The Mother's brief written statements on various aspects of spiritual life including some spoken comments.
This volume consists primarily of brief written statements by the Mother on various aspects of spiritual life. Written between the late 1920s and the early 1970s, the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. About two-thirds of them were written in English; the rest were written in French and appear here in English translation. The volume also contains a small number of spoken comments, most of them in English. Some are tape-recorded messages; others are reports by disciples that were later approved by the Mother for publication.
जो हलचल संचित करती और एकाग्र करती है वह फैलाने और बिखेरनेवाली हलचल से कम आवश्यक नहीं है ।
१३ अप्रैल, १९३५,
*
एकाग्रता किसी प्रभाव को लक्ष्य नहीं बनाती, वह सरल और चिरजीवी होती है ।
किसी यथार्थ लक्ष्य पर एकाग्रता विकास में सहायक होती है ।
हम लक्ष्य पर जितने अधिक एकाग्र होंगे, वह उतना ही अधिक खिलेगा और सुव्यक्त होगा ।
योगी अपनी धारण करने की क्षमता द्वारा या वस्तुओं व्यक्तियों और शक्तियों के साथ सक्रिय तादात्म्य द्वारा जानता है ।
११ अप्रैल, १९३५
''ज्ञान केवल सचेतन तादात्म्य द्वारा आ सकता है क्योंकि वही सच्चा ज्ञान है-अपने आपसे अभिज्ञ सत्ता'' --श्रीअरविन्द
आसपास की चीजों और लोगों के साथ हमेशा एक प्रकार का अचेतन तादात्म्य रहता है; लेकिन इच्छाशक्ति और अभ्यास द्वारा तुम किसी व्यक्ति या किसी चीज पर एकाग्र होना सीख सकते हो और अपने-आपको सचेतन रूप से उस व्यक्ति या चीज के साथ अभिन्न कर सकते हो और इस
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तादात्म्य द्वारा उस व्यक्ति या वस्तु की प्रकृति को जान सकते हो ।
२० मई, १९५५
जो सावधान हो उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है ।
कहा जाता है कि सभी सफल गतिविधियों के मूल स्रोत में होती है दत्तचित्त सावधानी की क्षमता । वास्तव में मनुष्य की क्षमता और उसका मूल्य एकाग्रतापूण मनोयोग से आंका जा सकता है ।१
इस एकाग्रता को प्राप्त करने के लिए साधारणत: यह उपाय बताया जाता है कि आदमी अपना क्रियाकलाप कम कर ले, कोई चुनाव कर ले और उस चुनाव तक ही सीमित रहे ताकि वह अपनी ऊर्जा, अपने मनोयोग को बिखेर न दे । सामान्य मनुष्य के लिए यह उपाय अच्छा है, कभी-कभी अनिवार्य भी होता है । लेकिन तुम इससे ज्यादा अच्छी चीज की कल्पना कर सकते हो ।
कभी मैं मन करता करने की कोशिश करता हूं, कभी समर्पण
करने की कोशिश करता हूं और कभी चैत्य को खोजने की
कोशिश करता हूं | इस तरह मैं अपने ध्यान को किसी चीज पर
केन्द्रित नहीं कर सकता | मुजे पहले किसके लिए कोशिश करनी
चाहिये ?
सभी करना चाहिये, और हर चीज तब जब वह सहज रूप से आये ।
(१६ अक्तूबर, १९६४)
१ माताजी की टिप्पणी-साधारणत: यह विषय में रस होने और उसके लिए विशेष आकर्षण से आता है ।
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