The Mother's brief written statements on various aspects of spiritual life including some spoken comments.
This volume consists primarily of brief written statements by the Mother on various aspects of spiritual life. Written between the late 1920s and the early 1970s, the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. About two-thirds of them were written in English; the rest were written in French and appear here in English translation. The volume also contains a small number of spoken comments, most of them in English. Some are tape-recorded messages; others are reports by disciples that were later approved by the Mother for publication.
भगवान् तुम्हारे साथ हैं
यह कभी न भूलो कि तुम अकेले नहीं हो । भगवान् तुम्हारे साथ हैं, तुम्हारी सहायता और तुम्हारा मार्गदर्शन कर रहे हैं । 'वे' ऐसे साथी हैं जो कभी धोखा नहीं देते ऐसे मित्र हैं जिनका प्रेम दिलासा देता और बल देता है । श्रद्धा रखो और वे तुम्हारे लिए सब कुछ कर देंगे ।
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यह कभी न भूलो कि तुम अकेले नहीं हो । भगवान् तुम्हारे साथ हैं, तुम्हारी सहायता और तुम्हारा मार्गदर्शन कर रहे हैं । 'वे' ऐसे साथी हैं जो कभी धोखा नहीं देते, ऐसे मित्र हैं जिनका प्रेम दिलासा देता और बल देता है । जितना अधिक तुम अकेलापन अनुभव करोगे उतना ही अधिक तुम उसकी ज्योतिर्मयी 'उपस्थिति' को महसूस कर सकने के लिए तैयार होगे । श्रद्धा रखो और वे तुम्हारे लिए सब कुछ कर देंगे ।
सितम्बर, १९५१
१०
केवल भगवान् में ही हम वह सब पायेंगे जिसकी हमें जरूरत है ।
१७ अप्रैल, १९५४
केवल भगवान् ही पूर्ण सुरक्षा दे सकते हैं ।
१८ अप्रैल, १९५४
'दिव्य चेतना' ही तुम्हारे जीवन में मार्गदर्शन करने वाली शक्ति, हो ।
२२ अप्रैल, १९५४
'भागवत उपस्थिति' हमेशा तुम्हारे साथ हो ।
२७ अप्रैल, १९५४
तुम जो भी करो, भगवान् को सदा याद रखो ।
५ मई, १९५४
जहां कहीं और जब कभी सम्भव हो भगवान् धरती पर अभिव्यक्त होते हैं ।
१० जून, १९५४
प्रत्येक हृदय में 'भगवान् की उपस्थिति' भविष्य की और सम्भव पूर्णताओं की प्रतिज्ञा है ।
१६ जून, १९५४
११
हम केवल भगवान् में ही सम्पूर्ण शान्ति और पूर्ण सन्तोष पा सकते हैं ।
५ जुलाई, १९५४
चीजों की सतह के पीछे पूर्ण चेतना का सागर है जिसमें हम हमेशा डुबकी लगा सकते हैं ।
७ अगस्त, १९५४
एक ऐसी चेतना है जिसे कोई चीज भ्रष्ट, विकृत या दूषित नहीं कर सकती । यही वह चीज है जिसे हम 'भागवत चेतना' कहते हैं ।
'भागवत चेतना' ही हमारी एकमात्र पथ-प्रदर्शक हो ।
११ अगस्त, १९५४
'भागवत चेतना' ही एकमात्र सच्ची सहायता, एकमात्र सच्चा सुख है ।
१२ अगस्त, १९५४
'प्रभु' ने कहा है, ''समय आ गया है'' और सभी विध्न-बाधाएं पार कर ली जायेंगी ।
९ सितम्बर, १९५४
भगवान् ही समस्त जीवन का रस हैं और सभी क्रियाकलाप का कारण हैं, हमारे विचारों के लक्ष्य हैं ।
१० सितम्बर, १९५४
१२
'भगवान् की उपस्थिति' हमारे लिए निरपेक्ष, निर्विवाद और अपरिवर्तन-शील तथ्य है ।
१२ सितम्बर, १९५४
भगवान् के अन्दर, भगवान् के द्वारा सब कुछ रूपान्तरित और महिमान्वित होता है । भगवान् के अन्दर सभी रहस्यों और शक्तियों की चाबी पायी जाती है ।
१४ सितम्बर, १९५४
सभी में भगवान् के परम चिंतन से आने वाली अपरिवर्तनशील शान्ति और भगवान् की अटल अनन्तता की शान्त अन्तर्दृष्टि की कमी है ।
२२ सितम्बर, १९५४
भगवान् की ज्योति में हम देखेंगे, भगवान् के ज्ञान में हम जानेंगे, और भगवान् की इच्छा में उपलब्ध करेंगे ।
१ अक्तूबर, १९५४
भगवान् के बाहर सब कुछ मिथ्या, भ्रान्ति और दुःखपूर्ण अंधकार है । भगवान् में हैं जीवन, प्रकाश और आनन्द । भगवान् के अन्दर ही परम शान्ति है ।
२ अक्तूबर, १९५४
हमारी सारी शक्ति भगवान् के साथ होने में है । उनके साथ हम सब बाधाओं को पार कर सकते हैं ।
क्तूबर, १९५४
१३
रात की नीरवता में भगवान् की आवाज सुरीले राग की तरह सुनायी देती है ।
७ अक्तूबर १९५४
भगवान् की विजय इतनी सम्पूर्ण होती हे कि 'उनके' विरुद्ध उठने वाली हर बाधा, हर दुर्भावना, हर घृणा एक विशालतर और पूर्णतर विजय की प्रतिज्ञा बन जाती है ।
९ अक्तूबर, १९५४
हम भगवान् की ज्योति की प्रचुरता के लिए 'उनका' आवाहन करते हैं, ताकि 'वे' हमारे अन्दर अपने को अभिव्यक्त करने की शक्ति जगायें ।
१० नवम्बर, १९५४
भगवान् के शब्द आराम पहुंचाते और असीसते हैं, ठण्डक पहुंचाते और ज्योति प्रदान करते हैं ओर भगवान् के उदार हाथ उस परदे की एक तह को उठाते हैं जो अनंत ज्ञान को छिपाये हुए है ।
१८ नवम्बर, १९५४
भगवान् के चिन्तन का वैभव कितना शान्त, उदात्त और पवित्र होता है ।
१९ नवम्बर, ११५४
एक नितान्त नूतन जीवन के साथ भगवान् के अन्दर निवास करने से, ऐसा जीवन जीने से जो एकमात्र भगवान् से बना हुआ हो, जिसमें भगवान् ही परम 'प्रभु' हों । सब परेशानियां अक्षोभ में और सारी मनोव्यथाएं शान्ति में बदल जायेंगी ।
२३ नवम्बर, १९५४
१४
हम अपने अन्दर भगवान् को इतने जीवित-जाग्रत् रूप में अनुभव करते हैं कि हम घटनाओं के लिए धैर्य के साथ प्रतीक्षा करते हैं । हम जानते हैं कि 'उनका' मार्ग सब जगह है क्योंकि हम 'उन्हें' हमेशा अपनी सत्ता में लिये रहते हैं ।
२४ नवम्बर, १९५४
भगवान् की महिमा पराजयों को शाश्वत की विजय में बदल देती है, छायाएं 'उनकी' प्रकाशमयी किरणों के सामने आते ही भाग खड़ी होती हैं ।
९ दिसम्बर, १९५४
भगवान् की उपस्थिति हमें शक्ति में शान्ति, कर्म में प्रशान्ति और सब परिस्थितियों के बीच अपरिवर्तनशील सुख देती है ।
१३ दिसम्बर, १९५४
भगवान् विशुद्ध सुख हैं, आनन्दपूर्ण सौभाग्य हैं । परन्तु यह सौभाग्य पूर्ण तभी होता है जब समग्र हो ।
२२ दिसम्बर, १९५४
भगवान् वह मित्र, वह 'शक्ति', वह 'सहारा' ओर वह 'मार्गदर्शक' हैं जो कभी धोखा नहीं देते, भगवान् वह 'प्रकाश' हैं जो अंधकार को तितर-बितर कर देता है, वह विजेता हैं जो विजय को निश्चित बनाता है ।
२३ दिसम्बर, १९५४
केवल भगवान् ही वह सहारा है जो कभी निराश नहीं करता ।
एकमात्र प्रत्युत्तर जो कभी निराश नहीं करता भगवान् का प्रत्युत्तर है ।
१५
एकमात्र प्रेम जो कभी निराश नहीं करता भगवान् का प्रेम है ।
एकमात्र भगवान् से प्रेम करो और भगवान् हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे ।
द्द अगस्त, १९६३
एकमात्र 'परम प्रभु' की राय का महत्त्व है ।
एकमात्र 'परम प्रभु' ही हमारे प्रेम के अधिकारी हैं और 'वे' उसे हजार गुना करके लौटाते हैं ।
११ फरवरी, १९७०
केवल भगवान् को ही अपनी अन्तरात्मा का विश्वासपात्र समझो ।
केवल भगवान् के बारे में ही सोचो और भगवान् तुम्हारे साथ होंगे ।
एकमात्र व्यवसाय लज्ञ्य, एकमात्र आनन्द--भगवान् ।
अपने ही ऊपर एकाग्रता का अर्थ है क्षय और मृत्यु । केवल भगवान् पर एकाग्रता ही जीवन, विकास और उपलब्धि लाती है ।
भगवान् के बिना जीवन एक दुःखद भ्रान्ति है भगवान् साथ हों तो सब आनन्द है ।
आदर्श वृत्ति है केवल भगवान् का ही होना, केवल भगवान् के लिए ही कार्य करना और सबसे बढ़कर, केवल भगवान् से ही बल शान्ति और सन्तुष्टि की आशा करना । भगवान् परम दयालु हैं और वह सब देते हैं
१६
जिसकी हमें लक्ष्य तक यथाशीघ्र पहुंचने के लिए जरूरत हो ।
'भागवत उपस्थिति' ही जीवन को मूल्य प्रदान करती है । यह 'उपस्थिति' समस्त शान्ति समस्त आनन्द, समस्त सुरक्षा का स्रोत है । अपने अन्दर इस 'उपस्थिति' को पा लो तो तुम्हारी सभी कठिनाइयां गायब हो जायेंगी ।
'भागवत उपस्थिति' दिन-रात सतत मौजूद है ।
चुपचाप अन्दर की ओर मुड़ना काफी है और हम उसे पा लेंगे ।
हमेशा भगवान् को याद रखो और तुम जो कुछ करोगे वह 'भागवत उपस्थिति' की अभिव्यक्ति होगी ।
क्रिया-कलाप में और मौन में लेने में और देने में, हमेशा, 'तेरी' ही उल्लासपूर्ण स्मृति ।
हमारे समस्त विचार, हमारे सभी भाव भगवान् की ओर उसी तरह बढ़ते हैं जिस तरह कोई नदी समुद्र की ओर बढ़ती है ।
हमारे समस्त विचार हमारी सभी भावनाएं, समस्त कार्य सभी आशाएं 'भगवान्' की ओर मुड़ी रहें और 'उन्हीं' पर केन्द्रित हों । 'वे' हमारी एकमात्र सहायता, हमारी एकमात्र सुरक्षा हैं ।
हां मेरे बालक, यह बिलकुल सच है कि भगवान् ही एकमात्र आश्रय हैं--'उनके' साथ सम्पूर्ण सुरक्षा है ।
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