The Mother's brief written statements on various aspects of spiritual life including some spoken comments.
This volume consists primarily of brief written statements by the Mother on various aspects of spiritual life. Written between the late 1920s and the early 1970s, the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. About two-thirds of them were written in English; the rest were written in French and appear here in English translation. The volume also contains a small number of spoken comments, most of them in English. Some are tape-recorded messages; others are reports by disciples that were later approved by the Mother for publication.
तपस्या
किसी आध्यात्मिक उद्देश्य के लिए संकल्प-शक्ति द्वारा आरोपित अनुशासन है तपस्या ।
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तपस्या : भगवान् की प्राप्ति के उद्देश्य को लक्ष्य बनानेवाला अनुशासन ।
मानसिक तपस्या : लक्ष्य की ओर ले जानेवाली प्रक्रिया ।
प्राणिक तपस्या : प्राण अपने-आपको रूपान्तरित करने के लिए कठोर अनुशासन का पालन करता है ।
सर्वांगीण तपस्या : समस्त सत्ता केवल भगवान् को जानने और उनकी सेवा करने के लिए ही जीती है ।
पूण तपस्या : वह जो अपने लक्ष्य तक पहुंचेगी ।
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आत्म-अनुशासन के बिना कोई जीवन सफल नहीं हो सकता ।
मनुष्य होने के लिए अनुशासन अनिवार्य है ।
अनुशासन के बिना तुम केवल पशु होते हो ।
तुम मनुष्य बनना तभी शुरू करते हो जब तुम उच्चतर और सत्यतर जीवन के लिए अभीप्सा करते हो और रूपान्तर के अनुशासन को स्वीकार करते हो । और इसके लिए तुम्हें अपनी निम्न प्रकृति और उसकी कामनाओं पर प्रभुत्व पाने से आरम्भ करना चाहिये ।
९ मार्च, १९७२
यह कहा जा सकता है कि सभी प्रकार का अनुशासन, यदि उसका अनुसरण सख्ती से सचाई से, और सोच-समझकर किया जाये तो काफी सहायता करता है, क्योंकि वह तुम्हें पार्थिव जीवन के लक्ष्य तक तेजी से ले जाता है और नूतन जीवन को ग्रहण करने के लिए तैयार करता है । अपने को अनुशासित करने का अर्थ है इस नूतन जीवन के आगमन और अतिमानसिक सद्वस्तु के साथ सम्पर्क को जल्दी लाना ।
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