CWM (Hin) Set of 17 volumes

ABOUT

The Mother's answers to questions on books by Sri Aurobindo: 'Thoughts and Glimpses', 'The Supramental Manifestation upon Earth' and 'The Life Divine'.

प्रश्न और उत्तर (१९५७-१९५८)

The Mother symbol
The Mother

This volume contains the conversations of the Mother in 1957 and 1958 with the members of her Wednesday evening French class, held at the Ashram Playground. The class was composed of sadhaks of the Ashram and students of the Ashram’s school. The Mother usually began by reading out a passage from a French translation of one of Sri Aurobindo’s writings; she then commented on it or invited questions. For most of 1957 the Mother discussed the second part of 'Thoughts and Glimpses' and the essays in 'The Supramental Manifestation upon Earth'. From October 1957 to November 1958 she took up two of the final chapters of 'The Life Divine'. These conversations comprise the last of the Mother’s 'Wednesday classes', which began in 1950.

Collected Works of The Mother (CWM) Questions and Answers (1957-1958) Vol. 9 433 pages 2004 Edition
English Translation
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The Mother

This volume contains the conversations of the Mother in 1957 and 1958 with the members of her Wednesday evening French class, held at the Ashram Playground. The class was composed of sadhaks of the Ashram and students of the Ashram’s school. The Mother usually began by reading out a passage from a French translation of one of Sri Aurobindo’s writings; she then commented on it or invited questions. For most of 1957 the Mother discussed the second part of 'Thoughts and Glimpses' and the essays in 'The Supramental Manifestation upon Earth'. From October 1957 to November 1958 she took up two of the final chapters of 'The Life Divine'. These conversations comprise the last of the Mother’s 'Wednesday classes', which began in 1950.

Hindi translation of Collected Works of 'The Mother' प्रश्न और उत्तर (१९५७-१९५८) 430 pages 1977 Edition
Hindi Translation
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अनुक्रमणिका

 

 

अत,

 

  इस सारी लीलाका, १ -३, २०अ

   महान्, आरंभ महान्, ६९-७०

अंतरात्मा ?r चैत्यपुरुष, जीवात्मा,

   -का सतत यत्न, १७

   -से सचेतन संपर्कका फल, ११,

    २८१, ३८७

   -का निज स्वरूप, ४०, २८८

   किसे कहते , २० ३अ

   इतना छुपा हुआ क्यों है, २१७

  -का विकास : उसके क्रिया और

 

 

  विश्रामके काल, २५३-५५

 

उन्नत, का नया शरीर, २५३-५४

-को पानेके लिये.., २८८

-की सामर्थ्य, २१०

भूलसे जिसे मान लिया जाता है,

   ३०१

-मैं ही जीवनकी सार्थकता, ३४५

-के साथ संपर्कसे सुप्त संभावनाएं 

   सहसा प्रकाशमें, मे ६५-६६

के लिये काम, रे ८९-९०

आत्माका व्यक्तिगत संकेंद्रण, ३९४

 

 

सूचना :

   ऐसे गढे :

अति             बच्चा           पशु         चीज

 

-योंमें                को            ओमें       '', सब

                                

अतियोंमें             बच्चोंको        पशुओंमें        सब चीजे

 

 

 

 

    ( २) जिन वाक्यों में केवल शुरूमें ( ') है वह अपने-आपमें पूरा वाक्य है । उन्हें मूल शब्दके साथ मिलाकर न पढ़ें ।

( ३) ज ( ) का प्रारंभ नही दिखाया गया, वहां मूल शब्दसे पहले ( '') कल्पना कर लें ।

(४) कही-कही अधिक स्पष्टताके लिये लिखा है :

(दे 'जगत्'-के रूपों भी), इसका मतलब है जगतके नीचेका वह वाक्य देखो जो -के रूपोंसे शुरू होता है ।

( ५) पृष्ठ संख्याके बाद अ का मतलब है कि वह प्रसंग उस पृष्ठके अंतसे शुरू होकर, बस, अगले पृष्ठके आरंभतक ही गया है ।

( ६) जहां वाक्य-रचना मूल शब्दके साथ संगत न जान पडे, वहां मूल शब्दके आगे कोष्ठमें जो शब्द दिया गया है उसके साथ मिलाकर पढ्नेसे यह संगत बन जायगी ।

 


मानव जातिके'। विशेष चीज, ३९४

  -क द्वारा ही व्यक्तिगत उन्नति संभव,

  ३९४

  (दे० 'अभीप्सा', 'आत्मा' भी)

अंतर्भास, ३६०

  -की' क्षमताका विकास, ३२१-३२

  हृदय व बुद्धिके, ३२९-३०

  -की मानसिक नकचें, ३६९

अंतर्राष्ट्रीय जीवन, ७७

अंतर्लयन, ३०७

   -के बारेमें, १९४-९७

अचेतना, २, ११, १९८, २४९

अच्छा-बुरा !दिव्य-अदि०य, शुभ-अशुभ, -

   की. हमारी धारणा, १२९,२६०,

   २६३

अज्ञान, २०, १२९, ३०९, ३२०

   दुःख का मूल, ७-८, १०, ११

   यथार्थ, ८

  -का राज्य, ८

  व अचेतनताका फल, ४९

  जीवनके प्रति, ९५

  ज्ञान ही है, १ ९०अ

  -के अंदर सत्यचेत्तना. ., २११,

  २१ अ

ज्ञानको सीख दें!, २२५

  (दे 'भूल', 'विभेद' भी)

अति,

  -योंमें स्वास्थ्य चौपट, ९५

अतिमानव ! अतिमानस सत्ता,

  अतिमानसिक तरीकेसे निर्मित और

  इस भौतिक शरीरसे रूपांतरित, १२५,१८२

-के उत्पादनकी प्रक्रिया, २७७

  शिक्षार्थी, ३७'

 (दे० 'प्रयत्न' मी)

अतिमानस,

   -का अवतरण ही निवर्तित अति-

      मानसको मुक्त. ., १४९-५१

   निवर्तित : क्या है, १४९-५०; यदि

      यहां नहोता, १५०, १११,१९२

   -ले अवतरणका परिणाम, १५७,

      १५८ टि०

   -का मूल स्वरूप : सत्यचेतना, १८३

   -को पाना कठिन क्यों, यदि बह वस्तु-

       ओंके पीछे छुपा. ., १११-९२

   -की धारणा बना सकना, ३११

   -काविविधताके साथ व्यवहार,३ ८८ 

   -की प्रतिष्ठाके लिये.., ३९३

अतिमानसिक अभिव्यक्ति (पुस्तक),

     ८४, १ ७३अ

अतिमानसिक अभिव्यक्ति,

    -का प्रमाण, २२७अ

    -का पहला पहलू : शक्ति, २२८ 

    एक बार जब हो जायगी, २८१-८२

अतिमानसिक जगत् !नया जगत्,

   और पुराना जगत्, १३८-४१ ।

       १४२, १५०-५१

   जन्मा है, १४१, १४२

   -मे धर्म नहीं रहेंगे, १४३

   -की संभावनामें मूल हेम, १५०-५१

   -मे सहयोग : की आधारभूत चीज,

      १५१; करनेके तरीके, १५१

   -की सत्ताओं और मनुष्योंमें अंतर,

      २५५

   और भौतिक जगत्का मध्यवर्ती

      प्रदेश, २५६, २५९अ, २९२

और हमारे जगतके बीच प्रधान

      अंतर, २६१,२६४-६५

 

३९८


अतिमानसिक जीवन,

   -मे गुह्यविद्याका क्या स्थान होगा?

     १७५-७८

  -मे भेद होंगे, १ ७६-७७, १७८-७९

  और साधारण जीवनमें फर्क,

     १७७, १७९,१८०

  -मे विकास बना रहेगा, १८०

  -में सब संभव चीजों होंगी, १८१ 

  -को बौद्धिक क्रियाशीलताद्वारा पाना

    कठिन, चैत्यभावसे आसान,

    ३०२

    (दे० 'दिव्य जीवन' भी)

अतिमानसिक ज्ञान,

   -मे वास और उसकी अभिव्यक्ति,

        १८४-८६

अतिमानसिक तत्त्व ?r नया तत्व या

       पदार्थ, २५६

-के जडू पदार्थमें अवमिश्रणके संसक्त,

        २७७-७८

     -के गुण, २९२,३०२

     -की इद्रियगोचरता संभव, २ ९२अ

     -का बढ़ता प्रभाव; निष्कर्ष, २९३

     -को तुम हर सांसके साथ ., ३१२

     और नवजन्मका कार्य, ३१२

अतिमानसिक दृष्टि, १८४

     (दे० 'मूल्यांकन' भी)

अतिमानसिक नाथ, ३० 'श्रीमाताजी

अतिमानसिक शक्ति !r नयी शक्ति ओ,

        ८४

    -का सामर्थ्य, ५,

         ३५

    -का कार्य और व्यक्तिगत प्रयत्न, ५-७

    -का प्रथम आविर्भाव, ३९, १५०

    आश्रममें ही नहीं, सर्वत्र क्रियाशील,

 

३९,१०५

-का कार्य, १४२, १५१

-को भौतिक जगत् निगाल गया, १५१

-का आधार : पूर्ण संतुलन, २२८

   (दे० 'विरोधी शक्ति', 'संतुलन' भी)

अतिमानसिक समाज, १६४

     (दे० 'समाज' भी)

अधिकार,

     पारस्परिक, ८

    सच्चा, पदार्थपर, २६१, २६५

अधिमानसिक सृष्टि, १४१, १४३

अधीरता, ६५

अध्यवसाय, ३२,६९

अनुभव ?अनुभूति, १४०,३१२

   पहला, आंतरिक सत्ताका, और करने

     लायक चीज, १५५

जगत् के पीछेके सत्यका, २२६

-की यथार्थताका प्रमाण, २२७

-का एक क्षण सब व्याख्याओंकी

     अपेक्षा.., ३०२

पूर्ण तभी, जब शरीरके कोषाणु भी

      . ., ३ ०२अ

   (दे० 'आध्यात्मिक अनुभूति' मी)

अनुशासन, ७९,२३९,२८७,३३०,

   ३३२

  अभियान, दे० 'आह्वान'

अभीप्सा ? ज्वाला, लौ, आवश्यकता,

   ३२८,३५४, ३७५, ३८६

 न करनेवाली अंतरात्माएं, ६२

आंतरिक, मे तल्लीन, ११३

व प्रयत्नकी ऐसी घनता कि व्यक्ति

  विस्फोटक.., १३०

सत्य जीवनकी, १५३-५४, १५५ 

जिसे 'मां' हममें संचारित. ., १८३

  ३९९


    

 -को प्रज्वलित रखनेके लिये., ३२५

  'सहसा एक अदमनीय आवश्यकता-

     का अनुभव, ३४३-४५

  'सचमुच चाहना होगा, ३४५,३११

  (दे० 'नियम', 'शरीर', 'सत्य' भी) अमरता, ६१

अमृत, २८

अवतार, ८८

   एक भागवत शक्तिके ही रूप, १८८;

      नये रूपोंका प्रयोजन, १८८

      -के बारेमें, ३०७-९; एक बहुत

      पुरानी परंपरा, ३०७-८

अशुभ

      -की शक्तिसे महान् शक्ति ही विजय

      प्राप्त.., ३ टि०, ५

         (दे 'आनंद' भी)

अहं, ६,२४,३०९, ३८०

      -से मुक्ति : जरूरी, ४२, ३९२;

         आत्म-प्राप्तिके बाद, ३१२

   -पर वशित्व : रवेलोंसे, ७९, ९२;

         नैतिकताद्वारा, ३७७

   है 'शक्ति' को खींचनेकी इच्छा,

          २२९

   ' 'मैं' सें शरीरका बोध,

   सामूहिक, ३२६

   व्यक्तिभावापन्न सत्ताका, ३७१

   अपनी अस्तित्वहीनताके लिये यदि

     कोई सचमुच सहमत हो, ३९६

 

 

आंतरिक संकेत, ३२ -३, ३२१

आकर्षण,

   मानवका, विरोधोंमें, २७-९, ३१६

 

  अग्निपरीक्षाओं ब कष्टोंका, ४०,

    ६२

   -विकर्षण, पहली दृष्टिमें, १७०-७२

आकार

  -की स्थिरता, व्यक्तित्व-निर्माणका

     साधन, ४३-८

   (दे 'रूप', 'चेतना' भी)

आत्म-जिज्ञासा, १ ६-७, ३४, ३४-'

आत्मदान, दे 'समर्पण'

आत्म-निरीक्षण! अवलोकन, १६,

    ४५,२४८, २८९-९०, ३३१,

    ३५६,३५७

आत्म-प्रभुत्व ?r आत्म-संयम [, ६८, ७?:

   जरूरी, ६९,३५७

   -की पहली चीज, २४७-४८, २९०

      (दे० 'कल्पना', 'वाणी', विचार', '

        शरीर' मी)

आत्म-वंचना ? छल, कपट, २८६,

     ३ ०४-५, ३३१, ३७७

आत्म-संतोष, ३० 'बैठ जाना'

आत्मा ! आध्यात्मिक सत्ता ।,

   और जडूतत्व ( शरीर के संबंध,

     ७३, ८५, १००-१, २०२

   -का श्वास ही काफी नहीं, यंत्रमें

     मी योग्यता चाहिये, ८९

   -की अभिव्यक्तिका रूप, २०७

   -को पहचानना, दूसरेकी, २८६-८८

   जिसे लोग, कहते हैं, २८७-८८

   मनसे    भिन्न है, ३०७,३१३

  -से संपर्क : शंका, ३१०-११

  -के निश्चयात्मक उन्मज्जनका चिह्न

   ३१३

  क्या सबमें होती है? ३१३-१४

  लंबे प्रयासका फल, ३१३, ३१४

 

४००


 

 के खिलनेके मुख्य भाव, ३८०

   -की क्या भूमिका है? ३९३-९५

   -मे नव जन्म, ३९५, ३९६

आदत,

   -के द्वारा सब क्रियाएं, ४५-६,

      २४७,३४४

   - ओ, पुरानी, से मुक्ति.., १३८,

      १५१

आदर्श, दे'लक्ष्यं, 'काम', 'धर्म', 'प्रगति'

आध्यात्मिक,

    होना हीं पर्याप्त नहीं, ७३

आध्यात्मिक अनुभूति,

    -ने जो दिशा पकडी, ३१६

    -के लिये चाहिये, अंतरमें 'आध्या- 

    त्मिक सत्ता', ३१८, ३३८,

       ३३१

    -को मन-प्राण-शरीरमें भी रूपायित

       करना जरूरी, ३१९, ३६८

    -को मानसिक रूप देनेकी प्रवृत्ति,

       ३६७-६१, ३७२, ३७४; इस-

    से उसका सारतत्व नष्ट, ३६७,

    ३६९-७०, ३७४

    -का दार्शनिक विकास, ३७३

    -पर आकोचक बुद्धिका नियंत्रण,

       ३७३

आध्यात्मिक उपस्थिति,

    सबके अंदर, ३१३

    -का प्रभाव, ३१४

    मनुष्यमें काफी प्रत्यक्ष, ३१४

    अविकसित या दानवीय मानवमें

      भी, ३१४

       (दे 'विनाश' भी)

आध्यात्मिक क्रांति ( अतिमानसिक

        क्रांति

 

 अवसरकी प्रतीक्षामें, ७४

  -से नया युग, ७५

आध्यात्मिक जीवन,

  -को विकृत रूप देनेवाली धारणा,

    7अ

  और भौतिक जीवनमें विरोधकी

    भावना, ८४

  -मे कुछ चीजों महत्त्वपूर्ण, कुछ नहीं,

     ऐसा मानना, १४०

   -का आरंभिक बिंदु, ३४५, ३८७

   जीनेका अर्थ, ३८१-८२

   -का अनुकरण, ३८३

     (दे 'समाज' भी)

आध्यात्मिकता,

   पुरानी, ८, ८६, १४२, २७८,

     २८४अ

विषयक : नवीन निर्धारण ?दृष्टि1ऐ,

   ९, १४२; अगला चरण, २८४-८५

   -के प्रति मानव जातिमें खिंचाव इस

      बातका चिह्न.., २७७

   भूलसे, जिसे मान लिया जाता है,

      ३०९-१०

   सार रूपमें, क्या है, ३१०

   -द्वारा प्रस्तुत मानव समस्याका हल,

     ३८०, ३८१

   'आध्यात्मिक क्षमता किसीमें कम

      या अधिक, ऐसा नहीं, ३८१-८२

   मनको अपने-आपसे छुटकारा पानेमें

       मदद करती है'' : व्याख्या, '

       ३८५-८६

       (दे० 'मनुष्य', 'मनुष्यजाति',

         'विज्ञान' भी)

आध्यात्मिक दर्शन,

 

 

४०१


-ने जो दिशा ली, ३१५-१६

  -का क्षेत्र, ३१७

  मे: योग्य व्यक्ति, ३१८

  -का स्वरूप पूर्वमें और पश्चिममें,

     ३७२-७३

  ''आध्यात्मिक सिद्धांतके मानसिक

      परिणाम'' : व्याख्या, ३७४

आध्यात्मिक नेता,

   -ओंकी बाह्य चरितार्थता, ८८

आध्यात्मिक पूर्णता, ८६

आध्यात्मिक मनुष्य,

    और मानव जातिकी सहायता,

      ३७९-८१

आध्यात्मिक विकास ? व्यक्तिगत

    विकास

    ही पार्थिव जीवनके अस्तित्वका

    हेतु, ९२, १९८,१९९,२०७, २९१

    -का एक इतिहास, प्रत्येकको, ई'५

    -का आरंभ अज्ञानसे, ३०९अ

    -की चार चीज़ें - आध्यात्मिक

       दर्शन, गुह्यवाद,' धर्म ध आध्या-

        त्मिक अनुभूति, ३१५-१९

    सदा प्रत्यक्ष नहीं होता, ३१८अ

   -की प्रगतिका स्वरूप, ३२०

   निर्णायक, के लिये मनुष्य कब

   तैयार होता हैं, ३८६अ

   -मे विभिन्नताका सत्य, ३८७-८८

   -मे सबसे सहायक चीज, ३८७,

      ३८८-८९

   -कीठीकअवस्थाकापता कैसे, ३९०

   -का सर्वश्रेष्ठ तरीका, ३९२-९३

आष्यात्मिक शक्ति,

   और बाह्य योग्यता, ८९

 

 (दे 'मन' भी)

आनन्द, २२७

  सत्ताका, १-२, २२-३

  द्वारा अशुभपर विजय, ''६, १

  यथार्थ, १

  रहस्य, विश्वन्टीलाका, २०.१,

    १९६

  -को जानना. साधना, २१-३; इसे

     यदि आनंद-प्राप्ति: लक्ष्यके

     साथ किया जाय, २४

  -का अनुभव; पशुओं, पौधों, फूलोंमें,

     २३; मनुष्योंमें थोड़ा कठिन, २३

     (दे 'विश्व', 'सुरव' भी)

आश्रम

   -के पास ही ग्रहणशीलताका एका-

   धिकार नहीं, ३९

  -जीवनमें खेल : इनका आरंभ व

    उद्देश्य, ९१-२ (दे 'खेल' भी)

  -मे चिकित्सक, औषधालय. .क्यों,

    १०३-४

  -के अतिथिगृहमें पत्थरोंकी बौछार-

    वाली घटना, १२१-२२ टि०

  -मे अधिमानसिक सृष्टि, १४१ -की स्थापना, १४१

  -की सामान्य चेतना नीचे गिर गयी

    लगती है : कारण व इलाज,

    १६३-६६

  -क्ए: 'सामूहिक व्यक्तित्व' : का

  निर्माण, १६३-६४ ते मेरा

    मतलब, १६४

  -को यदि बने रहना है, १६५

  -मेंरहतेहुए पूरा लाभ हम क्यों नही

    उठाते ?, ३४२-४४

आश्रमवासी,

 

 ४०२


 

  तुम यहां कैसे आ गये?, १७-८

  'हम विशेष कारणोंसे यहां हैं,

    ३६

'हमें जिसके लिये प्रयत्न करना

  चाहिये, ३६, ६९,१०६, १५२,,

  १ ५', १६५, १७२, २२ अ

  २३६, २४२, २४४, २६२

  २७५,२९६, ३११-१२, ११

  ३२०-२२, ३४५, ३७९, ३ ८८-

  ८९,३११, ३९२-९३

  'हमारा सामूहिक प्रयास, ३८,४०

  'तुम यहां सत्यके संसारके संपर्कमें

  रखे गये हो, ६१

   (दे० 'अतिमानसिक तत्त्व' भी)

  श्रीअरविन्द हमसे जिस प्रयासकी

    आशा करते थे, ७५-६, ८९-

    १०, १८१-८२

   'हमारे लिये : एक संभावना है,

   १६१-६२; से मेरा मतलब, १६ १अ

आसन, ८५

   - ओंका परिणाम भावनापर निर्भर,

     १४७-४८

आसक्ति, ३५, ३८६

आह्वान ( निमंत्रण

  -मल पड़नेके, १३, १५१, २४२,

    ३११, ३१२

  अभियानके लिये, १४४, २६२

  इस सक्रमणकालके सजग निरीक्षण-

    का, २७५

 

        

 

    ईसाई धर्म, ७३,१८९,३७२

 

                 उ

 

उदाहरण,

  अच्छा रखना, ७८

उदाहरण [रूपक आदि पुस्तकके],

'मधु अपनी बूँदों.., २ ०अ, २४-५

 'शादी करना जैसे निश्चय, ३०

 'थियोसोफिस्ट युवती : कांफीमें

   चीनीकी समस्या, ३१

  '१ ००० ई०, संसारका अंत, ३७

  'राजाके रहनेके लिये प्रार्थना,

    ३८,३४०

  'दरवाजा या पुस्तक खोलना, ३१

    'दास, नाम वाला, ४५

  'सीने ब लिखनेका तरीका, ४७

  'गुझवेत्ताकी टिप्पणी, स्वाधीनता-

  पर, झेंपू

  'शांतिप्रिय लोग, ६३

  'सिंहका बल, बंदरका फुर्तीलापन,

    पक्षीका हवामें विचरण, ८२

   'रूसी कसरतबाज, ८३

   'युद्धमें विमानचालक, ८७

   'आध्यात्मिक अवस्थामें चित्र,

     संगीत, कविता

   करनेकी कोशिश, ८१

  'सिगरेट और शराबमें जीवनकी

     सार्थकता माननेवाला, ९५-६

   'बंदरका शराब, ९६

  'अण्डेमें मुर्गीका बच्चा, १३०

  'सिनेमा : रानी रासमणि, १४० टि०

  'बोझ ढोनेका काम, १४७

  'चलना, सीढ़ियोंपर चढ़ना-उतरना,

    चीज उठाना.., १४७-४८

   'वायुयानोंसे दुनिया छोटी, १६०

  

४०३


 

'पियानो बजाना सीखना, पुस्तकोंसे,

   १७६

'सिनेमा : गोतम बुद्ध, १८६ टि०

'पत्थर सामान्य दृष्टिमें, १९९,२१९

'पौधोंका धूप पानेके लिये प्रयास,

   २००

'पौधे, मांसाहारी, २००

'हाथी, अत्यंत बुद्धिमान्, २०१

'कुत्ता, हाथी, बंदर-योनिकी आप-

  बीती बातें, २०४-५

'प्लास्टीसीनके रूप बनाना, २१५

'कुत्ता या घोड़ा, हाथी बननेकी

  चेष्टा नहीं करता, २२०

'वार्षिकोत्सवके लिये कार्यक्रम, २४६

'मवेरे उठनेपर करणीय कार्यका

 पता न हो या शक्ति न हो, २४७

'नाटक उपसंहारके बिना, २५०

'घूमने निकलना, एक रास्ता छोडू

  दूसरा रास्ता.., २५२

'हाथ, कलाकारों और संगीतज्ञोंके,

  २५४

'पहननेके लिये यहां पोशाक और

  खानेके लिये चीजोंकी, बाहरसे

  जरूरत, २६१

'निकम्मा आदमी यहां ऊंची और

  योग्य दीन स्थितिमें, २६१,२६४

 'प्रिज्ममेसे प्रकाशकों देखना, २६९

'विकृत करनेवाले आईने, २७०

'दीपसे अंधकार लुप्त, २८६

  'स्फटिक, समुद्र व पवनकी गतियोंसे

प्रच्छन्न चेतनाका आभास, ३००

'बिजली, बादलकी उपज!, ३०६

'अच्छे अन्नके साथ जंगली घास,

   ३२६

 

'फ्रांसका एक जुआरी, प्रेतात्मक

   माध्यम, ३३५-३६

 'एक वैज्ञानिक, जो अदृश्य जगत्का

 प्रत्यक्ष प्रमाण.., ३३८-३१

 'दरवाजा खुलना, ३४७

 'गहरे कुंएमें  उतरनेका अनुभव,

   अंदर एक हाल. ., ३४९

 'बाल जिसके झड़ रहे थे, ३५०

 'फूल या पत्थरपर एकाग्रता,३५३

 'समुद्रका कर्क नही, पंछी, ३'१८ '

 गेंद दीवारसे टकराकर वापस,

   ३६२

 'बांहको टांगके साथ पंद्रह दिनतक

   सम्मोहनसे जोड़े रखा, ३६४

 'अल्प-शिक्षित युवती, चैत्य-संपर्क-

   कालमें अपूर्व लेखिका, ३६६

 'वाद्ययंत्र, जिसमें अधिकतर स्वर

   नहीं, ३७ ०अ

 'आर्केस्ट्रा. विकसित व्यक्ति, ३७१

 'दौड़नेके तरीका, ३७९

   (दे० 'आश्रम', 'कर्म', 'कहानी',

  'श्रीअरविंद', 'श्रीमाताजी' मी)

उद्देश्य, दे० 'लक्ष्य'

उन्मज्जन,

  जडतत्वमेंसे प्राण, मन व अध्यात्म-

  सत्ताका : इसका स्वरूप व

  प्रक्रिया, १४९, १९९-२०१,

  २६८-६१ टि०, २७२-७५८,

  २७५-७७, ३०१, ३०६-७

उपनिषद्, ३७२

उपलब्धि ?[ चरितार्थता],

  नयी, मे सभी वस्तुएं आ जानी

  चाहिये, ७५-६, २४४

  -का जिन्हें सौभाग्य. ., १५१, २२२

 

   

४०४


 

-का प्रयास करनेवालोंके एक

  सलाह २२८-२१

  ( दे ० 'निश्चिति', 'समय' भी)

उपवास, दे ० 'भाजन', 'श्रीअर्रावंद'

 

         ए

 

एक और बहु, ५८७,३७४

एकता ! एकत्व,

  -मे सर्वकी उपलब्धि, विलय नही,

    ७-८

 स्रष्टाका सृष्टिके साथ, ८, २९९

 सचेतन, अचेतन, ४७अ

 -मे ही पूर्ण स्वतंत्रता, '४९, २५२

 -की प्राप्ति आत्मदानद्वारा, ४९

 -मे विविधता अभिव्यक्तिका

  नियम, ३८८

  (दे० 'श्वभिन्नता' भी)

एकाग्रता, २३८

  -की शक्तिका महत्व, ८०, ३३२

  सतत, आंतरिक उपलब्धिपर, ११२ 

  -का एक पल जब काफी.., ३७५

     (दै० 'ध्यान' भी)

          

           औ

 

औषध! दवाई,

  -की उपयोगिता, ११७

  न लेनेका संकल्प, ११८

          क

कक्षा,

   -के शुरूमें वाचनका प्रयोजन, १०८अ

 

-के लिये 'विचार और सूत्र' लेनेका

   उद्देश्य, ३५३-५४

कठिनाई ( बाधा, ८४

  काममें, किस बातका चिह्न, २९-३२

  -सें छुटकारा : उपाय, १५२, मे ८९

  प्रगति करना चाहनेपर, १६६

    (दे 'जडुतत्व', 'नीरवता',

      'शक्ति' भी)

कर्म,

  -ओंका आनन्द, तलवार, तीर.. .की

    तरह, १९६-९७ टि०

  और चिंतनका एक साथ निबाह

    कठिन, २४३

     ( दे० 'काम', 'मन' भी)

कलाकार, २८,७०, ३६५

कलामयता, ३० 'विरोध'

कल्पना, २५

  निर्माणकी शक्ति है, ३५०

  -पर नियंत्रण, ३५४-५८

    (दे० 'ध्यान' भी)

कहानी

  बौद्ध : श्रीमती 'ज' के ध्यानके समय

    बाघ, ५०-२

  यूसुफका, दीक्षाकी, ६५-८

  विश्व-सृष्टिकी, १९६-९७

  रचना, ३५६-५७

काम ! कार्य,

  करनेका श्रेय यदि मुझे नहीं

    मिलता, ६-७

  रुचिकर कब, अप्रीतिकर कब, १०

  -को बारेमें सही 'निर्देशन' को कैसे

     पहिचानें, २१-३२

   -मे महत्त्वकी चीज : वृत्ति, ३०-१,

      ३२,९३, १४७-४८

 

 

 ४०५


 

 -मे आदर्श स्थिति, ३१, २९६

 हाथमें लेनेपर एक सामान्य नियम,

  ३२-३

 दोनों छोरोंपर, ९०; एकके लिये

  दूसरेकी अवहेलना नहीं, ९०,

  ३११

 प्रतिदिनके, शारीरिक शिक्षणके

   रूपमें, १४७-४९

 'भूरि अस्पष्ट कर्प्यम्', ३९०

   (दे० 'कर्म', 'प्रयास', 'वाणी',

     'समय' भी)

कामना ( इच्छा,

   -तृप्तिसे कामना-जने अधिक

     आनंद, २१-२

   -के रहते आनंद नहीं, २२

   -ओंकी पूर्ति साधारण मनुष्यके

     जीवनका हेतु, ९४-६

कार्य ( परिणाम,

  कारणसे पहले मौजूद, रे ६०६

काली, ३४७

कुंडलिनी शक्ति, १४५

कृतज्ञता,

 श्रीअरविदके प्रति, १६३

केंद्र, ३० 'चक्र'

क्रांति

 -या तीन : भौतिक, नैतिक, आध्या-

   त्मिक, ७३-५

और स्वस्तिका विचार, १६१

 

        ख

 

 खेल

 

प्रकृतिका, लुकाछिपीका, ९-१२;

  इसे बदल देना अधिक अच्छा,

१०-२, ३५-६ (दे 'भगवान्'

    भी)

  -ओंका अमूल्य लाभ, ७६-७

  -भें बुरी भावनासे खेलना : बच्चों-

    को कैसे बचाया जाय, ७७-८

  और योग, ७८-९

  -प्रतियोगिताओंमें प्रगति, ९२-३

  -ओंकी अपेक्षा व्यायामोंमें रुचि कम :

   क्यों?, ९४

  (दे 'आश्रम', 'शारीरिक शिक्षण', 'सचेतनता'  भी)

खेलाती मिजाज, ७६, १२

खोज, ४१, ३११

  दिव्य स्वरूपकी, अंधवत्, १५-२०

  -मे स्वतंत्रता, २५१-५२

  , रोचक, आंतरिक कार्यमें, २६२,

     ३०४

  -के योग्य वस्तुए, दो नही,

    ३६३

 

         ग

 

गीता [भगवद्गीता], ३७२ टि०

गुण,

  रवेलोंसे विकसित होनेवाले, ७६

  बच्चों में विकसानेके, ७८

  निम्नतर पूर्णतामें, ८७, ११

  नैतिक, ३७६

   (दे० 'गुह्यविद्या' भी)

गुरु, ३४३

 कौन, ६९

गुह्यविद्या ( गुह्यजान, गुह्यवाद,

  ८३ २२४

 क्या है, १७६, १७७

 

४०६


 

का प्रयोग प्रत्येक व्यक्ति करता

   है, १७७-७८

 -ने जो दिशा अपनायी, ३१५

 -का क्षेत्र, ३१७

 -के योग्य व्यक्ति, ३१८

 पश्चिममें और पूर्वमें, ३५९

 उच्चतम रूपमे, मे ५९, ३६०

 और सफेद जादू, ३६१-६२

 सीखनेके लिये विशिष्ट गुण चाहिये

   जब कि विज्ञान.., रे ६५

    ( दे०'विज्ञान' भी)

ग्रहणशीलता, ५, ३६, ३९-४०, १५१

   २२८ (दे 'नीरवता' भी)

 

       च

 

चंद्रमा

  ओर चादनीका प्रतीक,२६६

चक्र [ केंद्र, शरीरत्याग,

  - कों पूर्ण बनाना होगा, ८३

  - ओंके उद्घाटनका फल, १४०६ टि०

चमत्कार, २६, २७, ११, २७३

  -ओकों देखनेकी दृष्टि, २३५अ

चिंतन २४३, २७१-७२

चिंता २४७, २८३

चीज [ वस्तु],

 एकमात्र महत्त्वकी, ३२, ११ ३- १४,

   १५२,२४४,३४५,३७९,

   ३८२,३९१

  सब, प्रगतिशील विकासकी

  अवस्थामें, ३४

  करना, जैसे दूसर करते है

    ४६-७

  ऐसी है, क्योंकि यह ऐसी है, १२१

- ओ, पुरानी, की अस्वाभाविकताका

   बोध जरूरी, १३८

 '', वैसी नही है जैसी प्रतीत होती

  है (विज्ञान) 2२२६

  , हमेशा ठीक-ठीक क्यों नही

  अधिक अच्छी, की मनुष्यके हृदयमें

   यदि आशा न होती, ३२८

चेतना,

  -का नव जन्म, १९, १३०, ३११

   ( दे० 'आत्मा' भी)

  -का परिवर्तन, १२९-३०, ३८१-

  ८२, ३८३; फिर भी बहुत कुछ

  करना बाकी, ३२०, ३९०

  -का प्रभाव, भौतिक कर्ममें, १४७-

    ४८

  -के अवतरणसे आकारका विकास या

    आकारका विकास चेतनाके अव-

    तरणको.., २०९-१०

  'मूलतत्व अभिव्यक्तिसे पहले,

    २१०, ३०६

  ही रूपसे पहले, २२४-२५

  -को माननेका काम करना चाहिये,

   २४०, ३५६

  -का पलटाव प्रकृतिके प्रत्येक

    संक्रमणमें, २६८ टि०

  -के प्रत्यावर्तनकी मतलब, २६१

  -का यह तत्वातरण तब मनुष्यके

    लिये सदा समाव होगा, २८२

  -का परिवर्तन ही मानव समस्याओं-

    का हल, २८३, ३८०

  -के परिवर्तनका क्रम पिछले विकास-

    मे और मनुष्यमें, २९०-९१

  विकसित नहीं होतीं, इसकी अभि-

 

 

४०७


व्यक्ति विकसित होती है,

  २९९टि०

  (दे० 'उन्मज्जन', 'जगत्' -के

    रूपों', 'शरीर' भी)

 

         छ

 

छिद्रान्वेषी ?[सेंसर]

  हर एकके साथ, २६२-६३

 

        ज

 

 जगत् । संसार

  -की रक्षा, ३ टि०, ५, ७७

    ( दे० 'मनुष्य जाति' भी)

  -के -प्यागका विचार, ४-५

    (दे० 'जीवन' भी)

  बुरेकी धारणा, ८; इसके अति-

    क्रांतका समय आ गया है, १

  शक्तिकी लहरोंके समुद्र, २७

  युद्धका क्षेत्र, ६३

  -को परमेश्वर आटेकी तरह क्यों

    गुँधता है, ७१

  -के रूपों और क्रियाओंके पीछे एक

     गुप्त 'चेतना', १ १अ, ३००

  -के प्रति दृष्टिका परिवर्तन, चेतना-

    परिवर्तनके बाद, १२१

  जड़, मे भी एक गुप्त 'सत्य', ११० -

    ११, १९२; इसे जाना जा

      सकता है, १९४

  अध-शक्तिने नही बनाया, यह

    संयोग नहीं, ११०, २४६

  -मे एक विधान, योजना है, १११,

     २४६

-की परस्पर-विरोधी व्याख्याएं,

    १९२-९३

  -की वास्तविकता व्यक्तिनिष्ठ,

    १९२-९३

  -के भ्रमपूर्ण प्रतीत होनेका कारण,

    ११३ २२६

  प्रत्येक व्यक्तिका, १९३

  यह, विभाजनका परिणाम, १९७

  यह, मिथ्या किस लिये, २६४

    (दे० 'अतिमानसिक जगत्',

       'विश्व' भी)

जडूतत्व ? जड़ पदार्थ, '

  -का रूपांतर : बाधा, ३४,३ '६

  रूपांतरकी दृष्टिमें, ट'७५

  -मे रूपांतरकी क्रिया, ट'७५

  -मे अतिचेतनाकी उपस्थित,

   ११-२, २९८

   सूक्ष्म भौतिक, १२ रे

   -पर विजय, २०२, २६६

   -भैंसे आत्माके जन्मका सिद्धता,

   २१०, ३०६

   (दे० 'आत्मा', 'उन्मज्जन',

     'शरीर', 'समय', भी)

जन्म, २०२, २११

  -सें प्रेम, इस लिये मृत्यु, २७

  काम-प्रक्रियाद्वारा : इससे यदि

  बचना हो, १२१-२३; इस-

    की हानि, १२ २अ

  लेना पृथ्वीपर, अतिमानसिक रूपों-

    के प्रकट होनेके बाद, १४३

  नये, मे पिछले जन्मके अनुभव उप-

    योगी कैसे?, २५३

  (दे० 'आत्मा', 'चेतना' भी)

जन्मकुण्डली, २६७

 

 

४०८


 

जागरण, ३८६, ३८७

  सद्वस्तुके प्रति, ३४३-४४

जाति,

  मध्यवर्ती (नयी, मानव और

    अतिमानवके बीचकी ), १२५,

    १७३, १८ १-८२, २२८,२९२,

    ३७८,

  पूरी-की-पूरी लुप्त हो जाती है,

    क्यों?, २०५-६, २१८

  मध्यवर्ती, बंदर और मनुष्यके-

    की, २०६

  अपने जातिगत गुणोंसे संतुष्ट, वह

    नयी जातिमें परिवर्तित होनेकी

    चेष्टा नहीं करती, २२०

    (दे०'मनुष्य जाति' भी)

जापान

   -मे सीनेका तरीका, ४७

जीवन, २१

   -मे आत्म-जिज्ञासा, १६-७

      (दे० 'आत्म-जिज्ञासा' मी)

   ओर मृत्यु, ३३

   है, गति, प्रयास.., ६४

   -को व्यवस्थित करो तो समय..,

     ८०

   -का त्याग, ८६, ८७, १४२,

   २८४अ, ३१९,३७१

   -की पथ-भ्रष्टता, ९६

   -के फूलके खिलनेकी-सी अवस्था,

      ११३

   प्रत्येक, जडतत्वपर विजयमें एक

      पग, २०२

   रासायनिक संयोगका परिणाम नही,

      २२३

   -मे नकल करनेकी प्रवृत्ति, २२५

 

-मे जीनेकी शक्तिका मूल, ३२७-

     २८

   (दे० 'अतिमानसिक जीवन',

   'आध्यात्मिक जीवन', 'दिव्य

   जीवन', 'भौतिक जीवन',

   'कामना', 'रूप', 'विरोध' भी)

जुनून, महात्मा, ६५

ज्ञान, ३३१

   स्पष्ट, जीवनके प्रयोजनका, ११

   -का 'पात्र', ६४-५, ६८

   और आचरण, ६४-५, ६८अ

   अतिमानसमें दे 'सत्यचेतना'

   और संकल्प जरूरी कुछ करनेके

     लिये, २४६-४७

   तादात्म्यद्वारा, २६७,३१३,३६१

   सामान्य 'मैं', सक्रिय इच्छाबाक्ति

     और अंतरात्माके भेदका, २८९-

     ९०

    अपना द जगत्का पानेके लिये जरूरी

      चीज, ३१६

    (दे 'अतिमानसिक ज्ञान', 'सत्य',

       'समझ', 'संदेह' भी)

ज्योति ( प्रकाश, २८

    -के बिंदुको अपने भीतर चमकने

      दो, २४४

    -मे छलांग या पशु-जीवनमें वापस,

       २७७,२७९

    -की बूंद, नीरव मनमें, ३३०-३१

      (दे 'भय' भी)

ज्योतिर्मय मन,

    -के बारेमें, १७३, १८१, १८३

    -मे 'सत्य' वसन धारे.. पर बह

    पारदर्शक : व्याख्या, १ ८४- '६

 

 

४०९


टॉल्स्टायके के पुत्र,

  -के मानव एकताके बिचार, ५३

           त

 तंत्र ( तत्र विद्या, १४४, ३५९

तम ( जड़ता, तामसिक निष्क्रियता],

  -के विरुद्ध लड़ना, ६२-४

  और प्राणिक क्रियाशीलता, २ ८७अ

  श्रद्धाके उपार्जनमें, ३२५

तर्क-वितर्क, २४३

तारों,

   -का भाग्यपर प्रभाव, २६६-६७

   तेमसेम, ३० 'श्रीमाताजी'

   तेरा द जेम्स (पुस्तक), ४8६ टि०

त्याग [ छोड़ना],

  पानेकी खातिर, ६१

   अनिवार्य, नये जगत्को लानेके

     लिये, १५१, १५२

   (दे० 'जगत्', 'जीवन' मी)

 

          द

 

दरिद्र ( दरिद्रता, ६२, १०

दर्शन, ३१७,३७२

  पाइथागोरियन, स्टोइक और

    एपीक्यूरियन, ३७२

      (दे० 'आध्यात्मिक दर्शन' भी)

दासता

    शरीर ब निम्न प्रवृत्तियोंकी, ७९,

      ९७

   बाह्य आकृतिकी, सें मुक्ति, २८९

 

विरोधी गतियोंकी, ३५७-५८

   (दे 'स्वतंत्रता' भी)

दिखावा, ९३

दिव्य जीवन (पुस्तक), १७६, ३१८

  -के अंतिम अध्याय, १४,१९८

  -का पाठ, २३६-३७

दिव्य जीवन,

   -के लिये शरीरका रूपांतर जरूरी,

     ८१, ८२, १००

   -का अर्थ, ८५

  मानव जीवनकी सब क्रिया-प्रवृत्ति-

  योंके हाथमें लेगा, ८५, ८६,

    १५७-५८

-के लिये अतिमानसका अवतराग

  आवश्यक, १४९

   (दे० 'अतिमानसिक जीवन',

     'आध्यात्मिक जीवन' भी)

दिव्य कलाकार,

  -का हाथ ऐसे काम करता है

    मानों.., ७०

दिव्य प्रेम,

  निश्चेतनामें न कूदता यदि.., १२

    -ने निश्चेतनामें डुबकी.., ३०८

दुःख-कष्ट ( पीड़ा, विपत्ति,]

    -का रहस्य, २, २०, १ ६-७, ४०,

      ४२, २४८

   विलीन कब, ८, ४२

   जगत् के, का विलयन आवश्यक,

     १२,२७९

   -का सामना : फल ४०अ

   -भैंसे सच्ची शक्ति व श्रद्धा, ४१

   -की चाह अस्वस्थ वृत्ति, ४ १अ

   भौतिक, और विकृति जन्य, २८०

     (दे० 'कठिनाई', 'मनुष्य',

 

 

 ४१०


'मुक्ति', 'शरीर', 'सचेतनता',

   'समर्पण' भी)

दुर्बलता,

 -पर विजय, ६९,२९५

 -की दलील, एक बहाना, २८

 'निरुपाय भाव जरूरी नहीं, ३५७-

    ५८

    (दे० 'स्वतंत्रता' भी)

दुर्भावना [अशुभ भावना, असद्भावना),

  १५१, १५४, १५५, ३२५

दूसरा

  यदि पशुवत्.., १२१

    ( दे० 'दोष', 'निंदा', 'मूल्या-

    कन', 'विचार', 'विभिन्नता',

    'सहायता' भी)

देवता, १४,३२७

   और अतिमानसिक जगत्, १४३

  -ओंके बारेमें, ३४६-४७

वेश और काल,

  -से बाहर निकलना, २-३

दोष,

 -ओंको दोहराना, ५५ टि०

 हमेशा दूसरोंका, ३०४

    (दे० 'भूल', 'शक्ति' भी)

       ध

धन, ३० 'राजनीति'

धम्मपद (पुस्तक), ३४२,३४६

  बहुत सहायक, १८७

  पढ़ना उपयोगी कब, १८९

धर्म,

  प्रत्यक-., इस्लाम, बद्ध, पेगन

   हिन्दू ८३-४

- ओंकी ये सब दृष्ठियों मिलकर यदि

   एक हो जायं, ७४-५; यह

   एकीकरण भी पर्याप्त नहीं, ७५

 मानव जातिको आध्यात्मिक बनाने-

   मे समर्थ क्यों नहीं हो सका,

    ७४

 नया अनुपयोगी ही नहीं, अनर्थकारी

   भी, ७५

 -का मतलब, ८१

 -का जगत्, युग, १४०, १४३.

 -ने जो दिशा ली, ३१५

 -का रास्ता ब उद्देश्य, ३१७

 सुलभ, अधिक लोगोंको, ३१८

 -का दावा, ३२३

 -का यथार्थ व्यापार, ३२५

 -के प्रयासमें भूले, ३२६,३७५

 -की उपयोगिता, ३२६

 क्या एक आवश्यकता है, साधारण

   जीवनमें? ३२६-२८

 ब आदर्श, कोई-न-कोई प्रत्येक

   व्यक्तिका, ३२७-२८

 (दे० 'अतिमानसिक जगत्',

   'समाज' भी)

धैर्य, ७८

 पहला पाठ, ६९, ७०, ३२२

 कैसा, ७ ०अ

 'डटे रहनेकी बात है, १६६

 खो बैठनेका कारण, ३२१

ध्यान,

 सम्मिलित : की दो पद्धतियां, सक्रिय

    व निष्क्रिय, ३८-९; की प्रारंभिक

    तैयारी, ३८; मे हमारा प्रयास,

    ३८,३९-४०; का प्रयोजन व

    लाभ, १३५-३६

 

४११


 

 -के लिये अच्छी स्थिति, १० ९- १०

  -मे एकाग्रता कहां व कैसे, १०९

  -का पूरा लाभ, ११०

  किसी विषयपर : बिम्बोंकी कल्पना-

    के बारेमें, ३४७-५०

  किसी वाक्य ?r विचार 1ए पर : दो

     तरीके, ३५१-५३

      ( दे श्रीमाताजी' मी)

 

          न

 

नयी जाति, ३० 'जाति'

निंदा,

  निंदित वस्तुमें भी दिव्यता, १२१

  दूसरोंकी, १३ ६अ

निम्न गोलार्द्ध,

  और उच्चतर गोलार्ध, १४, १५०,

    १९४,२११

नियम

  बाह्य और आंतरिक अभीप्सा,  ११३

निराशा, ३५७

  'निराश न हो, ७०, ३२२

  'निराश जल्दी कौन, ७०

  कही नही ले जाती, २९४

   (दे० 'प्रयत्न' भी)

निर्णय, दे० 'मूल्यांकन'.

निर्वाण ( लय, १, २, ३, '१, ७

  -की ओर आकर्षणका कारण, १२

  यदि अंत होता, २०

निश्चिति, ३८२

  उपलब्धिकी, १३, १०६, १४४,

    १५१, १८२, २९२

  -को खोजना अपने ही भीतर, २४२

निश्चेतना, १०, २४५, २९९, ३०८,

३२०,३२१

नीरवता, २८, ३६८,३८८

  -से डर, २८अ

  -मे श्रीमांकि शक्ति अधिक कार्य

    करती है, १०८

  -मे ग्रहण कैसे करना, १०९-१०

   यहां और अतिमानसिक जगत्में,

      २६४

   'नीरव रहना सीखना, समस्या या

     कठिनाईके सामने, ३८९

       (दे० 'मन', 'शांति' भी)

नेता,

  कौन, ६२

  बननेकी शर्ते, ७८-९

नैतिक पूर्णता,

  -का क्या आदर्श है?, ३७६

  -भैंसे गुजरना जरूरी, ३७६-७७

 

        प

 

पथ, ३८९

  बिलकुल नया है, १४'

  भूतकालका, १८९

  लंबा, कठिन है, ३२०

  कोई दो, एक जैसे नही, ३ ७४अ

  अपना स्वयं ढूंढना चाहिये, ३७०६

  -पर चलना होगा, ३७५

  -को छोटा बनानेकी चेष्टा, ३७७

  -पर कहां है.. न सोचो, ३७९

  -पर तुम अकेले नहीं, ३९२

  'यात्रा लंबी और दुरूह क्यों, ३१६

परंपरा (वेदसे भी प्राचीन), ८२, ३०७

परिवर्तन, ११

  तिहरा, यदि एक साथ ., ७३

 

 ४१२


 

 आजके, बौद्धिक, नैतिक.., ७४

  अतिमानसके अवतरण से, १५८ टि०

  पृथ्वीपर, तबतक संभव नहीं, १६०

  -की हमारी अक्षमता से तब रूपांतर-

     मे फर्क नही पड़ना चाहिये,

      १६७

  आष्यात्मिक त्मक शक्तिके दबावसे, ३८६

      ( दे ० ' चेतना ', ' मन ', ' रूपांतर ',

         ' समय ', ' समर्पण ' भी)

परिस्थिति, १६, १७, ३०४

पवित्रता, पूर्ण, ११४

पशु, २७४, ३०१

  कई, हमसे ऊंचे, भौतिक योग्यता-

  ओमें, ८१ - २, २०७, २०८

  - क सहज बो ध, १६, १७

  मनुष्यके नजदीकवाले, १६

  -से मनुष्य बदतर, १७, १७२, २७१

  -जगत् का बिका स, २०० - १

  - ओमें भी, दूसरी अभिव्यक्तिपर

    पहुंचने का प्रयत्न, २२१

  हमें नहीं समझते, २५५

  -की पीड़ा, २८३

  -के आगे कोई समस्या नहीं, २८४

  -ओ और पौधोंकी नयी जातियोंको

   विकास मनुष्यद्वारा, २११

     ( दे० ' आनंद ', ' मनुष्य ' भी)

पागल ( आलोकित), २६४

पातंजल योग-दर्शन, ३७२ टि०

पाना, दें ० ' त्याग '

पाप ( आदि पाप), २८०

पुनर्जन्म, २०२, २१४ अ

पुस्तक [नाटक],

  सामंजस्यपूर्ण, नीरस, २ ऐ

  पढ़ना पर्याप्त नहीं, ६५

'उपन्यास पढ़ना, ३३७-३८

पूर्णता, १३

     प्रगतिशील, ३४

  -से पहले लंबा परिश्रम, ६३

  -के लिये यदि सौ बार मी..,

     ७०, ३२२

  -मे कुछ अंश दानवताका,., ७१

  -के लिये एक ही प्रवृत्तिपर अपने-

     को केंद्रित करनेकी समस्या,

       ७९-८०

  सर्वांगीण, उद्देश्य, ८१, ११, ३११

  -की खोज : किसी भी छोरसे, ८५-६;

     दोनों छोरोंपर काम, ९०

  उच्चतर और निम्नतर : व्याख्या,

    ८६-९०

  निम्नतर, आध्यात्मिकताके बिना

   भी, ८७

  -को किसी और लोकमें खोजनेकी

   प्रवृत्ति, ३८५

पूर्णयोग, ३११

  और शारीरिक शिक्षण, ७९,८१

  -का आरंभ कब, ३११

  -का लक्ष्य ३० 'लक्ष्य'

पूर्वजन्म

  -ओंकी स्मृति, २०४-५

  ( दे० 'स्मृति' भी)

पूर्वज्ञान, ३० 'अंतर्भास'

पूर्वनिर्धारितता, ३० 'स्वतंत्रता', 'प्रयत्न'

पृथ्वी,

  जहां-की-तहां छूट जाती है, ७३

  विश्वका प्रतीकात्मक संकेंद्रण,

    १९९, २९८

  ( दे०. 'परिवर्तन', 'रूपांतर',

      'समय' भी)

 

४१३


पेगन धर्म, ७३, ३७२

प्रकाश, ३० 'ज्योति'

प्रकृति

  -का कार्य करनेका तरीका,. ३५,

  ३६, २० '१-६, २३३-३४

  -मे विकासका तरीका, २०३, २१ ५-

  १६

  -के सहयोगका आश्वासन : श्रीमांकि

  अनुभूति ओर वर्ष ५टका संदेश,

  २३३-३५; इसका गलत अर्थ

  मत लगाना, २३५

  -का .अगला कदम, १०२, १५०,

    २७७

  -के विकासकी पहली भूमिका,

    २९७

  -का अभिप्राय, २ पूट-पूप, ३८९-

     ९०

  कार्यकारिणि 'शक्ति' है, २९८

  अचेतन नहा, उसका वाह्य रूप

  अचेतन है, २९९-३००

  (दे 'रवेल', 'भगवान्', 'मनुष्य',

    'विकास' भी)

प्रगति ( उन्नति 1ए, २६३

  -का संकल्प मुख्य, बजाय प्रतिक्षण-

     के छोटे-छोटे निश्चयोंके, ३१-२

  -के लिये विनाश जरूरी न हो, ३५,

  अगली, के लिये आवश्यक चीज,

    ४६, १८९

  'आगे बढ़ना बंद तो.., ६३अ, १६५

  -के लिये प्रयास : मे आदर्श स्थिति,

      ९३; मे सम्यक् वृत्ति, २९४-

      ९५ (दे 'उपलब्धि' भी)

   मानव, के लिये दोहरी क्रियाकी

      आवश्यकता : व्यक्तिगत, सामा-

 जिक, १३ ५'

जो बाधाओंको मिटा मानवजाति-

   को नयी उपलहइख्धकी ओर ले

   जायगी, २७९; इन्कार करने-

   वालोंकी भवितव्यता, २८०

 तुम तभी करोगे जब.., २ ९४अ

 दो प्रकारकी, ३६५

  ( दे० 'आध्यात्मिक विकास',

    'कठिनाई', 'खेल', 'भागवत कृपा',

      'भौतिक जीवन', 'मनुष्य' भी)

प्रतिभा, ११, ३६६

प्रतिभाशाली व्यक्ति, ८७-८, ३५५

प्रभुत्व,

  आध्यात्मिक और भौतिक एक

    साथ, ८३ अ, ८८-९०

  व्यक्तिभावापन्न सत्तापर कठिन,

     ३७१

  ( दे० 'आत्मप्रमुत्व', 'मन' भी)

प्रयत्न ( प्रयास ),३९२

   व्यक्तिगत, का स्थान कहां यदि सब

     पूर्व निर्धारित है, २५२

  सुदीर्घ, अपेक्षित, २८६अ, २८९,

    ३०३, ३०४, ३०५, ३२ १- २२,

    ३३०-३१

  'हम ढूंढनेका कष्ट नहीं उठाते,

     २१७, ३४५

  करनेपर भी प्रगति नही दिखती तो

     निराशा, क्या करना चाहिये?,

     २९४-९५

  व्यक्तिगत, कृपा ही थी, ३२५

  मानवसे अतिमानवकी ओर जानेके,

    ३७८, ३९३

  (दे० 'अतिमानसिक शक्ति',

  'अभीप्सा', 'आत्मा', 'आश्रम-

 

 ४१४


 

वासी',     'पूर्णता',    'प्रगति', '

     भगवान्',   'श्रद्धा'       भी)

प्रश्न,

   'मैं यहां क्यों हू.. ., १ ६-८, ३४४-

       ४५

   पूछनेके बारेमें, १०७-९

      (दे० 'श्रीअरविंद' भी)

प्राण ( प्राण-शक्ति, प्राणिक क्रिया-

     शीलता, ७३, १००, ३११

   -के आत्मप्रेमकी प्रतिक्यिा और

     सच्ची प्रतिक्यिा, ६-७

  सुखोंके पीछे दौड़ती, दुं:ख.., २७

  पसंद करता है उत्तेजना, ९४

  ही उत्साह, शक्तिका स्थान, ९४

  -को 'आत्मा' समझना, २८७-८८

     (दे० 'उन्मज्जन', 'मन' भी)

प्रार्थना, १४

     सम्मिलित : दो प्रकारकी, ३७-८

     सामूहिक, का प्रभाव, ३३९-४१

        (दे० 'भागवत कृपा' मी)

प्रेम, २१, ६१

   अपने बंधनोंसे, २७-८, २९,३९६

   शक्ति, सुरव, शांति व सीमाओंसे,

      इसलिये..., २७-८

   एक कंडी.., ४९

   -की पहली सहज गति, ४१

   और स्वतंत्रता, ५०

   और बाध्यता, ५०

   अपनी अपूर्णताओसे, ७२,७३, ७६

   यदि सच्चा, मृत ब्यक्तिसे, ३३३-३४

      (दे० 'आकर्षण', 'दिव्य प्रेम'

      भी)

प्लेंचेट [ स्वतः लेखन],

   -का प्रयोग, ३३३-३१

फल ( परिणाम, ३० 'भगवान्'

फूल, 'बेल द नीवि', '५९अ

 

         ब

 

बंधन, ३० 'प्रेम'

बनना, दे० 'होना'

मालके [ बच्चा], १३, ४७

  - ओंको हानि पहुँचानेवाली चीज़ें, ७७

   ' 'आदर्श बालक' पुस्तक, ७७

  -ओकों पारितोषिक, ९३

  -के सपने, १५३-५४

  -के सपनोंके साथ व्यवहार, १ '१४-

    ५५, १५७

  बने रहना अच्छा, १९५

  ( दे० 'खेल', 'भय', 'योग' भी)

बीथोवेनकी, २३४

बुद्ध २१

   -की शिक्षाओं अतिमानसिक पथपर

     किस रूपमें सहायक, १८७

   एक अवतार, १ ८७अ

   -के उपदेश और सीधी क्रिया, १८८

   ( दे० 'श्रीमाताजी' मी)

 

बुद्धि

  -की बीमारी, इस था उसको चुनने-

     की, ९०, २२२

  -का शासन अपेक्षित, सत्तापर,

     ९४, ९७

  -के राज्यका अंत तभी, १८

  -द्वारा निर्णय देना, १२८

  ग्राम्य, की सत्यानासी आदत :

     अशुभ भावना, १५४, १५५

४१५


 

बौद्धिक क्रिया एक तरहकी ठंडी,

   शुष्क.., ३०२

   -को संतुष्ट करना होगा, ३६६-६७

   आध्यात्मीकृत, की जरूरत, ३७३

     (दै० 'अंतर्भास', 'अतिमानसिक

     जीवन', 'आध्यात्मिक अनुभूति',

     'मन' भी)

बुद्धिमत्ता ![ बुद्धिमानी], १२१, ३५६

बैठ जाना ( रुक जाना, आत्म-संतोष,

      ३४, ६३, ८८,१८०, ३८५

बौद्ध धर्म, ७ ३-४, १८९

 

            भ

 

भगवान्, ३४२

   -की विश्व-लीला, १-२, २ ०-१,

      २५०

   क्या है, १-२

   और प्रकृतिका संबंध, ७, ९-१०

   -की ओर !r दूसरी ओर जब पहुंचते

      हों, १०,११,१४,१३०,३८३,

      ३९५

    'भागवत चेतना मानवी ढंगसे कार्य 

       नहीं करती, ३१

    ही सबसे अच्छा मित्र, ५५-६

    विनाशमें भी, ७०

    -के कार्यके पीछे सुनिश्चित ज्ञान-

      दृष्टि, ७०

   -के सामने संपूर्ण काल.., ७०

   -की सामग्री, ७१

   यदि वस्तुओंके केंद्रमें न होते, १४९,

      २१०

   निरंकुश, का विचार, १६७

   -को प्रयासके फलका अर्पण, २९४

 

  ९५

  छिपे हुए इसी लिये है, ३४५

    (दे० 'आध्यात्मिक उपस्थिति',

    'जगत्', 'विश्व' तथा 'दिव्य' और

    'भागवत.. ', के अंतर्गत भी)

भय,

  दण्डका, बच्चोंको, ७८

  रोगीका कारण, ११५-१७

  शारीरिक, पर विजय पाना कठिन,

    ११५-१६

  -के विचार, २४१

  'प्रकाश' मे खो जानेका, ३१६

भागवत कृपा ?r 'कृपा', २३६

  और प्रार्थनाके प्रभावको छिद्रान्वेषी

    भूल जाता है, २६३

  -का एक चिह्न : शांति; दूसरा.

    प्रगति, २७९,२८५

  -की सहायता., २८६,३२५,३७६,

    ३८६,३१२

  -को भूल न जाना, ३९२

     (दे० 'प्रयत्न', 'विश्वास' भी)

भागवत संकल्प, १२४

   ' -से सब कुछ होता है'', ''भागवत

   संकल्प सदा प्रकट रूपसे कार्य

   नहीं करता'' : व्याख्या, २६-७

भाव,

   -की विशिष्टता, ३५१

   -सें 'मूलतत्व' तक, ३५ १अ

भावना ( वृत्ति., दे० 'काम'

भाषा

   व शब्द हमारे, १६९,१८४,१८५

   'शब्दोका मूल्य, २६१

भूतकाल,

   -सें चिपक, १८९

 

३१६


 

भूल, ६३, ३१०

  और भगवानकी मित्रता, ५५

  करना जानबूझकर, और अज्ञानमें,

  २८५-८६ (दे  'दोष'  भी)

भूल जाना,

  आमोद-प्रमोदमे, ४१, ४२

  'लोग भूले रहते है, १५२

    (दे० 'भागवत कृपा' भी)

  भूल-म्गंति, ३० 'सत्य'

  भोजन

   -पर निर्भरता, ८२

    छोड़नेकी शर्त, ११२

  भौतिक जीवन ! पार्थिव जीवन, भौतिक

     अस्तित्व

  एक अद्भुत सुयोग, ४१

  -का विकास क्यों जरूरी, ८९-९०

  -से ऊंची एक स्थिति, १०५; इसे

     अब वे सब पा सकते.., १०५-६

  -को भी यदि दिव्य जीवनमें भाग

     लेना है तो.., १५३

  -का सार, २४०

  ही प्रगतिका क्षेत्र, २५४अ

  -के मूल्य सत्यपर आधारित नहीं,

     यहां सब कुछ कृत्रिम है, २६१,

     २६४-६५

  (दे० 'जीवन', 'आध्यात्मिक

  जीवन', 'आध्यात्मिक विकास',

  'शक्ति' भी)

 

         भ

 

  मंत्र, ३६१,३६४

  मत-विश्वास, ७४,७५, २४४

  मन,७३,१५८,टी०, २१९,२२२,

२११, ३१९, ३२४, ३५१,

  ३९३

  ठयक्तिरूप, ४३-४

  -पर प्रभुत्व पाना जरूरी, ३८-९

  और संकल्पकी प्राप्तियां शरीरमें,

     ८३, ८७, ११

  भौतिक, बड़ा हठीला, १०२

  -के निश्चय, शंकाका विषय, ११८

  -का बोध : कारण ओर परिणाम

     नियत हैं, १६७

  दार्शनिक, का विकास, २३७

  -को व्यवस्थित दे० 'विचार'

  -की सामान्य अवस्था, २३८,२३९,

    २४०

  व प्राण भावी जन्मके लिये सुरक्षित

    कब, २५३-५४

 -का कार्य, सफाई देना, ३०३-४

 -को नीरव कर देनेका फल, ३३ ०-

    ३१

  कर्म और व्यवस्थाका यंत्र, ३६८

  -का कर्म सीधे आध्यात्मिक शक्ति-

    द्वारा संभव, ३६८-६९

  -के विकासकी उपयोगिता, ३७०-७१

  -का अधिक विकास बाधक!, ३७१

  परिवर्तन नहीं ला सकता, ३८४अ

  सदा आत्म-संतुष्ट, आध्यात्मिक

    शफ्ति इसे झकझोरती..,

    ३८५-८६

  यदि समझनेकी कोशिश न कर, स्वयं '

    को खोले, ३८८-८९

  (दे० 'आध्यात्मिकता', 'उन्मज्जन',

    'बुद्धि', 'श्रद्धा', 'संदेह', 'समझना'

      भी)

   मनुष्य [मानव],

  

४१७


  

 -मे प्रकृति आत्म-चेतन, ७

  -की सामान्य अवस्था, १ ५-७, १९,

    ९५-६, २४७-४९, ३१६, ३४४,

    ३५६, ३८०

  यदि आध्यात्मिक होनेके लिये सह-

   मत. उसकी प्रकृति विद्रोह..,

     ७२ टि०, ७३, ७६

      (दे० 'विरोध' भी)

  -की रचना किस लिये, ९७

  -की आध्यात्मिक अभीप्साकी उच्च-

    तम उपलब्धि, १४०, १४३

   इस सृष्टिका शिखर, १५०, २११

   -मे मनकी क्रिया, स्वाधीनताका

     प्रारंभ, २ उ १

   -मे यह चेतना अपने चरमोत्कर्ष-

     पर पहुंचती और उसे पार कर

     जाती है : व्याख्या, २०१

   -की उपलब्धिकी शक्यता, २०४

   -की पशुसे श्रेष्ठता, २ ०७-९, २११

   सीधा खड़ा हो सकता है, रे ०७

   -के पास प्रशिक्षण-शक्ति, योजना-

     बद्ध विकासकी शक्ति, २०८

   -की अपने बारेमें प्रशंसात्मक रूपमें

      सोचनेकी आदत, २०१

   -का आरापर प्रभुत्व, २११

   -मे लिखने व सुस्पष्ट वाणीकी

      क्षमता, २११

   यदि ओर आगे जानेकी कोशिश

      करता है, २११

   क्या मनुष्य रहनेसे संतुष्ट रहेगा,

     २२०-२१

   -की प्रगति : अभीतक, प्राचीनोंकी

   अपेक्षा व आध्यात्मिकतामें,

   २७६; उसे आत्म-अतिक्रमण-

मे नहीं ले गयी, कारण, २७६अ

 और पशुमें अंतर, २८२-८३

 -के चिंता-संताप ब कष्टोंका कारण,

   २८३-८४; इनसे मुक्तिका एक

   ही रास्ता, २८३-८४

 ही सर्वाधिक दयनीय, २८३

 -के साथ जनमती है आत्म-निर्भरता-

   की भावना, २८४

 -को चेतना दी गयी है ताकि, २८४

 -मे क्षमता, प्रकृतिकी सहायता

  करनेकी, २११, २१९

 विकासका अंतिम पर्व नहीं, २९१

 -मे स्वयं अतिमानवतातक पहुंचने-

  की शक्यता, २११

 -से आध्यात्मिक सत्ताकी ओर

   संक्रमणके बारेमें दो प्रश्न, ३०१

  कुंजीका प्रयोग करनेसे झिझकते है,

   ३९५-९६

  ( दे० 'व्यक्ति', 'सत्ता', 'अति-

  मानसिक जगत्', 'आध्यात्मिक

  उपस्थिति', 'कामना', 'पशु',

  'प्रगति', 'प्रयत्न', 'समस्या' भी)

मनुष्य-शरीर ? मानव-प्ररूप,

 चेतनाको अभिव्यक्त करनेमें अभी-

   तक सबसे समर्थ, २० ३; २०७-९

 -से उच्चतर रूप कैसे बनेगा :

  समस्या, २२१-२३; सब कुछ

  संभव, २२२, २२३

 कैसे प्रकट हुआ २२३-२५, २७३-

   ७४

 -का गठन और सामर्थ्य, २६८ टि०

 -का विधान, २७५अ

 -के सामान्य संघटनमें तब अवश्य

 परिवर्तन आ जायगा, २८२


४१८


  

एक, जब उस चेतनामें सहज रूपसे

  ज़ीने योग्य हो जायगा, २९३

मनुष्य जाति ( मानवता),

 अभी कच्ची धातुके रूपमें, ७१

 -का भविष्य, ७१-२, ७३-४, ७६,

   २७९, २८०-८१

 -के बारेमें आशा, कुछ व्यक्ति यदि

  .., ७१, ७२, १५१, १६२

 आध्यात्मिक प्रवाहको धारण नहीं

   .., ७३

 एक साथ अतिमानव नहीं.., १०३,

   २८२

 इस समयकी जटिलता और

  दुर्व्यवस्था, १६१

 -के लिये क्या ''अभिप्रेत या संभव''

   है व्याख्या, १६६-६८

 क्या कुछ अन्य जातियोंकी तरह

 लुप्त हो जायगी?, २२३

 -मे तनाव उस बिंदुपर.., २७७

 -मे आत्म-अतिक्रमणकी अभीप्सा,

  २८१ २८२

 'मानव स्तरके लुप्त हो जानेकी

  संभावना नहीं, २८२

 -के लिये फिरसे पशु-स्तरपर जा

   गिरना असंभव, २८३

 -की समस्याओंको हल राजनीतिक

  व सामाजिक उपायोंसे, ३८०

  (दे 'आध्यात्मिकता', 'जगत्',

  'परिवर्तन', 'प्रगति', 'विज्ञान',

  'संक्रमणकाल', 'समस्या', 'सह-

  यता', 'समाज' भी)

मस्तिष्क ( दिमाग ओ, २६९, ३३०,

   ३७०

महत्त्वार्फाक्षा, ९३,१५३-५४

मानव परिवार (पुस्तिका), ३

मानसिक ईमानदारी, ३०३-०६

मानसिक रचना, ४६, २९६

मित्र, २८

  सबसे अच्छा, ५२-६

  बुरा, ५४-५, ७८

मिथ्यात्व, ३०६, ३१६

मित्र, ३५९

मुक्ति, २७९

  'मुक्त व्यक्ति और दूसरोंका कष्ट,

    १ ०अ, १२, ३११

  -का प्रारंभ, उच्चतम स्तरोंसे, १३८

  आत्माके संपर्कसे, २८९, ३१२

  व्यक्तिगत, पर एकाग्रताकी प्रवृत्ति,

     ३८५

  -की संभावना कब बनती है, ३८६

  यदि सृष्टिका उद्देश्य होता, ३८९

    (दे 'स्वतंत्रता', 'दासता',

      'श्रद्धा', 'समर्पण' भी)

मूल्य ! [कीमत]६३

  वस्तुकी, विरोधी वस्तुसे, २८

  अदा करना जानो, ६१

  व्यक्ति या समष्टिकी, किस्से,

    ३२८ ३३२

      (दे० 'शांति' भी)

मूर्ल्याकन  [निर्णय],

  करना, दूसरोंका, १२८, ३८३,

    ३८८

  -का हमारा तरीका और अतिमान-

    सिक जगत्का, २६०, २६५

  इस जगत्में, २६१

मृत्यु, २५४

  यदि न रहे, २९, ३३

  वह प्रश्न है जिसे प्रकृति.., ३३

  

 ४१९


 

 -के प्रति पहली प्रतिक्रिया, ३३-४

  -की आवश्यकता क्यों, ३४-५

  कब जरूरी न रहेगी, मेर१, ३६

         

         य

 

यंत्र, दे 'आत्मा'

यूसुफ हुसैन, संत, ६५-८

योग, ७८,११४,११५,१११

   -की प्रक्रिया, आध्यात्मिक, ८५

   -की शर्त, पुराने योगोंमें, ८७

   सामूहिक, की शर्तें, १३१,१३४-३५

   बुढ़ापेमें, १५२-५३

   छुटपनसे यदि. ., १५३, १५५

   -के लिये प्रवेगके आधार, १५४

  -मे आकर्षण-विकर्षण, १७१, १७२

  (दे 'आध्यात्मिकता', 'रोग' भी)

योगी, ९३,३६२

यौवन

   'युवा रहनेका प्रवेग, ३६

 

         र

 

रागद्वेष, १७१

राजनीति, १८९

   और धनके बारेमें मनुष्यकी वृत्ति-

     को बदलना कठिन, १५८-६०

   -से हमारा कोई संबंध नहीं, पर. .,

    १५८अ

राष्ट्र,

  सर्वाधिक सफल, ७७

    (दे 'संकट' भी)

रासमणि, रानी, १४० टि०

रुप,

आरोहणशील, जीवनके, १ ९९-

   २०१, २०३

 चेतनासे पहले (जड़वादी), २२४अ

   (दे० 'आकार', 'मनुष्य-शरीर',

     'प्रकृति' भी)

रूपांतर,

 क्रमिक, के बारेमें, १०३, १०५-६

  पूर्ण, के बारेमें, १०६

  'अधिक उन्नत रूप, न कि छोटे-छटे

    सुधार, १३८

 भौतिक, से पहले नये रूपका बोध

   जरूरी, १३८

 -का कार्य जब सबसे रोचक, १८२-

  ८३

 -की सब समस्याएं पृथ्वीपर. .,१९९

 और क्षयमें होड, ३७८

 पूर्ण, के लिये मनसे ऊंचे उपकरण-

  की जरूरत, ३८५

 त्रिविध : चैत्य, आध्यात्मिक, अति-

   मानसिक, ३९३

 (दे० 'परिवर्तन', 'जडूतत्व',

   'शरीर', 'समय' भी)

रोग

 -सें छुटकारा : उपाय, ४२

 भौतिक घटना या आध्यात्मिक

 जीवनकी कठिनाई, ११४-१६

 -का मूल कारण, ११५

 -से प्रभावित होना : एक पूरा

   सोपान-क्रम, ११६,१ १७अ

 (दे 'औषध', 'संतुलन' भी)

 

        ल

 

  लक्ष्य । उद्देश्य ओ,


 ४२०


  

मुकुट, न कि सूली, ६२

 पड़ावको स मझ लेना, ६३

 व आदर्श हमारा, ८१, १०२, १०६,

  १४२, ३२३ ( दे ० ' पूर्णता ' मी)

   ( दे ० ' विकास ', ' प्रकृति ' भी)

 

       ब

 

वनस्पति,

 -जगत्का विकास, २००

 -मे चेतना, २००

वाणी,

 'बातें करना सत्योंकी, ६१

 'कहनेसे करना अच्छा, ९०

 'बोलनेकी खातिर बोलना, १०९

 'योगमें शरीरपर प्रान्त विजयके

   बारेमें कहना, ११८-११

 -के असंयमपर, १३६-३७

 -की सर्वशक्तिमत्ता कब, १८५

 'इन विषयोंपर जितना कम बोला

  जाय.., ३०२

 'जिस बारेमें तुम नही समझते,

   चुप रहना, ३८८

    (दे० 'समय' भी)

विकास ![ क्रम-विकास],

 -क। गुप्त लक्ष्य, ९२,१००, १११,

   २४५, २५०, २९८

 -की प्रक्रिया : अबतक, १०२;

   भावीमें, १०२-३, १३७-३८

 -का अभिप्राय क्या अज्ञात है?,

    १७३

 -के अभिप्रायको स्वयं महसूस करते

   हों, ऐसे कितने!, १७४

 अंतर्लयन ही परिणाम, १९८ टि०

 क्रमिक, का वर्णन, १९९-२०१

 -की द्विविध प्रक्रिया : भौतिक और

   आंतरात्मिक, २० २-५, २१४-

       १६

 के और आगे जानेकी संभाव्यतामें

   शंका, २११-१२, २१८-१९

 वैयक्तिक सत्ताका मानना जरूरी

  नहीं, २११-१२

 वैयक्तिक, को यदि मानों, २१६

 -की प्रक्रिया मानव प्राणीके 'जन्मकी,

  २७३-७४

 -की सारी प्रक्रिया प्रत्येक सत्तामें

   दुहरायी जाती है, ३००

 अंतर्लयनसे उलटी क्रिया है, ३०७

 -की 'शक्ति' ने अभीतक जो किया

    है, ३१०

    (दे० 'आध्यात्मिक विकास',

  'चेतना', 'प्रकृति', 'मनुष्य' भी)

विकृति, ५०

 मनसे शुरू हुई, ९६, ९७, १७२,

    २७९,२८०

 भौतिक, पर विजय, २६६

   -को दूर होना ही चाहिये, २७९-८०

बिचार,

 तुम्हारे निजी, बहुत कम, ४४

 कहांसे आते है, ४४,२ ३७अ

 विरोधी, मनमें, ४४, २३१

 अपना, दूसरोंपर लादना, ५ ३-४,

   ३७५

  - ओ, विरोधी, मे समन्वय पानेका

  तरीका, ७४अ, १०४

  - ओंको व्यवस्थित करना, २३८-३१

  - ओंका अपना स्वतंत्र जीवन, २३८

  बुरे, उठानेके कई कारण, २३९-४०

 

 ४२१


  

- ओप नियंत्रण, २४०-४१, ३५६

  - ओकों सीधा स्पदनद्वारा भेजना,

  २६९, २७१

  (दे० 'कल्पना', 'ध्यान', 'आध्या-

  त्मिकता', 'जगत्', 'स्त्री' भी)

विचार और सूत्र (पुस्तक), ३५३

विजय,

  -की प्राप्ति : उपाय, ५, १

  -की अभीप्सा., ६२-३

  मनके क्षेत्रमें, नहीं, ११८-११

  सर्वाधिक सहिष्णुकी, २४२

  (दे० 'सफलता', 'अशुभ', 'जड़-

   तत्व', 'विश्वास' भी)

विज्ञान (भौतिक), २९९,३५४

  -की प्रक्रियाएं व सिद्धांत, १०४,

    २२४

  -की उपलब्धिया, १०४

  सत्यकी खोजमें आत्माकी ओर,

    १०५

  -की महत्त्वपूर्ण खोज, २२६; एक

    पग और, और वे सत्यमें. ., २२६

   -की बाहरी दृष्टि, मे ०६

   -का व्यवहारगुह्यविद्या और आध्या-

      त्मिकताके साथ, ३५८

  -का आधार, ३५८

  -द्वारा मन-प्राणका नियंत्रण, ३५८-

    ५९; इसमें मानद जातिके

    लिये खतरा, ३५८

  -की खोजोंका दुरुपयोग : कारण,

     ३५८अ

   -के रसायन-सूत्र, ३६१,३६४

   गुह्यविद्याकी ओर, ३६२-६४

 वित्त-व्यवस्था, १५९-६०

विनाश [विध्वंस],

 ओर सृजन, ७०

 -की शक्तियां, दे 'विरोधी शक्ति'

 'खाईके, मुंहपर, २२९

 -पर नियंत्रण, 'उपस्थिति' के ही

   कारण, ३१४

   (दे० 'क्रांति' भी)

विभाजन ९०, १९७,२९२

विभिन्नता,

 दूसरोंसे, सें सचेत कब, ४४-६

 न बन पाती यदि एकताकी स्मृति

    बनी रहती, ४७

 -का सत्य, ५ ३अ, ३८७-८८

विभेद

 अज्ञानका मूल, ७-८, ११

 मध्यवर्ती अवस्था, २०

विरोध [ अवरोध, प्रतिरोध ],

  - ओंसे जीवनकी कलामयता. व्याख्या,

    २८-९

 निश्चेतना व अज्ञानका, ३२०

 कितना, निचली प्रकृतिमें!, ३८६

  -की मत सुनो, ३१२

विरोधी शक्ति,

 -योंके अधिकारमें संसारको छोडू

    देना, ५

 -यां धरतीपर उत्तर आयी है, साथ

  ही नयी शक्ति भी, २७८

 -योंकी लहर जब धरापर. ., ३१४

विश्राम,

 करनेकी इच्छा, खतरनाक, ६४'

   सच्चा, ६४

विश्व [ सृष्टि ],

 क्या है, १-२, २४५६अ, २१८

 -की उत्पत्तिका हेतु : आनंद, २,

 ७-८, २०, २४९-५०; कामनाको

४२२


   

मानना, ८

 -की विभेद, अज्ञानकी अवस्था एक

 दुर्घटना, ११-२; इसका सुफल

  भी, ११-२

 -का वस्तुगत रूपमें आना, १६८,

   २१०

 -की तीन व्याख्याएं : तात्विक, मनो-

   वैज्ञानिक, बालोपयोगी, १९५

 इस, की विशेषता, १९६

 -की अव्यवस्थाका प्रथम कारण,

   १९७

 चेतन संकल्पका परिणाम, २१०,

   २४५-४६

 -मे उद्देश्य मूलक प्रयोजन नहीं,

  २१२; इस आपत्तिका उत्तर,

   २४९-५०

 शाश्वत कालसे है, अतः सम-

  सामयिक है, २५१

 परमचेतनाका राज्य, पर उसमें

   विचरण स्वतंत्र, अप्रत्याशित,

   २५१

 -के अस्तित्वका उद्देश्य, २९८,

   ३९२; इसे जान लेनेपर उसकी

   पूर्तिका उत्साह, ३९२

 एक भद्दा मजाक, यदि उद्देश्य बाहर

    निकलना हों, ३१ १अ

    (दे० 'जगत्', 'कहानी', 'प्रकृति',

    'भगवान्', 'मुक्ति', 'समझना

    ' मी)

विश्वास, १ '१ १, १ ५रे, २८३, २८५

   रख विजयमें, ७०

   सत्य जीवनमें, १ ५ण

   शरीरमें, विजयका, १५७

  अदृश्य जीवनमें तबतक नही, ३३१

'भरोसा रखो 'कृपा' पर, ३ ९२अ

   (दे० 'श्रद्धा', 'संदेह' भी)

व्यक्ति,

 जो 'शक्ति' को ग्रहण कर सकें, ३६

   १५१ (दे० 'मनुष्य-जाति' भी)

 -गत और सामूहिक उन्नति, १३५,

   १५१

 -गत चेतना और सामूहिक चेतना,

   ३२७, ३४१

 (दे 'आध्यात्मिक विकास',

   'मूल्य' भी)

व्यक्तित्व,

 -का निर्माण, ४३-८

 -का होना एक विजय, ४६

 बनाना, फिर तोड़ना, ४६

   (दे० 'प्रभुत्व' भी)

 व्यवस्था, ३० 'जीवन', 'विचार'

 व्याख्या, १२०-२१, २९६

 

        श

शक्ति, २१, रे७

 -का तिरस्कार मत कर, ७१

 पैदा होती है कठिनाईमेसे, ७१

 -यों, सूक्ष्म, को भौतिक रूप देना,

    ८३, १२१-२२

 ही सुरक्षा है,

   २२८

 -योंको अपनी ओर मत खींचो,

   २२८-२९

 -को दोष देना, २२१

 (दे० 'अतिमानसिक शक्ति' आध्या-

   त्मिक शक्ति', 'अशुभ', 'जगत्'

   भी)

शिष्ट, दे 'भाषा', 'समझना'

 

४२३


 

शरीर, ३१९

  क्र्सपर चढनेवाला नहीं, दिव्य

  महिमान्वित, ३ टि०

 -मे आनन्दका स्पर्श, २३

 -को मृत्युकी ओर ले जानेवाली

   चीज, ३४,३ ५अ

 -मैं दुःखसे छुटकारा. उपाय, ४२,

    १५४,३५०

 -की सीमाएं एक साँचा है. व्याख्या,

    ४३-८

 -पर नियंत्रण जरूरी, ७१, ८३

 -को एक तरफ नहीं छोड़ा जा सकता,

   ८१

 आधार, धर्मसाधनम्, ८१

 -का रूपांतर : जरूरी, ८१; मे

   अपेक्षित चीज़ें, १००

 -के व्यापार 'उच्चतम पूर्णता' तक :

    व्याख्या, ८१ -२

 हमारा पशु-सदृश, ८१ -२

 -की सीमाएं व बंधन, ८२

 -के अंगोंका स्थान 'केंद्र'.., ८२-३,

  १३७

 -के रूपांतरसे जिस लक्ष्यको हमें

 सामने रखना.., ८२

 गौरवपूर्ण, ८२

 -का निर्माण गुह्य पद्धतिद्वारा, ८३

   १२२; इसमें ठोसताकी कमी,

   १२३-२४; इसमें प्रगति किस-

   पर निर्भर, १२४

 -पर काम.. तो जब अतिमानसिक

   सत्य.., १०

 -मे अतिचेतनाकी आविर्भाव लक्ष्य,

  ११ -२

-को बुद्धिद्वारा शासित करना, ९४-५

 

-के दुख-भोगका कारण, ९५

 -का रूपांतर मन-प्राणके रूपांतरके

   बाद या.., १०१

 -मे प्रतिरोध, मनके दखलके बिना

    भी, १० १अ

 दिव्य, मे दिव्य जीवन, १० २इ, १०६

 चेतनाका ही एक यंत्र, १०३, १०४

 -के साथ व्यवहारमें तब भौतिक

   साधनोंका उपयोग क्यों?,

   १०३-५

 -की अब संभाव्यता, १०६, ११ १-

  १२

 जब कह सकेगा : ''मैं 'तू' बन जाऊं'',

   १०६

 मे प्रतिरोध शक्ति, ११५

 ही नीरोग होनेका निश्चय करता

   है, ११७

 -परविजयके लिये मनसे उच्च शक्ति

   अपेक्षित, ११८-११

 रूपांतरितमें क्या स्त्री-पुरुषका भेद

   रहेगा?, १२५-२६

 -कै अंगोंका ही रूपांतर,   १३७-३८

  -के लिये नये जगइका भौतिक बोध

   प्राप्त करना कठिन, १३८

 -के संपूर्ण रूपांतरके लिये, १४६ टि०

 -मे, भगवानके लिये अभीप्सा कैसे

  जगायी जाय?, १ '१२, १ '१ ''६,

   १५७

 -मे एक सहज-स्वाभाविक विश्वास,

   १५६, १५७; यह कैसे खोया

   जाता है, १५६, १५७; करने   

   लायक चीज, १५७

 -की अभीप्सा रूपांतरके लिये,

   १८२अ

 

४२४


   

-के कोषाणु जब उपस्थितिको मूर्त

   रूपमे अनुभव करने.., ३०२

 -के रूपांतरका कार्य लंबा, धीमा,

  ३२१-२२; इसे हर एक कर

  सकता ह, ३२२; इसमें अपेक्षित

  चीजों, ३२२

 तुम्हारा, एक शरीर नहीं, ३२ १अ

 -मे विचारोंका कारण, ऐ २२

  (दे०'मनुष्य-शरीर', 'अति-

  मानव', 'अहं', 'आत्मा', 'जड़-

  तत्व', 'मल', 'रूपांतर',

  'समझना', 'साधना' भी)

शांति, २२७

 -की भूख, साथ व्याकुलताकी.., २८

 -को, मूल्य चुकाये बिना, चरा, ६३

 ही अभीतक 'भागवत कृपापर का

   चिह्न, २७८-७९

अन्यथा असंभव, २८४

   (दे 'नीरवता', 'श्रीअरविन्द' भी)

शारीरिक शिक्षण,

 -मे हमारा प्रयत्न, ७टैअ

 -का उद्देश्य, ८१

 -कै परिणाम, ८३, ९४-५, ३७०

शारीरिक शिक्षण-पद्धति,

 -की उपलब्धिया, १०४

- का उद्देश्य, १४५

 -का आधार, १४६-४९

शिक्षा, ७७,३६५

  जो सबको दी जानी चाहिये, ९७-८

    (दे० श्रीमाताजी' मी)

शुद्धि

 -की ट्टीका सामना, ७२

शून्य,

 -भैंसे किसी चीजका प्रादुर्भाव नहीं

हो सकता, ११४, २१०

श्रद्धा,

 -की शरीरपर क्रिया, १११

 मानसिक विकासवालेकी, १२०

 -द्वारा मुक्तिकी शिक्षा, २८१

 अनिवार्य, पर आरोपित.., ३२३

 क्या प्रयाससे बढायी जा सकती

 है?, ३२४-२५

 (दे 'विश्वास' भी)

श्रवण,

 और गंध, सूक्ष्म जगत्में, १२४

श्रीअरविन्द, २६६,३११, ३३७

 -का आश्वासन उपलब्धिके बारेमें,

   १३

 -ने किसीको जब शांति प्रदान. ., २१

 -को पढ्नेसे सब प्रश्नोंके उत्तर,

    १०७

  -का अनुभव, उपवासक, १११-१२

  -का जन्मदिन, १६३, ३४६

  किस लिये आये थे, १६३, ३४५

  -का जन्म एक 'सनातन जन्म' :

   व्याख्या; १६९-७०

 -ने पार्थिव जीबनको हीलिया, १९९

 -का प्रतिपादनका तरीका, २१२,

   २१९-२०,२३६

  अपने-आपको दोहराते, २१३,२२०

  -को पढ़ते हुए सावधानी, २१३,

    २२०

   -के निष्कर्ष, .२१३

  -का लिखा, उनका मत नहीं, २३६

  -को अपने समर्थनमें उद्धत २६६

  -ने मस्तिष्कमेंसे काले बिंदुको पकड़ा

   और दूर फेंक दिया, २४१

  -का लोगोंका दर्द दूर करना, २४१

 

 ४२५


 

-के कथनकी सच्चाईका प्रमाण तब-

    तक नही., २४२

 -की घोषणा : ४-५-६७ पूर्ण सिद्धि-

   का वर्ष, २९३

 -के साथ, प्लेंशेटद्वारा, संपर्कमें होने-

   की कल्पना करनेवाला, ३२४

 -की 'यौगिक साधन' पुस्तक, ३३६

 -की एक प्रार्थना : वैदिक देवताओं,

  वरुण, इन्द्रक, सूर्य, मरुत्.. के

  प्रति, ३४६-४७

  (दे० 'सुरक्षा' भी)

श्रीमाताजी,

 प्रकृतिके खेलके बारेमें, १०-२

 'हम जो करना चाहते है व कर रहे

 है, १ २अ, ३५, ३६, ७टअ

 ८४, १४२, १५८, १५९अ,

 ३६८

 'जब मैं खेलती हू, १३

 गंभीर क्रय, १ ३अ

 'इच्छा होती है तुमसे विरोधाभासी

   वस्तुएं कहूं, ५२

 -की टॉल्स्टायके पत्रसे भेंट, ५३

 -के 'तेमसेममें संस्मरण, ५६-६२

 -का उत्तर मानवताके बारेमें, ७२

 'इसी चीजने मुझे लंबे समयतक

   ध्यान करनेसे रोका था, ८४

 -का यहांके अपने समूहका प्रती-

  कात्मक स्वप्न, १३१-३५

 -का अनुभव : नये और पुराने जगत्-

    का, १४०-४१

 श्रीअरविदो जब अधिमानसिक

  सृष्टिकी बात बताने गयीं, १४१

 'हमारी नयी दृष्टिका स्वरूप, १४२ 

   ' ' प्रार्थना और ध्यान' मे वर्णित बुद्ध

क्या वही है जिनकी प्रतिमाएं

   पूजी जाती है?, १८६-८७

 'मैं नहीं पाती कि आत्मा छुपा हुआ

   है २१८

 -की ३ फरवरी १९५८ की ( अति-

   मानसिक नावकी) अनुभूति,

   २५५-५६; इसे यदि समझना

   चाहो, २९६

 -की चरम सापेक्षताकी अनुभूति,

   २६०

 -का निराश लोगोंको स्वस्थ करना,

   २६५

 'मैंने यातनाओंको साह है, २३५

 'एक ही चीज मुझे असह्य लगती

   है, २ ६५अ

 .क्रि अनुभूति और प्रार्थना, एक

  धनी, कुत्सित पेटवाली, महिला-

  को देखकर, २८०

 -का मजाक, प्लेशेटवालोके साथ,

   ३३५

 'कठोर शिक्षाकी अपेक्षा मैं बता-

  वरणकी शक्तिको.., ३४३

 'आपने कहा था : ५ साल बाद मैं

   तुम्हें,.., ३४१, ३४४, ३४०_

   (दे० 'अभीप्सा', 'नीरवता',

     'प्रकृति', 'राजनीति' भी)

 श्रीरामकृष्ण, परमहंस, १४० टि०

 

         स

 

सकट,

 -की स्थिति देशोंकी, १६१

संकल्प

 मानसिक, काफी नहीं. शरीरपर

 

 ४२६


 

नियंत्रणके लिये, ११८-१९

 मचेतन, का प्रभाव शरीरपर,

    १४६-४९

 परिवर्तन व प्रगतिका, आवश्यक

   नये जगत्को लानेके लिये, १५१

 सर्व-समर्थ, पूर्ण निरपेक्ष, १६७

 -सें मनुष्य क्या समझता है, १६७

 लें : इस वर्ष अच्छे-से-अच्छा करनेका

    ताकि समय बेकार., २३६

    (दे० 'ज्ञान', 'मन', 'संदेह' भी)

संक्रमणकाल,

 जब पशुसे मानव सृष्ट., १३९

जिसमें हम उपस्थित हैं, १३९,

   १४२, १४४

संतुलन

 -भंग रोगका कारण, ११४

 पूर्ण, की प्राप्तिकी शर्त, २२८

 पूर्ण, के बिना अतिमानसिक शक्ति-

  को खींचना खतरनाक, २२८

संदेश

 वर्ष ५७ का व व्याख्या, ३-५

 नये वर्षके, क्या सूचित करते हैं, ३

  (दे० 'प्रकृति' भी)

संदेह ( शंका,

 -से संकल्पका प्रभाव खो.., ११८

 करना, जानेसे सरल, २२५

 करना मनका स्वभाव, २२५,३२४

 और अविश्वाससे खेलना, ३२४

 'दरवाजा' खोलनेकी क्षमतामें, ३९६

   (दे० 'आत्मा' भी)

संभव, ३० 'अतिमानसिक जीवन',

   'मनुष्य-शरीर'

संभावना,

 सभी, के लिये द्वार खुला, २५१

 

 -एं, असंख्य, हर एकमें, ३६५

संयम, ३० 'आत्म-प्रभुत्व'

सचेतनता, ४७,२४७

 अपने संबंधमें, कितनी, १५-६

 आघातोंसे, १ ६-७, ४६, २४८-४९

 रवेलोंसे, ९२अ

 (दे० 'आत्म-निरीक्षण', 'आत्म-

 जिज्ञासा', 'जागरण', 'विभिन्नता'

 भी)

सन्याई, ३३१

 किसका नाम है, ११४

 'पूर्ण सत्यनिष्ठा क्रय आयेगी, ३ ०५अ

   (दे० 'मानसिक ईमानदारी'

   भी)

सत्ता,

 -एं, मूलत: बुरी, १७२

 -एं, चार, सृष्टिके प्रारंभमें, १९६

  (दे० 'आनंद' भी)

सत्य 'सत्य', ३०६

 - ओंका। मूल्य आचरणसे, ६१

 -के आविर्भावके लिये आवश्यक

   चीज, २४४

 -को समझनेके लिये, रे ०२, ३७४

 और भूल-भ्रांति सदा साथ, ३२६;

   पृथक्करण में सावधानी, ३२६

 -की खोजमें सच्चा उसी ज्ञानको

   पुन: प्राप्त.., ३६३

 -की अनन्य चाह और उत्तर, ३७५

 आध्यात्मिक, कोई एक, सर्व-स्वी-

   कार्य, सिद्धांत-सूत्र नहीं, ३८७

 -को सुन सकनेके लिये, ३८९'

    (दे० 'ज्ञान', 'अनुभव', 'अभीप्सा',

    'जगत्', 'भौतिक जीवन' मी)

सत्य चेतना, १९४

 

 

४२७ 


 

अतिमानसमें और ज्योतिर्मय मनमें,

  १८३-८४

सफलता,

 पूर्ण प्रतीत होनेवाली, ६३

 अध्यवसायीको, ३३१,३३२

   (दे० 'विजय' भी)

समझना,

 मनसे ऊंची वस्तुओंको, १५,३७४,

   ३८८

 उन्हीं शब्दोंको, विभिन्न स्तरोंपर,

   १६८-६९

 भाग्य की स्वरलिपिको, २६७

 एक-दूसरेको, २६७, २६९-७०

 जबतक शरीरद्वारा नहीं,३०३

 मे सृष्टि-योजनाको, ३९२

समझौता, ७३,१२९

समय

 बरबाद करना : आमोद-प्रमोदमें,

  ४१; बातोंमें, ८०; चीजों-

  को सामान्य ढंगसे करनेमें,

  ९२,९३

 दबाव डाल' ण है, ७२

 -की कमीका मतलब, ८०

 लगेगा : पूर्ण रूपांतर में, १०६; जड़

   पदार्थपर विजयमें, २६६

 वर्तमान, धरतीके इतिहासमें अपूर्व,

  १३९, १४४, १५२, २७५

 उपलब्धिमें कितना, १५१, १८२;

   इसे कम कर देनेकी संभावना,

   १६२,१८२

 नहीं, ऊबनेके लिये, ३५८

 कितना, चीजोंके बदलनेमें!, ३८६

   (दे० 'प्रयत्न' भी)

समर्पण [आत्मदान], ४९

 -को यदि जोड़ दो अपने प्रयत्नमें,

   २२,२४, ३३ १अ

 'दे दो, खोलो, पर लेनेकी इच्छा

   .., २२८-२९

 उपाय, मानवकी चिंताओं व कष्टों

  - से मुक्तिका, २८३, २८४

 प्रयासके फलका, २५५

 कर सकनेके लिये चाहिये. ,३८६

 -में ही बदलनेकी शक्ति, ३८७

 शिशु-सा. निष्कपट, सरल, ३९२

   (दे० ' एकता' भी)

समस्या,

 -एं, अति धर्मशील लोगोंकी, ३०-१

 खेलको बदलनेकी, ३६

 मानवताका, ७१-२; इसकी कुंजी,

  ७६

 -एं, सुलझाना, मानवका, अपनी,

   २८४-८५

 -का समाधान, नीरवतामें, ३८९

  (दै 'आध्यात्मिकता', 'मनुष्य-

   जाति', 'मनुष्य-शरीर' भी)

समाज ( समूह, समष्टि ]

  आदर्श अतिमानसिक, श्रीअरविंद

   के अनुसार, १३१, १३४-३५

   धार्मिक, की समानता, १३४.

  -के जीवनमें धर्म एक आवश्यकता,

   ३२६-२८

  -यां तरह-तरहकी, ३३९-४१

  'आदर्श संगठनकी शक्ति, ३४०-४१

  'सामूहिक आध्यात्मिक जीवनके

    प्रयत्न, ३८४-८५

    (दे० 'आश्रम', 'प्रार्थना', 'मूल्य',

      'व्यक्ति', 'श्रीमाताजी' भी)

समाधि, ३, ३६८

 

४२८


 

समानता दे० 'समाज'

सम्मोहन विद्या, ३६३-६४

सहज-स्वाभाविकता, ५०

सहस्र दल कमल, १४१

सहायता,

 कर, पर मुहताज न बना, ६२

 मानवजातिकी, ३८०-८१

 दूसरोंकी, ३८२, ३८३

   (दे० 'भागवत कृपा' भी)

सहारा

 दूसरोंका, २४२

 एक ही, अचल-अटल, २४२

साधना,

 'आनन्द' को जाननेकी, २१-२

 कामना-जयकी, २१

 -की एक अवस्थाको जब तुम पार

   कर जाओ.., १८९

 शरीरकी, अछूते जंगलके समान,

   ३२२

सापेक्षता,

 -का बोध, १९४

 -ओमें निरपेक्ष, ३७४

  (दे० 'श्रीमाताजी भी)

सामूहिक, दे 'समाज', 'व्यक्ति'

साहस ( वीरता ,५, ७१, ७२,३०५,

  ३२२, ३९१

सुख,

 और आनंद, ९, २१, २२, २७,

   ४०, ४१

 कामना-तृप्तिकी, २१

 -से प्रेम, इसलिये दुःख, २७

 -की खोज, ४१

 सांसारिक, १५३

सुरक्षा, ३३४

 

संसारपर मंडराते तूफान से : शर्त,

   १६२

 -की प्राप्ति पहले भी, श्रीअरविन्दके

   रहते, १६२

 ही आदर्श, अधिक लोगोंका, ३२७

  (दे 'शक्ति' भी)

सेवा, दे० 'स्वतंत्रता'

सोचना, २१०

 किसी व्यक्तिके बारेमें, गुह्यविद्याका

   प्रयोग ही है, १७७-७८

 बिना शब्दोंके, २७०-७१, २७२

 सचमुच, २७२

 स्वतंत्र रूपसे, ३२८

 अलग ढंगसे संभव है क्या,

   ३६८

 दौड़नेके बारेमें ही, ३७९

स्त्री और पुरुष [नर और मादा],

   -का भेद, ९८-१००; विचार और

   व्यवहारमें, १२६-२७; इसमें

   सम्यक् वृत्ति, १२७

स्मृति ( याद रखना,

 विशेष घडीमें उपस्थित होनेकी,

   १५२

 चैत्य और मानसिक, २७४

   (दे० 'पूर्वजन्म' मी)

स्वतंत्रता, १९६

 -की चाह और बंधनोंसे प्रेम भी,

    २७-८, २९

 और दासता सेवा भाव पूरक,

    ४८-५०

 -का वर्तमान रूप, ४९

 और उच्छृंखलता, ५

 -की अवस्था, जहां सब कुछ संभव

    है, १६७

 

४२९


 

और पूर्वनिर्धारितता : व्याख्या,

  २५१-५२

और निम्न प्रकृतिकी दुर्बलता,

  ३७७

आध्यात्मिक, से पहले नैतिक पूर्णता-

  को जीना जरूरी, ३७७

(दे० 'मुक्ति', 'एकता', 'खोज' मी)

 

     ह

 

हृदय, दे० 'अंतर्भास'

होना ? बनना], ९३,११४

  

 ४३०


 

४३१


    सूची (उद्धरण)

 

बिचार और झांकियां

योगसमन्वय

प्रार्थना और ध्यान

अतिमानसिक अभिव्यक्ति

अतिमानव (कमोंकी आनंद)

दिव्य जीवन [लाइफ डिवाइन ]

विचार और सूत्र

१-७४

२६

२६

७७-१९१

१९६-९७ टी०

१९८-३९३

३४३-४८

 

४३२


 









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