The Mother's brief written statements on various aspects of spiritual life including some spoken comments.
This volume consists primarily of brief written statements by the Mother on various aspects of spiritual life. Written between the late 1920s and the early 1970s, the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. About two-thirds of them were written in English; the rest were written in French and appear here in English translation. The volume also contains a small number of spoken comments, most of them in English. Some are tape-recorded messages; others are reports by disciples that were later approved by the Mother for publication.
भाग ३
योग के तत्त्व
सचाई
सचाई भगवान् के दरवाजों की चाबी है ।
*
सच्चे बनो ।
सचाई 'देवत्व' तक जाने का दरवाजा है ।
सचाई का अर्थ है सत्ता की सभी गतिविधियों को अभी तक प्राप्त उच्चतम चेतना और उपलब्धि तक उठाना ।
सचाई समस्त सत्ता के सभी भागों और क्रियाकलापों को केन्द्रीय 'भागवत इच्छा' के चारों ओर एक और समस्वर करने की मांग करती है ।
२१ फरवरी, १९३०
सच्चा होने के लिए सत्ता के सभी भागों को भगवान् के लिए अपनी अभीप्सा में एक होना चाहिये-यह नहीं कि एक भाग तो चाहे और दूसरे भाग इन्कार करें या विद्रोह कर दें । अभीप्सा में सच्चा होने का अर्थ है भगवान् को भगवान् के लिए चाहना; नाम, ख्याति, प्रतिष्ठा और शक्ति या दर्प की किसी तुष्टि के लिए नहीं ।
भागवत कार्य के लिए अपने उत्सर्ग में पूरी तरह सच्चे बनो । यह तुम्हारे बल और तुम्हारी सफलता को आश्वासन देगा ।
भगवान् के प्रति अपने समर्पण में सच्चे और सम्पूर्ण बनो तो तुम्हारा जीवन सामञ्जस्यपूर्ण और सुन्दर बन जायेगा ।
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डरो मत, तुम्हारी सचाई तुम्हारी सुरक्षा है ।
२२ नवम्बर, १९३४
अगर तुम गम्भीरता के साथ भगवान् से कहो ''मैं केवल तुझे ही चाहता हूं'' तो भगवान् परिस्थितियों को इस तरह संजो देंगे कि तुम सच्चे बनने के लिए बाधित होगे ।
८ जून, १९५४
सरल सचाई : समस्त प्रगति का आरम्भ ।
अपने आध्यात्मिक लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सच्चे बनो, यानी उसे ही अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य बनाओ ।
३ जून, १९५८
आध्यात्मिक उपलब्धि के लिए अटल सचाई और निष्कपटता ही सबसे अधिक निश्चित मार्ग है ।
स्वांग मत करो, बनो । वचन मत दो, करो । सपने मत देखो, चरितार्थ करो ।
स्वांग मत करो, बनो ।
वचन मत दो, करो ।
सपने मत देखो, चरितार्थ करो ।
पूरी तरह सच्चे बनो और कोई विजय तुम्हारे लिए दुर्लभ न होगी ।
सचाई में विजय की निश्चिति है ।
सचाई! सचाई! कितनी मधुर है तुम्हारी उपस्थिति की पवित्रता !
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भगवान् हमेशा उनके साथी होते हैं जो उत्साही और सच्चे हैं ।
मार्च १९६३
एकमात्र मुक्ति पूर्ण सचाई और सत्यवादिता में है ।
२६ मार्च , १९६३
आवश्यकता है पूर्ण सचाई की ।
'सचाई' और 'निष्ठा' 'पथ' के दो रक्षक हैं ।
२१ फरवरी, १९६५
हम सभी विपरीत मतों के बावजूद सच्चे होना चाहते हैं; सचाई हमारी सुरक्षा है ।
१९ दिसम्बर, १९६७
मुझे किस चीज का सबसे अधिक विकास करना चाहिये ? और
किस चीज का सबसे अधिक परित्याग ?
विकास-सचाई (यह भगवान् के रास्ते पर पूर्ण संलग्नता है ।)
त्याग-पुरानी मानवीय आदतों के खिंचाव का ।
२५ फरवर, १९७०
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