The Mother's answers to questions on books by Sri Aurobindo: 'Thoughts and Glimpses', 'The Supramental Manifestation upon Earth' and 'The Life Divine'.
This volume contains the conversations of the Mother in 1957 and 1958 with the members of her Wednesday evening French class, held at the Ashram Playground. The class was composed of sadhaks of the Ashram and students of the Ashram’s school. The Mother usually began by reading out a passage from a French translation of one of Sri Aurobindo’s writings; she then commented on it or invited questions. For most of 1957 the Mother discussed the second part of 'Thoughts and Glimpses' and the essays in 'The Supramental Manifestation upon Earth'. From October 1957 to November 1958 she took up two of the final chapters of 'The Life Divine'. These conversations comprise the last of the Mother’s 'Wednesday classes', which began in 1950.
३० जुलाई, १९५८
मधुर मां, प्लेंचेट या प्लेंशेटके प्रयोगसे किस तरहकी शक्तियों-
को पुकारा जा सकता है और इसे कैसे किया जाता है?
ओह! ओह!... क्या तुम्हारा मतलब स्वत:लेखनसे है?
हां, मां!
यह उनपर निर्भर है जो इसे करते है । कमी-कमी तो कोई भी शक्ति नहीं होती! होते हैं सिर्फ उन लोंगोंके मानसिक और प्राणिक स्पंदन जो प्लेशेटपर काम करते है, अट्ठानवे' प्रतिशत तो उनके अपने अवचेतन विचार उमर आते है । यदि उन लोगोंका किन्हीं अदृश्य सत्ताओंके साथ संपर्क हो तो हर प्रकारकी चीज हो सकती है लेकिन उसमें कुछ भी बहुत प्रशंसनीय नहीं होता ।
लगभग निश्चयपूर्वक यह कहा जा सकता है कि यह वह चीज नहीं है जो लोग समझते हैं, इस अर्थमें कि अकसर वे उसका आह्वान करनेकी कोशिश करते है जिसे वें किसी मृत व्यक्तिकी, परिवारके सदस्य, मित्र या प्रियजन- की और जिसके साथ वे संपर्क बनाये रखना चाहते हैं उसकी ''आत्मा'' समझते है । इसके अतिरिक्त उनसे निरे मूर्खताभरे प्रश्न करते हैं । सौभाग्यवश... वे उन्हें परेशान करनेमें सफल नहीं होते!
इस दृष्टिकोणसे यह कहा जा सकता है कि यदि तुम्हारा किसी मृत व्यक्तिके साथ, जो शरीर छोड़ चुका है, प्रगाढ़ और. सच्चे प्यारा संबंध था और यदि तुम स्वयं काफी स्थिर और दृढ हों तो वह व्यक्ति कम-या- ज्यादा लंबे समयके लिये, अपने प्राणके लिये तुम्हारे वायुमंडलमें (अपने प्रियजनके वायुमंडलमें) आश्रय चून सकता है 1 इस हालतमें इसका अर्थ होगा कि संबंध बहुत निकटका था, बहुत अंतरंग था औ र यदि तुम इतने जड़वादी नहीं हो कि कोई सीधा मानसिक बोध ही न हो तो तुम इस व्यक्तिके साथ मानसिक रूपमें संबंध बनाये रख सकते हो, उससे आदान-
'बादमें माताजीने निम्न टिप्पणी जोड़ी : ''मुझे नब्बे प्रतिशत कहना चाहिए क्योंकि अपवाद मी होते हैं - मैं उन्हें जानती हू -- लेकिन वे दूतने विरत्ठ है कि उनके विषयमें न बोलना ही अच्छा है । ''
प्रदान कर सकते हों । ऐसा बहुत विरल होता हैं, क्योंकि आम तौरपर यदि तुम्हारा वायुमण्डल काफी स्थिर और दृढ है और सचमुच सुरक्षा प्रदान कर सकता है तो वह व्यक्ति जो शरीर छोड़ चुका है, वहां गहन विश्रांति- मे चला जाता है और उसे परेशान करना बिलकुल अनुचित है; स्वसे अच्छा तो यह होगा कि तुम उस व्यक्तिको अपने प्यारमें लपेट लो और शांतिसे रहने दो ।
अतः यदि इस तरीकेसे, जिसे मैं अनगढ़ तरीका कह सकती '2, उसके साथ संबंध स्थापित करना संभव मी हों तो भी ऐसा करना शोभा नहीं देता । किंतु आम तौरपर, जो लोग चले गये है उन्हें मध्यवर्ती अवरथामें कुछ समयके लिये आश्रय देनेकी जिनमें योग्यता है, आवश्यक क्षमता है उनमें यह बेतुका, ऊटपटाग विचार नहीं आता कि प्लेंशेटके उपयोग करके अपने प्रियजनोंके आराममें खलल डालें... सौभाग्यसे!
पर जो इस प्रयोगमें, स्वास्थ्यकी उत्सुकताके प्रयोगमें रस लेते है उन्हें वही मिलता है जिसके वे योग्य हैं; क्योंकि, जिस वातावरणमें हम निवास करते है वह छोटी-छोटी अनेक सत्ताओंसे, जो असंतुष्ट कामनाओं और बहुत निम्न प्रकारकी प्राणिक गतियोंसे जन्मी हैं, और प्राण-जगतकी अधिक महत्त्वपूर्ण सत्ताओंकी सड़ांधसे भरा रहता. है -- सचमुच, यह इनसे भरपूर है, अधिकतर नहीं देखते कि इस प्राणइागक वायुमंडलमें क्रय। हो रहा है और निश्चित रूपसे यह उनके लिये सुरक्षा है क्योंकि यह बहुत अर्थिक सुहावना नही है -- लेकिन यदि अस्वास्थ्यकर उत्सुकतावश ३ इसके संपर्कमें आनेकी धृष्टता करना चाहें, और स्वतलेखन या मजे घुमाने या... ऐसी ही कोई और चीज करनेकी चेष्टा शुरू कर दें तो होता यह है कि इन छोटी सत्ताओंके एक या अनेक उन्हें बनाकर खिलवाड़ करती है, उनके अवचेतन मनसे सब आवश्यक सूचनाएं इकट्ठी करके इस बातके प्रत्यक्ष प्रमाणके रूपमें उन्हींके पास भेजती है कि जिन व्यक्तियोंको बुलाया गया था वे व्यक्ति वे स्वयं है!
इन सबके बारेमें अपने जाने हुए दृष्टांतोंको लेकर मैं तुम्हारे लिये पूरी पुस्तक लिख सकती हू, क्योंकि ऐसी चीजों करनेमें लोग बहुत गर्व अनुभव करते है, अपने अनुभवकी सत्यताके ''प्रमाण'' देते हुए उन्हें तुरत लिख डालते हं, ऐसे हास्यास्पद प्रमाण जो उन्हें यह दिखानेके लिये काफी होने चाहिये कि कोई उनपर हंस रहा है! अभी हालमें ही मुझे किसी 'रेस व्यक्तिका एक और दृष्टांत मिला है जो कल्पना कर रहा था कि उसका श्रीअरविन्दके साथ संपर्क है और वे उसके सामने सनसनीदार रहस्योद्घाटन कर रहे है -- यह बिलकुल हास्यास्पद था ।
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बहरहाल, आम तौरपर ये (ओह! बहुधा) ये तुम्हारी अपनी शक्तियां होती है, तुम्हारी अवचेतन मानसिक शक्तियां, प्राणिक शक्तियां जिन्हें तुम प्लेशेटमें रख देते हों और फिर अपने लिये सनसनीदार रहस्योद्घाटन तैयार कर लेते हो! तुम इस तरहकी अनेक चीजे कर सकते हों... । एक बार मैं लोगोंके सामने यह प्रमाणित करना चाहती थी कि जिसका वे आह्वान कर रहे थे वह और कोई नहीं, वे खुद ही थे; अतः केवल संकल्पकी एकाग्रताके बलपर फर्नीचरको थपथपाकर, मेजोंको स्वतः चलाकर मैंने एक छोटा- सा मजाक किया, और!... स्वत:लेखनसे लिये तुम्हें, केवल अपने सचेतन संकल्पको अपने अंदर समेट लेना और हाथको ढीला छोड़ देना होता है, बिलकुल इस तरह (मुद्रा), और इसे बेटोक छोडू दो और तब हाथ गति करना आरंभ कर देगा, पर तुम्हारे भीतर बैठा को छोटा-सा बिंदु है जो इसमें रस लेता है और वह चाहता है इस गतिविधिका कोई अर्थ हो । वह अवचेतन मनका द्वार खटखटाता है जो सनसनीखेज रहस्योद्घाटन करने लगत। है । असत्में, यह सारा एक चोर फंदा है । जबतक कोई इसे वैज्ञानिक ढंगसे न करे; लेकिन तब, वैज्ञानिक ढंगसे करनेपर उसकी समझ- मे आ जाता है कि इसमें कुछ नहीं रखा है - बिलकुल कुछ नहीं, सिवाय इसके कि तुम अपना समय बीता रहे हों जिसे तुम समझते हों कि मजेदार ढंगसे बीत रहा है ।
कुछ लोगोंके साथ ऐसा होता है कि प्राणिक शक्तियां सचमुच उनपर अधिकार जमा लेती है, उस हालतमें यह खतरनाक हों जाता है । लेकिन सौभाग्यवश यह बहुधा नहीं होता । क्योंकि तब यह बहुत खतरनाक हो उठता है ।
बहुत समय पहले, जब मैं फांस मे थी, मैं एक आदमीको जानती थी जिसने इस तरहके अभ्यास कर-करके एक प्राणिक सत्ताके साथ अपना संबंध जोड़ लिया था । वह जुआरी था और अपना समय सट्टा और रुलेट खेल खेलनेमें बिताता था । वर्षका कुछ समय वह 'मौत कार्योमें रुलेट खेलनेमें बिताता था और बाकी समय दक्षिण फ्रासमें रहकर शेयर बाजारमें फाटका खेलता था । ' और सचमुच कोई सत्ता उसे माध्यम बनाये हुए थी, (स्वतः- लेखनद्वारा) । बरसोंसे उसका प्रयोग कर रही थी, उसे बिलकुल ठीक-ठीक, यथातथ संकेत देती थी । जब वह रुलेट खेलता तो वह कहती : ''इस संख्या या इस जगहकी बोली बोलों,'' और वह -जीत जाता था । स्वभावतया, वह इस ''प्रेतात्मा''की पूजा करता था जो उसे इतने सनसनीदार रहस्य बताती थी । शेयर बाजारमें भी वह उससे कहती : ''इसपर दांव लगाओ या उसपर बाजी लगाओ,'' और उसे सब निर्देश देती
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थी । यह आदमी बहुत अधिक धनी बन बैठा । अपने सब मित्रोंके सामने वह अपने उस तरीकेके बारेमें शेखी बघार करता था जिससे वह इतना अमीर बन गया ।
किसीने उसे सावधान किया; और कहा : ''ध्यान रखो, यह कोई ईमान- दारिका सौदा नहीं दिखता, इस ''प्रेतात्मा''पर भरोसा मत करो ।'' वह उस आदमीसे बिगड़ बैठा । कुछ दिन बाद वह 'मौत कार्योमें था और. । वह हमेशा ऊंची बाजी लगाता था, क्योंकि तुम्हें पता ही है, वह सदा जीतता था, सबका दिवाला निकाल देता था, सभी उससे भय रवाते थे । तब ''प्रेतात्मा''ने उससे कह। : ''सब कुछकी बाजी लगा दो, जो कुछ तुम्हारे पास है वह सब इसपर लगा दो''... । उसने वैसा ही किया और एक ही दांवमें सब कुछ गंवा बैठा! फिर भी शेयर बाजारके फाटकेका बचा हुआ कुछ पैसा उसके पास था । उसने मनमें सोचा : ''यह दुर्भाग्य है ।'' उसे हमेशाकी तरह दुबारा बड़ा स्पष्ट निर्देश मिला : ''ऐसा करो ।'' और उसने किया - सब चौपट हों गया! और अंतमें ''प्रेतात्मा''ने कहा (पूरा मजा लेना चाहिये) : ''अब तुम आत्म-हत्या करोगे । एक गोली दाग दो अपने सिरमें ।'' और वह इतना वशीभूत था कि उसने वैसा ही किया... । कहानी यहां समाप्त हो जाती है । यह एक प्रामाणिक कहानी है । अतः कम-से-कम हम यह तो कह ही सकते है कि यह खतरनाक है, इस तरहके धंधोंमें दिलचस्पी न लेना ही अच्छा है ।
नहीं! ये या तो निरर्थक-से मनोरंजनके साधन है या फिर हानिकर धंधे ।
मां, श्रीअरविन्दने ''यौगिक साधन'' पुस्तक इसी ढंगसे लिखी...
नहीं, नही । वह यह चीज बिलकुल नहीं है । इस तरहकी गड़बड़ी मत करो । वह अलग ही चीज थी । श्रीअरविंद जानते थे कि ३ किसके संपर्कमें है, उन्होंने यह जान-बूझकर किया था और जिसके साथ संपर्कमें थे उस व्यक्तिको चूना था, उनका इन छोटी-छोटी सत्ताओंसे कोई सरो- कार नहीं था जिनकी मैं अभी-अभी चर्चा कर रही थी, बिल्कुल मी नहीं, एकदम नहीं । यह तो ऐसी चीज थी जो सीधे मानसिक जगत्में घटी थी, तुम्हें चीजोंका इस तरह मिला न देना चाहिये । इनका आपसमें कोई संबंध नहीं, बिलकुल नहीं ।
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यदि तुममें शान, नियंत्रण, शक्ति ओर एक विशेष निष्क्रिय अवस्थामें जानेकी क्षमता हों तो तुम इउछापूर्वक यह जानते हुए कि वह कौन है और उच्चतर स्तरपर क्रिया करते हुए आसानीसे किसीकी ओर सहायताका हाथ बढ़ा सकते हो, लेकिन उसके लिये पहलेसे ही ऊंची चेतना, आत्म- स्वामित्व अपेक्षित है जौ सबकी पहुंचके भीतर नहीं है । यह देख सकनेके लिये कि अमुक स्तरपर तुम्हारा' किस्से सरोकार है और अपना नियंत्रण खोये बिना, कारणके पूरे ज्ञानके साथ उस प्रयोगके लिये' स्वेच्छापूर्वक सहमति दे सकनेके किये काफी आंतरिक विकासकी. आवश्यकता है । हर ऐरा-गैरा उससे नहीं खेल सकता । पर प्लेंशेटके चलानेके किये अपने-आपको काफी धोखा देना ही पर्याप्त है और वह चलना शुरू कर देगा ।
मां, जो कुछ आप हमें बता रही हैं क्या वह गुह्यविद्याओंका एक भाग है?
यह केवल परीक्षण करनेके लिये था, बस ।
सामान्यतया, पहुंचनेका यह मार्ग अच्छा नहीं है, क्योंकि आंतरिक क्षेत्र- मे, आंतरिक विकासमें, यह लोगोंके उपन्यास पढनेकी आवश्यकताके अनु- रूप है । जिसका मन अभीतक तामसिक अवस्थामें पडू'।- है और आधा जड़ है उन्हें जागनेके लिये उपन्यास पढनेकी जरूरत पड़ती है यह किसी प्रतांसनीय अवस्थाका लक्षण नहीं, कम-से-कम ऊंची अवस्थाका तो नहीं । हा, तो आंतरिक क्षेत्रमें यह इसीके समान है । जब कोई बिल- कुरते आदिम अवस्थामें हो, आंतरिक तीव्र जीवत न हो ता' उसे उपन्यास पढनेकी जरूरत पड़ती है या फिर वह अपनी. कल्पनामें उपन्यास रुचता है, और तब वह ऐसे प्रयोगोमें रस लेता है और मान बैठता. है कि वह बड़ी रोचक चीज कर रहा है... । इसमें वैसा ही मजा आता है जैसा उपन्यासोंमें -- साहित्यिक उपन्यास मी नहीं, बल्कि सस्ते रोमांटिक उपन्यास जो पत्रिकाओंके अंतमें छपते है ।
श्रीअरविदने मुझे बताया था कि कुछ लोगोंको इसकी जरूरत होती है क्योंकि उनकी। मन इतना जड़ है कि यह उन्हें, झकझोरकर जरा-सा जगा देता है । हां, तो यह वही बात है । ऐसे कुछ लोग हैं जिन्हें,
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अपने प्राणको थोड़ा-सा जागनेके लिये इस तरहकी कसरतोंकी जरूरत पडू सकती है क्योंकि वह सोया पड़ा है, जड़ है और... इससे उनके जीवनमें थोडी रुचि पैदा होती है । फिर भी, हम यह नहीं कह सकते कि ये बहुमूल्य धंधे है । ये तो समय काटनेके, मन-बहलानेके साधन है ।
और यह कभी किसीके लिये कुछ प्रमाणित नहीं कर सका । तुम कह सकते हो : ''ओह! यह तुम्हें समझा देता है कि एक आंतरिक जीवन है, एक अदृश्य जीवन है और तुम्हारा उन चीजोंसे संपर्क करा देता है जिन्हें तुम नहीं देखते और प्रमाणित कर देता है कि उनका अस्तित्व है' ' - यह सच नहीं है ।
जबतक तुम्हारे भीतर आध्यात्मिक पुरुष न हों जो जागने और अपना जीवन जिनमें समर्थ हो तबतक ये चीजों तुम्हें बिलकुल कुछ नहीं सिखाती । मैं ऐसे लोगोंको जानती थी -- खासकर एकको जो वैज्ञानिक था, बुद्धिमान् था, योग्य था; उसने उच्च विज्ञानका अध्ययन किया था, इजीनियर था और एक महत्त्वपूर्ण पदपर था; यह आदमी एक संस्थाका सदस्य था जो ' 'प्रेतात्मवादिक' ' कहलाती थी, उसे एक माध्यम मिल गया था जो सचमुच बहुत असाधारण योग्यताओंवाला था । वह हर बैठकमें उपस्थित रहता था ताकि कुछ सीख सकें, अपनेको विश्वास दिला सकें और अदृश्य जगतके अस्तित्व, अदृश्य जगतके ठोस और वास्तविक अस्तित्वके प्रत्यक्ष प्रमाण पा सके । कडे-सें-कडे निरीक्षणमें, यथासंभव वैज्ञानिक ढंगसे उसने वह सब देखा जो देखा जा सकता था -- अंतिम व्योरेतक पूरी जांच- पड़ताल पहले ही कर ली थी । उसने जो कुछ विलक्षण देखा था वह सब मुझे सुनाया, उसने मेरे हाथमें एक चीजका टुकड़ा रखा जो आजकलके प्लास्टिकके कपड़ेसे मिलता-जुलता था, जो बुना हुआ नहीं होता, प्लास्टिकका टुकड़ा ( लेकिन उन दिनों प्लास्टिक नहीं था, तबतक उसका आविष्कार नही हुआ था, बहुत पहलेकी बात है यह) मेरे हाथमें था, फाड़ हुआ जरा-सा टुकड़ा जिसपर बड़ा सुंदर छोटा.-सा डिज़ाइन बना था । उसने मुझे बताया कि यह सब कैसे हुआ । जब माध्यमको समाधिस्थ कर दिया गया तो एक व्यक्ति इस पदार्थसे बना चोगा पहने प्रकट हुआ ( यहां सूक्ष्म वस्तुओंको मूर्त रूप दिया गया था); यह व्यक्ति उसके सामनेसे गुजरा और उसने एक छोटे-सें पशुकी तरह, जो कि वह था, एक छोटा-सा टुकड़ा प्रमाणके लिये फाड़ लिया और अपने पास रख लिया । माध्यम गुर्राया -- और सब कुछ, सब कुछ तुरत गायब हों गया... । लेकिन वह टुकड़ा उसके ह रह गया ओर उसने वह मुझे दिया । मैंने वह उसे वापिस कर दिया । उसने मुझे सिर्फ दिखाया था मेरे हाथमें रखा था ।
तो, तुम देखते हो कि वह काफी ठोस चीज थी, क्योंकि बह टुकड़ा अब मी उसके पास था; वह अपने-आपसे यह नहीं कह. सका कि यह मतिविभ्रम है । लेकिन इस बातके होते श, इन सब अद्भुततम कहानियोंके बावजूद, जिनसे कि एक पूरी किताब तैयार की जा सकती है, बह किसी भी चीजपर विश्वास नही करता था । वह किसीकी व्याख्या नहीं कर सका । ओर वह अपने-आपसे पूछता था कि पागल कौन है, वह स्वयं या दूसरे या... । इस सबने उसके ज्ञानको आधा कदम भी आगे नहीं बढ़ाया ।
कोई इन चीजोंपर विश्वास नहीं कर सकता जबतक कि वह इन्हें अपने अंदर वहन न करे ।
तुम्हारे सारे बाह्य प्रमाण तुम्हें कमी कोई ज्ञान नहीं दे सकते । जब तुम स्वयं भीतर विकसित होते हों, इन चीजोंके साथ सीधा ओर आंतरिक संबंध स्थापित करने योग्य होते हों तभी यह जान सकते हो कि ये क्या है, लेकिन यदि तुम्हारे अंदर वह सत्ता नहीं है जो यह शान पानेके योग्य हो तो कोई स्थूल प्रमाण -- स्थूल और इस तरहका - तुम्हें ज्ञान नहीं दें सकता ।
अतः निष्कर्ष. यही निकलता है कि इस तरहका प्रयोग एकदम बेकार है । जिनमें आंतरिक सत्ता है -- एक-न-एक दिन जीवन ही उन्हें, जगानेका भार लेगा और उस वस्तुके संपर्कमें ला देगा जिसे जानना उनके लिये आवश्यक है ।
मैं इन चीजोंका अस्वास्थ्यकर उत्सुकता समझती हू, बस ।
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