The Mother's brief written statements on various aspects of spiritual life including some spoken comments.
This volume consists primarily of brief written statements by the Mother on various aspects of spiritual life. Written between the late 1920s and the early 1970s, the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. About two-thirds of them were written in English; the rest were written in French and appear here in English translation. The volume also contains a small number of spoken comments, most of them in English. Some are tape-recorded messages; others are reports by disciples that were later approved by the Mother for publication.
सरल और निष्ठावान् हृदय की नीरवता में तुम अवतार का रहस्य समझ सकते हो ।
८ जनवरी, १९५१
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हमारे हृदय की गहराई में हमेशा महान् आनन्द रहता है और हम उसे हमेशा वहां पा सकते हैं ।
१६ अप्रैल, १९५४
सरल और निष्ठावान् हृदय एक महान् वरदान है ।
१५ जून, १९५४
हमारा मन नीरव और अचंचल होना चाहिये लेकिन हमारा हृदय उत्कट अभीप्सा से भरपूर ।
१ जुलाई, १९५४
अपने हृदय की गहराइयों में झांको और तुम वहां 'भागवत उपस्थिति' को देखोगे ।
१४ जुलाई, १९५४
हमारा हृदय कष्ट और मनोव्यथा से शुद्ध हो गया है, वह अटल और स्थिर है और सभी चीजों में भगवान् को देखता है ।
२८ नवम्बर, १९५४
३८४
भगवान् हमेशा तुम्हारे हृदय में आसीन हैं, सचेतन रूप से तुम्हारे अन्दर निवास करते हैं ।
२३ जुलाई, १९५५
तुम्हें हमेशा पूरी-पूरी सहायता दी जाती है, लेकिन तुम्हें उसे अपने बाहरी साधनों द्वारा नहीं बल्कि अपने हृदय की नीरवता में ग्रहण करना सीखना होगा । तुम्हारे हृदय की नीरवता में ही भगवान् तुमसे बोलेंगे, तुम्हारा पथ-प्रदर्शन करेंगे और तुम्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचायेंगे । लेकिन इसके लिए तुम्हारे अन्दर 'भागवत कृपा' और 'प्रेम' में पूरी श्रद्धा होनी चाहिये ।
१८ जनवरी, १९६२
पथ-प्रदर्शन तुम्हारे हृदय में है । अपनी प्रेरणा के अनुसार आगे बढ़ो ।
१४ जनवरी, १९७२
जब मैं 'आपसे' प्रार्थना करता हूं अपने हृदय को 'आपके' प्रकाश की ओर खोलता हूं और अपनी इच्छा को 'आपकी' दिव्य इच्छा के अनुकूल रखता हूं तो मैं निश्चिन्त रहता हूं । लगता कि मर्री सत्ता 'आपकी' वैश्व 'शक्ति' के साथ समस्वर है और कुछ क्षणों के लिये मैं आश्वस्त हो जाता हूं कि 'आपकी' उपस्थिति मेरे साथ और कि 'आपने' मेरी प्रार्थना सुन ली और उसका उत्तर दे दिया । ऐसा लगता मानों मैं 'आपके' प्रकाश में नहा रहा हूं और बहुत खुश हो जाता हूं । लेकिन अन्य समय मेरा भौतिक मन प्रश्न करने लगता और मुझे आश्चर्य होने लगता कि क्या सचमुच 'भगवान्' के साथ उनके तत्त्व में सम्पर्क जोड़ना इतना आसान है । इस मामले में सत्य क्या क्या है, माताजी, कृपया मुझे बोध प्रदान कीजिये ।
३८५
अनुभूति तार्किक मन से बहुत आगे तक जाती है । स्पष्ट है कि तार्किक मन को भगवान् तक पहुंचाना बहुत कठिन लगता है लेकिन सरल हृदय उनसे लगभग बिना किसी प्रयास के नाता जोड़ सकता है ।
पंख हृदय के होते हैं, सिर के नहीं ।
अपने हृदय से पढ़ो तो तुम समझ जाओगे ।
आशीर्वाद ।
३८६
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