोंका बड़ी सावधानीके साथ रोपा गया । श्रीमती 'अ' ने यह सब देखा और मेरा विचार है, उन्हें लगा कि परीक्षण कर देखें । और हुआ यह कि चार-पांच वर्षमें वे केवल फूट हा नहीं आये बल्कि शानदार हो गये थे । जब मैं वहां, तेमसेममें थी तो इन वृक्षोंसे पहाड़ चारों ओर एकदम हरे थे । उन्होने मुझसे कहा : ''तुम देखती ही हो, ये चीडके नहीं, देव- दारुके वृक्ष है ।', और सचमुच वे देवदारु ही थे (तुम जानते ही हो देवदारु क्रिसमस-वृक्ष है, जानते हो ने!) । फिर उन्होंने बताया कि तीन साल बाद जब ये देवदारु कदमें कुछ बढ़ गये, तो अचानक एक दिन, बल्कि यूं कहें दिसम्बरकी एक रात, जैसे ही बत्ती बुझाकर वह सोयी कि एक बहुत धीमी, हल्की आवाजने उन्हें जगा दिया (आवाजके प्रति वह बहुत संवेदनशील थीं); आरव खोलकर देखा तो चंद्रकिरण-सी कुछ चीज लगी -- चांद उस रात था ही नहीं -- और उससे कमरेंका एक कोना जगमगा रहा था । ध्यानसे देखा तो वहां एक छोटा-सा बौना खड़ा था, जैसा कि नॉर्वे, स्वीडन और स्केंडिनेवियाकी परी-कथाओंमें आता है, वह बहुत छोटा-सा था -- सिर बड़ा, नोकीली टोपी और गहरे हरे रंगके नोकीले? जूते । और उसकी दादी लंबी सफेद थी और वह सारा-का-सारा बर्फसे ढका था ।
उन्होने उसकी ओर देखा (खुली आंखोंसे) और उसे देखकर कहा : ''किंतु... ऐह! तुम यहां क्या कर रहे हो? (वह जरा परेशान-सी थीं क्योंकि कमरेकी गर्मीसे बर्फ पिघल रही थी और फर्शपर एक छोटी-सी डबरी बना रही थी) किंतु तुम यहा क्या कर रहे हो? ''
बहुत प्यारी-सी मुस्कानके साथ वह उनकी ओर मुस्कराया और बोला : ''परन्तु देवदारुके वृक्षों द्वारा हमें इशारा जो किया गया है! ये वृक्ष बर्फ- को आमंत्रित करते हैं । ये बर्फ़ीले प्रदेशोंके वृक्ष हेऐ और मैं हू बर्फका राज।, मै तुम्हें बताने आया हू कि... हम आ रहे है, हमें बुलाया गया है ओर हम आ रहे है ।''
-- ''बर्फ?... परन्तु हम तो सहाराके बहुत समीप है! ''
-- ''आह! तो तुम्हें देवदारु लगाने ही नहीं चाहिये थे! ''
अंतमें उन्होंने उससे कहा. ''सुनो, मै नहीं जानती कि तुम जो कह रहे हो वह ठीक है या नहीं, परन्तु तुम मेरा फ़र्श खराब कर रहे हो, भाग जाओ! ''
वह चला गया, साथ ही चन्द्र-किरण भी विलीन हो गयी । उन्होंने
लेप्य जलाया ( क्योंकि वहां बिजली नहीं थी), लैम्प जलाकर देखा... कि जहां वह खड़ा था वहां पानीकी छोटी-सी डबरी बन गयी है । तो, यह स्वप्न नहीं था, वहां सचमुच एक छोटा प्राणी था जिसकी बर्फ पिघल- कर पानी हो गयी थी । और अगले दिन जब सूर्योदय हुआ तो वह बर्फ- से ढेक पहाड़ोंपर हुआ । ऐसा पहली बार हुआ था, इससे पहले उस प्रदेशमें ऐसा नहीं देखा गया था ।
तबसे हर सर्दियोंमें -- बहुत समयतक तो नही पर कुछ समयतक -- सब पहाड़ बर्फसे ढक जाते हैं ।
सो, यह है मेरी कहानी ।
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